Newslaundry Hindi
कोविड-19: प्रकृति के बदले का सबसे भयावह रूप
आज हम प्रकृति के प्रतिशोध को साफ-साफ देख सकते हैं. आजकल दिल्ली के आसमान से स्मॉग की चादर हट चुकी है और हवा पूर्णतया साफ हो गई है. नीले आसमान में चिड़ियाओं की उड़ानें देखते बन रही हैं. मोटरकारों के कर्कश शोर के स्थान पर अब पंछियों की चहचहाहट सुनाई पड़ती है. हम कह सकते हैं कि इस जानलेवा म्यूटेन्ट (उत्परिवर्ती) वायरस के भयावह प्रसार को रोकने के उद्देश्य से लगाए गए विश्वव्यापी लॉकडाउन के बहाने ही सही, लेकिन धरती फिर से अपने पुराने वैभव को प्राप्त करने की कोशिश कर रही है.
नाले की शक्ल अख्तियार कर चुकी हमारे देश की कई नदियां, जिन्हें शून्यआक्सीजन स्तर के कारण मृत घोषित किया जा चुका था, फिर से जीवित हो उठी हैं और उनके साफ जल में जीवन एक बार फिर से फल फूल रहा है.
गुजरात के बंदरगाह शहर, जूनागढ़ से आई तस्वीरों में आसपास के जंगलों में से कुछ शेर धूप सेंकने के लिए बाहर निकलते हुए देखे गए हैं. केरल के एक छोटे शहर में चहलकदमी करते कस्तूरी बिलाव हों या भारत के नमकीन तटीय इलाकों की ओर रुख करते हुए रंग बिरंगे फ्लैमिंगो या नदियों में छलांगें लगातीडॉल्फिनें, ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है.
हालांकि हम यह भली भांति जानते हैं कि प्रकृति में हुए इस खुशगवार बदलावकी भारी कीमत दुनिया भर के लाखों लोगों को चुकानी पड़ रही है. इस वायरस ने न केवल जानें ली हैं, बल्कि रोजी-रोटी के साधनों को भी तहस-नहस करके रख दिया है.
यह सच है कि हमारी हवा और पानी पूरी तरह से प्रदूषित हो चुके हैं औरउन्हें साफ किया जाना जरूरी है, लेकिन मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकतीहूं कि सफाई का यह तरीका उचित नहीं है.
कोविड -19 के बाद भी जीवन होगा और तब के लिए हमें दो चीजें गांठ बांध लेनी चाहिए- पहला यह कि चाहे क्षण भर के लिए ही सही, लेकिन हमें यह पता चल गया है कि साफ हवा, साफ पानी और खुशगवार प्रकृति किस चिड़िया का नाम है और हमें यह सीख गांठ बांध लेनी होगी. हमें स्वयं को विश्वास दिलाना होगा कि यही सामान्य स्थिति है, हमारे फेंफडे विषाक्त पदार्थों के तनाव के बिना ही काम करने के लिए बने हैं.
दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात जो हमें नहीं भूलनी है वह यह है कि यह साफ सुथरी हवा और नीला आसमान बिना लॉकडाउन के संभव नहीं थे. इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है.
इसलिए, जब दिल्ली में सर्दियों के मौसम में फिर से स्मॉग का प्रकोप हो,तब हमें यह याद रखना होगा कि ऑड-ईवन का खेल बेकार है और सड़कों पर से सारी गाड़ियों को हटाए बिना हवा को साफ कर पाना असंभव है. साफ हवा के लिए जरूरी है कि ट्रकों की आवाजाही बंद हो और वह तभी संभव है जब रोजाना के कारोबार को पूरी तरह से बंद कर दिया जाए.
पिछले महीने ट्रकों की आवाजाही 4,000 प्रतिदिन से घटकर 400 प्रतिदिन रह गई है.हानिकारक गैसों का उत्सर्जन बंद हो सके, इसके लिए एक-दो नहीं, बल्कि सारेउद्योगों को बंद किए जाने की आवश्यकता होगी. इसका मतलब है हर तरह केनिर्माण कार्यों पर रोक. हर वो चीज जो हमें रोजी-रोटी देती है, उसे बंदकरना होगा. यही एकमात्र रास्ता है जिससे हम धुंधले ,काले आसमान को नीला और हवा को साफ कर सकते हैं.
मैं ये नहीं कह रही कि आनेवाली सर्दी में हमें ऐसा करना ही होगा. यह लॉकडाउन मानव इतिहास का सबसे काला अध्याय है और मैं आशा करती हूं कि हमें इसे दुहराने की आवश्यकता नहीं होगी. मैं ऐसा इसलिए कह रही हूं क्योंकि अगर हम साफ सुथरी हवा चाहते हैं तो हमें जमीन आसमान एक करना होगा. रोजगार एवं स्वच्छ हवा हमारे जीवन का मूल है और इस दिशा में हमें बहुत कुछ करने की आवश्यकता है.
