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कौन है विशाखापत्तनम का वॉरन एंडरसन?
दिन गुरुवार, तारीख 7 मई, 2020. जगह विशाखापत्तनम का आरआर वेंकटपुरम इंडस्ट्रियल एरिया. नायडूथोटा से एक किलोमीटर और गोपालापट्टनम से तकरीबन पांच किलोमीटर की दूरी. यही वो जगह थी जहां से दक्षिण कोरियाई कंपनी एलजी की भारतीय इकाई एलजी पॉलिमर्स इंडिया लिमिटेड की फैक्ट्री से स्टायरिन गैस का रिसाव हुआ. स्टायरिन का रिसाव इतना घातक था कि गुरुवार की सुबह पौने चार बजे शुरू हुए रिसाव पर पूरी तरह से काबू पाने (न्यूट्रलाइज़ करने) में लगभग दो दिन का वक्त लग गया.
गोपालपट्टनम के पांच गांव और लगभग पांच किलोमीटर के दायरे में आने वाले लोग और मवेशी इससे प्रभावित हुए. शनिवार शाम तक 11 इंसानी जानें जा चुकी हैं. स्थानीय प्रशासन के मुताबिक तकरीबन 800 लोग इससे प्रभावित हैं. हालांकि स्थानीय लोगों का अनुमान है कि स्टायरिन के रिसाव से कम से कम 1200 से 1500 लोग प्रभावित हुए हैं.
विशेषज्ञों के मुताबिक गैस लीक का संभावित कारण स्टायरिन गैस को उचित तापमान पर नहीं रखना हो सकता है. कोरोनावायरस लॉकडाउन के कारण प्लांट बंद था और इससे स्टोरेज चैंबर में प्रेशर बना होगा. जिसकी वजह से वॉल्व टूट गई होगी और गैस लीक हुआ होगा. विशेषज्ञों के मुताबिक अमूमन पॉलिस्टायरिन प्लांट बंद नहीं किए जाते. और जब बंद किए जाते हैं तो उन्हें दोबारा शुरू करने में बहुत सावधानी बरतने की जरूरत होती है.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मामले का स्वत:संज्ञान लेते हुए एलजी पॉलिमर्स पर 50 करोड़ का अंतरिम जुर्माना ठोंक दिया है. एनजीटी ने केंद्र और आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण मंत्रालय और एलजी पॉलिमर्स को नोटिस भेजा है. हादसे का कारण, जवाबदेही, जान-माल व पर्यावरण को नुकसान, पीड़ित परिवारों को मुआवजा और आगे क्या ऐसे कदम उठाये जाएं जिससे इस तरह के हादसे दोबारा न हों- इसकी जांच के लिए एनजीटी ने पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है.
गोपालपट्टनम पुलिस ने एलजी पॉलिमर्स के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 278 (वातावरण को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बनाना), 284 (विषैले गैस के नियंत्रण के संबंध में गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार), 285 (आग या किसी भी ज्वलनशील पदार्थ जिससे मानव जीवन को खतरे में डाला गया), 337 (कोई भी ऐसा कृत्य जो मानव जीवन को खतरे में डालता हो) और 338 (व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालना) में दर्ज किया गया है.
एलजी केमिकल ने हादसे पर दुख जताते हुए माफी मांगी है. माफीनामे में एलजी ने शोकाकुल परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त किया है. अपने बयान में कंपनी ने ये नहीं बताया कि इतना बड़ा हादसा हुआ तो हुआ कैसे. उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा. एलजी की ओर जारी बयान में कहा गया है कि एलजी पर्यावरणीय और सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से सजग रहने वाली कंपनी है. “एलजी अपनी तरफ से हर संभव कोशिश करेगा कि भविष्य में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो.” न्यूज़लॉन्ड्री ने एलजी पॉलिमर्स को सवालों की एक सूची भेजी है. फिलहाल एलजी की ओर से कोई जवाब नहीं आया है.
विशाखापत्तनम की घटना ने लोगों के जेहन में 1984 की भोपाल गैस त्रासदी और यूनियन कार्बाइड की यादें ताज़ा कर दी हैं. सामाजिक कार्यकर्ता और इंटरनेशनल कैंपेन फॉर जस्टिस इन भोपाल से जुड़े नित्यानंद जयारमण बताते हैं, “इज़ ऑफ डूईंग बिजनेस के नाम पर राज्य और केंद्र सरकारें पर्यावरण मानकों और श्रम कानूनों को ताक पर रखती हैं.”
