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मारुफ़ की हत्या, पुलिस की चार्जशीट और कुछ राज उगलती दिल्ली पुलिस की इनर डायरी

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के घोंडा विधानसभा क्षेत्र का सुभाष मुहल्ला. रात के आठ बज रहे हैं. फरवरी महीने में हुए दंगे के निशान अब यहां दिखाई नहीं दे रहे हैं, लेकिन उसकी सिहरन लोगों के भीतर अभी भी महसूस की जा सकती है.

सुभाष मुहल्ला के गली नम्बर तीन के मुहाने तक 25 वर्षीय शमशाद हमें लेकर आते हैं. इसी मुहाने पर 25 फरवरी की रात उनके पेट में गोली लगी थी. शमशाद की जान तो बच गई, लेकिन उन्हें बचाने के लिए आगे बढ़े पड़ोसी मारुफ़ पर दंगाइयों ने गोली चला दी, जो उनकी आंख में लगी और लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल (एलएनजेपी) में उन्होंने दम तोड़ दिया.

गली के मुहाने पर पहुंचकर शमशाद कहते हैं, ‘‘24 फरवरी से ही माहौल खराब था. 25 फरवरी को मैं दूध लेने निकला था. दुकान तक पहुंचने से पहले ही शोर-शराबा हुआ. इस गली को देखिए, इधर से ही आवाज़ आ रही थी. अभी अंधेरा है, लेकिन इसमें बल्ब लगे हुए थे जिसे दंगे के दौरान तोड़ दिया गया था. उस तरफ पड़ोस में ही रहने वाले सोनू, बॉबी, राम सिंह और योगी सब खड़े थे. बॉबी ने मुझपर गोली चला दी.’’

वो जगह जहां शमशाद और मारुफ़ को गोली लगी थी.

शमशाद के पेट पर गोली लगने का निशान है. वे हमें दिखाते हुए कहते हैं, ‘‘अगर थोड़ी सी इधर लगती तो मेरा भी हाल मारुफ़ भाई की तरह ही होता. जब मुझे गोली लगी तो मारुफ़ भाई बचाने के लिए आए. वे सब इधर ही खड़े थे. इसके बाद सोनू ने मारुफ़ पर गोली चला दी. हम दोनों को अस्पताल ले जाया गया.अस्पतालमें इलाज के दौरान मुझे मारुफ़ के भाई माजिद ने बताया की उनका इंतकाल हो गया है. मुझे यह सुनकर बहुत तकलीफ हुई.’’

शमशाद जब हमें यह सब बता रहे होते हैं, उस वक़्त उनके पिता यासीन भी वहीं मौजूद थे. वे कहते हैं, इस गली (3 नम्बर में) कई हिन्दू भाइयों के घर हैं. मारुफ़ के घर के सामने वाला घर भी एक हिन्दू का है. इधर किसी ने किसी का नुकसान नहीं किया, लेकिन बगल की गली वाले और बाहर से आए लोगों ने यह सब किया. मेरे बेटे और हारून (मारुफ़ के भाई जो घटनास्थल पर उनके साथ मौजूद रहे) ने जिन लोगों की पहचान की पुलिस ने उनको गिरफ्तार तक नहीं किया. वे सब खुले में घूम रहे हैं.’’

शमशाद के पेट में लगी थी गोली
शमशाद के पेट में लगी थी गोली

अपने पिता की बात को बीच में काटते हुए शमशाद कहते हैं, ‘‘सर, वे लोग अब भी इधर ही नजर आते हैं. मैं डर से कम ही बाहर निकलता हूं, लेकिन कभी अगर निकलता हूं तो गोली चलाने वाले मुझे घूरते हैं. डर लगता है किसी दिन कोई पीछे से मार न दे. आये दिन इधर कुछ ना कुछ हंगामा होता रहता है. अभी दो दिन पहले कुछ लोगों ने देर रात जय श्रीराम के नारे लगाए थे. उस दिन भी दंगाई ‘जय श्रीराम और मुल्लों को मारो’ के ही नारे लगा रहे थे.’’

