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तेजी से सूख रही वन भूमि
पिछले तीन दशकों में जहां दुनिया भर में वनों का क्षेत्रफल कम हुआ है, वहीं वनों के नुकसान की दर टिकाऊ प्रबंधन का विकास न होने के कारण घटी है. ग्लोबल फॉरेस्ट रिसोर्स असेसमेंट (एफआरए) 2020 के अनुसार, 2015-20 में वनों की नुकसान की अनुमानित दर 10 मिलियन हेक्टेयर रही जबकि 2010-15 में यह दर 12 मिलियन हेक्टेयर थी.
एफआरए-2020 रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा 13 मई 2020 को जारी किया गया था. इसमें 236 देशों में 1990-2020 के दौरान वनों से संबंधित 60 कारकों के जरिए वनों कि स्थिति और ट्रेंड्स की पड़ताल की गई है. रिपोर्ट के अनुसार 1990 में दुनिया भर में 178 मिलियन हेक्टेयर वन कम हुए है. वनों को पहुंचा यह नुकसान लीबिया के क्षेत्रफल के बराबर है.
हालांकि रिपोर्ट यह भी बताती है कि 1990-2020 के बीच वनों की शुद्ध नुकसान दर कम हुई है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कुछ देशों में पेड़ों की कटाई में कमी आई है और पौधारोपण के जरिए वन क्षेत्र बढ़ा है. भारत में हजारों हेक्टेयर वन भूमि विभिन्न विकास परियोजनाओं को हस्तांतरित हुई है.
पिछले पांच सालों में 69,414.32 हेक्टेयर वन भूमि गैर वन कार्यों के लिए दी गई है. यह जानकारी खुद केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 20 मार्च, 2020 को संसद में दी. परिवेश वेबसाइट बताती है कि 2014-15 से 2018-19 के बीच वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 के तहत 69,414.32 हेक्टेयर भूमि 3,616 परियोजनाओं को दी गई है. मंत्रालय की अन्य वेबसाइट ईग्रीन दूसरी तस्वीर पेश करती है. इसके अनुसार, इस अवधि में कुल 72,685 हेक्टेयर वन भूमि गैर वन गतिविधियों के लिए हस्तांतरित हुई है.
ईग्रीन वेबसाइट 2009 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद बनाई गई थी ताकि राज्य सरकारों द्वारा किए गए प्रतिपूरक वनीकरण की निगरानी और मूल्यांकन किया जा सके. यह प्रतिपूरक वनीकरण वन भूमि को दूसरे कार्यों जैसे खनन आदि में देने के बदले किया जाता है. जानकारों के मुताबिक, परिवेश वेबसाइट के आंकड़ों में अंतर इसलिए है क्योंकि इसमें मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा ट्रांसफर वन भूमि को शामिल नहीं किया गया है. क्षेत्रीय कार्यालय 40 हेक्टेयर तक की वन भूमि गैर वन गतिविधियों के लिए ट्रांसफर कर सकते हैं.
दिल्ली स्थित गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च कांची कोहली कहते है, “मंत्रालय की दोनों वेबसाइट में वन भूमि के ट्रांसफर के आंकड़ों में समानता नहीं है. इसमें क्षेत्रीय कार्यालय के वन भूमि ट्रांसफर को शामिल नहीं किया गया है. आंकड़े स्पष्ट हों तो पता चलता रहता है कि नियमों का पालन किया जा रहा है या नहीं. उदाहरण के लिए आंकड़ों से प्रतिपूरक वनीकरणव अन्य नियमों की जानकारी मिलती है लेकिन आंकड़ों की अस्पष्टता से इस पर नज़र रखना संभव नहीं हो पाता.”
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