नित्यानंद के अनुसार, विशाखापत्तनम की घटना भोपाल की याद इस संदर्भ में भी दिलाती है कि कैसे यूनिट की तकनीकी सुरक्षा की जवाबदेही साधारण मजदूरों के जिम्मे दे दी गई थी. “अभी तक जो जानकारी हमें मिली है, उसके मुताबिक यूनिट के पास 50 स्थाई कामगार और 350 अस्थाई कामगार मजदूर हैं. जब यह हादसा हुआ तब यूनिट में सिर्फ 15 मजदूर मौजूद थे जिन्हें पॉलिमर प्लांट को शुरू करने का कोई अनुभव नहीं था,” नित्यानंद बताते हैं.
अफसोस कि जिस देश ने भोपाल की भयावह घटना में हज़ारों लोग खोए थे, वहां ऐसी लापरवाही कैसे हुई? विशाखापत्तनम गैस त्रासदी का ‘वॉरन एंडरसन’ कौन है? क्या इसकी जवाबदेही तय की जा सकेगी?
नहीं था एलजी के पास इंवॉयरमेंट क्लियरेंस
1961 में श्रीराम ग्रुप ने हिंदुस्तान पॉलिमर्स की शुरूआत की थी. तकरीबन दो दशक बाद 1978 में मैकडॉवेल्स के यूनाइटेड ब्रेवरीज़ ग्रुप ने हिंदुस्तान पॉलिमर्स को खरीद लिया. वर्ष 1997 में एलजी केमिकल्स ने हिंदुस्तान पॉलिमर्स को सौ करोड़ में खरीद लिया. ये वो दौर था जब एलजी को कॉम्प्रेशर जैसे बड़े उपकरणों का आयात कोरिया से करना होता था. एलजी ने महसूस किया कि छोटे उपकरणों का आयात कोरिया से करना बिजनेस के लिहाज से फायदेमंद नहीं है. उस वक्त कोई भी ऐसी कंपनी नहीं थी जो तकनीकी रूप से एलजी की जरूरत को पूरा करने में सक्षण हो.
विवाद की शुरूआत हुई जब एलजी ने विशाखापत्तनम में एलजी पॉलिमर्स इंडिया नाम की सब्सिडयरी कंपनी बनाई. 2001 में आंध्र प्रदेश सरकार ने एलजी पॉलिमर्स पर लैंड सीलिंग एक्ट के उल्लंघन का आरोप लगाया. बाद में एलजी पॉलिमर्स पर टैक्स नियमों में घालमेल करने का आरोप लगा.
भारत सरकार में पूर्व वित्त सचिव रह चुके ईएएस शर्मा ने एलजी पॉलिमर्स के कामकाज पर गंभीर प्रश्न खड़ा किया है. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए उन्होंने कहा, “न सिर्फ जगन मोहन रेड्डी की सरकार बल्कि पूर्ववर्ती सरकारों ने भी एलजी पॉलिमर्स को शह दिया हुआ था.” उन्होंने आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण कंट्रोल बोर्ड (एपीपीसीबी) की गैर-ज़िम्मेदाराना भूमिका को रेखांकित किया.
वर्ष 2019 की शुरुआत में आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण कंट्रोल बोर्ड ने एलजी पॉलिमर्स के यूनिट के विस्तार को किस आधार पर अनुमति दी. जबकि एपीपीसीबी ने राज्य और केंद्र सरकार से विस्तार संबंधी कोई क्लियरेंस ही नहीं लिया?” ईएएस शर्मा पूछते हैं.
वे कहते हैं, “एक तो इस यूनिट से अत्याधिक प्रदूषण होता है. दूसरा कि ये गांव के बेहद करीब है. ताज्जुब है कि एपीपीसीबी यूनिट के विस्तार के लिए मान गया.” न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए शर्मा विशाखापत्तनम और आसपास के क्षेत्र में हुए रसायनिक रिसावों का जिक्र करते हैं. “बीते कुछ वर्षों में 30 से 40 रसायनिक रिसाव की वारदातें विशाखापत्तनम और आसपास के क्षेत्र में दर्ज हुई हैं. इन हादसों में ग्रामीणों और मजदूरों ने अपनी जान गंवाई है. लेकिन किसी भी मामले में जवाबदेही तय नहीं हो सकी. न कंपनी की, न राज्य सरकार का एक भी आदमी दोषी पाया गया. ऐसा प्रतीत होता है कि कंपनी की सभी राजनीतिक दलों से सांठ-गांठ है,” शर्मा कहते हैं.
