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ऑप इंडिया पर घृणा फैलाने को लेकर एफआईआर और पीड़ित पिता के बदलते बयान

28 मार्च को बिहार के गोपालगंज जिला के एक गांव में रोहित जायसवाल नाम के नाबालिग युवक की लाश उनके घर के पास ही नदी में मिली. पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी. एक आरोपी को छोड़ पांच की गिरफ्तारी भी हो चुकी थी, लेकिन लगभग एक महीने बाद इस मौत ने अब सांप्रदायिक रूप ले लिया है.

इसकी शुरुआत तो अलग-अलग फेसबुक पन्नों और ट्विटर अकाउंट से हुई लेकिन इसे हवा दी ऑपइंडिया सरीखे दक्षिणपंथी वेबसाइटों ने.

इस मामले में अब ऑप इंडिया और एक स्थानीय वेबसाइट ‘खबर तक’ के खिलाफ गोपालगंज जिले की पुलिस ने सांप्रदायिक महौल बिगाड़ने की कोशिश को लेकर एफआईआर दर्ज किया है.

गोपालगंज के कटेया थानाध्यक्ष अश्विनी तिवारी द्वारा दर्ज की गई इस एफआईआर में ऑप इंडिया और स्थानीय पोर्टल ‘खबर तक’ पर आईपीसी की धारा 295 ( ए) और आईटी एक्ट की धारा 67 लागू की गई है.

ऑप इंडिया पर FIR दर्ज
ऑप इंडिया पर FIR दर्ज

क्या है पूरा मामला?

खबरों को सांप्रदायिक मोड़ देने के लिए खासा बदनाम वेबसाइट ऑप इंडिया के एक कर्मचारी अनुपम कुमार सिंह ने गोपालगंज में हुई रोहित जायसवाल नाम के एक युवक की मौत पर 9 मई को एक ख़बर की. दरअसल 9 से 13 मई के बीच अनुपम ने इस विषय पर पांच खबरें लिखी हैं. लेकिन पुलिस को ऐतराज जिस खबर से है उसका शीर्षक है- ‘मस्जिद को शक्तिशाली बनाने के लिए बच्चे की बलि, पुलिस प्रताड़ना के बाद हमने छोड़ दिया गांव- हिन्दू परिवार का आरोप’. इसी को लेकर एफआईआर दर्ज हुई है.

9 मई की इस ख़बर में ऑप इंडिया ने राजेश कुमार के हवाले से कुछ सनसनीखेज दावे किए हैं. एक बार आप उन सभी दावों पर एक-एक करके नज़र डाल लें, इसके हम उन दावों की स्वतंत्र रूप से पड़ताल भी करेंगे.

दावा नंबर 1:

ऑप इंडिया मृतक रोहित के पिता राजेश जायसवाल के हवाले से दावा करता है कि उनके बेटे रोहित को मस्जिद में ले जाकर बलि दी गई, उसके बाद उसे नदी में फेंक दिया गया.

दावा नंबर 2:

राजेश के हवाले से यह दावा भी किया जा रहा है कि दरअसल गांव में एक नई मस्जिद बन रही है. गांव के मुस्लिमों में यह चर्चा थी कि अगर मस्जिद में किसी हिंदू की बलि दे दी जाए तो यह शक्तिशाली और प्रभावशाली हो जाएगा.

दावा नंबर 3:

एक दावा यह भी है कि उसे बुलाकर ले जाने वाले सभी लड़के मुसलमान थे, जिनके परिजन पहले से ही मस्जिद में मौजूद थे. जैसे ही रोहित मस्जिद में पहुंचा उन लोगों ने मिलकर रोहित की हत्या कर दी.

ये तीन मुख्य दावे हैं जिनसे नाराज़ होकर थानाध्यक्ष अश्विनी तिवारी ने एफआईआर दर्ज की है. जाहिर है बतौर पत्रकार इन तीनों दावों को परखने का बेहद आसान जरिया था कि इस मामले में मृतक के पिता राजेश द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर और मृतक की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट. साथ में सक्षम अधिकारियों का बयान. आइए एक-एक कर हम देखते हैं कि ऑप इंडिया ने अपनी धर्मांधता की हुड़क में इनमें से किन-किन चीजों का पालन किया.

