Newslaundry Hindi
शिवराज सिंह चौहान का सागर मंथन, विष ही विष, अमृत नदारद
मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार कुछ नये समीकरण और संदेश लेकर आया है. अमूमन ऐसे समय में सत्ता पक्ष में किस नेता को कौन सा मंत्रालय मिला इस बात पर चर्चा होती है पर यह मंत्रिमंडल कुछ खास है. इस मंत्रिमंडल के14 मंत्री ऐसे हैं जिनका अभी जनता के द्वारा चुना जाना बाकी है. इतना ही नहीं यह 14 कुछ माह पहले पहले तक भाजपा के सदस्य भी नहीं थे. शिवराज सिंह के नेतृत्व में बनी मध्य प्रदेश की नई सरकार का ढंग कुछ निराला है, इसमें विधानसभा का स्पीकर भी नहीं है और न ही विपक्ष दल का नेता. अब तो इस सरकार के 14 मंत्री विधायक भी नही हैं तो क्या यह सरकार जनता के प्रतिनिधियों की कही जा सकती है?
जब कोविड-19 से लड़ने के लिए नीति-निर्धारण और तैयारियों का समय था, तब भाजपा का मध्य प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व जोड़तोड़ से सरकार बनाने की जुगत में लगा था. मंत्रिमंडल विस्तार समारोह के इर्द-गिर्द मध्य प्रदेश भाजपा के दो नेताओं के 2 वाक्य महीनों से बदलती हुई परिस्थितियों को अपने आप में समेटे हुए हैं और यह बात किसी भी राजनीतिक विश्लेषक से छुपी नहीं है.
पहला बयान
चौथी बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ये कहना कि "मंथन से सिर्फ अमृत ही निकलता है, विष तो शिव पी जाते हैं" भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं है.
जब एक मुख्यमंत्री ही अपने मंत्रिमंडल विस्तार से खुश ना दिखाई दे तो उस सरकार का तो कोई भविष्य ही नहीं. इस बात का मतलब यह नहीं कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं करेगी बल्कि यह है कि प्रदेश में सत्ता दल का नेता मुख्यमंत्री होते हुए भी प्रसन्न नहीं है. भाजपा के नेता कुछ भी सफाई देते रहें पर मध्य प्रदेश भाजपा में संगठन के लोग खोई हुई सत्ता के वापस आने पर भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे. इस बात का प्रमाण प्रदेश में जगह-जगह हो रहे भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन हैं.
सागर के विधायक शैलेंद्र जैन और नरयावली से विधायक प्रदीप लारिया के समर्थकों ने अपने विधायकों के मंत्री न बनाए जाने पर, क्रमशः सागर में जल सत्याग्रह और भोपाल में प्रदर्शन कर अपना विरोध जताया. इन दोनों विधायकों ने पार्टी को कभी ना छोड़ने की बात कहते हुए अपने समर्थकों के प्रदर्शन को सही ठहराया. सागर के भाजपा जिलाध्यक्ष के अनुसार यह एक कार्यकर्ता की अभिव्यक्ति की आज़ादी है. देवास विधायक के समर्थकों ने भी मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने पर विरोध प्रदर्शन किया. प्रदेश में और कई जगह स्थानीय विधायक या उनके समर्थकों द्वारा प्रदर्शन हुए. इंदौर में भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय के समर्थकों ने भी प्रदर्शन किया जो यह बताता है कि मध्य प्रदेश भाजपा के अंदर गहरा असंतोष फैला हुआ है. और तो और भाजपा की वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी इस विस्तार पर अपनी टिप्पणी दी कि मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय और जातीय समीकरण बिगड़ा हुआ प्रतीत होता है.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का इस राजनीतिक सौदेबाजी की सागर मंथन से तुलना गलत है क्योंकि सागर मंथन कहने का मतलब यह है अब यह मंथन रुक गया जबकि अभी तो सिर्फ शुरुआत है. यह एक सागर मंथन नहीं बल्कि एक विषवृक्ष है जिसकी कोंपल फूट चुकी है. एक राजनीतिक दल में जब आलाकमान के फैसले जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को अच्छे लगने बंद हो जाते हैं इसका एक ही अर्थ है आलाकमान की प्राथमिकताओं में जमीनी कार्यकर्ता के महत्व में कमी आने लगी है. इस मची हुई उहापोह का सबसे बड़ा प्रमाण ज्योतिरादित्य सिंधिया का वाक्य है.
दूसरा बयान
ज्योतिरादित्य सिंधिया पूरे जोश में दिखाई पड़ते हैं और वह कुछ ही समय में कई बार मीडिया के सामने अपने लिए एक फिल्मी डायलॉग का प्रयोग कर चुके हैं- "टाइगर अभी जिंदा है".
