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जब खाने की समस्या नहीं थी तो अंकरी घास क्यों खा रहे थे मुसहर?
कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए केंद्र सरकार ने देशभर में 21 दिनों के पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर रखी है. इसके बाद गरीब और मजदूर तबके की परेशान करने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं.
लॉकडाउन की वजह से देश के अलग-अलग शहरों से मजदूर तबका अपने घरों को लौटने को मजबूर है. इस बीच पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से एक खबर सामने आई जिसने सबको हैरत में डाल दिया.
बीते 25 मार्च को स्थानीय अख़बार जनसंदेश टाइम्स में एक खबर प्रकाशित हुई जिसका शीर्षक था, ‘बनारस के कोइरीपुर में घास खा रहे मुसहर’. इस खबर को विजय विनीत और मनीष मिश्रा ने लिखा है.
ख़बर के प्रकाशित होते ही जिला प्रशासन में हड़कंप मच गया. अब स्थानीय जिलाधिकारी कौशल राज शर्माने अख़बार और पत्रकारों को नोटिस भेजा जिसमें उन्होंने ख़बर को फर्जी बताया है.
क्या है नोटिस में
जिलाधिकारी द्वारा भेजे गए नोटिस में लिखा गया है कि ख़बर प्रकाशित होने के बाद जब अपर जिलाधिकारी और उप जिलाधिकारी को मौके पर भेजकर जांच कराई गई तो प्रकाशित समाचार और तथ्य सच्चाई से विपरीत पाए गए. इस खबर के जरिए मुसहर समुदाय पर लांछन लगाने का प्रयास किया गया है.
इतना नहीं नोटिस में लिखा है कि 24 घंटे के अंदर स्थिति स्पष्ट करें कि उक्त समाचार पत्र में मुसहरों के घास खाने का जो समाचार प्रकाशित किया गया वो किस आधार पर किया गया. नोटिस में यह भी कहा गया कि 27 मार्च को जनसंदेश टाइम्स के प्रकाशन में उक्त समाचार का खंडन प्रकाशित करते हुए यह भी प्रकाशित करें कि जो ख़बर प्रकाशित हुई थी उसमें कोई घास नहीं खा रहा था. यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो आपपर विधिक कार्यवाही अमल में लाई जाएगी.
ख़बर में आखिर क्या था?
विजय विनीत और मनीष मिश्रा द्वारा लिखी गई उक्त ख़बर में लॉकडाउन के बाद वाराणसी के अलग-अलग मुसहर बस्तियों में रहने वाले लोगों की स्थिति बताई गई है.
ख़बर के अनुसार बनारस की कोइरीपुर मुसहर बस्ती में लॉकडाउन के चलते पिछले तीन दिनों से लोगों के घर चूल्हे नहीं जले. पेट की आग बुझाने के लिए लोग घास खा रहे हैं. मुसहरों के पास सैनेटाइजर और मास्क की कौन कहे, हाथ धोने के लिए साबुन तक नसीब नहीं है.
कमोबेश यही हाल पिंडरा की तीनों मुसहर बस्तियों का है. औरांव, पुआरीकला, आयर, बेलवा की मुसहर बस्तियों में लोगों को भीषण आर्थिक तंगी झेलनी पड़ रही है. राशन न होने के कारण मुसहरों के घरों में चूल्हे नहीं जल पा रहे हैं.
कोइरीपुर में मुसहरों के करीब सत्रह परिवार हैं. इनमें पांच परिवार ईंट भट्ठों पर काम करने के लिए गांव से पलायन कर गया है. जो लोग बचे हैं वो घास खाकर जिंदा है. दिन भर वो गेहूं के खेतों से अंकरी घास निकाल रहे हैं.
वाराणसी प्रशासन सबसे ज्यादा खफ़ा ख़बर के इसी हिस्से से हुआ है. ख़बर की सत्यता को चुनौती देते हुए वाराणसी के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने मीडिया के सामने खुद अपने बेटे के साथ अंकरी घास खाया और उन्होंने कहा कि यह दाल है और गरीब लोग इसे खाते हैं.
इस पूरे विवाद पर मीडिया से बात करते हुए जिलाधिकारी ने कहा, ‘‘अंकरी में मटर के दाने जैसी छोटी-छोटी फली होती है, उसी को बच्चे खा रहे थे. मैंने और मेरे बेटे ने भी उस फली को खाया. हम लोगों ने देखा कि ये प्रोटीन का सोर्स है जिसे चना और मटर की तरह गांव के बच्चे खाते हैं और बचपन में हम सब लोग खाते रहे हैं. ’’यह ख़बर आप यहां पढ़ सकते हैं.
मीडिया से बात करते हुए जिलाधिकारी शर्मा खुद कहते हैं कि जब यह समाचार प्रकाशित होने जा रहा था तब उसके बारे में समय पर जानकारी प्राप्त हुई थी. प्रशासन ने उन लोगों को एक्स्ट्रा राशन भी बंटवा दिया था. इस सबकी जानकारी उस समाचार पत्र को भी रात में एक बजे दे दी गई थी. इसके बावजूद भी उन्होंने भ्रामक ख़बर प्रकाशित किया.
