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जलवायु परिवर्तन: पानी गए न ऊबरै, मोती, मानस, चून

2019 में दुनिया को एक चेतावनी मिली. अगर हम वर्ष 2100 तक अपनी आबादी घटाकर सात बिलियन कर लेने के अलावा असमानताएं कम कर लें, प्रभावी भू उपयोग सुनिश्चित करें, संसाधनों की गहन खपत को कम कर लें और अपने उद्योगों एवं जीवनशैली को पर्यावरण के अनुकूल कर लें तो भी पृथ्वी को जल संकट से होकर गुजरना पड़ेगा. जलवायु परिवर्तन, मरुस्थलीकरण, भूमि शोधन, सतत भूमि प्रबंधन एवं खाद्य सुरक्षा और स्थलीय परिस्थिति की प्रणालियों में ग्रीनहाउस गैस के प्रवाह को लेकर बने अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की विशेष रिपोर्ट के अंतिम मसौदे में यह निष्कर्ष निकाला गया है.

भारत पहले से ही जल की उपलब्धता को लेकर तनाव की स्थिति में है. विश्व संसाधन संस्थान (डब्ल्यूआरआई) द्वारा जारी किए गए एक्वाडक्ट वाटर रिस्क एटलस के अनुसार, भारत को दुनिया के 17 "अत्यंत जल-तनावग्रस्त" देशों में तेरहवें स्थान पर रखा गया है. भारत में बेसलाइन जल संकट “बेहद उच्च स्तर” पर पहुंच चुका है और, हमारे बाद पाकिस्तान का नंबर आता है. किसी भी क्षेत्र में "जल तनाव" तब उत्पन्न होता है जब पानी की मांग उपलब्ध मात्रा से अधिक होती है या उसकी गुणवत्ता कम होती है. इसके फलस्वरूप जल का प्रयोग नहीं हो पाता.

प्रधानमंत्री ने जल संरक्षण को अपने प्रमुख कार्यक्रम के रूप में घोषित किया है और ऐसे में देश के नीति निर्माताओं के लिए जल निश्चय ही एक सर्वोच्च प्राथमिकता होगी. लेकिन हालात बहुत अच्छे नहीं हैं. भारत में नदियों का एक विस्तृत नेटवर्क है, जो लगभग 20 नदी घाटियों के सहयोग से बनता है. इनमें से गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु मिलकर हिमालय के जलग्रहण क्षेत्र से 40 प्रतिशत से अधिक उपयोग करने योग्य सतह-जल को समुद्र तक ले जाती हैं. मानव हस्तक्षेप के अलावा घरेलू, औद्योगिक और कृषि उपयोगों के लिए जल की बढ़ती मांग ने इसकी उपलब्धता को प्रभावित किया है, जिससे अधिकांश नदियों के प्रवाह क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ा है.

केंद्रीय जल आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि 1984-85 और 2014- 15 के बीच सिंधु नदी में पानी की मात्रा में 27.78 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी की कमी आई है. यह कमी भारत की सबसे बड़ी नदियों में से एक, कावेरी में कुल उपलब्ध पानी के बराबर है. ब्रह्मपुत्र के जल में 95.56 बीसीएम और गंगा में 15.5 बीसीएम की कमी मापी गई है. 2017 में जारी आंकड़ों से एक और परेशान करने वाला रुझान निकलकर सामने आता है; 2004-05 और 2014-15 के बीच, सिंधु के जलग्रहण क्षेत्र में एक प्रतिशत, गंगा में 2.7 प्रतिशत और ब्रह्मपुत्र के जलग्रहण क्षेत्र में 0.6 प्रतिशत की कमी आई है. प्रति व्यक्ति सतह जल उपलब्धता भी 1951 के 5,200 घन मीटर से घटकर 2010 में 1,588 घन मीटर रह गई है.