आज तक हम छोटे-मोटे फैसले लेते आए हैं, लेकिन अब समय आ चुका है कि हम बड़े कदम उठाएं. हमें अपनी कार्यशैली और योजना, दोनों पर बहुत तेजी से काम करना होगा. हम निश्चित रूप से इस हाल में दोबारा नहीं फंसना चाहेंगे, इसलिए कोविड-19 से सीख लेने का यही सही समय है.
तो फिर हवा कैसे स्वच्छ होगी? आखिर ऐसा क्या है जो हम कर सकते हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि लॉकडाउन हटा लिए जाने के बाद भी हमारा आसमान साफ रहे?
सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि सड़कों पर से इंसानों को नहीं, बल्कि केवल गाड़ियों को हटाने की आवश्यकता है. इसका उपाय है कि सारी गतिविधियों को फास्ट-ट्रैक करना, ताकि गाड़ियों के बजाय इंसानों के सुविधाजनक एवं सुरक्षित आवागमन को सुनिश्चित किया जा सके. सार्वजनिक परिवहन को व्यक्तिगत स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य के पहलुओं को ध्यान में रखना होगा.
हमें खुद के लिए लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए, ताकि अगले कुछ वर्षों में(हां, इतनी जल्दी) हम अपने सिस्टम को इस प्रकार अपग्रेड कर सकें, जिससे दैनिक आवागमन का 70-80 प्रतिशत हिस्सा उच्च गति और कम उत्सर्जन (रेलगाड़ी से लेकर साइकिल तक) वाले परिवहन के साधनों के माध्यम से पूरा किया जा सके.
दूसरे नंबर पर हैं, उद्योग. हमारा लक्ष्य उद्योगों को बंद करना नहीं है.हमारा लक्ष्य है, इन्हें इस प्रकार से विकसित करना, ताकि उनसे कम से कम उत्सर्जन हो. शुरुआत प्राकृतिक गैस से किए जाने के बाद हमारा लक्ष्य हो कि हमारे उद्योगों में इस्तेमाल की जा रही बिजली ऊर्जा के ऐसे स्रोतों से आए, जिनसे प्रदूषण न के बराबर हो. आज इस राह में सबसे बड़ी बाधा प्राकृतिक गैस की उपलब्धता नहीं, बल्कि इसकी कीमत है. प्राकृतिक गैस को सबसे बड़ी टक्कर कोयला दे रहा है, जोकि सबसे सस्ता किन्तु सर्वाधिक प्रदूषण फैलानेवाला ऊर्जा का स्रोत है.
लेकिन, अगर सरकार प्राकृतिक गैस को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) केअंतर्गत ले आती है तो कोयले की यह बादशाहत छिन सकती है. यहां ध्यान रखने योग्य है कि मैं केवल प्राकृतिक गैस की बात कर रही हूं, सारे पेट्रोलियम उत्पादों की नहीं. वर्तमान में, कोयला या अन्य ऐसे प्रदूषक इंधनों को जीएसटी में शामिल किया गया है और सरकार उन पर कम प्रदूषण फैलाने वाले इंधनों की तुलना में काफी कम टैक्स लगाती है, तो ऐसा किया जाना संभव है. लेकिन हमें इसे एक बड़े समाधान के रूप में देखने की आवश्यकता है- एक ऐसा समाधान जो तेजी से और वृहद स्तर पर किया जा सके.
इन पहलुओं पर चर्चा आगे भी जारी रहेगी, लेकिन बात साफ है कि हमें बड़े फैसले तेजी से लेने होंगे. कोविड -19 ने हमारे सामने दुनिया की एक ऐसी भयावह तस्वीर पेश की है जो हमने सपने में भी नहीं सोची थी. अब समय या गया है जब हम धरती के साथ अपने बिगड़े संबंधों को सुधार लें. आनेवाले दिनों में यह हमारे सामने की सबसे बड़ी चुनौती होने वाली है.क्या हम कोविड -19 से सीख लेकर अपने काम करने का तरीका बदलेंगे? या अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पटरी पर लाने की जल्दी में हम और अधिक धुएं एवं प्रदूषण के साथ अपनी अर्थव्यवस्थाओं का पुनर्निर्माण करना चाहेंगे? प्रकृति अपना फैसला सुना चुकी है और अब हमारा भविष्य पूरी तरह से हमारे हाथों में है. हमें प्रकृति के प्रति नरमी दिखाने की आवश्यकता है. अब समय आ गया है कि जब हम धरती पर अपना भार कुछ कम करें.
( यह लेख पृथ्वी दिवस पर डाउन टू अर्थ में प्रकाशित हुआ था.)
Also Read
-
Exclusive: India’s e-waste mirage, ‘crores in corporate fraud’ amid govt lapses, public suffering
-
4 years, 170 collapses, 202 deaths: What’s ailing India’s bridges?
-
‘Grandfather served with war hero Abdul Hameed’, but family ‘termed Bangladeshi’ by Hindutva mob, cops
-
India’s dementia emergency: 9 million cases, set to double by 2036, but systems unprepared
-
एक्सक्लूसिव: ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग का फर्जीवाड़ा- कागज़ पर सफाई, ज़मीन पर सफाया