अख़बार ने क्या किया...
योगी सरकार में ख़बर लिखने के कारण सरकार द्वारा नोटिस दिए जाने का यह मामला पहला नहीं है. इससे पहले भी कई पत्रकारों को इस तरह के हालात से दो चार होना पड़ा है.
मिर्जापुर के एक सरकारी स्कूल में मिड-डे मिल के दौरान छात्रों को नमक-रोटी दिए जाने को लेकर ख़बर करने वाले पत्रकार पवन जायसवाल पर भी मिर्जापुर के जिलाधिकारी ने मुकदमा दर्ज कर दिया था. उनपर कार्रवाई की बात करते हुए जिलाधिकारी ने कहा था कि सरकार की छवि खराब करने के लिए पत्रकार ने साजिश किया है.
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पवन जायसवाल भी जनसन्देश अख़बार से ही जुड़े थे जो एकबार फिर चर्चा में है.
जब जिलाधिकारी ने अख़बार को कारण बताओ नोटिस भेजा तो अख़बार ने माफीनामा छापने की बजाय यह छापा कि अंकरी घास जो जिलाधिकारी ने अपने बेटे के साथ खाया वो खाने लायक नहीं होता. बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के बयानों के आधार पर यह ख़बर छापी गई.
विजय विनीत जो इस ख़बर के रिपोर्टर हैं और साथ ही वाराणसी में जन सन्देश टाइम्स के न्यूज़ एडिटर भी हैं, न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं,‘‘इस पूरे मामले को जिलाधिकारी ने आगे बढ़ाया. बतौर रिपोर्टर हम मुसहर बस्तियों में गए और वहां के जो हालात थे उसे हमने लिखा. सच दिखाना पत्रकार का काम है. हमने वही किया. लोग भूखे थे. तीन दिन पहले पड़ोस के गांव में हुई किसी की तेरहवीं (मौत के बाद का श्राद्ध कर्म) से पूड़ी आया था उसे ही आखिरी बार ये लोग खाए थे. हमने सच दिखाया और जिलाधिकारी को यह लांछन लगाना लग रहा है.’’
विजय विनीत बताते हैं, ‘‘सच दिखाना हमारा मकसद है किसी को बदनाम करना नहीं. कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन से भूख से बिलबिलाते मुसहर समुदाय की पीड़ा को उजागर करना अख़बार को जरूरी लगा. इस गांव में लोग भूख से बेहाल थे तभी तो समाचार प्रकाशित होने के बाद सरकारी मशीनरी हरकत में आई और आनन-फानन में कोईरीपुर गांव पहुंचकर खाने पीने का सामान बंटवाया. उस वक़्त घटनास्थल पर मौजूद बड़ा गांव के थानाध्यक्ष ने साफ़-साफ़ कहा था कि खाने का संकट था तो हमें सूचना क्यों नहीं दी. अख़बार समाज के आखिरी आदमी की आवाज़ को सरकार तक पहुंचाने का काम करता है.’’
जिस अंकरी को अख़बार घास बता रहा है उसे जिलाधिकारी ने दाल बताया और उन्होंने मीडिया के सामने कहा कि इसे खाने में कोई नुकसान नहीं है.इतना ही नहीं उन्होंने यह साबित करने के लिए अपने बेटे के साथ वो घास मीडिया के सामने खाया भी. यह हैरान करने वाली और बात है कि सरकारी अधिकारी ने एक बात को साबित करने के लिए अपने परिवार के किसी सदस्य का इस्तेमाल किया.
विजय विनीत जिलाधिकारी के इस दावे पर कहते हैं, ‘‘अंकरी घास है जिसे मवेशियों को खिलाया जाता है. आम लोग इसे खाना तो दूर इसे अपने फसलों की रक्षा के लिए खेत से उखाड़ कर फेंक देते हैं. इसे खेत से हटाने के लिए सरकार भी अभियान चलाती है. समूचा कृषि महकमा अंकरी घास को नष्ट करने का तरीका किसानों को बताता है. यह वही घास है जो गेहूं में हर साल उग जाती है और 40 प्रतिशत उत्पादकता को कम कर देती है.’’
जिस घास को जिलाधिकारी दाल बता रहे हैं उसे सरकार और वैज्ञानिक खाने से मना करते है. जिस रोज जिलाधिकारी ने खबर का खंडन छापने के लिए कहा था उस दिन जनसंदेश टाइम्स ने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के कृषि वैज्ञानिकों के हवाले से छापा कि अंकरी घास है. उसे खाने से कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है.
