Newslaundry Hindi

दिल्ली दंगा: सोनू, बॉबी, योगी और राधे जिनका नाम हर चश्मदीद ले रहा है

दिल्ली दंगे पर जारी एनएल सेना सिरीज के पहले पार्ट में आपने पढ़ा कि दंगे के दौरान 25 फरवरी की रात मारुफ़ की गोली मारकर हत्या कर दी गई, शमशाद के पेट में गोली लगी. घटनास्थल पर मौजूद रहे मारुफ़ के बड़े भाई हारून और घायल शमशाद के बार-बार कहने के बावजूद दिल्ली पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर रही है. हारून और शमशाद का आरोप है कि पुलिस सोनू, बॉबी, राधे और राम सिंह समेत बाकी आरोपियों को नामजद नहीं कर रही है.

मारुफ़ की हत्या और शमशाद को गोली लगने के मामले में क्राइम ब्रांच ने आठ जून को चार्जशीट जमा की. इसमें बताया गया है कि गोली मारने वाली भीड़ सीएए के समर्थन में नारे लगा रही थी. एफआईआर में लिखा है कि भीड़ के लोग जय श्रीराम का और सीएए के समर्थन में नारे लगा रहे थे. मृतक के भाई हारून और पीड़ित शमशाद कह रहे हैं कि गोली मारने वाले जय श्रीराम और कपिल मिश्रा जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे, लेकिन पुलिस ने इस मामले में शोएब सैफी, इमरान खान, मोहम्मद दिलशाद, मोहम्मद इमरान, नवीन त्यागी और मनोज कुमार गुर्जर को गिरफ्तार किया है. पुलिस ने इनपर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की 11 धाराएं लगाई हैं. जो 144/147/148/149/152A/188/201/307/302/505/34 और आर्म्स एक्ट 27 है.

पुलिस ने चार्जशीट में दावा किया है कि इन लोगों की गिरफ्तारी ठोस सबूत और प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा दी गई सूचना के बाद ही की गई है.

इनकी गिरफ्तारी में सबूत के तौर पर सीसीटीवी फूटेज के अलावा पीड़ित शमशाद, एक लोकल वेबसाइट में काम करने वाले पत्रकार चौधरी हैदर अली और इस मामले में जेल गए मोहम्मद इमरान के बड़े भाई मोहम्मद इरफ़ान का बयान महत्वपूर्ण है.

‘मैंने ऐसा कुछ कभी बोला ही नहीं’

29 फरवरी को क्राइम ब्रांच ने शमशाद का बयान इनर डायरी में दर्ज किया है. तीन पेज का यह बयान न्यूजलॉन्ड्री के पास मौजूद है.

इस बयान में शमशाद ने शोएब सैफी, इमरान, दिलशाद, और मनोज गुज्जर का नाम लिया है वही पुलिस ने चार्जशीट में बताया है कि मोहम्मद इमरान की पहचान शमशाद ने भी की थी. यानी नवीन को छोड़कर बाकी तमाम आरोपियों की गिरफ्तारी शमशाद के पहचानने के बाद की गई. शमशाद के अलावा पुलिस के अनुसार कई और लोगों ने इनकी पहचान की थी.

27 फरवरी को आदेश आया कि दंगे से जुड़े सभी मामलों की जांच एसआईटी करेगी. इस तरह यह मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया. दो दिन बाद 29 फरवरी को आईओ लोकेन्द्र चौहान को दिए अपने बयान में शमशाद दंगे के दौरान सक्रिय रहे लोगों में शोएब, इमरान, मोहम्मद दिलशाद, मोहम्मद इमरान और मनोज गुर्जर का नाम दर्ज कराते हैं.

ठीक एक महीने बाद 30 मार्च का शमशाद का एक और बयान इनर डायरी में मौजूद है. जिसमें उन्होंने बताया है कि पुलिस आज सीसीटीवी फूटेज लेकर उनके घर आई थी और उस वीडियो में उन्होंने शोएब, इमरान, मोहम्मद दिलशाद, मोहम्मद इमरान और मनोज गुर्जर की पहचान की.

अब यहां एक हैरान करने वाली बात सामने आती है कि जिन लोगों का नाम 29 फरवरी को शमशाद ने अपने बयान में लिया एक महीने बाद सीसीटीवी में उन्हीं लोगों की पहचान की. क्या यह महज इत्तफाक है कि सैकड़ों की संख्या में खड़े दंगाइयों में से शमशाद ने उन्हें ही पहचाना जिनकी तस्वीर सीसीटीवी में कैद हो गई थी?

शमशाद का 29 फरवरी को दिया गया बयान
शमशाद द्वारा 30 मार्च को दिया गया बयान

हमने जब इस बारे में शमशाद से सवाल किया तो वे कहते हैं, “इनमें से मैंने किसी को भी उस रोज गोली चलाते नहीं देखा था. मेरे मामले में इन लड़कों को गलत उठाया गया है. जिन बंदों का मैंने नाम बताया था उनको पुलिस ने गिरफ्तार ही नहीं किया है. दूसरों को पकड़ लिया खामखा. आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं. अपनी दादागिरी दिखा रहे हैं.’’

शमशाद पुलिस पर अपने मन मुताबिक बयान लिखने के आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘‘पुलिस हमसे हर बार सादे कागजों पर हस्ताक्षर करा रही थी. हमारे पूछने पर वे बार-बार कहते थे कि ज़रूरत के लिए करा रहे हैं.’’

‘पुलिस मेरी हत्या करा सकती है’

मारुफ़ और शमशाद को गोली लगने के मामले में गिरफ्तार आरोपियों की पहचान एक वेबसाइट के लिए काम करने वाले 32 वर्षीय पत्रकार चौधरी हैदर अली ने भी की है.

पुलिस ने इनर डायरी में 9 मार्च को चौधरी हैदर का बयान दर्ज किया. जिसमें वे बताते हैं, ‘‘इलाके में 24 फरवरी से माहौल खराब था. अफवाह फ़ैल गई कि औलिया मस्जिद पर हमला करने वाले है. जिसके बाद गली नम्बर दो में रहने वाले भी तैयारी करने लगे. 25 फरवरी को मैं रिपोर्टिंग के लिए सुभाष मुहल्ला में था. राम सिंह के छत पर शोएब, इमरान समेत कई लड़के पत्थरबाजी कर रहे थे. मैंने उन्हें समझाया तो उन्होंने कहा क्या हम अपनी मस्जिद को न बचाए.’’

चार्जशीट के अनुसार मनोज गुर्जर, शोएब, इमरान और दिलशाद की पहचान चौधरी हैदर ने की है.

न्यूज़लॉन्ड्री जब चौधरी हैदर अली से मिलने उनके घर पहुंचा तो एक हैरान करने वाली जानकारी सामने आई. हैदर अली की बीती 28 मई को उनके घर से महज सौ मीटर की दूरी पर हत्या कर दी गई है.