इस बाबत ईएएस शर्मा ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी को एक पत्र लिखकर एलजी पॉलिमर्स पर सख्त कार्रवाई की भी मांग की है.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक एलजी पॉलिमर्स के पास पर्याप्त इंवॉयरमेंट क्लियरेंस नहीं था. पी चंद्र मोहन राव, कंपनी के डायरेक्टर (ऑपरेशन्स) ने मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में कबूल किया था कि विशाखापत्तनम स्थित यूनिट पर्यावरणीय मानकों पर खरा नहीं उतरता. सुप्रीम कोर्ट ने एलजी पॉलिमर्स को पर्यावरण (संरक्षण) कानून, जल (संरक्षण व प्रदूषण नियंत्रण) कानून, 1974, वायु (संरक्षण व प्रदूषण नियंत्रण) कानून, 1981, वन (संरक्षण) कानून, 1980 और खदान व खनिज (विकास व नियंत्रण) कानून, 1957 का उल्लंघन करते हुए पाया.
नतीजतन एलजी पॉलिमर्स को इलीगल ऑपरेशन्स (अवैध कारोबार) का दोषी मानते हुए सौ प्रतिशत पेनाल्टी देने का ऑर्डर कोर्ट ने पास किया. हालांकि इसी महीने सरकार के साथ पत्राचार में कंपनी ने लिखा था कि पॉलिस्टायरीन के उत्पादन से बच्चों व बुर्जुर्गों के स्वास्थ्य पर कोई ‘प्रतिकूल’ प्रभाव नहीं पड़ेगा. “सभी जानलेवा पदार्थों को माइल्ड स्टील ड्रम में रखा जाएगा जिससे कि मिट्टी दूषित नहीं होगी. यूनिट के विस्तार में भी सभी मानकों का ध्यान रखा जाएगा. पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर उसका कोई असर नहीं होगा,” एलजी पॉलिमर्स मे अपने पत्र में लिखा.
जुलाई 2019 में स्टेट लेवल एक्सपर्ट एप्रेज़ल कमेटी ने एलजी पॉलिमर्स का प्रोपोजल केंद्रीय वन, पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को सौंप दिया था. उन मीटिंग के नोट्स के मुताबिक एलजी के प्रोपोजल को “कैटेगरी ए” में रखा जिसके लिए राज्य सरकार से इंवॉयरमेंट क्लियरेंस की जरूरत थी. नवंबर 2019 में अंतत: एलजी ने मंत्रालय से अपना प्रोपोजल डीलिस्ट करवा लिया. इसका स्पष्ट मतलब है कि हादसे के दिन तक एलजी पॉलिमर्स के पास कोई उचित इंवॉयरमेंट क्लियरेंस नहीं था.
विशाखापत्तनम से सबक
गौर करने वाली बात है कि पिछले दिनों केंद्र सरकार ने इंवॉयरमेंटल इंपैक्ट एसेसमेंट (ईआईए) नोटिफिकेशन 2020 जारी किया. मसौदे में संसोधनों के बारे में कहा गया कि इससे भारत में औद्योगिक प्रक्रियाएं सरल बनाई जा सकेंगी. पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के ड्राफ्ट के अनुसार कंपनियां बिना इंवॉयरमेंट क्लियरेंस लिए अपना प्रोजेक्ट शुरू कर सकती हैं. ऐसे प्रोजेक्ट की कैटेगरी बढ़ा दी गई है जिसमें जन सुनवाई की प्रक्रिया को अपनाना अनिवार्य नहीं होगा. कंपनियों को यहां तक आज़ादी होगी कि वे खुद ही हर साल इंवॉयरमेंट एसेसमेंट रिपोर्ट जमा कर देंगी.
