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कुंभ मेले में सैंकड़ों बसों की परेड करवाने वाले योगीजी की बसें कहां चली गईं

उत्तर प्रदेश में मजदूरों के प्रवास को लेकर राजनीति जारी है. उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेज पाने में असमर्थता दिखाई तो सियासी अखाड़े में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी कूद पड़ीं. उन्होंने अपनी पहल पर उत्तर प्रदेश में 1000 बसें मुहैया करवाने का दांव चला. लेकिन इस पहल में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने ये कहते हुए अड़ंगा डाल दिया कि पहले सभी बसों को लखनऊ भेजा जाय. जबकि मजदूर फंसे हुए हैं गाजियाबाद और झांसी के आस-पास बॉर्डर इलाको में जहां से उन्हें अपने राज्य में घुसने नहीं दिया जा रहा है.

इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार की पूरी मशीनरी ने इस बात में अपनी सारी ऊर्जा झोंक दी कि जिन बसों की लिस्ट कांग्रेस पार्टी ने दी है वो बसें पर्यावरण मानकों पर फेल हैं, कुछ के रजिस्ट्रेशन सही नहीं है आदि. इससे बेहद कम ऊर्जा खर्च करके उत्तर प्रदेश सरकार इन मजदूरों को बसें उपलब्ध करवा सकती थी, उन्हें उनके गंतव्य तक पहुंचा सकती थी. लेकिन इस इच्छाशक्ति और योजना का पूरी तरह अभाव दिखा.

हम ये क्यों कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार इन मजदूरों को बहुत आसानी से इनके गंतव्य भेज सकती थी?

2019 में प्रयागराज में अर्धकुंभ का आयोजन हुआ था. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 18 मार्च, 2020 को अपनी सरकार के तीन साल पूरा हो जाने की प्रमुख उपलब्धियों में इस आयोजन को गिनवाया था. उन्होंने कहा इस ‘मेले में 24.56 करोड़ लोगों ने भाग लिया और दुनिया के लिए अनूठी घटना का उदाहरण पेश किया.’

इसी कुंभ मेले के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार के नाम एक कीर्तिमान जुड़ा जिसे वो अपने सीने से चिपकाए घूमती है. इस मेले में श्रद्धालुओं को लाने-ले जाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बसों का सबसे बड़ा बेड़ा उतार दिया गया था. बसों की यह संख्या इतनी बड़ी थी जितनी दुनिया में इससे पहले कभी नहीं हुई लिहाजा गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड ने उत्तर प्रदेश सरकार को बाकायदा एक विश्व कीर्तिमान का सर्टिफिकेट जारी किया. इसे जब तब यूपी सरकार के नुमाइंदे लहराते रहते हैं.

बसों का बेड़ा
गिनीज रिकॉर्ड का फोटो

कुंभ मेले की एक झलक

2019 में आयोजित कुंभ मेले में यूपी सरकार ने पानी की तरह पैसा बहाया था. लाइवमिंट में छपी एक ख़बर के मुताबिक कुंभ मेले का बजट 4,200 करोड़ का था. साथ ही कुछ मंत्रालयों को अलग से फंड जारी किया गया था. बता दें कि, साल 2013 में आयोजित महाकुंभ मेले का बजट 1300 करोड़ था. जबकि 6 साल बाद हुए इस कुंभ मेले का बजट 4200 करोड़. करीब 224 प्रतिशत की बढ़ोतरी.

इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार और उसके प्रशासनिक अधिकारियों की ख्याति एक और मामले में रही. उत्पाती कांवड़ियों के ऊपर भी योगी सरकार ने मेहरबानी दिखाई. उनके ऊपर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाने से लेकर उनके पैर मालिश तक के इंतजाम किए गए. लेकिन सैंकड़ों, हजारो किलोमीटर की पैदल यात्रा भूखे प्यासे कर रहे मजदूर, महिला, बच्चों के लिए योगी की पोटली में अकाल पड़ गया. यह काम समाज के जिम्मे छोड़ दिया गया.

मजदूरों के लिए क्यों नहीं हुई बसों की परेड

उत्तर प्रदेश सरकार ने कुंभ मेले में 503 बसों की परेड निकाल कर एक विश्व रिकॉर्ड बनाया, साथ ही यह गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल हो गया. लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि जिस सरकार के नाम इतने बसों का विश्व रिकॉर्ड हैं उसके पास अब मजदूरों के लिए बसें नहीं हैं. आखिर कहां गई वो परेड की बसें जिनका उपयोग फोटो खिंचाने और सर्टिफिकेट पाने के लिए किया गया था.

कांग्रेस पार्टी के सचिव और मध्य प्रदेश कांग्रेस के सह प्रभारी सुधांशु त्रिपाठी ने कहा, “उत्तर प्रदेश सरकार की नीयत देखिए. श्रमिक फंसे हैं नोएडा, गाजियाबाद में और ये प्रियंका जी के निजी सचिव को पत्र लिखकर कहते हैं कि बसें लखनऊ पहुंचा दें. मजदूरों को उनके घर पहुंचाने की सरकार की गंभीरता को आप समझ सकते हैं.”

इस बीच दिल्ली-यूपी और यूपी - मध्य प्रदेश बार्डर पर जगह-जगह मजदूरों को रोक दिया गया है. यूपी पुलिस किसी भी मजदूर को आने की इजाजत नहीं दे रही है. सरकार की इस उदासीनता पर एक मां जिसका बच्चा झांसी में है, वह रोते हुए कहती हैं, “आप हमारे लिए बस का इंजताम नहीं कर सकते तो कम से कम हमें पैदल अपने घर जाने दीजिए.’

आपको यहां बता दें कि पलायन करते मजदूरों के साथ देश में सबसे दर्दनाक घटना हुई है उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में. वहां 24 मजदूर एक सड़क हादसे में मारे गए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटना पर दुख जताते हुए मृतकों के परिजनों को 2 लाख और घायलों को 50 हजार के आर्थिक मदद का ऐलान किया है.

सैकड़ों मजदूरों को दिल्ली और गाजियाबाद के बॉर्डर पर रोक दिया गया हैं. सरकारी आलम देखिए, ट्रेन में टिकट नहीं मिल रहा, बसें चल नहीं रही, तो आखिर कैसे मजूदर अपने घर जाएंगे. पैदल जाने पर भी इनको रोक दिया गया. मजदूरों की हालात पर सरकारी लापहरवाही के बाद यह मुद्दा अब राजनीतिक हो गया.

देश के सबसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री अपने सरकार के तीन साल पूरा होने पर जब कह रहे थे कि उनके सरकार के कार्यकाल में राज्य के लोगों की धारणा को बदलने में कामयाबी हासिल की और राज्य को विकास, विश्वास और सुशासन के रास्ते पर ले आई. दुख की बात तो यह हैं कि मुख्यमंत्री ने यह सभी दावे सिर्फ दो महीने पहले 18 मार्च को किए थे. लेकिन जनता को क्या पता था कि जो सरकार अपने काम की इतनी तारीफ कर रही है वह अगले ही महीने उनकी मदद करने में बेबस हो जाएगी. उसका सारा अमला कांग्रेस द्वारा उपलब्ध करवाए गए 1000 बसों का रजिस्ट्रेशन और खंडन करने में लग जाएगा.

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