मारुफ़ मामले के कथित गवाह चौधरी हैदर अली 28 मई को हो गई हत्या

29 मई को प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) की एक रिपोर्ट में कहा गया, "पुलिस ने बताया कि गुरुवार रात 8.30 बजे के करीब दो अज्ञात बाइक सवारों ने अली पर गोलियां चलाईं.’’ वहीं 20 जून को इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हैदर की हत्या, हाशिम बाबा और अब्दुल नासिर गैंग के बीच के दुश्मनी के कारण हुई.

एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, "जांच से पता चला कि उन्होंने (बाबा गिरोह) हैदर को मार डाला. उनका मानना था कि हैदर, अब्दुल नासिर का करीबी था. उसके सम्बन्ध में पॉजिटिव खबरें चलाता था. उसका काम भी संभालता था.’’

हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री जब हैदर के यूट्यूब चैनल पर गया तो 28 फरवरी की एक वीडियो मिली. जो एक फेसबुक लाइव था. उस वीडियो में हैदर पुलिस पर कई गंभीर आरोप लगाते नज़र आ रहे हैं. उसमें एक जगह वे कहते हैं, ‘‘मुझे पता है कि इस फेसबुक लाइव के बाद शायद पुलिस मुझे ना छोड़े, मार भी दे. हो सकता जो दूसरे लोग इनके साथ मिले हुए है, जो नेता हैं वो मरवा भी दें.’’

हैदर अली की मौत के बाद उनके परिजन कुछ भी बोलने से बचते नज़र आ रहे हैं. वहीं इस मामले की जानकारी के लिए जब हमने भजनपुरा थाने के एसएचओ अशोक शर्मा से बात किया तो वे भी कुछ जानकरी देने से बचते नजर आए. उन्होंने कहा, ‘‘अभी दो दिन पहले ही मैं यहां आया हूं. इस मामले की मुझे जानकारी नहीं है.’’

इरफ़ान

26 वर्षीय मोहम्मद इरफ़ान अपने भाई इमरान की जगह मेडिकल स्टोर पर बैठे रहे हैं. इमरान को पुलिस ने मारुफ़ की हत्या के मामले में जेल में बंद किया है.

पुलिस ने इरफ़ान से भी पूछताछ की थी. इरफ़ान ने ना सिर्फ पुलिस के सामने बयान दिया. बल्कि कई दंगाइयों की पहचान के साथ-साथ आसपास के सीसीटीवी से फूटेज इकठ्ठा करके भी पुलिस को सौंपा था.

लेकिन चार्जशीट में अपने नाम का लिखा बयान पढ़कर इरफ़ान हैरान हो जाते है. चार्जशीट के अनुसार इरफ़ान ने सीसीटीवी फूटेज के जरिए इमरान खान, दिलशाद, मनोज गुर्जर, नवीन त्यागी, निक्की और गुच्छी की पहचान की थी. लेकिन इरफ़ान बताते हैं,‘‘मैंने दिलशाद और इमरान खान की पहचान नहीं की थी. यह पुलिस ने अपने से बनाया है.’’

मारुफ़ अली केस के गवाह मोहम्मद इरफ़ान
पुलिस चार्जशीट में इरफान का नाम

इमरान के दावे के मुताबिक जिन चार लोगों की पहचान उन्होंने सीसीटीवी फूटेज देखकर की थी उसमें से निक्कू और गुच्छी का नाम चार्जशीट में कहीं दर्ज नहीं की है.

सीसीटीवी फूटेज से पहचान

चार्जशीट में क्राइम ब्रांच ने बताया है कि दंगाइयों की पहचान उन्होंने तीन सीसीटीवी कैमरों से की है. चार्जशीट में पुलिस ने एक मैप का जिक्र किया जो न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद है. इसके अनुसार एक कैमरा गली नम्बर दो के पास लगा है जिसके जारिए शोएब, दिलशाद और मोहम्मद इमरान की पहचान की गई. दूसरा कैमरा जो गली नम्बर चार के पास लगा हुआ है इसका इस्तेमाल इमरान खान की पहचान में की गई.

आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण चार्जशीट में बताया गया है कि पीडब्लूडी का एक कैमरा सुभाष मुहल्ला के, के ब्लॉक में ठाकुर हलवाई की दुकान के सामने लगा हुआ था. यह वही जगह है जहां उग्र भीड़ खड़ी थी. इस सीसीटीवी फूटेज के जरिए पुलिस भीड़ में शामिल लोगों की पहचान कर सकती थी, लेकिन चार्जशीट में पुलिस ने लिखा है, ‘‘सुभाष मुहल्ला स्थित के ब्लॉक के हाउस नम्बर 45 में लगे सीसीटीवी से पुलिस को कोई फूटेज बरामद नहीं हुआ. क्योंकि इस सीसीटीवी फूटेज का डीवीआर चोरी हो गया था.’’

नवीन और मनोज को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने किस सीसीटीवी कैमरे का फूटेज इस्तेमाल किया है यह स्पष्ट नहीं हो पाया. चार्जशीट में भी पुलिस ने इसको लेकर कोई जानकारी नहीं दिया है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी तहकीकात के दौरान चार आरोपियों के परिजनों और एक आरोपी, जो बीमारी के कारण दो महीने के लिए अंतरिम जमानत पर छूटकर आए हैं, से बात की और जानने की कोशिश आखिर उन्हें क्यों जेल में डाला गया. पुलिस ने चार्जशीट में उनके खिलाफ क्या सबूत पेश किए है.

मोहम्मद दिलशाद: ‘मैं भीड़ को रोक रहा था ना की भड़का रहा था’

सुभाष मुहल्ले के गली नम्बर दो में बीते 26 सालों से रहने वाले 44 वर्षीय मोहम्मद दिलशाद को इस मामले में आरोपी बनाया है. इनपर पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 307 (हत्या की कोशिश) समेत कई गंभीर धाराएं लगाई है. पुलिस ने दिलशाद की गिरफ्तारी चार्जशीट में 31 मार्च को बताई है, लेकिन दिलशाद और उनके परिवार के लोग कहते हैं कि उन्हें 29 मार्च को गिरफ्तार किया गया. दो महीने जेल में रहने के बाद 9 जून को उन्हें बीमारी के कारण दो महीने की अंतरिम जमानत मिली है.

5 जून को कड़कड़डूमा कोर्ट में दिलशाद को उनकी स्वास्थ्य की स्थिति देखते हुए अंतरिम जमानत देने वाले जिला जज ने लिखा, "ऐसा मालूम चल रहा है कि जेल प्रशासन को इनको (दिलशाद को) बेहतर इलाज मुहैया कराने में मुश्किल हो रहा है. ऐसी स्थिति में जब जेल प्रशासन इसे उपचार प्रदान नहीं कर रहा है, तो आरोपी को बाहर इलाज कराने से वंचित नहीं किया जा सकता है.’’

