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बहुत बुरे समय में बहुत कुछ कहने का हुनर है पाताललोक

"ये जो दुनिया है ना.. दुनिया.. ये एक नहीं तीन दुनिया हैं. सबसे ऊपर- स्वर्ग लोक, जिसमें देवता रहते हैं. बीच में धरती लोक- जिसमें आदमी रहते हैं. और सबसे नीचे- पाताल लोक, जिसमें कीड़े रहते हैं."

आउटर जमना पार थाने का इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी (जयदीप अहलावत) पीसीआर चलाते वक़्त यह ज्ञान दिल्ली पुलिस में नए-नए भर्ती हुए सब-इंस्पेक्टर अंसारी (इश्वाक सिंह) को दे रहा है. हाथीराम अपनी बात खत्म करते हुए कहता है, "ये सब शास्त्रों में लिखा हुआ है पर मैंने व्हाट्सएप पर पढ़ा था."

अंसारी किताब पढ़ने में व्यस्त हैं और हाथीराम की बात का जवाब बिना मुंह को तिरछा किए सिर्फ 'हूं' में देता है. हाथीराम, अंसारी और उसकी किताब को देखकर अपनी हरियाणवी बोली में कहता है, "सुनले कुछ नहीं रखा इन किताबों में... काम की बात बता रहा हूं."

हाथीराम और अंसारी के बीच का यह शुरुआती संवाद ही इस 'पाताल लोक' नामक वेब सीरीज की कहानी के गर्भ में छुपे सामाजिक-राजनीतिक मायनों का निचोड़ है, जिसे सुदीप शर्मा ने लिखा है और अविनाश अरुण व प्रोसित रॉय ने मिलकर सजाया (डायरेक्ट) है.

9 एपिसोड वाली यह वेब सीरीज पहले एपिसोड से ही दर्शक को अपने साथ गूंथ लेती है और खत्म होकर ही उसे मुक्त करती है. इस लिहाज से कहानी में वो सभी तत्व हैं जो एक सफल वेब सीरीज के लिए जरूरी हैं.

कहानी की शुरुआत यमुना के पुल पर पकड़े गए उन चार अपराधियों से होती है जो अपने इतिहास से भारतीय समाज की सच्चाइयों का पर्दा गिराते चलते हैं.

इन चारों अपराधियों को प्रसिद्ध न्यूज़ एंकर संजीव मेहरा (नीरज कबी) का मर्डर करने की साजिश करते पकड़ा जाता है और इस केस को सॉल्व करने का जिम्मा हाथीराम चौधरी को दिया जाता है. हाथीराम इस केस की इन्वेस्टिगेशन करते-करते चारों अपराधियों की हिस्ट्री शीट यानी उनके इतिहास दर्शन करने निकल पड़ता है.

मुख्य अपराधी विशाल उर्फ हथौड़ा त्यागी (अभिषेक बनर्जी) पूरी सीरीज में बहुत कम डॉयलोग्स बोलते हैं लेकिन एकटक एक निशाने पर देखतीं उनकी आंखें हलक सूखा देती हैं. जब हाथीराम, हथौड़ा त्यागी की हिस्ट्री शीट निकालने चित्रकूट पहुंचते हैं तो उन्हें त्यागी के बचपन में झांकने का मौका मिलता है और साथ ही इस केस से जुड़ी बाहुबल और जातीय गठजोड़ पर चलने वाली उस राजनीति का भी, जो संजीव मेहरा को मारने के लिए हथौड़ा त्यागी को चित्रकूट से दिल्ली भेजती है.

दूसरे अपराधी तोप सिंह (जगजीत संधू) की हिस्ट्री शीट निकालने के लिए सब-इंस्पेक्टर अंसारी जब पंजाब पहुंचते हैं, तो ब्राह्मणवाद का छुटका पंजाबी वर्ज़न 'जट्टवाद' मुंह बाए खड़ा मिलता है. इस जातीय उत्पीड़न से तंग आकर तोप सिंह जैसा एक गरीब दलित लड़का इतना बड़ा अपराधी बन बैठता है. तोप सिंह का किरदार निभा रहे जगजीत संधू उत्तर भारत के बेहतरीन थिएटर आर्टिस्टों में से एक माने जाते हैं. कैमरे के आगे भी उन्होंने बढ़िया काम किया है.

तीसरी अपराधी मैरी लिंगदोह (मैरेम्बम रोनाल्डो) एक यतीम ट्रांसजेंडर है जिसका बचपन चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज की भेंट चढ़ चुका है. हाथीराम द्वारा उनके लिंग पर कई लातें मारने वाला दृश्य और मर्दाना जेल में मैरी को घूरती कैदियों की आंखें दर्शक को सुन्न कर देती हैं.