दावा नंबर 1 की पड़ताल:

29 मार्च को दर्ज एफआईआर में राजेश ने बताया है कि उनका बेटा रोहित 28 मार्च की दोपहर 3 बजे अपनी मां वन्दना देवी के साथ बैठा था. सलमान, जुबेर, राहुल, मुस्ताक (सभी नाबालिग हैं, इसीलिए नाम बदल दिया गया है) घर पर आए और क्रिकेट खेलने के लिए बुला ले गए. शाम तक मेरा लड़का घर नहीं आया तो हम लोग खोजने के लिए निकले. लॉकडाउन होने के कारण हम दूर तक नहीं निकले. दूसरे दिन 29 मार्च की सुबह-सुबह हल्ला हुआ कि एक लड़के का शव पास के नदी में मिला है. तब हम लोगों को जुबेर पर शक हुआ. पूछताछ में उसने बताया कि निजाम अंसारी और वसीम अंसारी, हम छ लोगों ने मिलकर हत्या किया है तथा पास की नदी में फेंक दिया.

Caption 28 मार्च को राजेश द्वारा दर्ज एफआईआर की कॉपी
Caption 28 मार्च को राजेश द्वारा दर्ज एफआईआर की कॉपी

एफआईआर कहती है- मेरा दावा है कि लड़के की हत्या सलमान, जुबेर, राहुल, मुस्ताक अंसारी वसीर अंसारी और निजाम अंसारी ने किया है.

अव्वल तो अपनी एफआईआर में राजेश ने कहीं भी बलि का जिक्र नहीं किया है, लेकिन उन्होंने ऑप इंडिया को यह बात जरूर बोली कि बेटे की मस्जिद में बलि दी गई. इसका ऑडियो ऑप इंडिया के पास मौजूद है. उनके संपादक ने यह ऑडियो न्यूज़लॉन्ड्री को भेजा है.

यहां पर प्रश्न खड़ा होता है कि ऑप इंडिया की नीयत पर. इस तरह के नाजुक मसले पर एफआईआर क्यों नहीं पढ़ी, आधिकारिक स्रोत से राजेश के दावे की पुष्टि क्यों नहीं की. सिर्फ एक पक्ष के आधार पर इकतरफा खबर क्यों फैलाई गई. विशेषकर तब जब वो यह खबर घटना के एक महीने से ज्यादा बीत जाने के बाद कर रहा था. सारे दस्तावेज उपलब्ध थे. रोहित की मौत की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी एफआईआर ऑप इंडिया ने पढ़ी तक नहीं. आधिकारिक स्रोत के तौर पर ऑप इंडिया ने बस जिले के एसपी का एक जेनेरिक बयान छापा है जिसमें वो कहते हैं कि मामला दर्ज कर लिया गया है, जांच जारी है.

अपने बचाव में अजीत भारती ने कहा कि एफआईआर की कॉपी उनके पास रिपोर्ट लिखे जाने तक नहीं थी. यह कमाल की बात है कि घटना के डेढ़ महीने बाद एफआईआर की कॉपी उन्हें मिल नहीं पाई. इस मामले पर राजेश कहते हैं कि उन्होंने एफआईआर की कॉपी ऑप इंडिया को उपलब्ध करा दी थी.

मस्जिद में मारकर नदी में फेंकने की सच्चाई

जाहिर है रोहित की मौत की परिस्थितियों को समझने का सबसे विश्वसनीय स्रोत है उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट. क्या ऑप इंडिया ने वह रिपोर्ट पढ़ी, या उसके पास पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट है? जवाब है नहीं. आप ध्यान रखिए कि एक महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद जो खबर ऑप इंडिया लिख रहा है, उसमें यह गड़बड़ी है.

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट अपने निष्कर्ष में साफ शब्दों में कहती है- “कॉज़ ऑफ डेथ- एसफिक्सिया ड्यू टू ड्राउनिंग” यानि “मौत का कारण- डूबने के कारण सांस का रुक जाना.”

पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर अशोक कुमार अकेला ने न्यूज़ वेबसाइट लल्लनटॉप से कहा, “पोस्टमॉर्टम में मृतक के पेट और फेफड़े से पानी मिला था. श्वास नली (ट्रैकिया) में भी गंदा पानी मिला है, लेकिन वहां किसी तरह की चोट या खून का थक्का नहीं जमा था. आंखों और नाक से खून निकला था. जब पानी में कोई डूबने से बचने की कोशिश करता है तो आंख और नाक के हिस्से में प्रेशर बढ़ जाता है. ऐसे में संभावना रहती है कि इन जगहों से खून निकले. मृतक के शरीर पर बाहर से प्रहार हुआ हो या गला वगैरह दबाया गया हो, ऐसा कुछ भी पोस्ट मॉर्टम में नहीं मिला. क्योंकि शरीर के हिस्सों में काफी पानी मिला है, इसलिए संभावना बेहद कम है कि बाहर मारकर लाश को पानी में फेंका गया हो.’’

दावा नंबर 2 की पड़ताल:

मृतक रोहित के पिता राजेश ने ऑप इंडिया से यह बात जरूर कही कि उनके बेटे की बलि मस्जिद में दी गई लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में वो इस बात से इनकार करते हैं.

उन्होंने बताया, “वह मेरी ही बातचीत है लेकिन तब मैं बहुत परेशान था. दिनभर सैकड़ों लोग फोन करते थे, परेशान होकर मैं यह सब बोल गया. ऐसा कुछ नहीं हुआ था. मैंने अपने आंख से देखा नहीं है तो कैसे कह दूं कि मस्जिद में बलि दी गई. मेरे बेटे की हत्या की गई है यह मैं अब भी कह रहा हूं.”

न्यूजलॉन्ड्री को एक वीडियो भी मिला है जो 13 मई के दिन पीड़ित परिवार के गांव में रिकॉर्ड किया गया है. मृतक की मां वन्दना देवी मस्जिद में बलि देने के सवाल पर इस वीडियो में कहती हैं, ‘‘यह हम नहीं बता सकते हैं कि हमारे लड़का को बलि दिया गया है. लेकिन हमको इतना मालूम है कि मेरे बेटे के ऊपर मुस्लिम लोग पानी छिड़कते थे. बलि का बात हम नहीं कह सकते हैं क्योंकि हम अपने आंख से नहीं देखे हैं. हम झूठ नहीं बोलेंगे. आप गांव में किसी से पूछ लीजिएगा, मेरे लड़के को बुलाकर ले गए है और मार के फेंक दिए है. ऊ बच्चा लोग खुद अपने मुंह से कबूल किए है कि हमलोग लड़का को नदी में मारकर फेंके है. सब अभी इधर उधर भागे हुए है.’’

दावा नंबर 3 की पड़ताल:

ऑप इंडिया की रिपोर्ट राजेश के हवाले से यह दावा भी करती है कि मृतक रोहित को बुलाने आए सभी लड़के मुसलमान थे. लेकिन यह पूरी तरह झूठ है. एफआईआर में 1 हिंदू और 5 मुस्लिम लड़कों को आरोपित बनाया गया है. हिंदू लड़का ही रोहित को बुलाने गया था. लेकिन ऑप इंडिया ने शातिरता से इस तथ्य को गायब कर दिया और फर्जी तरीके से लिखा कि सभी लड़के मुलमान थे.

यहां ऑप इंडिया ने एक और चालाकी की, लेकिन पकड़ में आ गई. जब हमने इस स्टोरी के संबंध में बातचीत की तब उन्होंने इस लाइन को एडिट कर दिया. लेकिन हमारे पर दोनों का स्क्रीनशॉट है. आप इसे देख सकते हैं.

खबर में किया गया बदलाव

इतनी सारी हेरफेर और फर्जीवाड़ा करने के बाद ऑप इंडिया का प्रोपगैंडा एक खबर का रूप लेता है.

रोहित को बुलाने आए बच्चों में सिर्फ मुसलमान नहीं थे यह बात राजेश खुद भी उस ऑडियो में कहते सुनाई देते हैं जिसे ऑप इंडिया ने हमें उपलब्ध करवाया है.

राजेश के ऑडियो से साफ है कि आरोपी सिर्फ एक ही समुदाय के नहीं हैं, फिर भी ऑप इंडिया ने लिखा कि रोहित को बुलाने आए सभी बच्चे मुसलमान थे. यह क्यों? इस सवाल के जवाब में ऑप इंडिया के अजीत भारती कहते हैं कि पीड़ित राजेश ने स्वयं अपने वीडियो में कहा है कि पहली बार जो एक लड़का राहुल कुशवाहा ही उसके बेटे को बुलाने आया था. राहुल कुशवाहा नाबालिग है तो हमने उसका जिक्र रिपोर्ट में नहीं लिखा. अगर हमें छुपाना होता तो हम वीडियो एडिट कर सकते थे. पर हमने ऐसा नहीं किया.