दिलशाद की स्थिति अभी भी बेहतर नहीं है. जब हम उनसे बात कर रहे थे तो पंखा चलने के बावजूद उन्हें बार-बार पसीना आ रहा था. उनका पसीना पूछते हुए उनकी पत्नी रुकसाना बिना रुके बोलती जाती है, ‘‘आप देखिए कितने बीमार है ये और पुलिस वालों ने मर्डर का चार्ज लगा दिया है. ये किसी का मर्डर कर सकते हैं? इनको दिल की बीमारी है. दो बार अटैक आ चुका है. 2008 से ही इनका जीबी पंत अस्पताल में इलाज चल रहा है. दो महीने जेल में रहे. इनको छुड़ाने के लिएहमें डेढ़ लाख रूपए खर्च करना पड़ा. ये सिर्फ अकेले कमाने वाले है. इन्हें गलत फंसाया गया है.’’

पुलिस ने चार्जशीट में बताया है कि 30 मार्च को एक इनफॉर्मर ने ऑफिस आकर सूचना दी की दिलशाद नाम का एक आदमी सक्रिय रूप से दंगे में शामिल था और नौजवान लड़कों को दंगे के लिए भड़का रहा था. जिस जगह मारुफ़ को गोली लगी थी उस जगह भी सक्रिय था और औलिया मस्जिद के पास भी इसे मजामिल नाम के दूसरे दंगाई के साथ देखा गया था. इसके बाद एक टीम का गठन किया गया और दिलशाद की गिरफ्तारी हुई.

इन्फॉर्मर से 30 मार्च को सूचना मिलने के बाद पुलिस 31 मार्च को दिलशाद को गिरफ्तार कर लेती है.

जिस सीसीटीवी के फूटेज से पुलिस शोएब सैफी और मोहम्मद इमरान को गिरफ्तारी की उसी से दिलशाद का भी फूटेज मिला है. वहीं 29 मार्च को जो बयान इनर डायरी में शमशाद का दर्ज है उसमें शमशाद के हवाले से पुलिस ने लिखा है, ‘‘शोएब और इमरान अपने साथियों के साथ ऊपर छत पर ही थे और पथराव कर रहे थे. बीच में दिलशाद भी थोड़ी-थोड़ी देर में आते जाते लोगों को भड़का रहे थे. बोल रहे थे कि आज ताकत दिखानी है. दिलशाद को मैं अलग से इसलिए पहचान पाया क्योंकि वे गली नम्बर दो में नेता है.’’

दिलशाद दंगे में शामिल थे इसके लिए चार्जशीट में पुलिस ने दिलशाद की कुछ तस्वीरें साझा की है. जो 24 और 25 फरवरी की है. 24 फरवरी की रात कुछ लड़कों को दोनों हाथ ऊपर करते कुछ समझाते हुए तस्वीर है. वहीं घटना वाली रात किसी चीज की तरफ इशारा करते हुए रात 11:17 से 12:15 के बीच की तस्वीर है.

पुलिस ने चार्जशीट में दिलशाद पर दंगाइयों को दंगे के लिए भड़काने का आरोप लगाया है. चार्जशीट में पुलिस ने यह दावा किया है कि पूछताछ के दौरान दिलशाद ने दंगों में अपनी भूमिका स्वीकार कर ली. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि यह मारूफ अली की हत्या में दिलशाद की भूमिका को कैसे स्थापित करता है.

दिलशाद न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘मैं दिल का मरीज हूं. 24 फरवरी को इलाके में माहौल बेहद खराब था. उधर से लड़के चढ़कर इधर आ रहे और इधर से लड़के उस तरह जाने की कोशिश कर रहे थे. उधर के लड़कों का मकसद औलिया मस्जिद को नुकसान पहुंचाना था. मैं अपनी गली के लड़कों को समझा रहा था, लेकिन पुलिस ने मुझपर हत्या का मामला लगाकर जेल में बंद कर दिया.’’

‘‘मैं कोई नेता नहीं हूं और ना ही मेरा कोई संगठन है. मेरी तबियत खराब रहती हैं. दो बार अटैक आ चुका है. ऐसे में जहां नारे लग रहे हो और गोलियां चल रही हो वहां मैं जाऊंगा क्या. मेरे बच्चे मुझे बाहर जाने ही नहीं दे रहे थे. मैं घर से निकला भी तो बस लड़कों को समझाने के लिए. जेल में भी मेरी तबियत बेहद ख़राब रही और उसी के आधार पर दो महीने के लिए अंतरिम जमानत मिली है. मैं बिना गलती के दो महीने से ज्यादा समय तक जेल में रहकर आया हूं.’’ दिलशाद कहते हैं.

दिलशाद का घर औलिया मस्जिद के पास ही है. यह जगह मारुफ़ और शमशाद के घर से दो सौ मीटर है.

अपनी गिरफ्तारी को लेकर दिलशाद बताते हैं, ‘‘मारुफ़ और शमशाद को गोली लगने के मामले में पुलिस यहां के कई लोगों को नोटिस दिया है. आप देखिए इस गली में कितने घरों के बाहर ताले लटके हुए है. सब लोग डर से गायब है. हर रोज एसआईटी के लोग आते हैं. ऐसे ही एक दिन एसआईटी के लोग आए थे और पड़ोस में बिहार के रहने वाले फजन अली को तलाश रहे थे. पुलिस उससे एकबार पूछताछ के लिए ले गई थी और बहुत मारी थी जिसके बाद वो घर लौटा और घर से फरार हो गया. पुलिस उसकी पत्नी से बात कर रही थी तो मैं गली का होने के नाते वहां गया और बोला की ये महिला बेहद परेशान है. मेरा इतना कहना ही था कि एक पुलिस वाले ने मुझे पीछे से पकड़ा और मारते हुए लेकर चल दिया. वो कह रहे हैं ज्यादा नेता बन रहा है. मैं कुछ समझ ही नहीं पाया. वहां मुझे पूछताछ हुई तो खुद लोकेन्द्रजी ने कहा की तुम गलत आ गए.’’

सुभाष मुहल्ला में पुलिस की डर से बंद कमरें
सुभाष मुहल्ला में पुलिस की डर से बंद कमरें
सुभाष मुहल्ला में पुलिस की डर से बंद कमरें

दिलशाद कहते हैं, ‘‘मैं अक्सर बीमार रहता हूं. दंगे के दौरान 24 फरवरी को भी मेरी तबियत खराब ही गई थी. सबकुछ बंद था. मैं जीबी पन्त अस्पताल नहीं जा सकता था तो मैं पास के ही आनंद क्लिनिक गया हुआ था. ऐसे में मैं दंगे करूंगा और लोगों को भड़का सकता हूं. मजलूम के पक्ष में बोलने के कारण मुझे हिरासत में लिया गया.’’

दिलशाद उस रोज अस्पताल आए थे यह जानने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने आनंद क्लिनिक के डॉक्टर नरेंद्र शर्मा से बात की तो उन्होंने बताया, ‘‘24 फरवरी को यहां दंगे तो हो ही रहे थे. हम भी कभी क्लिनिक बंद करके तो कभी खोलकर चला रहे थे. दिलशाद हमारे यहां दवाई लेने आए या नहीं इसपर मैं कुछ साफ़ नहीं कह सकता हूं. ब्लड प्रेशर वगैर दिखाने आए हों तो पता नहीं. यहां काफी संख्या में लोग आए थे और उस दिन की हमारे पास एंट्री है नहीं.’’