मैं ठीक ठीक नहीं जानता कि ज्योतिरादित्य ने अपने लिए इस डायलॉग का प्रयोग क्यों किया पर यह साफ है कि यह कहते हुए वह काफी गर्वीले अंदाज में बात कर रहे थे. एक हल्की-फुल्की फिल्म के बचकाना डायलॉग को वह भले ही शानदार वक्तव्य समझें पर यह दूध में आए उबाल की तरह बढ़ते अभियान से ज्यादा कुछ नहीं है. इस बात में कोई शक नहीं कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने से उनको और उनके समर्थकों को जबरदस्त सत्ता हाथ लगी है, दल बदलकर सत्ता में भागीदारी का मध्य प्रदेश में इससे बड़ा उदाहरण शायद ही पहले कभी देखने को मिला हो.
मार्च के महीने में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर अपने समर्थकों सहित भाजपा में जा मिले थे तब किसी को यह अंदाजा नहीं था कि वह सत्ता पक्ष के अंदर अपने गुट को इतनी मजबूत स्थिति में ला पाएंगे. जब सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर मार्च में भाजपा ज्वाइन कर लिया था तब सबके दिमाग में यह प्रश्न था कि देखते हैं अब सिंधिया का क्या होगा.
हम देख सकते हैं कि क्या हुआ, सिंधिया अब भाजपा के मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद हैं और शिवराज सिंह चौहान की सरकार में 14 मंत्री कांग्रेस से पधारे नए मेहमान हैं. ज्योतिरादित्य और उनके साथी खुश हैं औरभाजपा के काफी कार्यकर्ता रुष्ट.
यह पूरा प्रकरण भाजपा के अंदर भी कांग्रेस में हमेशा से चलने वाली माई बाप संस्कृति की झलक दिखाता है. शीर्ष नेतृत्व के हाथ में हर राज्य की डोर, और कमजोर होते प्रादेशिक नेता इस बात का स्पष्ट प्रमाण है.
राजनीति का योग्यता से द्वेष
अधिकतर विश्लेषक और पत्रकार इस सत्ता के लिए किए गए लेन देन को 'राजनीति में ऐसा करना पड़ता है' कह कर टाल देते हैं. यह तर्क अब बंद होना चाहिए.जब राजनीति योग्यता पर नहीं चलेगी और केवल सत्ता पर एकाधिकार बनाए रखने के लिए हर नियम को तोड़ मरोड़ कर रख देगी, ऐसे समय में यह तर्क देश और उसके संविधान के साथ धोखाधड़ी है.
क्या हम यह मान लें कि जनसंघ के जमाने से भाजपा के लिए मजबूत मध्य प्रदेश में योग्य कार्यकर्ता नहीं हैं या पिछले दो दशक के भाजपा सरकारों के कार्यकाल में कोई योग्य कार्यकर्ता नहीं उभर पाए? अगर ऐसा नहीं है तो पिछली तीन सरकारों में भाजपा मंत्रिमंडल के लोग अब कहां हैं.
कुछ लोगों का कहना है कि ऐसा सिर्फ आने वाले उपचुनावों के खत्म होने तक के लिए किया गया है. यह तो और भी शर्मनाक बात है. जनता के लिए चलाए जाने वाले प्रशासन और मंत्रालयों का यूं सत्ता समीकरणों के बीच ताश के पत्तों की तरह इस्तेमाल होता रहे इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है.
इन 14 मंत्रियों की अपनी दी गई जिम्मेदारी के लिए ऐसी कौन सी योग्यता है जो पुराने शिवराज मंत्रिमंडल में नहीं थी. कुछ लोग कहेंगे कि भाजपा चुनाव हार गई तो उनके उम्मीदवार हार गए पर यह उम्मीदवार भी तो अभी विधायक नहीं है.
सत्य तो यह है कि इन मंत्रियों की इकलौती योग्यता है कि ये सब अपना दल बदलकर सत्ता के लालच में दूसरी पार्टी में मिल गए. उसके जो भी कारण हों मगर करोड़ों लोगों के जीवन से जुड़े मंत्रालयों के मंत्री पद जब तक सत्ता के लेन-देन में इस्तेमाल किए जाते रहेंगे तब तक भारत को आत्मनिर्भर बनाने और देश की व्यवस्थाओं को सुधारने की आकांक्षा अधूरी ही रहेगी.
Also Read
-
BJP faces defeat in Jharkhand: Five key factors behind their setback
-
Newsance 275: Maha-mess in Maharashtra, breathing in Delhi is injurious to health
-
Decoding Maharashtra and Jharkhand assembly polls results
-
Pixel 9 Pro XL Review: If it ain’t broke, why fix it?
-
How Ajit Pawar became the comeback king of Maharashtra