पुलिस के रवैये से ना उम्मीद हारून और शमशाद

23 फरवरी को उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मौजपुर में भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा ने एक भाषण दिया जिसके बाद जाफराबाद, मौजपुर, शिव विहार और मुस्तफाबाद समेत कई इलाकों में दंगा फैल गया जो अगले 72 घंटों तक जारी रहा था. इस दौरान 53 लोगों ने अपनी ज़िंदगी खोई जिसमें 32 वर्षीय मारुफ़ अली भी थे. मारुफ़ की बिजली की दुकान थी. वे अपने पीछे अपना परिवार और दो बच्चे छोड़ गए हैं.

32 साल के मारूफ़ अली.
बी - ब्लाक सुभाष मोहल्ला, नार्थ घोण्डा

8 जून को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने दिल्ली दंगों से संबंधित चार चार्जशीट दाखिल किया. जिसमें एक मारुफ़ अली और शमशाद के मामले से जुड़ा हुआ था. इसको लेकर क्राइम ब्रांच ने एक प्रेस नोट जारी किया जिसे कई मीडिया संस्थानों ने छापा है. इस प्रेस नोट में दिल्ली पुलिस ने बताया कि- “एनआरसी और सीएए के समर्थन में नारे लगा रही एक भीड़ वहां पहुंची. भीड़ ने पथराव और गोलीबारी शुरू कर दी. जिसके बाद मारुफ़ के सर में और शमशाद के पेट में गोली लगी. दोनों को एनएलजेपी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां मारुफ़ की मौत हो गई वहीं शमशाद आगे के इलाज के लिए भर्ती रहा. इस मामले में छह लोगों की गिरफ्तारी की गई है.’’

चार्जशीट दाखिल करते वक़्त दिल्ली पुलिस द्वारा जारी प्रेस नोट

मारुफ़ की हत्या और शमशाद को गोली लगने पर पुलिस द्वारा चार्जशीट जमा करने के बाद द प्रिंट और न्यूज़क्लिक ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि मारुफ़ की हत्या में पुलिस ने छह हिन्दू आरोपियों को गिरफ्तार किया है. हालांकि जब न्यूज़लॉन्ड्री ने पुलिस की चार्जशीट को पढ़ा तो मालूम चला की इस मामले में जिन छह लोगों की गिरफ्तारी हुई है उसमें से दो हिन्दू हैं और बाकी सब मुस्लिम हैं.

हत्या, एफ़आईआर और दिल्ली पुलिस द्वारा चार्जशीट में दी गई जानकारी कई ख़ामियों की तरफ इशारा करती है. पीड़ितों द्वारा जिसपर आरोप लगाया गया पुलिस उन्हें गिरफ्तार तक नहीं कर रही बल्कि अलग-अलग कई लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है. पुलिस अपने प्रेस नोट में कह रही है जिस भीड़ ने गोली चलाई वे सीएए और एनआरसी समर्थक थे ऐसे में हत्या के मामले में गिरफ्तार लोग मुस्लिम कैसे हो सकते है? हालांकि पुलिस का कहना है की इस मामले में अभी जांच बंद नहीं हुई है. जांच जारी है.

शमशाद और हारून भी यही सवाल दोहरा रहे हैं, वे कहते हैं, ‘‘हमने जिनको देखा उनकी गिरफ्तारी नहीं की गई. जिनकी गिरफ्तारी हुई उन्हें हमने उस रोज देखा ही नहीं था.’’

न्यूजलॉन्ड्री ने मारुफ़ का पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी हासिल किया जिसमें अनुसार मारुफ़ को दूर से गोली मारी गई थी. गोली लगने के बाद वो जिन्दा थे. गोली खोपड़ी और दिमाग पर लगी थी.’’

मारुफ़ और शमशाद के मामले में पुलिस द्वारा एक ही एफ़आईआर दर्ज की गई, जिसका नम्बर 66/2020 है.