डॉक्टर नरेंद्र आगे कहते हैं, ‘‘वे दिल के मरीज हैं तो उनकी तबियत अक्सर ही खराब रहती है. मैं उन्हें बीते पन्द्रह सालों से ज्यादा समय से जानता हूं. दंगे में इनकी भूमिका के बारे में कुछ भी नहीं कह सकता हूं, लेकिन मैं इतना कह सकता हूं कि इस बंदे को हमने कभी इस तरह के कामों में देखा नहीं है. भीड़ में कौन क्या कर रहा है नहीं जानता, लेकिन यह बंदा लायक है.’’

चार्जशीट में पुलिस ने लिखा है कि दिलशाद ने पूछताछ के दौरान बताया है कि नूर-ए-इलाही, भजनपुरा में चल रहे सीएए के खिलाफ प्रदर्शन में वह नियमित तौर पर जाते थे जिसके बाद उन्होंने (दिलशाद) अपने मन में बनाया कि केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए इस कानून से मुसलमानों की नागरिकता छीन जाएगी और उन्हें डिटेंशन सेंटर भेज दिया जाएगा.

पुलिस ने चार्जशीट में दर्ज किया दिलशाद का नाम

दिलशाद पुलिस के इस आरोप को गलत बताते हुए कहते हैं, ‘‘मैं किसी भी सीएए प्रोटेस्ट में शामिल नहीं हुआ.’’ वहीं वे दावा करते हैं कि पुलिस के लोगों ने पूछा था, ‘‘कौम के लिए सीएए-एनआरसी के प्रदर्शन में नहीं गए तो मैंने उन्हें जवाब दिया था कि मुझे अपनी बीमारी की देखभाल करनी है, मैं अपने क़ौम के लिए क्या करूंगा?"

इतना ही नहीं दिलशाद बताते हैं, ‘‘गिरफ्तारी के बाद मुझसे पुलिस वाले ने पूछा कि तुम्हारा संबंध पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के लोगों से है? लेकिन मैं तो पीएफआई के बारे में जानता तक नहीं था. पुलिस एकतरफ़ा ही कार्रवाई कर रही है. मेरे नाम पर किसी ने शिकायत नहीं की फिर भी मेरी गिरफ्तारी हो गई. जहां तक सीसीटीवी फूटेज की बात हैं. मैं उसमें आया ज़रूर हूं, लेकिन मैं बच्चों को समझा रहा हूं. दंगा करना होता तो मेरे हाथ में भी कुछ ना कुछ तो ज़रूर होता.’’

पुलिस ने भी चार्जशीट में लिखा है कि दिलशाद के हाथ में कोई भी डंडा या बाकी कुछ भी नहीं देखा गया.

शोएब सैफी और इमरान

दिल्ली पुलिस ने मारुफ़ और शमशाद को गोली लगने के मामले में 19 वर्षीय शोएब सैफी और 24 वर्षीय इमरान को एक साथ ही ग्यारह मार्च को गिरफ्तार किया.

शोएब और इमरान की गिरफ्तारी इन्फॉर्मर की सूचना पर की गई. दोनों को शोएब के किराए वाले घर से गिरफ्तार किया गया. शोएब अपने परिवार के साथ राम सिंह के घर में किराए पर रहता है. वहीं इमरान गली नम्बर छह का रहने वाला है.

पुलिस चार्जशीट में बार-बार कह रही हैं कि राम सिंह का घर इलाके में सबसे ऊंचा है और उसी के छत पर शोएब और इमरान ईंट और पत्थर जमाकर हमला कर रहे थे. धार्मिक नारे लगा रहे थे. पुलिस ने चार्जशीट में शोएब की तस्वीर जारी की है जिसमें उसके हाथ में डंडा दिख रहा है. वह कई लड़कों के साथ खड़ा भी है. यह तस्वीर 24 फरवरी की है.

चार्जशीट में पुलिस ने 26 फरवरी का एक व्हाट्सएप चैट का स्क्रीनशॉट भी दिखाया है जिसमें शोएब किसी अबरार नाम के शख्स को मैसेज करके बोल रहा है, ‘‘भाई मुझे सामान चाहिए कल और सात गोलियां भी.’’

पुलिस सामान के रूप में अवैध बंदूक मान रही है. इसके अलावा पुलिस ने कथित तौर पर 26 फरवरी के दिन की एक तस्वीर छापी है जहां शोएब के हाथ में "एक जिंदा कारतूस" दिखाया गया है. न्यूजलॉन्ड्री स्वतंत्र रूप से इस चैट या तस्वीर की सत्यता की पुष्टि नहीं कर रहा है.

वहीं चार्जशीट के अनुसार शोएब ने पूछताछ के दौरान बताया कि वो अबरार से बंदूक नहीं ले पाया. बंदूक और गोली मांगने के पीछे क्या मकसद था, सवाल के जवाब में शोएब ने कहा, ‘‘दंगे के दौरान खुद की रक्षा के लिए’’.

दिलशाद की तरह शोएब को लेकर भी पुलिस ने चार्जशीट में लिखा है, ‘‘शोएब ने दंगों के दौरान अपनी भूमिका को स्वीकार कर लिया. उसने माना कि वह पथराव किया, धार्मिक नारे लगाए और दंगे भड़काए.’’

चार्जशीट में यह भी दावा किया गया कि शोएब नूर-ए-इलाही में होने वाले सीएए विरोधी प्रदर्शन में नियमित तौर पर जाता था. वहां उसके मन में यह आ गया कि केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए इस नए कानून से उसकी नागरिकता छीन जाएगी.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए शोएब के पिता आज़ाद सैफी कहते हैं, ‘‘पुलिस जो तस्वीर दिखा रही है वह 24 फरवरी की है. मेरा बेटा 24 फरवरी को यहां था, लेकिन 25 फरवरी को हमने उसे अपने दूसरे घर जो गली नम्बर 9 में है भेज दिया था. इस झगड़े में उसकी कोई भूमिका नहीं है और ना ही वह यहां पर था. 12 मार्च को उसका पेपर था तो वो यहां घर पर 10 तारीख को आया था. तभी एसआईटी वाले आए और उठाकर ले गए, तब से वह बंद है. पुलिस ने आरोप लगा दिया कि इन्होंने मारुफ़ और शमशाद को गोली मारा है जबकि मेरा बेटा उस वक़्त वहां था ही नहीं. वो उस वक़्त घटना स्थल से सात सौ मीटर की दूरी पर था.’’

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए आज़ाद सैफी एसआईटी पर गंभीर आरोप लगाते है. वे कहते हैं, ‘‘मैं अपने बेटे को छुड़वाने के लिए गया तो एसआईटी के कर्मचारियों ने मुझसे बोला कि पांच लाख रुपए दो तो हम तुम्हारे बच्चे को छुड़ा देंगे. हमने इससे इनकार कर दिया क्योंकि मेरा बेटा बेगुनाह है तो हम क्यों पांच लाख रूपए देते.’’

