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दुनिया के 20 फीसदी मवेशियों में है ऐसा बैक्टीरिया जो इंसानों के लिए है खतरा
फसलों की घटती विविधता, बढ़ते मवेशी, साथ ही फसलों और मवेशियों पर धड़ल्ले से हो रहा एंटीबायोटिक का उपयोग, यह सब मिलकर जानवरों से इंसान में बैक्टीरिया के फैलने के लिए अनुकूल माहौल तैयार कर रहे हैं. इससे जानवरों से फैलने वाली बीमारियों (ज़ूनोटिक डिजीज) के प्रसार का खतरा बढ़ता जा रहा है. यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ ने हाल ही में इस पर एक शोध किया है. जो कि अंतराष्ट्रीय जर्नल पनास में प्रकाशित हुआ है.
इस शोध में वैज्ञानिकों ने मवेशियों से फैलने वाले एक बैक्टीरिया कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी का अध्ययन किया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह बैक्टीरिया मूल रूप से इंसानों में गैस्ट्रोएन्टराइटिस नामक रोग फ़ैलाने के लिए जिम्मेदार होता है. गौरतलब है कि यह पाचन तंत्र सम्बन्धी रोग है. इसके कारण आंतों में जलन और सूजन जैसी समस्या हो जाती है. इस बीमारी में उल्टी और दस्त का होना सामान्य होता है.
शोध के अनुसार यह बैक्टेरिया बीसवीं शताब्दी में मवेशियों के बढ़ने के साथ ही फैलना शुरू हुआ था. जैसे-जैसे मवेशियों के आहार, शरीर की बनावट में बदलाव होता गया. उनके जीन में भी बदलाव आता गया. परिणाम स्वरूप यह बैक्टीरिया जानवरों से इंसानों में भी फैल गया. वैज्ञानिकों का मत है कि मवेशियों के बढ़ते व्यवसायीकरण ने इस बैक्टीरिया को जानवरों से इंसानों में फैलने के लिए एक अनुकूल माहौल तैयार कर दिया है.
दुनिया में बढ़ रहा है जानवरों से फैलने वाली बीमारियों का खतरा
यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ में जीव विज्ञानी और इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता सैम शेपर्ड ने अनुमान जताया है कि धरती पर करीब 150 करोड़ मवेशी हैं. उनके अनुसार यदि इतने मवेशियों में से केवल 20 फीसदी मवेशियों में भी यह वायरस है. तो यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है. दूषित मांस, मुर्गी आदि के सेवन से यह बैक्टीरिया इंसानों में फैल जाता है. उनके अनुसार,“पिछले कुछ दशकों में जंगली जानवरों से इंसानों में कई वायरस और बैक्टीरिया फैले हैं. जैसे की बंदरों से एचआईवी, पक्षियों से एच5एन1 फैला था. वहीँ अब चमगादड़ों से इंसानों में कोविड-9 के फैलने की आशंका जताई जा रही है.”
प्रोफेसर शेपर्ड ने बताया कि शोध से पता चला है कि जैसे-जैसे पर्यावरण में बदलाव आ रहा है और इंसानों एवं मवेशियों के बीच संपर्क बढ़ रहा है. इंसानों में बैक्टीरिया के फैलने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है. हमें पिछली महामारियों से सीख लेनी चाहिए. यह आने वाले खतरों के लिए चेतावनी हैं. हमें पशुपालन और खेती के नए तरीकों को अपनाने में ज्यादा सजगता और जिम्मेदारी दिखानी होगी.
बैक्टीरिया 'कैम्पिलोबैक्टर' मुर्गियों, सूअरों, अन्य मवेशियों और जंगली जानवरों के मल में पाया गया है. जिसके वैश्विक स्तर पर 20 फीसदी मवेशियों के मलमूत्र में मौजूद होने का अनुमान लगाया गया है. एक अन्य शोधकर्ता जो कि यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ में मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट हैं ने बताया कि जानवरों में मौजूद रोगजनक बैक्टीरिया इंसानों के लिए एक बड़ा खतरा हैं.
इस शोध से पता चलता है कैसे यह रोगजनक एक जीव से दूसरे में फैलने के लायक बनते जा रहे हैं. ऊपर से गहन कृषि के चलते इनको ज्यादा तेजी से फैलने में मदद मिल रही है.
हालांकि यह बैक्टीरिया उतना घातक नहीं होता, फिर भी यह छोटे बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है. ऊपर से जैसे-जैसे मवेशियों में एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग बढ़ रहा है. इस बैक्टीरिया के भी एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स होने का खतरा बढ़ता जा रहा है, जो कि एक बड़ी समस्या है.
(डाउन टू अर्थ से साभार)
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