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विकास के सूचकांक पर राज्यों का सूरते हाल
हाल के वर्षों में, केंद्र सरकार विभिन्न विकास मापदंडों पर राज्यों का मूल्यांकन कर रही है. इस रैंकिंग के पीछे तर्क यह है कि यह राज्यों के बीच उनकी विकास प्राथमिकताओं को ठीक करने के लिए प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा करेगा. इसके अलावा, इनमें से अधिकांश मूल्यांकन किसी विशेष विकास लक्ष्य के हिसाब से एक राज्य को रैंकिंग देते हैं- उदाहरण के लिए जलसंसाधनों का विकास. इन राज्यों के भीतर, 200 ‘एस्पिरेशनल’ जिलों या देशके सबसे गरीब लोगों के लिए विकास का एक सूचकांक भी है.
सरकार का फोकस इन सबसे गरीब जिलों पर रहा है. उनके प्रदर्शन को विकास लक्ष्यों के आधार पर नियमित रूप से सूचीबद्ध करके केंद्र सरकार विकास योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना चाहती है. इन सभी रैंकिंग को एक साथ लेकर देखने पर राज्यों के विकास कि स्थिति का निरीक्षण किया जा सकता है.
यह बहुत स्पष्ट रूप से सामने आता है कि कुछ राज्य दशकों से अविकसित हैं जबकि कुछ राज्य तेजी से विकास दर्ज कर रहे हैं. इसी तरह, किसी विशेष राज्य में विकास का स्तर हमेशा उसके प्राकृतिक संसाधनों (जिन्हें समग्र विकास के लिए एक मानदंड माना जाता है) पर निर्भर नहीं होता है. शायद यही कारण है कि विशाल प्राकृतिक संसाधनों वाले झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य हमेशा देश के सबसे गरीब राज्यों के रूप में स्कोर करते हैं.
यह देश के भीतर विकास में भारी क्षेत्रीय असमानता को इंगित करता है. इसके अलावा राज्यों में विभिन्न विकास योजनाओं के केंद्रित कार्यान्वयन के बावजूद कई इलाके अविकसित रह जाते हैं. उदाहरण के लिए, ओडिशा का केबीके क्षेत्र (कालाहांडी-बालांगीर-कोरापुट क्षेत्र) न केवल राज्य का, बल्कि देश का भी सबसे गरीब क्षेत्र है. यह इस तथ्य के बावजूद है कि इस क्षेत्र को वन और खनिजों जैसे प्राकृतिक संसाधनों के मामले में देश का सबसे अमीर क्षेत्र माना जाना चाहिए.
डाउन टू अर्थ ने केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को दी गयी दो रैंकिंगों-शासन सूचकांक और जल विकास की स्थिति की जांच की. पहली रैंकिंग राज्यों के विकास का एक समग्र विवरण है, जबकि बाद वाली सबसे महत्वपूर्ण संसाधन, जलके विकास पर आधारित है. जैसा कि आप अगले देखेंगे, दोनों सूचकांक को मिलाकर और एक रैंकिंग तय करके, हम राज्यों में विकास की स्थिति का एक और अधिक शक्तिशाली संकेतक लाए हैं.
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