घोड्डा निवासी आज़ाद सैफी

पुलिस ने चार्जशीट में शोएब की एक तस्वीर साझा की है जिसमें वो 24-25 की रात डंडा लिए कुछ लड़कों के साथ खड़ा है. वहीं पुलिस ने दावा किया है कि उसके फ़ोन से 25 फरवरी की दोपहर 3 बजे का एक वीडियो मिला है जिसमें कई लोग छत पर बैग में ईंट लेकर खड़े हैं. लेकिन 25 फरवरी जिस रोज मारुफ़ की हत्या हुई उस दिन का कोई भी फूटेज पुलिस ने चार्जशीट में नहीं दिया है.

आज़ाद सैफी कहते हैं, ‘‘मैं 24 और 25 फरवरी को यहां था. 24 तारीख को शोएब यहां नीचे था. उस दिन पूरे मुहल्ले वाले सेल्फ डिफेंस के लिए के लिए डंडा लेकर खड़े थे. हमने काफी कोशिश की झगड़ा ना हो. वहीं 25 तारीख को वे दोनों यहां थे नहीं. जिस रोज एसआईटी के लोग उन्हें पकड़ने आए थे उस रोज वे परीक्षा की तैयारी के लिए किताब लेने आए थे. तभी एसआईटी वाले आए और कमरे से उन्हें पकड़ लिया. इसके बाद मारते हुए यहां से ले गए.’’

जिस शोएब पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज किया है वो घटना (मारुफ़ और शमशाद को गोली लगते वक़्त) के समय वहां था इसका कोई भी सबूत पुलिस ने नहीं रखा है. वहीं उनके पिता का दावा है कि वो उस दिन वहां था ही नहीं.

आज़ाद सैफी ने 3 जून को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के डीसीपी के नाम एक पत्र लिखा जो उन्होंने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री समेत कई लोगों को भेजा है. पत्र में आज़ाद ने लिखा है कि मेरे बेटे को इसलिए फंसाया जा रहा क्योंकि मैंने सोनू, बॉबी और योगी को दंगे करते हुए देखा था और मैं इसका चश्मदीद गवाह हूं.’’

‘मेरे बड़े बेटे को गोली लगी और मेरा छोटा बेटा जेल में है’

क्राइम ब्रांच ने मारुफ़ की हत्या और शमशाद को गोली लगने के मामले में 32 वर्षीय मोहम्मद इमरान को भी गिरफ्तार किया है.

सुभाष मोहल्ला के गली नम्बर दो में रहने वाले इमरान पर भी पुलिस ने हत्या (आईपीसी-302) और आर्म्स एक्ट समेत कई और धाराएं लगाई है. पुलिस ने इन्हें 3 अप्रैल को गिरफ्तार किया है.

इमरान को लेकर पुलिस ने कई तस्वीरें चार्जशीट में दी है. जिसमें वो एक जगह अकेले डंडा लेकर खड़ा है और एक जगह भीड़ के साथ है. यह तस्वीरें 24 और 25 फरवरी की हैं.

इमरान की तस्वीरें औलिया मस्जिद के पास की है. चार्जशीट के मुताबिक इमरान ने अपनी पहचान खुद भी की इसके अलावा दिलशाद और शमशाद ने भी सीसीटीवी से इमरान की पहचान की थी. इमरान की जो तस्वीर पुलिस ने चार्जशीट में दिया है वो 25 फरवरी की रात 10:56 बजे और11:49 बजे की है. वहीं दिल्ली पुलिस ने मारूफ की हत्या को रात 10:45 बजे से 11:05 बजे के बीच बताया है.

दिलशाद और शोएब की तरह पुलिस ने मोहम्मद इमरान के बारे में भी चार्जशीट में लिखा है, ‘‘दिन-ए-इलाही में चल रहे सीएए के खिलाफ प्रदर्शन में रोजाना जाता था. और उसने अपने मन में बना लिया की केंद्र सरकार द्वारा पास सीएए कानून से उसकी भारत की नागरिकता छीन ली जाएगी.’’

न्यूज़लॉन्ड्री ने इमरान के पिता हाजी अब्दुल हामिद से मुलाकात की. वे एक दूसरी ही कहानी कहते हैं. वे बताते हैं, ‘‘मेरा बड़ा बेटा रेहान सड़क के उसपार, के ब्लॉक में रहता है. दंगे हो रहे थे तो उसने अपने बच्चों और परिवार को इधर भेज दिया था. जब 25 को दंगा बढ़ गया तो मैंने उसे बोला की तुम भी इधर ही आ जाओ. वो जिस रास्ते से आ रहा था उस रास्ते पर दंगाई थे तो लेने के लिए इमरान गया. सुरक्षा के लिए उसके हाथ में एक डंडा था वही वीडियो में आ गया तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. मेरे बड़े बेटे को उस रात दंगाइयों ने पैर में गोली मार दी थी और मेरे ही दूसरे बेटे को पुलिस उठाकर लेकर चली गई है.’’

गिरफ्तार इमरान के भाई रेहान कपड़े का काम करते हैं. उनकी दुकान सुभाष मुहल्ला स्थित के ब्लॉक में हैं. दंगे के दौरान उनके दाहिने पैर में गोली लगी थी जिसका निशान अब भी है.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए रेहान कहते हैं, “25 तारीख की सुबह मैंने बच्चों को उस वाले घर पर भेज दिया था. पिताजी और छोटे भाई का बार-बार फोन आ रहा था कि घर आ जाओ. मैंने देर रात 10 बजे अपने भाई इमरान को फोन किया की मैं आ रहा हूं तू मुझे लेने के लिए रोड पर आ जाना. वो मुझे लेने आया तो उसके हाथ में डंडा था छोटा-सा. दंगा हो रहा था तो अपनी सुरक्षा के लिए वह लिया हुआ था.’’

रेहान आगे कहते हैं, ‘‘मैं रोड पर पहुंचा तो वहां खड़े मेरे मुहल्ले के ही लड़के, राधे, सोनू और बॉबी, इन्हें मैं शुरू से ही जनता हूं वे मुसलमानों को गाली देने लगे. मैं और मेरा छोटा भाई आगे बढ़ गए तो पीछे से राधे ने मुझपर गोली चला दी. उसको मैं बेहद अच्छी तरह जनता हूं. गोली लगने के बाद धर्मेंद्र गोस्वामी और अंकित शर्मा जो मेरा दोस्त हैं वो मुझे लेकर अस्पताल गए. रात को भजनपुरा के एसआई राहुल का फोन आया की आकर अपनी शिकायत दर्ज कराओ. मैं वहां जाकर नाम के साथ एफ़आईआर दर्ज कराया, लेकिन उन्होंने तब नाम नहीं लिखा बोले कि बाद में नाम जुड़ जाएगा. उन्होंने अपने तरीके से लिखवाया.’’