इसको लेकर शमशाद के पिता कहते हैं,“जिस रात दोनों को गोली लगी उस रात पुलिस हमारे गली में आई तो हारून से बयान ली. हमारा घर पास-पास हैं तो मैं भी पुलिस के पास आ गया था. हारून से जानकारी लेकर जब वे जाने लगे तो मैंने बताया की मेरे बेटे को भी गोली लगी है. ऐसे में हमारा अलग से एफ़आईआर दर्ज हो. तो उन्होंने कहा, एक में ही काम चल जाएगा.’’

एफआईआर में किसी आरोपी का नाम नहीं

26 फरवरी को भजनपुरा थाने में मृतक मारुफ़ के भाई हारून के हवाले से एफ़आईआर दर्ज किया गया. इस एफ़आईआर में किसी भी आरोपी का नाम नहीं है.

एफ़आईआर में लिखा है, ‘‘हम अपनी गली के कोने पर खड़े थे. उसी दौरान सैकड़ों के तादाद में कुछ लोग जय श्रीराम का नारा लगा रहे थे और NRC व CAA का समर्थन कर रहे थे,आते ही गोलियां चलानी शुरू कर दी और पत्थर मारने लगे जो मेरे भाई मारुफ़ को सर में गोली लगी और मेरे पड़ोसी शमसाद को भी गोली लगी जो इन लोगों ने जानबूझकर हमें जान से मारने की नियत से गोली व पत्थर चलाये और जय श्रीराम का नारा लगाते हुए चले गए. मेरे भाई व मेरे पड़ोसी को मारने वाले के खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई हो.’’

पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर
पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर

एफ़आईआर में किसी भी आरोपी का नाम नहीं लिखा गया है. जबकि न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए हारून कहते हैं, ‘‘25 फरवरी की रात 12:30 बजे पुलिस मेरे घर पहुंची और उन्होंने दरवाजा खटखटाया. मुझे तब पुलिस पर भरोसा नहीं हो रहा था क्योंकि पुलिस और दंगाई एक ही तरफ थे. वे चले गए फिर रात में एक बजे भजनपुरा थाने के एएसआई वेदपाल अपने एक और सहकर्मी के साथ आए. तब मैंने उन्हें पूरे घटनाक्रम के बारे में बताया और साथ ही आरोपियों का नाम भी बताया. उन्होंने लिखा और उसपर हस्ताक्षर कराने के साथ-साथ कई और सादे कागज़ों पर भी हस्ताक्षर कराया.’’

हारून कहते हैं, ‘‘जब आरोपियों के नाम मैंने उन्हें बताया तो उन्होंने कहा कि अभी नाम नहीं लिखते हैं. नाम बाद में लिखा देना. मेरे बार-बार कहने के बाद उन्होंने मेरे सामने अपनी डायरी में आरोपियों के नाम तो लिख लिया और बोले की आकर एफ़आईआर की कॉपी ले जाना, लेकिन जब तीन दिन बाद एफ़आईआर की कॉपी मिली तो उसमें किसी का नाम नहीं था.’’

मृतक मारुफ़ के बड़े भाई हारून जो मामले के चश्मदीद भी हैं

दिल्ली दंगे में दर्ज हुए एफ़आईआर को लेकर यह सामने आया था कि पुलिस को पीड़ितों ने आरोपियों के नाम बताये तब भी किसी का नाम दर्ज नहीं किया गया. कई एफ़आईआर पढ़ने के बाद न्यूज़क्लिक ने 19 मार्च को एक रिपोर्ट किया था जिसमें सामने आया था, ‘‘हिंसा के बाद गंभीर धाराओं के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ बड़ी संख्या में एफ़आईआर दर्ज की गई है. ऐसे में आरोप है कि बड़ी संख्या में लोगों को कथित रूप से "मनमाने ढंग से" गिरफ्तार किया जा रहा है.’’

