Newslaundry Hindi
जलवायु परिवर्तन: लॉकडाउन से कार्बन फुटप्रिंट में गिरावट
कोविड-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए लगाए गए 60 दिनों के लॉकडाउन में कुछ अच्छे परिणाम मिले. हमने देखा कि नदियां स्वच्छ थीं; जंगली जानवर एवं पक्षी बिना किसी डर के शहरों में घूमते पाए गए और आकाश भी सचमुच नीला था. और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जैसे ही हमने ऊर्जा का उपभोग करना बंद किया, हमारे द्वारा उत्सर्जित किए जाने वाले कार्बन की मात्रा में भी कमी आई.
कार्बन ब्रीफ द्वारा ईंधन की खपत के विश्लेषण के अनुसार, लॉकडाउन के फलस्वरूप भारत में लगभग चार दशकों में पहली बार कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आई. विश्लेषण के अनुसार, मार्च 2020 की तुलना में अप्रैल 2020 में उत्सर्जन में 30 फीसदी की गिरावट आई. हालांकि यह जलवायु के लिए अच्छी ख़बर की तरह लग सकता है लेकिन ऐसा नहीं है. जलवायु नीति का लक्ष्य विकार्बनीकरण के माध्यम से लाभ लेना है और किसी आर्थिक दुर्घटना के फलस्वरूप उत्सर्जनों में आई कमी इसके उद्देश्यों में शामिल नहीं है.
ग्रीन रिकवरी काफी हद तक सरकारी नीतियों पर निर्भर होगी और हम इसका एक नमूना देख भी चुके हैं. 13 मई को वित्तमंत्री ने बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को 90,000 करोड़ रुपये का ऋण देने की घोषणा की, जिससे वे बिजली उत्पादकों को उनका बकाया भुगतान कर सकें. इस मोर्चे पर, कम से कम, सरकार ने विशेषज्ञों की सिफारिशों का पालन किया है (चाहे अधिसंख्य अन्य मोर्चों पर सरकार ने अपनी मनमानी ही की हो), जो देश के सबसे कमजोर लोगों को सीधे प्रभावित करते हैं.
अक्षय ऊर्जा उत्पादकों को पूंजी का प्रबंध करने में दिक्कतें आ रही थीं और उन्होंने इस कदम का उत्साह के साथ स्वागत किया. ऐसा तब हुआ जब इस प्रोत्साहन पैकेज में अक्षय ऊर्जा से संबंधित कुछ भी नहीं है. इस पैकेज में 90,000 करोड़ की इस राशि के इस्तेमाल को लेकर शर्तें होनी चाहिए थी, खासकर अक्षय ऊर्जा जेनरेटरों का भुगतान समय पर करने के बारे में.
हम जानते हैं कि इस आकार का पैकेज प्रदर्शन को बेहतर बनाने का अवसर प्रदान करता है. उदाहरण के लिए, स्मार्ट मीटरिंग का विस्तार और वितरण के नुकसान को कम करने की शर्तें इस पैकेज से जुड़ी हैं. ये लक्ष्य महत्वपूर्ण अवश्य हैं लेकिन इनके अलावा भी कई चीजें हैं, जैसे पुराने थर्मल पावर प्लांटों को बंद करना. खासकर वैसे प्लांट जो चार दशकों से भी पुराने हैं. यह एक ऐसा काम है जो इस पैकेज के माध्यम से संभव था.
इस तरह की किसी भी बंदी को “जस्ट ट्रान्ज़िशन“ के जलवायु मापदंडों का पालन करना होगा. पैकेजों में बंदी के तकनीकी पहलू के अलावा उसके मानवीय पहलू पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है, जैसे आजीविका और आर्थिक नुकसान की भरपाई.
Also Read: पर्यावरण का सच: अभी नहीं तो कभी नहीं
Also Read
-
‘Talks without him not acceptable to Ladakh’: Sonam Wangchuk’s wife on reality of normalcy in Ladakh
-
When media ‘solves’ terror cases, Kashmiris are collateral damage
-
Public money skewing the news ecosystem? Delhi’s English dailies bag lion’s share of govt print ads
-
Month after govt’s Chhath ‘clean-up’ claims, Yamuna is toxic white again
-
The Constitution we celebrate isn’t the one we live under