रेहान बताते हैं, ‘‘मेरे एफआईआर में क्या हुआ मुझे खुद मालूम नहीं है. कभी कोई पुलिस वाला पूछने तक नहीं आया वहीं 3 अप्रैल को मेरे भाई इमरान को पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाया था और मारुफ़ के केस में अंदर कर दिया. उसपर हत्या समेत कई आरोप लगा दिए.’

रेहान को जब गोली लगी तब उनका भाई इमरान उनके साथ था ऐसे में वह इस मामले में चश्मदीद हुआ. मारुफ़ को गोली लगने पर रेहान कहते हैं कि उसे किसने मारी ये तो मैं जान नहीं पाया क्योंकि तब तक मैं अस्पताल जा चुका था, लेकिन मुझे जिसने मारी है उसे तो मैंने देखा है. मुझसे जिसने गोली मारी वो आज भी मेरे घर के सामने आकर बैठता है. बातचीत करने की कोशिश करता है, लेकिन मैं उससे बात नहीं करता. सालों से साथ उठने बैठने वालों ने जब ऐसा किया तो उनसे क्या बात की जाए. पैर में गोली लगी तो बच गए, आगे तो कहीं और भी गोली लग सकती है. बात करने से बेहतर उनसे दूरी बनाना ही है. पुलिस भी उन्हें बचा रही है. उनको दो बार पूछताछ के लिए बुलाई और छोड़ दी.’’

मनोज कुमार गुज्जर

25 वर्षीय मनोज कुमार गुज्जर को पुलिस ने मारुफ़ की हत्या और शमशाद को गोली मारने के मामले में गिरफ्तार किया है. इनपर भी आर्म्स एक्ट और हत्या का मामला दर्ज हुआ है.

मनोज का नाम भी शमशाद ने 29 फरवरी को दिए अपने बयान में लिया है. इसके अलावा पुलिस ने चार्जशीट में बताया है कि मोहम्मद इमरान ने भी वीडियो देखकर मनोज की पहचान की थी.

दूध डेयरी का काम करने वाले मनोज की गिरफ्तारी को लेकर पुलिस चार्जशीट में दो दिन बता रही है. पहले बताया है कि 10 अप्रैल को गिरफ्तार किया, वहीं दूसरी जगह पुलिस ने लिखा है कि 30 मार्च को गिरफ्तार किया.

पुलिस ने मनोज की गिरफ्तारी में सीसीटीवी फूटेज का एक वीडियो चार्जशीट में दाखिल किया. इस वीडियो में 25 फरवरी को मनोज को पत्थर मारते हुए देखा जा सकता है. पुलिस ने चार्जशीट में बताया है की जो जैकेट 25 फरवरी की रात मनोज ने पहना था वो उनके घर से बरामद किया गया है.

25 वर्षीय मनोज कुमार गुज्जर

न्यूजलॉन्ड्री जब मनोज के घर पहुंचा तो उनकी 60 वर्षीय बुजुर्ग मां राजेश देवी से मुलाकात हुई. राजेश देवी का पैर टूटा हुआ है इसके अलावा भी उनके कई तरह की बिमारियां हैं. उनकी देखभाल की जिम्मेदारी मनोज के ऊपर ही थी. मनोज के जेल जाने के बाद उन्होंने अपनी बेटी के छोटे बेटे को देखभाल के लिए बुलाया हुआ है.

मनोज कुमार की मां राजेश देवी.

पुलिस ने सबूत के तौर पर मनोज की जो तस्वीर दी है उसे पहचान नहीं पाती. वो कहती है, ‘‘वो उस दिन घर पर ही था, लेकिन जब फोटो आई है तो गया ही होगा.’’ राजेश देवी ज्यादा तबीयत खराब होने के कारण बात नहीं कर पाती है.

पुलिस ने लिखा है कि शमशाद ने वीडियो देखकर मनोज की पहचान की थी, हालांकि 29 फरवरी को इनर डायरी में लिखे शमशाद के बयान में भी दंगाइयों में मनोज का नाम दर्ज है. वहीं जब हमने पूछा की आप मनोज को गोली चलाते वक़्त या दंगा के वक़्त देखा तो वे इससे इंकार करते हैं. वे कहते हैं कि मैं मनोज का अपने मामले में कभी नाम ही नहीं लिया और ना ही उनकी पहचान की है.

मनोज का मामला देखने वाले वकील पीपी सिंह भाटी कहते हैं, ‘‘मनोज की मां बीमार रहती है उस ग्राउंड पर मैंने अंतरिम जमानत के लिए एकबार कोशिश किया, लेकिन वह ख़ारिज हो गया. जिस रोज की घटना है उस रोज मनोज घर पर था. मनोज मेरे बेटे का दोस्त है. मेरे बेटे की शादी हुई थी तो ये सब मनोज के घर पर पार्टी कर रहे थे. रात को इन्हें पता चला की पड़ोस में गोली चल रही है. ये बाहर जाकर देखा तो भीड़-भाड़ हो रही थी तो सेल्फ डिफेंस में इन्होंने पत्थर उठा ली. मनोज ने ना मारुफ़ को मारा है और ना शमशाद को गोली मारी है. पुलिस मनोज का जो फूटेज दिखा रही है वो इनकी गोली लगने के काफी देर बाद की है.’’

मनोज पर आईपीसी की धारा 302 (हत्या) साथ-साथ आर्म्स एक्ट लगा हुआ है. पुलिस सबूत के तौर पर पत्थर चलाते हुए फोटो दिखा रही है. ऐसे में हत्या के आरोप लगने को कैसे देखते हैं. इस सवाल के जवाब में पीपी सिंह कहते हैं, ‘‘देखिए हमारे आईपीसी में एक धारा है 149 जिसके अनुसार इस तरह की अनियंत्रित भीड़ में से कोई भी घटना को अंजाम देता है तो सबपर एक ही धारा लगता है. पुलिस ने जानबूझकर 149 लगाई है.’’

मनोज गुजर्र के वकील पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘‘जो लोग असली गुनागाहर थे वे तो अपना काम करके चले गए. जिन्होंने झगड़े किए उनमें से किसी को पुलिस ने लिया नहीं. उनसे पैसे लेकर या राजनीतिक दबाव में उन्हें छोड़ दिया, लेकिन निर्दोष लोगों को पकड़ लिया. पुलिस की भूमिका इस मामले में बेहद खराब है. मारने वाले भाग गए और तमाशबीनों को फंसा दिया. मैं जल्द ही दोबारा जमानत के लिए फाइल करुंगा.’’

नवीन त्यागी

मारुफ़ की हत्या और शमशाद को गोली लगने के मामले में क्राइम ब्रांच ने 28 वर्षीय नवीन त्यागी को गिरफ्तार किया है. पुलिस ने नवीन पर आईपीसी की धरा 302 और 307 के साथ आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है.