ठीक ऐसा ही पुलिस ने मारुफ़ और शमशाद के मामले में भी किया और एफ़आईआर में किसी का नाम दर्ज नहीं किया गया. पीड़ित परिवार जिन्हें आरोपी बताया उन्हें गिरफ्तार न करके किसी और को गिरफ्तार कर लिया गया. इस मामले में पुलिस पर गलत तरीके से और जल्दबाजी में इन्वेस्टिगेशन करने का आरोप लग रहा है.

दंगे खत्म होते ही दिल्ली पुलिस ने दंगे की जांच के लिए एसआईटी की तीन टीमें गठित की थी. मारुफ़ और शमशाद का मामला क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर लोकेन्द्र चौहान के जिम्मे आया. उन्होंने इस मामले की जांच की और 8 जून को कोर्ट में चार्जशीट दायर किया है.

हारून के अनुसार घटना के दो-तीन दिन बाद लोकेन्द्र चौहान जांच के लिए सुभाष मुहल्ला आए. वे बताते हैं, ‘‘मामले की जांच करने के लिए जब लोकेन्द्र साहब आए तो मैं उन्हें उस जगह ले गया जहां मेरे भाई को गोली लगी थी. उसके बाद जिन लोगों ने मेरे भाई और शमशाद पर गोली चलाई थी उनके घर तक दिखाए. वो बेहद प्यार से बात कर रहे थे तो उनको हमने सारी जानकारी दी. उन्होंने भी बोला की कोई भी नहीं बचेगा, लेकिन अब तक कोई भी आरोपी गिरफ्तार नहीं हुआ है.’’

न्यूजलॉन्ड्री को इस मामले में पुलिस द्वारा कोर्ट में जमा की गई इनर डायरी भी मिली. इनर डायरी में कई लोगों के बयान दर्ज है जो घटना के वक़्त आसपास मौजूद रहे थे. 29 फरवरी 2020 को लोकेन्द्र चौहान के सामने दिए बयान में हारून के हवाले से लिखा गया है, ‘‘मैंने किसी को भी गोली चलाते हुए नहीं देखा और ठाकुर हलवाई की दुकान के पास जमा भीड़ में से मैं किसी को नहीं पहचानता हूं.’’

हैरान करने बात यह है कि बिलकुल यहीं बयान फ़िरोज़ (मारुफ़ के रिश्तेदार) का भी है. मारुफ़ को गोली लगने के बाद फिरोज ही उसे अस्पताल लेकर गए थे. 29 फरवरी को जो बयान लोकेन्द्र चौहान ने लिया है उसमें फिरोज कहते हैं, ‘‘मैंने किसी को भी गोली चलाते हुए नहीं देखा और ठाकुर हलवाई की दुकान के पास जमा भीड़ में से मैं किसी को नहीं पहचानता हूं.”

लोकेन्द्र चौहान ने फिरोज के बेटे मोहम्मद शाहिद का भी बयान लिया. बीए तीसरे वर्ष के छात्र शाहिद ने भी ठीक वहीं बयान दिया है जो पूर्व में उसके पिता फ़िरोज़ और हारून दे चुके हैं,‘‘मैंने किसी को भी गोली चलाते हुए नहीं देखा और ठाकुर हलवाई की दुकान के पास जमा भीड़ में से मैं किसी को नहीं पहचानता हूं.”

इसके बाद शाहिद के दोस्त अरशद का बयान इनर डायरी में मौजूद है जो 29 फरवरी को ही लिखा गया है, इसमें भी अरशद ठीक वहीं वाक्य बोलते हैं जो पूर्व में बाकी लोग बोल चुके हैं, ‘‘मैंने किसी को भी गोली चलाते हुए नहीं देखा और ठाकुर हलवाई की दुकान के पास जमा भीड़ में से मैं किसी को नहीं पहचानता हूं.”

29 फरवरी को ही क्राइम ब्रांच ने शमशाद का भी बयान दर्ज किया है जो की पुलिस की इनर डायरी में मौजूद है. शमशाद का बयान भी हूबहू हारून जैसा ही है. तीन पेज के अपने बयान के आखिरी पेज पर शमशाद के हवाले से लिखा गया हैं, ‘‘मैंने किसी को गोली चलाते हुए नहीं देखा.’’