पहले यह प्रक्रिया हर छह महीने में करना अनिवार्य था. इससे होगा कि प्रोजेक्ट से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना मुश्किल होगा. पर्यावरण संरक्षण के नियमों की अनदेखी करने पर कंपनियों की कोई जवाबदेही तय नहीं की जा सकेगी. मंत्रालय ही देशभर में प्राकृतिक रूप से संवेदनशील इलाकों को रेखांकित करेगी.
अनगिनत ऐसे उदाहरण हैं जहां सरकार द्वारा प्राकृतिक रूप से संवेदशील इलाकों के रेखांकन पर मूल निवासियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने विरोध किया है. मसलन गुजरात और राजस्थान के सूखे घास के मैदान. जिनकी गिनती मंत्रालय प्राकृतिक रूप से संवेदनशील इलाकों में नहीं करता. मंत्रालय के नए मसौदे के अनुसार, अब इन इलाकों को कॉरपोरेट के लिए खोला जा सकता है.
हैरत कि मंत्रालय ने कोरोनावायरस के चलते जारी राष्ट्रीय लॉकडाउन के बीच आम लोगों से ड्राफ्ट पर सुझाव मांगे. पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इसका विरोध किया. भाजपा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने भी ड्राफ्ट पर सुझाव देने की समयसीमा को बढ़ाने की अपील की थी.
पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों के भारी विरोध के बाद फिलहाल मंत्रालय ने ड्राफ्ट पर सुझाव देने की तारीख बढ़ा दी है. पर्यावरण कार्यकर्ता अविनाश चंचल विशाखापत्तनम की घटना का हवाला देते हुए कहते हैं, “विशाखापत्तनम गैस लीक ने एक बार फिर चेताया है कि क्यों भारत को एक मजबूत, प्रभावी इंवॉयरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट प्रक्रिया की जरुरत है. किसी भी प्रोजेक्ट के शुरू होने के पहले पर्यावरण और स्थानीय जन जीवन पर होने वाले प्रभाव का आकलन किया जाना जरूरी है ताकि समय रहते उचित कदम उठाए जा सकें. ईआईए के तहत यह बताना पड़ता है कि किसी भी प्रोजेक्ट से पर्यावरण, जल-जंगल-जमीन और स्थानीय लोगों पर कितना असर पड़ेगा. उससे पर्यावरण और लोगों को कितना नुकसान होगा. विशाखापत्तनम का ही हादसा देख लीजिए, किसी की तो जवाबदेही तय करनी होगी?”
चंचल बताते हैं कि ईआईए पर्यावरण और जन जीवन बचाने के लिए बनाया गया था. लेकिन बीते सालों में इसका धड़ल्ले से दुरुपयोग हुआ है. अब जो मसौदा मंत्रालय लेकर आया है, उसमें ईआईए को और कमजोर बनाया गया है. अब पर्यावरण नियमों की अनदेखी करना उद्योगपतियों के लिये आसान हो जायेगा.
नये ड्राफ्ट के मुताबिक कई प्रोजेक्ट बिना मंजूरी यानि ईआईए के भी शुरू किया जा सकता है, जो कि खुद एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है. वहीं कई प्रोजेक्ट के लिये जन सुनवाई की जरुरत को ही खत्म करने का प्रस्ताव है. यह एक खतरनाक कदम है. “जाहिर है, हमें एक मजबूत ईआईए नोटिफिकेशन की जरुरत है ताकि विशाखापत्तनम जैसी दुर्घटनाओं को रोका जा सके और कंपनियों की जवाबदेही तय की जा सके. हमें कंपनियों को फायदा पहुंचाने वाली नीतियां नहीं बनानी है जिससे पर्यावरण और लोगों को खतरे में डाल दिया जाए,” चंचल जोड़ते हैं.
विशाखापत्तनम की घटना पर ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (ऐक्टू) ने शनिवार को देशव्यापी प्रदर्शन किया. ऐक्टू के महासचिव अभिषेक कहते हैं, “विशाखापत्तनम की घटना भोपाल की यादें ताज़ा करती है. भोपाल गैस त्रासदी के तीन दशक बाद भी कॉरपोरेट के मुनाफे के लिए सरकारें सुरक्षा मानकों पर ध्यान नहीं देती है. जिसका खामियाज़ा मजदूरों को उठाना पड़ता है.”
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