पुलिस ने नवीन की गिरफ़्तारी में सबूत के तौर पर एक तस्वीर चार्जशीट में इस्तेमाल किया है. जिसमें वे खड़े दिख रहे हैं वहीं उनके सामने खड़ा एक शख्स गोली चलाता नज़र आ रहा है. पुलिस के अनुसार तब मौके पर मौजूद इमरान और चौधरी हैदर ने सीसीटीवी फूटेज देखने के बाद नवीन की पहचान की. बाद में मनोज ने भी नवीन की पहचान की थी. वहीं नवीन ने स्वयं अपनी पहचान की थी. नवीन की गिरफ्तारी 10 अप्रैल को पुलिस ने की थी.

नवीन त्यागी

नवीन त्यागी के पिता का निधन हो चुका है. न्यूजलॉन्ड्री जब नवीन के घर पहुंचा तो हमारी मुलाकात नवीन के बड़े भाई जितेन्द्र त्यागी से हुई. जितेन्द्र अपने भाई की गिरफ्तारी और उस पर लगी धाराओं को गलत बताते हैं. वे कहते हैं, ‘‘पुलिस ने जो तस्वीर दिखाई है उसमें मेरे भाई के हाथ में कुछ भी नहीं है. उसकी गलती बस यह है कि वह खड़ा होकर देख रहा है. मुझे भी पुलिस वालों ने वह वीडियो दिखाया था. वह वहां गया और अंदर खड़े दंगाइयों को देखकर लौट आया था. उस जानबूझकर फंसाया गया है.’’

किसने फंसाया है? इस सवाल के जवाब में जितेन्द्र कहते हैं, ‘‘एक पुलिस वाले से पहले हमारा मनमुटाव हुआ था. मौके का फायदा उठाकर उसने ही मेरे भाई को फंसा दिया है. अगर उसे दंगा करना होता तो वे अपने हाथ में कुछ लेकर तो जाता लेकिन वह खाली हाथ खड़ा दिख रहा है और वो भी कुछ सेकेंड के लिए दिख रहा है.’’

नवीन त्यागी के बड़े भाई जितेन्द्र त्यागी

नवीन स्थानीय आरएसएस के शाखा में जाया करता था. तो उसकी गिरफ्तारी के बाद आरएसएस ने केके त्यागी नाम का वकील दिया, लेकिन जब केके त्यागी नवीन को जमानत दिलाने में सफल नहीं हुए तो उनके परिवार ने कड़कड़डूमा कोर्ट के वकील मनोज चौहान को अपना वकील रखा है.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए उनके वकील मनोज चौहान कहते हैं, ‘‘मैंने नवीन के अंतरिम जमानत के लिए मेडिकल ग्राउंडपर दो बार कोशिश किया लेकिन अदालत ने उसे ख़ारिज कर दिया है. एक बार उनका बच्चा बीमार था उस आधार पर और एक बार उनकी बीबी और बच्चा बीमार थे उस आधार पर. दोनों बार ख़ारिज हो गया है. चार्जशीट तो इस मामले में फाइल हो गई लेकिन अभी ट्रायल चल नहीं रहा है क्योंकि कोर्ट बंद है.’’

पुलिस ने जिस सीसीटीवी फूटेज के आधार पर नवीन को गिरफ्तार किया उसको लेकर मनोज कहते हैं, ‘‘पुलिस सीसीटीवी फूटेज में नवीन को दिखा रही है लेकिन जहां वो खड़ा है वहां से काफी दूरी पर मारुफ़ का मर्डर हुआ है. वो तो अपने घर के आसपास खड़ा था तो किसी तरह से फूटेज में आ गया और उसे पुलिस ने आरोपी बना दिया.’’

लेकिन सीसीटीवी के जिस फूटेज में नवीन दिख रहा है उनके सामने एक शख्स गोली चलाता नजर आ रहा है. ऐसे में उनपर हत्या की धारा लगाना कितना जायज है? इसपर मनोज कहते हैं, ‘‘इनके ऊपर चार्ज तो बनता नहीं है. वहां तो लाखों की संख्या में लोग खड़े होंगे. दरअसल दिल्ली पुलिस ने ठीक से जांच की नहीं है. एकदम से क्राइम ब्रांच के ऊपर जो प्रेशर बना तो उल्टा-सीधा जो भी मिला उनको इन्होंने उठा लिया. यह तो अब ट्रायल के बाद पता चलेगा की क्या होगा. पुलिस की चार्जशीट हमें मिली नहीं है लेकिन जो हमें जानकारी मिली है उसके अनुसार कई कमियां है. पुलिस ने ठीक से इन्वेस्टीगेशन नहीं किया है. ऐसा सिर्फ एक ही मामला नहीं है दंगे को लेकर ऐसे कई मामले हैं जहां भी जो मिला उसपर मामला दर्ज कर लिया गया.’’

पुलिस की जांच से असहमत मारूफ और शमशाद के परिजन

मारुफ़ अली की हत्या और शमशाद को गोली लगने में दिल्ली पुलिस द्वारा की जांच पर मारुफ़ के परिजन और खुद शमशाद ने संदेह जताया है और उनका मानना है कि पुलिस ठीक से जांच नहीं की और दोषियों को गिरफ्तार करने के बजाय दूसरे लोगों को गिरफ्तार कर रही है. पुलिस पर जांच के दौरान सीएए समर्थकों की भीड़ में शामिल लोगों को बचाने का भी आरोप लग रहा है जिसने 25 फरवरी की रात मारुफ़ और शमशाद पर गोली चलाई थी.

दिल्ली पुलिस ने चार मुसलमानों को हिरासत में लेने के लिए आईपीसी की धारा149 का इस्तेमाल किया है जिसके अनुसार, ‘‘गैरकानूनी रूप से जमा भीड़ के किसी सदस्य द्वारा किए गये अपराध में उस भीड़ का हर सदस्य जिम्मेदार होगा.’’

लेकिन क्या पुलिस इस दावे से बच सकती है कि 24 और 25 फरवरी की रात सुभाष मुहल्ला में दो भीड़ जमा थी जिसमें से एक जो सीएए समर्थक भीड़ थी उसने मारुफ़ की गोली मारकर हत्या कर दी और शमशाद उसमें घायल हो गए? सुभाष मुहल्ले के स्थानीय निवासी दावा करते हैं कि वे उस दिन खुद की और स्थानीय मस्जिद के बचाव के लिए खड़े थे. जैसा मोहम्मद दिलशाद और शोएब के परिवार द्वारा दावा किया गया. गिरफ्तार शोएब सैफी के पिता ने भी यही दावा किया, लेकिन क्राइम ब्रांच उनके बेटे का 24 फरवरी का फूटेज का इस्तेमाल कर गिरफ्तार कर चुकी है.

दिल्ली पुलिस ने मारूफ की हत्या में मुस्लिम समुदाय के ही लोगों को गिरफ्तार कर जो सबूत पेश किया है वो कमजोर और अस्पष्ट हैं. मिसाल के तौर पर घायल शमशाद का एक बयान जिसे पुलिस ने इनर डायरी में दर्ज किया है उसको लेकर न्यूज़लॉन्ड्री से बात करने से इनकार कर दिया.