हर बयान के नीचे लिखा गया कि-‘मेरे बताए मुताबिक मेरा बयान लिखा गया जोकि पढ़ लिया गया है. ठीक है.’ क्या यह महज इत्तेफाक है कि सबने एक जैसे ही बयान दिया और अंत में सबने पढ़कर बोला, ठीक है. यह महज इत्तफाक तो नहीं हो सकता है? फिरोज और उनके बेटे शाहिद के बयान को पढ़ने के बाद कुछ और ही लगता है. दरअसल फिरोज के बयान में भी मारुफ़ कोमेरे भाई के साला बताया गया है और उनके बेटे शाहिद के बयान में भी मारुफ़ कोमेरे भाई के साला ही बताया गया है. यह कैसे मुमकिन है एक आदमी पिता के भाई का भी साला हो और बेटे के भाई का भी

फिरोज, शाहिद और शमशाद का बयान

हारून इनर डायरी में लिखे अपने बयान को गलत बताते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वे पुलिस पर आरोप लगाते हैं, ‘‘हमें एसआईटी ऑफिस यमुना विहार या क्राइम ब्रांच ऑफिस दरियागंज, जहां भी बुलाया गया वहां मैंने आरोपियों के नाम बताये. जब भी पुलिस को हमने आरोपियों के नाम बताये उन्होंने सुना, लेकिन उनका कुछ हुआ नहीं. वे अब भी खुले में घूम रहे हैं. मेरी दुकान है. मैं अक्सर देर रात तक बाहर रहता था, लेकिन अब छह बजे के बाद घर से निकलने में डर लगता है.’’

शमशाद भी हारून की तरह ही इनर डायरी में छपे अपने बयान को गलत बताते हैं. वे कहते हैं, ‘‘यह झूठ लिखा गया है. मैंने एक बार नहीं कई बार गोली मारने वालों का नाम बताया है. मुझे गोली लगी है तो मारने वाले को मैं ही पहचान सकता हूं ना या कोई और पहचान करेगा?’’

पुलिस की इनर डायरी में एक हैरान करने वाली जानकारी मिलती है जो दिल्ली पुलिस की असंवेदनशीलता और जांच में लापरवाही की तरफ इशारा करता है.

3 मार्च के दिन हारून का बयान दर्ज है जो क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर और मारुफ़ की हत्या की जांच कर रहे लोकेन्द्र चौहान ने ली है. इस बयान में हारून कहते हैं, ‘‘आपने यह भी कहा था की अपने तौर पर केस के मुलजिमों व दंगाइयों की पहचान करके बताना. मैंने अपनी पूरी कोशिश करी है, लेकिन उन लोगों का अब तक कोई सुराग नहीं लग सका. मैंने मुलजिमों के बारे में आस पड़ोस में जानकारी हासिल करने की कोशिश की लेकिन मुलजिमों के बारे में कुछ पता नहीं चल सका. आगे अगर कोई सुराग मिलता है तो तुरंत बताऊंगा.’’

हारुन से इसको लेकर न्यूजलॉन्ड्री ने सवाल किया तो उन्होंने बताया, ‘‘पुलिस ने उनसे मारूफ के हत्यारों की जांच करने के लिए कहा था, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया क्योंकि मुझे उनसे जान का खतरा है. अगर मैं ऐसा करने जाता तो मेरे साथ कुछ भी सकता था. अभी भी गलती से वो कहीं नज़र आते हैं तो घूरकर देखते हैं. गालियां देते है.’’

जब पुलिस ने हारून की नहीं सुनी और इनके द्वारा बताये आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया तब उन्होंने 20 अप्रैल को डीसीपी क्राइम ब्रांच को एक पत्र लिखा जिसकी कॉपी भारत के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, दिल्ली के उपराज्यपाल, मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन, दिल्ली पुलिस के कमिश्नर समेत कई और जिम्मेदार अधिकारियों को भेजा. यह पत्र न्यूजलॉन्ड्री के पास मौजूद है.