विजय विनीत बताते हैं, ‘‘हमसे बीएचयू के कृषि विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर रमेश कुमार ने कहा कि अंकरी घास है. कृषि वैज्ञानिक इसे खर पतवार के क्षेणी में रखते हैं. सरकार ने इसे खाने से मना किया है. यह इंसान के खाने योग्य नहीं होता. वहीं अगर मवेशियों को भी ज्यादा खिलाया गया उन्हें डायरिया हो सकता है. इसे खाने से फेफड़े और लीवर में परेशानी होती है. यह घास जिस खेत में उगती है उसकी पैदवार कम हो जाती है.अगर यह दाल है तो इसकी खेती क्यों नहीं की जाती. अगर इसकी खेती की जाए तो एक एकड़ में 2 क्विंटल पैदवार हो सकती है. ये घास किसी खेत में उग जाती है तो उसे उखाड़ना ही एकमात्र रास्ता है. अलग से कोई दवा नहीं है.’’
विजय विनीत कहते हैं कि रमेश कुमार के अलावा भी हमने कई लोगों से बात करके खबर छापी. हमारी ख़बर गलत नहीं है तो हम माफीनामा क्यों छापे. जहां तक ख़बर को लेकर जिलाधिकारी द्वारा सूचना देने की बात है तो रात एक बजे उन्होंने इसको लेकर सूचना दी थी लेकिन अख़बार तो रात दस बजे तक प्रेस में चला जाता है.
मुसहरों की स्थिति अब भी बदहाल
मुसहर समुदाय आज भी समाज में सबसे आखिरी पायदान पर खड़ा है. इस समुदाय में गरीबी और अशिक्षा भयानक है. इस समुदाय के लोग खेतों में मजदूरी करते हैं या मांगकर खाते हैं. सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद इस समुदाय में विकास की रोशनी अभी तक नहीं पहुंची है.
वाराणसी में बीते 25 सालों से लेनिन रघुवंशी और श्रुति रघुवंशी मुसहर समुदाय के लोगों के अधिकारों और हितों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. दोनों पति-पत्नी हैं और डॉक्टरी की पढ़ाई के बाद उन्होंने इनके लिए काम करना ही अपना मकसद बना लिया.
न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए लेनिन रघुवंशी अख़बार में छपी ख़बर को जायज बताते हुए कहते हैं, ‘‘इसमें कोई दो राय नहीं की वहां मुसहरों की बुरी स्थिति थी. जिलाधिकारी ने बेवजह इस पूरे मामले को बढ़ा दिया. जहां तक इस घास की बात है तो यह बिना बोये उगता है. एक समय में लोग इसे खाते थे. 20 से 25 साल पहले तक. लेकिन बाद में आया कि इसे खाने से आंखें खराब हो जाती हैं. आज अगर कोई इसे खाता हो तो सिर्फ मज़बूरी में. जब मुसहर समुदाय के लोगों के पास खाने को नहीं था तो उनके बच्चे नमक से घास खा रहे थे. यह खाने के लिए नहीं होता है.’’
रघुवंशी कहते हैं, ‘‘मीडिया में ख़बर आने के बाद लगभग 700 मुसहर परिवारों को प्रशासन ने राशन उपलब्ध कराया है. लोगों की स्थिति अब समान्य हो गई है. लेकिन सबको मालूम है कि मुसहरों की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है. हमारी कोशिश से यहां के कुछेक मुसहर पढ़ाई कर पाए है और एकाध विदेश कमाने जा सके हैं.’’
इस पूरे मामले में प्रशासन की नोटिस की समयसीमा अब समाप्त हो चुकी है. अख़बार अपने ख़बर के साथ खड़ा है. अब नोटिस के अनुसार जिलाधिकारी विधिक कार्यवाही कर सकते हैं. इसी बीच इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में याचिका भी दी गयी है.
अपने नोटिस और बयान दोनों में जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा कहते नज़र आ रहे हैं कि बच्चे अंकरी दाल खा रहे थे. दाल हम उनके हिसाब से मान रहे हैं. हालांकि इसे यहां के लोग घास ही बताते हैं.
न्यूजलॉन्ड्री के पास मौजूद इस वीडियो में एक अधिकारी मुसहर समुदाय के एक शख्स से कहते नजर आ रहे हैं कि अगर कोई समस्या थी तो थाने पर बताये होते, एसडीएम साहब को बताये होते, नम्बर नोट कर लो कोई बात हो तो हमें बताओ. राशन की समस्या हो प्रधान के यहां जाइये. वो नहीं सुनते हैं तो हमने बताइए. एसडीएम से बात कर लिया गया है. सबको खाने पीने का अनाज दिया जाएगा. हर घर से एक-एक आदमी बारी-बारी से आकर अनाज ले जाए.”
अगर राशन की समस्या नहीं थी तो आखिर यह अधिकारी क्यों उन्हें प्रधान के यहां राशन लाने के लिए भेज रहे थे?
जिलाधिकारी ने अपने नोटिस और बयान से खुद ही साबित कर दिया कि मुसहरों के पास खाने को नहीं था.
न्यूजलॉन्ड्री ने जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा से कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई. अगर बात होती है तो हम उसे खबर में जोड़ देंगे.
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