चौथा अपराधी है कबीर एम (आशिफ खान) जो अपनी मुस्लिम पहचान यानी सुन्नत को छिपाने के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट लिए घूम रहा है. दरअसल कबीर इसलिए पहचान छुपा रहा है क्योंकि बचपन में परिवार के साथ ट्रेन में सफर करते दौरान एक इस्लामोफोबिक अधेड़ औरत द्वारा फैलाई गयी अफवाह के कारण उनके अब्बू और भाई को भीड़ पीट दिया था और इस दौरान उसके भाई की मौत हो गयी थी.

वेब सीरीज, इंसान की नींव यानी बचपन पर बहुत शानदार छाप छोड़ती है. हाथीराम के खुद के बचपन से लेकर उनके बेटे सिद्धार्थ (बोधिसत्व शर्मा) के बचपन और चारों अपराधियों के बचपन को बड़ी ही बारीकी से कहानी में कसा गया है. सबका बचपन कहीं न कहीं उनके वर्तमान को संचालित कर रहा था.

एक बात जो ध्यान देने लायक है वो ये है कि पूरी वेब सीरीज में सारी औरतें अपने स्पेस के लिए संघर्ष करती नज़र आती हैं. हाथीराम चौधरी की पत्नी रेणु चौधरी (गुल पनाग) अपने भाई के निकम्मेपन, अपने बेटे सिद्धार्थ की गलतियों और अपने पति की व्यस्तता का बोझ ढोती नज़र आती हैं. संजीव मेहरा की पत्नी डॉली (स्वास्तिका मुखर्जी) पति से अपनी मेंटल हेल्थ से लड़ने के लिए समय, देखभाल और प्यार के लिए संघर्ष कर रही हैं.

इस दौर में पैदा हुई राजनीतिक ताकतों और उनकी राजनीति पर यह सीरीज बिल्कुल चुपचाप इशारों में बात करती है जिसे आसानी से समझा जा सकता है. यह हमारे समय की स्टार और एंकर छाप पत्रकारिता और जमीनी पत्रकारिता का अंतर भी दिखाती है. इस लिहाज से इस सीरीज़ का अंतिम दृश्य बेहद संजीदा और हमारे वर्तमान की टीवी चैनलों वाली सेलिब्रेटी पत्रकारिता पर गहरा कटाक्ष है. एक अदना पुलिस वाला स्टार एंकर को जीवन की कुछ तल्ख हकीकतों से रूबरू करवाता है, उसकी कलीग के सामने. घमंड से गिरकर जमीन पर आया एंकर हतप्रभ मिमियाता दिखता है, ताकि उसकी सच्चाई उसके केबिन से बाहर न चली जाय.

पूरी वेब सीरीज में हर छोटी-छोटी चीजों पर बेहतरीन काम किया गया है. हालांकि 7वें एपिसोड के बाद 8वें एपिसोड में यह महसूस होता है कि अब इसे अनायास खींचा जा रहा है. अलग-अलग पृष्ठभूमि के किरदारों की 'बोली' कहीं भी जाली (फेक) नहीं जान पड़ती. कहीं भी बैकग्राउंड साउंड ख़ामख़ा की सनसनी पैदा नहीं करता.

डायरेक्टर को सारे प्वाइंट. डायरेक्टर कहानी को आसान और रोचक ढंग से परोसने में सफल रहे हैं. उन्हें इस बात की शाबाशी दी जा सकती है कि पूरी वेब सीरीज में कहानी खुद किरदारों ने कही है, कहीं भी एक्स्ट्रा बैकग्राउंड वॉइसओवर या साउंड डालने की जरूरत नहीं पड़ी.

सभी सहायक किरदार भी बहुत दमदार नज़र आते हैं. कहीं भी, कोई सहायक किरदार बोझिल नहीं लगता. बल्कि सहायक किरदार ही मुख्य किरदारों को रोचकता की तरफ धकेलते हैं.

जयदीप की उछल-कूद (एक्टिंग), दमदार कहानी और निर्देशन ने मुझे इस सीरीज को पांच में से साढ़े चार स्टार देने के लिए मज़बूर कर दिया है. साधारण से दिखने वाले जयदीप अहलावत बहुत खास बनकर उभरे हैं. जयदीप का चेहरा, उनके बोलने और एक्ट करने का स्टाइल दिवगंत अभिनेता ओमपुरी की याद दिलाता है. फिल्म इंडस्ट्री को नया ओमपुरी मिल गया है.

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