हारून ने अपनी शिकायत में लिखा है, ‘‘मेरा भाई मारुफ़ जिसकी बिजली की दुकान थी, 25 फरवरी की दोपहर में कुछ समान निकालकर पास ही के एक मकान में रखकर आया था. उसके बाद रात को जब ख़बर आई कि फैमिली बाज़ार में कुछ लूटपाट कर रहे हैं तो मेरे भाई बोला चलो दुकान देखकर आते है उसमें तो कोई लूटपाट नहीं हुई. फिर हम दुकान देखकर वापस आ रहे थे तभी जैसे ही हम गली नम्बर तीन के करीब पहुंचे सामने गली नम्बर दो के पास पतली गली में सोनू कुमार, बॉबी, लाला, राम सिंह, मोहित, अभिषेक, योगी और कुछ अन्य लड़के जिनको मैंने गली नम्बर एक और दो में कई बार देखा है, उन्हें मैं सामने आने पर पहचान सकता हूं. वे सब इकट्ठा थे और इन लोगों के हाथों में बंदूकें, तलवारें, डंडे और सरिया आदि थे. तभी गली नम्बर तीन से शमशाद बाहर निकला तो बॉबी, जिसके हाथ में बंदूक थी, उसने शमशाद पर गोली चला दी. यह देखते ही मैं और मेरा भाई मारुफ़, शमशाद की तरफ भागे तो राम सिंह चिल्लाकर बोला, ‘मार साले कटुए को’ यह सुनते ही सोनू, जिसके हाथ में बंदूक थी उसने हमारी तरफ गोली चलाई जो मेरे भाई मारुफ़ की आंख में आकर लगी.”

हारून द्वारा डीसीपी को लिखा गया पत्र

शमशाद ने भी 20 अप्रैल को ही भजनपुरा थाने के एसएचओ को पत्र लिखा जिसमें उन्होंने भी आरोपियों का नाम बताते हुए पूरी घटना का जिक्र किया हैं जो उस दिन उनके साथ हुआ था. उन्होंने बताया,‘‘एसआईटी के लोग आरोपियों को बचाने का कार्य कर रहे हैं. कृपया करके दोषियों के विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाही की जाए और मेरी जान माल की रक्षा की जाए.’’

प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री समेत कई आला अफसरों के भेजे अपनी शिकायत में वे लिखते हैं, ‘‘27 फरवरी को मुझे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया. उसके 2-3 दिन बाद लोकेन्द्र एसआईटी (क्राइम ब्रांच) अपने साथियों के साथ आए. और उन्होंने बताया कि आपका मामला हम देख रहे है. उनको मैंने सारी बातें बताई व गोली मारने वालों का नाम व पता भी बताया. उसके बाद उन्होंने कहा कि जो जैकेट पहनी थी वह हमको दे दो फिर उन्होंने हमसे जैकेट ले ली और 8 से 10 सादे कागजों पर मुझसे और कुछ सादे कागजों पर मेरे पिताजी से भी दस्तखत कराए और बोले कि हमको इस जैकेट की रिपोर्ट आला अफसरान तक भेजनी होती है इसलिए ये दस्तखत कराए हैं.’’

शमशाद द्वारा पुलिस को लिखा गया पत्र

पुलिस ने अब तक शमशाद और हारून की शिकायत पर कोई ठोस कार्रवाई तो नहीं की लेकिन शिकायत के बाद जो हुआ वो हैरान करने वाला है.

हारून बताते हैं, ‘‘हमारी शिकायत के लगभग एक महीने बाद 16 मई को नोटिस आया की आपको 18 मई को दरियागंज के क्राइम ब्रांच ऑफिस आना है. 18 मई की सुबह हमने व्हाट्सऐप के जरिए उन्हें मैसेज करके बताया की कोरोना की वजह से हम नहीं आ सकते है. इसके बाद 19 मई को क्राइम ब्रांच के लोग हमारे यहां गाड़ी से आए और चलने के लिए बोले. वे पीपीई किट पहनकर आए थे. उन्होंने कहा कि आपको चलना होगा. फिर हम अपनी स्कूटी से उनके साथ आए. जब हम क्राइम ब्रांच के ऑफिस पहुंचे तो हमें वेटिंग रूम में बैठने के लिए कहा गया. हम हैरान थे कि जिन लोगों ने गोली चलाई थी उसमें से कुछ लोग वहां मौजूद थे. वे हमें घूर-घूर कर देख रहे थे.’’