यह अजीत भारती की कागचतुरता का एक और उदाहरण है. बुलाने आए सभी बच्चे ( अब सिर्फ बच्चे) मुसलामन थे क्यों लिखा गया ताकि दूसरे समुदाय के माथे पर सारा ठीकरा फोड़ कर अपने कुत्सित एंजेंडे को हवा दी जाय.

रोहित की मौत की परिस्थितियां

न्यूज़लॉन्ड्री ने स्वतंत्र रूप से रोहित की मौत की परिस्थितियों को समझने की कोशिश की. इसका पहला सूत्र था पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट जो कहती है कि रोहित की मौत डूबने से हुई. जिन लड़कों को आरोपित बनाया गया है, उनके परिजनों और अन्य ग्रामीणों से बातचीत में यह बात सामने आती है कि 28 मार्च को 1 हिंदू और 3 मुस्लिम बच्चे रोहित को क्रिकेट खेलने के लिए उसके घर से बुलाकर ले गए थे. आरोपित और ग्रामीण कोई भी सामने आकर अब बात करने को तैयार नहीं है क्योंकि इस मामले को बेवजह सांप्रदायिक रंग दे दिया गया है. लेकिन पहचान गुप्त रखने की शर्त पर आरोपितों के परिजन बताते हैं कि क्रिकेट खेलने के बाद सभी लड़के नदी में नहाने चले गए थे. वहां सब साथ में नहा रहे थे तभी रोहित डूबने लगा. क्योकि सभी बच्चे कम उम्र के थे. इस दुर्घटना के चलते सब डरकर अपने-अपने घर भाग गए. बाद में जब अगले दिन लाश मिली तब बात खुली. इसके बाद पुलिस ने उन सबको हिरासत में ले लिया.

हमने गोपालगंज के स्थानीय पत्रकार विपिन कुमार राय से इस मामले पर बात किया. वो छूटते ही कहते हैं, “यह हिन्दू-मुस्लिम का मामला था ही नहीं. शुरू बच्चों ने बयान दिया है कि क्रिकेट खेलने के बाद वे लोग नदी में नहाने चले गए थे. वहां उसकी डूबकर मौत हो गई. लड़कों ने डर के मारे किसी से नहीं बताया. बाद में पुलिस ने इन्हें तत्काल गिरफ्तार करके जेल भेज दिया. फिर कोर्ट ने कोरोना को देखते हुए सभी परिवारों से बॉन्ड भरवाकर तीन दिन बाद उन सबको जमानत दे दी. हालात सही होने पर फिर से कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ेगी. बेवजह इस मामले को हिन्दू-मुस्लिम का रंग दिया जा रहा है.’’

अपनी साम्प्रदायिक गोटी को फिट करने के लिए ऑप इंडिया ऐसा पहली बार नहीं कर रहा है. ऑप इंडिया का पूरा प्रोफाइल आप यहां पढ़ सकते हैं.

जहां तक ऑप इंडिया पर एफआईआर का सवाल है तो इसके बारे में सारण के डीआईजी विजय कुमार वर्मा कहते हैं, ‘‘इस घटना से जुड़ी एक खबर ऑप इंडिया और खबर तक में प्रसारित की गई. कई तरह के मैसेज इस तरह से दिए गए कि उसका मस्जिद से, किसी निर्माण से संबंध है. उस लड़के को वहां ले जाया गया. यह सारी बातें गलत है. इसका मैंने स्वयं सत्यापन किया है. इस तरह की बातें नहीं आई हैं. इस तरह के मैसेज से सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ेगा इसके संबंध में ‘खबर तक’ और ऑप इंडिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज गई और कार्रवाई हो रही है.’’

मौत के कारणों का इतना पुख्ता सबूत होने के बावजूद इसमें मस्जिद, बलि और मुसलमान जैसा दुष्प्रचार फैलाया गया. यही ऑप इंडिया की घृणा प्रेरित सांप्रदायिकता का सच है. एकतरफा स्रोत के हवाले से अफवाह फैलाना.

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