Newslaundry Hindi
कोरोना वायरस की जांच के लिए कौन सा टेस्ट बिलकुल सही होता है
कोरोना वायरस के बढ़ते खौफ के बीच इसकी जांच देश और विदेश के कई बड़े सरकारी और प्राइवेट मेडिकल सेंटरों में होने लगी है. यह जानना दिलचस्प है कि आखिर यह कैसे पता लगाया जाता है कि कोई व्यक्ति नोवल कोरोना वायरस (SAR-CoV-2) से संक्रमित है या नहीं. इसी तरह इसकी जांच के लिए किन तकनीकों और तौर-तरीकों का उपयोग किया जाता है. हम यहां यही बताने की कोशिश कर रहे हैं.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जिस वायरस से कोरोना वायरस बीमारी (कोविड-19) होती है, वह आकार में बेहद सूक्ष्म होता है. इस वायरस की चौड़ाई या कहिए मोटाई महज 50-200 नैनोमीटर होती है. आकार छोटा होने के कारण इसे किसी माइक्रोस्कॉप से सीधे देखना भी कठिन हो जाता है. इसीलिए कोरोना वायरस की जांच की अगुआई करने वाले एक ग्लोबल गैर-लाभकारी संगठन ‘फाउंडेशन फॉर इनोवेटिव न्यू डायग्नॉस्टिक्स’ ने अपने पाइपलाइन असेसमेंट में कोविड-19 की जांच को मॉलिक्यूलर असेज और इम्यूनो असेज में विभाजित किया है.
मॉलिक्यूलर जांच वर्तमान में मॉलिक्यूलर असेज का ही टेस्ट किया जा रहा है. इसे मैनूअल (हाथ से) और मशीन दोनों द्वारा किया जाता है. किसी व्यक्ति के कोविड-19 से संक्रमित होने के संदेह के आधार पर उसके मुंह से लार लिया जाता है. कई तरह के केमिकल्स के उपयोग से लार से वायरस के राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) को अलग किया जाता है.
चूंकि इसकी मात्रा काफी कम होती है, इसलिए इस सैंपल सेरोगाणु (पैथोजन) को अलग करना असंभव होता है. इसीलिए टेस्ट मटीरियल्स (परीक्षण सामग्रियों) को बढ़ाने के लिए पॉलिमरेज चेन रिएक्शन टेक्निक (पीसीआई) अपनाई जाती है. कोरोना वायरस एक तरह का आरएनए वायरस होता है, इसीलिए इसके सैंपल की जांच के लिए पीसीआर टेक्निक का उपयोग किया जाता है.
इसी प्रक्रिया में एक अतिरिक्त तरीका भी अपनाया जाता है और यह तरीका है- एंजाइम रिवर्स ट्रांसक्रिप्टास से सैंपल की जांच. आरएनए जब एक बार डीएनए के कंप्लीमेंटरी स्ट्रैंड में बदल जाता है, उसके बाद इस डीएनए को कई बार, सामान्य तौर पर 40 बार इसी प्रक्रिया (रेप्लीकेशन प्रोसेस) से गुजारा जाता है. रेप्लीकेशन प्रोसेस के दौरान प्रवेशिकाओं (प्राइमर्स) के अलावा एंजाइम्स, न्यूक्लियोटाइड्स और फ्लॉरसेंट प्रोब्स जोड़े जाते हैं. स्ट्रैंड को कॉपी करने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद हर स्ट्रैंड से येफ्लॉरसेंट प्रोब्स निकलते हैं और इस तरह विजुअल सिग्नल (देख सकने लायक संकेत) निकलते हैं.
गौरतलब है कि प्राइम र्सवायरल जेनेटिक मटीरियल के लिए खास होते हैं. अगर सैंपल में कोरोना वायरस का आरएनए होता है, तो उसका रेप्लीकेशन यानी दोहराव किया जाता है और इससे विजुअल सिग्नल भी निकलता है, यानी इसे देखा जा सकता है.
अभी तक भारत में आयातित आरटी-पीसीआर टेस्ट किट्स का उपयोग ही किया जा रहा है. 23 मार्च, 2020 को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने सही मायनों में 100 फीसदी पॉजिटिव और निगेटिव सैंपल्स पाए जाने के बाद दो टेस्ट किट्स को स्वीकृति दी है. अपनी प्रेस रिलीज में आईसीएमआर ने 9 टेस्ट किट्स के लिए सेंसिटिविटी डेटा उपलब्ध कराए और सिर्फ मायलैब डिस्कवरी सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड के पैथोडिटेक्ट कोविड-19 क्वालिटेटिव पीसीआर किट और अल्टोना डायग्नोस्टिक्स रीयलस्टार सार्स कोव-2 सीओवी-2 आरटी-पीसीआर किट को ही विश्वसनीय पाया.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, टेस्टिंग किट्स की गुणवत्ता मूल्यांकन के लिए ड्रग रेगुलेटर कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) द्वारा 14 अन्य प्राइवेट कंपनियों को टेस्ट लाइसेंस दिया गया है. इन कंपनियों में रॉश डायग्नोस्टिक्स इंडिया, अहमदाबाद से कोसारा डायग्नोस्टिक्स और चेन्नई से सीपीसी डायग्नोस्टिक्स शामिल हैं. ये कंपनियां अपने किट का मूल्यांकन करेंगी और संबंधित डेटा डीसीडीआई के समक्ष रखेंगी.
इम्यूनोअसेज पीसीआर टेक्निक के अलावा मार्केट में रैपिड टेस्ट किट भी लॉन्च किए गए हैं. ये इम्यूनो असेज हैं, जो मैनुअल या मशीन और रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट हो सकते हैं. इन टेस्ट के तहत वही तौर-तरीके और सिद्धांत अपनाए जाते हैं, जो प्रेग्नेंसी टेस्ट के दौरान होते हैं. इनके तहत सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ विकसित IgM और IgG एंटी बॉडीज की पहचान की जाती है. टेस्ट के लिए खून, सीरम और प्लाज्मा का उपयोग किया जा सकता है और अगर सैंपल में एंटी बॉडीज होते हैं तो वेटेस्ट स्ट्रिप के एंटिजन से मिल जाते हैं और दोनों के मिलने से एक रंगीन रिएक्शन सामने आता है. ऐसे टेस्ट किट्स का उपयोग करना आसान होता है, क्योंकि इनसे जल्दी नतीजे आ जाते हैं.
इतना ही नहीं, इनसे संक्रमित लोगों और जगहों के सम्पर्क में आने वालों की पहचान करना भी आसान हो जाता है. इस दौरान भी गलत पॉलिटिव नतीजे आनेका खतरा रहता है और इन नतीजों की पुष्टि एडवांस्ड टेस्ट के जरिए करने की जरूरत होती है. इस तरह के कई सारे टेस्ट दुनियाभर में उपलब्ध हैं, लेकिन फिलहाल ये भारत में उपलब्ध नहीं हैं.
Also Read
-
‘Not a Maoist, just a tribal student’: Who is the protester in the viral India Gate photo?
-
130 kmph tracks, 55 kmph speed: Why are Indian trains still this slow despite Mission Raftaar?
-
Supreme Court’s backlog crisis needs sustained action. Too ambitious to think CJI’s tenure can solve it
-
Malankara Society’s rise and its deepening financial ties with Boby Chemmanur’s firms
-
Govt is ‘judge, jury, and executioner’ with new digital rules, says Press Club of India