इसको लेकर जब न्यूज़लॉन्ड्री ने क्राइम ब्रांच के सीनियर अधिकारी से सवाल किया तो उन्होंने कहा, ‘‘चार्जशीट को आपने सीमित तरह से पढ़ा है. अगर आप केवल आईपीसी की धारा 302 ( हत्या) को ध्यान में रखते हुए चार्जशीट देखते हैं, तो आपको परेशानी होगी. सब कुछ इस बात इसपर निर्भर करता है कि आपने चार्जशीट कैसे पढ़ी है.’’

वहीं शमशाद द्वारा इनर डायरी में आरोपियों के नाम बताने और पुलिस के सामने उनकी पहचान करने के इनकार पर सीनियर अधिकारी कहते हैं, ‘‘सवाल सिर्फ शमशाद का नहीं है. यह राज्य के खिलाफ किया गया अपराध है. अगर वो एक शब्द भी ना बोले तो भी कई और सबूत है. वैसे भी यह फाइनल चार्जशीट नहीं है. अभी जांच जारी है.’’

जब हमने अधिकारी से पूछा कि पीड़ित परिवार पुलिस की जांच को गलत बता रहा है और असली अपराधियों को बचाने का आरोप लगा रहा है. इसपर वो हमपर ही सवाल उठाते हुए बोले, ‘‘आप इस मामले का ‘मीडिया ट्रायल’ कर रहे हैं.’’ अधिकारी ने आगे कहा, ‘‘उनके बारे में क्या कहेंगे जिनके घरों में आग लगा दिया गया. दुकानें लूट ली गई.’’

न्यूजलॉन्ड्री ने रिपोर्टिंग के दौरान पाया कि सुभाष मोहल्ले में पीड़ितों के परिजन और बाकी कई लोग सोनू, बॉबी, योगी, लाला, बंटी, राधे, राम सिंह, अभिषेक और मोहित की तरफ इशारा करते हैं. ये तमाम लोग सुभाष मुहल्ला के ही रहने वाले हैं. इनका नाम हारून और शमशाद कई बार ले चुके हैं, लेकिन पुलिस ने इनपर कोई आरोप नहीं लगाया है. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने इनमें से ज्यादातर को दरियागंज स्थित अपने कार्यालय में एक-दो बार बुलाया लेकिन तीन महीने की जांच के बाद अभी तक किसी को भी आरोपी नहीं बनाया है.

दिल्ली पुलिस का कहना है कि वह अभी भी इस मामले की जांच कर रही है और आने वाले समय मेंसंभवत इस मामले मेंसप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की जाएगी.

पीड़ित पुलिस पर असली दोषियों को बचाने का आरोप लगातार लगा रहे हैं. उनके इस आरोप को बल इनर डायरी में हारून, फ़िरोज़, फ़िरोज़ के बेटे शाहिद, शाहिद के दोस्त अरशद और पीड़ित शमशाद के बयान का एक जैसे होने से मिलता है. हारून, उनके भाई माजिद और शमशाद ऐसा कोई भी बयान देने से इनकार करते है.

फिरोज जो मृतक मारुफ़ के बहनोई हैं और शाहिद जो मारुफ़ का भांजा है, दोनों के बयान में पुलिस ने लिखा कि फिरोज के बयान में भी मारुफ़ कोमेरे भाई के साला बताया गया है और उनके बेटे शाहिद के बयान में भी मारुफ़ कोमेरे भाई के साला ही बताया गया है. यह उन तमाम आरोपों की तरफ इशारा करता है कि पुलिस जांच में ईमानदारी नहीं है.

दंगे के दौरान पुलिस पर कई तरह के सवाल उठे थे. स्थानीय लोगों ने बताया भी था और कई वीडियो फूटेज भी सामने आया था जिसमें पुलिस उस भीड़ के साथ दिख रही थी जो दंगे भड़का रहे थे, पत्थरबाजी कर रहे थे. कई जगह दंगाइयों के साथ-साथ पुलिस भी पत्थरबाजी करते हुए दिखी थी. इसके साथ ही दिल्ली दंगा पुलिस की निष्क्रियता का ही नतीजा था. 72 घंटों तक दिल्ली जलती रही, लेकिन दिल्ली पुलिस दंगे को कंट्रोल नहीं कर पाई.

मारुफ़ और शमशाद के गोली लगने के मामले में भी पुलिस की जांच पर सवाल उठ रहे हैं और उलके पास कोई साफ जवाब नही है.

सिर्फ इसी मामले में नहीं कई और मामले में दिल्ली पुलिस में एक तरफा कार्रवाई करने की बात सामने आ रही है. मई महीने में दिल्ली की एक कोर्ट ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देते हुए कहा था कि दिल्ली पुलिस की फरवरी में हुए दंगे की जांच एक ही पक्ष की को निशाना बनाती नज़र आ रही है.

हारून और शमशाद ना उम्मीद हैं, लेकिन अब भी कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें न्याय मिले. वहीं दूसरी तरफ दिलशाद खुद पर लगे हत्या के आरोप से हैरान है तो नवीन त्यागी, शोएब शैफी, इमरान, मनोज गुर्ज्जर और मोहम्मद इमरान के परिजन भी परेशान हैं और वकीलों का चक्कर काट रहे हैं. दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच के उस अधिकारी की तरह इन्हें भी पता है कि ‘धारा 302 हरे पेड़ पर भी लगा दिया जाए तो वह सूख जाता है.’

न्यूज़लॉन्ड्री ने 11 जुलाई को सवालों की एक लम्बी लिस्ट दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता समेत कई सीनियर अधिकारियों को भेजी थी. हमने 15 जुलाई को दोबारा सवाल भेजा लेकिन अब तक उनका जवाब नहीं आया. जवाब आता तो हम खबर में जोड़ देंगे.

**

मारूफ अली की हत्या का यह दूसरा पार्ट है. 2020 दिल्ली दंगे में पुलिस द्वारा की जा रही जांच की इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट का यह हिस्सा है.

पहला पार्ट: मारुफ़ की हत्या, पुलिस की चार्जशीट और कुछ राज उगलती दिल्ली पुलिस की इनर डायरी

***

यह स्टोरी एनएल सेना सीरीज का हिस्सा है, जिसमें हमारे 159 पाठकों ने योगदान दिया. यह रोन वाधवा, चिराग अरोरा, निशांत, राकेश, हेमंत महेश्वरी, अक्षय पाण्डे, शेख हाकु, ज़ैद रज़वी, सुम्रवस कंडुला, जया चेरिन, मनीषा मालपथी,और अन्य एनएल सेना के सदस्यों से संभव बनाया गया था. हमारे अगले एनएल सेना प्रोजेक्ट भारत में कस्टोडियल डेथ के लिए सपोर्ट करे, और गर्व से कहें 'मेरे खर्च पर आजाद है खबरें.

Also Read: मौत का नाला: जहां चली हत्याओं की होड़

Also Read: दिल्ली दंगा: हत्या और आगज़नी की प्लानिंग का अड्डा ‘कट्टर हिन्दू एकता’ व्हाट्सऐप ग्रुप