शमशाद बताते हैं, ‘‘वहां पहुंचने के बाद पुलिस के लोग हमें वेटिंग रूम में छोड़कर चले गए. वहां सोनू और योगी बैठे हुए थे. उन्होंने मुझसे कहा कि शिकायत करके तू ज्यादा होशियार बन रहा है. यहां पर भी बेटे हमारी ही चलती है. इसके बाद सोनू मुझे गाली बकने लगा. कहने लगा तू हमारा कुछ नहीं बिगड़ पायेगा. सोनू ने ही मारुफ़ को गोली मारी थी. इसके थोड़ी देर बाद पुलिस वाले हमें वहां से लेकर चले गए.’’

शमशाद बताते हैं, ‘‘वहां से ले जाने के बाद हमें कुछ वीडियो दिखाई गई जो हमें बिलकुल समझ नहीं आई. उसके बाद हमें नीचे एक आला अधिकारी के पास लेकर गए. उन्होंने कहा कि अब क्यों यह शिकायत कर रहे हो. मैंने बताया की उस वक़्त मैं डरा हुआ था. तो उन्होंने कहा- अब तुझे डर नहीं लग रहा है. मैंने उन्हें बोला कि अब तो मैं ठीक हो गया हूं. अब मेरे को कोई दिक्कत नहीं. इसपर उन्होंने कहा की मैं तुम्हारी यह शिकायत नहीं मानता हूं.’’

इसके घटना के चार-पांच दिन बाद हारून ने एकबार फिर डीसीपी स्पेशल सेल को पत्र लिखा. जिसमें 19 मई की घटना का जिक्र किया है. वे लिखते हैं,‘‘क्राइम ब्रांच में मौजूद अधिकारी ने कहा तुम्हारी शिकायत नहीं मानता. तुम जानते हो 302 का मुकदमा क्या होता है. अगर किसी हरे पेड़ पर लिखकर टांग दो तो वह भी सूख जाता है. मैं अपने लड़कों की जिंदगी तुम्हारी शिकायत पर खराब नहीं होने दूंगा.’’

हारून ने इस पत्र को भी प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को भेजा. इस पत्र आगे वे लिखते हैं, ‘‘एसआईटी ऑफिस में लगे कैमरों की रिकॉर्डिंग को तुरंत देखा जाए व सेव करके सबूत के तौर पर रखा जाए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए क्योंकि हम इस हत्या के चश्मदीद गवाह है इसलिए यह लोग हमारी हर हाल में हत्या करना चाहते हैं इसलिए हमारी व हमारी परिवार वालों की जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए.’’

हारून और शमशाद की शिकायत

दिल्ली पुलिस के सीनियर अधिकारी ने हारून और शमशाद को उनकी शिकायत नहीं मानने के लिए कह तो दिया लेकिन चार्जशीट में बताया है, ‘‘शिकायतकर्ता हारून और गोली से घायल होने वाले शमशाद ने कुछ और लोगों के नाम बताये थे जो उस भीड़ में शामिल थे. इसमें से कुछ से पूछताछ की गई है जिसमें यह निकलकर आया कि वे घटना के वक़्त उस जगह पर मौजूद नहीं थे. इनके खिलाफ अभी जांच जारी है.’’

हालांकि पुलिस इस मामले में जांच जारी होने की बात कर रही है, लेकिन आरोपियों को गोली चलाते वक़्त देखने वाली गली नंबर दो में रहने वाली 38 वर्षीय शाहीन ने 18 अप्रैल को भजनपुरा के एसचओ को एक पत्र लिखकर आरोपियों के खिलाफ गोलियां चलाने, पथराव करने तथा पेट्रोल बम से हमला करने को लेकर शिकायत दी थी.

शाहीन अपनी शिकायत में मारुफ़ पर सोनू और शमशाद पर बॉबी द्वारा गोली चलाने की घटना की चश्मदीद होने का दावा करती हैं. वो न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहती हैं, ‘‘मैंने दोनों को गोली चलाते हुए देखा था.’’

अपनी शिकायत में गोली चलाते हुए देखने का दावा करते हुए वो कहती हैं, ‘‘घटना के अगले दिन बॉबी और सोनू गली में से गोलियों के खोखे और दूसरे सबूत उठाकर गायब किए हैं, जिसकी वीडियो हमारे पास मौजूद है. इसके बावजूद पुलिस थाने में बार-बार शिकायत करने के बाद हमारी शिकायत नहीं ली गई. और उल्टा बॉबी मुझे व मेरे बेटे को धमका रहा है कि तुमने अगर शिकायत की तो तुम्हें भी नरक पहुंचा दूंगा. मेरे ऊपर दबाव बना रहा है कि मैं वीडियो उन्हें दे दूं और अपने पास से उसे डिलीट कर दूं.’’

चार्जशीट में पुलिस ने मारुफ़ और शमशाद को लगी गली का कोई जिक्र नहीं किया है.

दायीं तरफ शिकायत करने वाली शाहिन

न्यूजलॉन्ड्री ने 7 जुलाई को इंस्पेक्टर लोकेन्द्र चौहान से दरियागंज स्थित क्राइम ब्रांच में मुलाकात की. हमने मारुफ़ और शमशाद के मामले से जुड़े कई सवाल पूछे लेकिन उन्होंने ऑन रिकॉर्ड कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.

इसके बाद क्राइम ब्रांच के एक सीनियर अधिकारी से जब न्यूजलॉन्ड्री ने दोनों पक्ष को एक साथ बैठाने के आरोप पर सवाल किया तो वे इससे इनकार कर देते हैं.

वहीं हारून और शमशाद द्वारा जिन आरोपियों का नाम लिया गया उनपर कार्रवाई को लेकर सवाल पूछने पर सीनियर अधिकारी कहते हैं, ‘‘उन्होंने नाम दिया है. अभी इन्वेस्टिगेशन बंद नहीं हुआ है. हमें जिनके भी खिलाफ सबूत मिलेगा हम उनपर कार्रवाई करेंगे. हर एंगल से जांच जारी है.’’

इस संबंध में न्यूज़लॉन्ड्री ने 11 जुलाई को कई सवाल दिल्ली पुलिस के पीआरओ समते कई अधिकारियों को भेजा था, लेकिन उनका जवाब नहीं आया. तो हमने दोबारा 15 जुलाई को फिर से वही सवाल भेजा है. जिसका भी अभी तक उसका कोई जवाब नहीं आया. अगर उनका जवाब आता है, तो खबर में अपडेट कर दिया जाएगा.

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मारूफ अली की हत्या पर दो-भाग की रिपोर्ट का यह पहला पार्ट है. 2020 दिल्ली दंगे में पुलिस द्वारा की जा रही जांच की इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट का यह हिस्सा है.

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यह स्टोरी एनएल सेना सीरीज का हिस्सा है, जिसमें हमारे 159 पाठकों ने योगदान दिया. यह रोन वाधवा, चिराग अरोरा, निशांत, राकेश, हेमंत महेश्वरी, अक्षय पाण्डे, शेख हाकु, ज़ैद रज़वी, सुम्रवस कंडुला, जया चेरिन, मनीषा मालपथी,और अन्य एनएल सेना के सदस्यों से संभव बनाया गया था. हमारे अगले एनएल सेना प्रोजेक्ट भारत में कस्टोडियल डेथ के लिए सपोर्ट करे, और गर्व से कहें 'मेरे खर्च पर आजाद है खबरें.

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