Newslaundry Hindi
बेनी प्रसाद वर्मा: वो सिगरेट का लम्बा कश और कुर्सी पर पांव रख कर बैठना
किसी भी नेता से जनता दो ही उम्मीद करती है, उसने क्षेत्र का विकास किया हो और अफसरशाही पर मज़बूत पकड़ रखी हो. समाजवादी नेता बेनी प्रसाद वर्मा में ये दोनों खूबियां मौजूद थी. आज उनके देहांत के साथ ही समाजवाद की एक पुरानी कड़ी टूट गयी.
जनपद बाराबंकी के सिरौली गौसपुर गांव के मूल निवासी, बेनी बाबू ने राजनीति में बहुत कुछ देखा.फर्श से अर्श तक पहुंचे, प्रारंभिक संघर्ष, राजनीति का शिखर, राजनतिक अवसान के बाद फिर जिंदा होना, बेनी बाबू हमेशा प्रासंगिक बने रहे.
किस्से तमाम हैं. लेकिन उन्होंने अपने गृह जनपद बाराबंकी के लिए बहुत कुछ कर दिया. बाराबंकी वैसे तो समाजवाद का गढ़ माना जाता रहा है लेकिन यहां कांग्रेस के भी सितारे बुलंद रहे. समाजवादी पुरोधा रामसेवक यादव यहीं से निकले तो कांग्रेस के रफ़ी अहमद किदवाई और मोहसिना किदवाई इत्यादि भी. इन सबके बीच बेनी बाबू ने अपनी अलग पहचान बनाई.
भले बाराबंकी उत्तर प्रदेश की राजधानी से सटा हुआ नगर है लेकिन विकास के मामले में पिछड़ा ही रहा. बेनी प्रसाद वर्मा के उदय से ये कमी काफी हद तक दूर हुई. अपने लोक निर्माण मंत्री के कार्यकाल में उन्होंने हर गांव को पक्की सड़क और हर छोटी, बड़ी नदी-नाले तक पर पुल बनवा दिए. कहते हैं उस दौर में सिर्फ दो जगह जम कर विकास हुआ. एक मुलायम के गांव सैफई में और दूसरा बेनी प्रसाद के जनपद बाराबंकी में. बेनी प्रसाद वर्मा ने अपने गांव को उच्चीकृत करके तहसील मुख्यालय बनाया. सड़कें, गेस्ट हाउस और सब कुछ दिया जो तब संभव था. जिले से बाहर लोगों की पहचान ये बन गयी- अच्छा बेनी प्रसाद का जिला बाराबंकी.
विकास और सुविधाएं देना नेता के लिए इतना आसान नहीं होता है. कई अड़ंगे होते हैं, ब्यूरोक्रेसी का अवरोध, लोगों द्वारा आरोप कि अपने अपने यहां सब किया, काम में भ्रष्टाचार इत्यादि. लेकिन बेनी प्रसाद के लिए इन सबको संभालना मामूली बात होती है.
जब वो केंद्र में यूनाइटेड फ्रंट सरकार में संचार मंत्री बने तो बाराबंकी के हर कोने में टेलीफोन का जाल बिछा दिया गया. जगह जगह ऑप्टिकल फाइबर केबल डाली गयी. यही नहीं तमाम उपकेन्द्र भी खोल दिए गए. टेलीफोन एक्सचेंज तो इतना बेहतर कि लखनऊ को टक्कर देने लगा. फिर जब यूपीए सरकार में इस्पात मंत्री बने तो कारपोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी के अंतर्गत सोलर लाइट लगवानी शुरू कर दी. अफसरशाही पर बेनी प्रसाद की ज़बरदस्त पकड़ थी. टेलीफोन पर वो सिर्फ आधी बात कहते और अधिकारी उसका निष्कर्ष निकालकर कार्य करते.
इस काम से उन्होंने दूसरे नेताओं के लिए दिक्कत भी कर दी. पैमाना इतना ऊंचा कर दिया कि जनता की आशा पूरी करना दुष्कर हो गया.
राजनीतिक रूप से बेनी प्रसाद ने बाराबंकी और पूर्वांचल के कुर्मियों में राजनीतिक चेतना ला दी. भले इसे जातिवाद का नाम दिया जाय लेकिन बाराबंकी में अक्सर कहा जाता है कि कुर्मी समुदाय को वर्माजी से लोग संबोधित करने लगे. इस पिछड़ी जाति के साथ-साथ उन्होंने मुसलमानों को खूब जोड़ा. उनके आसपास मुसलमान नेताओं का जमावड़ा रहता. सबसे बड़ी बात उन्होंने बाराबंकी में मुसलमानों में नेतृत्व क्षमता विकसित कर दी. गली, मोहल्ले से लेकर जिले स्तर तक उन्होंने मुसलमानों को राजनीतिक रूप से काफी आगे किया. नतीजा ये हुआ कि स्थापित मुस्लिम नेता नेपथ्य में चले गये. वार्ड में, जिला समिति में, टिकट बंटवारे में और चुनाव में नए मुस्लिम नेता आगे आने लगे.
उनपर आरोप लगने शुरू हुए किकुर्मियों को ज्यादा तरजीह दी. जब वो कैसरगंज से लोकसभा चुनाव लड़ने लगे तो नारा चला-इधर से बेनी उधर से पद्म, बाकी जाति का खेल खत्म. पदमसेन चौधरी भी उनके सजातीय थे और तब सटी हुई दूसरी सीट से दूसरी पार्टी से लड़ते थे. हाल ये हो गया कि एक समय बाराबंकी में नारा चलने लगा-रामनगर राम का, मसौली काम का, दरियाबाद श्याम का और नवाबगंज संग्राम का. इसमें रामनगर से राजलक्ष्मी वर्मा (भाजपा), मसौली (बेनी के पुत्र राकेश वर्मा), दरियाबाद से राधेश्याम वर्मा (बेनी के सहयोगी) और नवाबगंज सीट से संग्राम सिंह वर्मा (भाजपा/कांग्रेस) से लड़ते थे.
अक्खड़ स्वाभाव के दो उंगलियों के बीच विल्स सिगरेट का लम्बा कश और अक्सर कुर्सी पर दोनों पांव रख कर बैठना उनका अंदाज़ था. कभी-कभी तो लोग बैठे रहते लेकिन वो चुप रहते और कम बोलते. फिल्मों के बहुत शौक़ीन, बेडरूम में हमेशा टीवी चलता रहता. दिल्ली आवास पर कम ही लोग जाते, सीधे कह देते क्या बाराबंकी में नही मिल पाते हो. अगर किसी का काम सिर्फ सुन लिया तो हो गया वरना सीधे मना, बड़े-बड़े नेता, अधिकारी अक्सर बिना मिले लौट जाते. लेकिन उनके इस रवैय्ये की किसी ने शिकायत नहीं की, सिर्फ यही कहा कि बेनी बाबू ने सुन लिया तो हो गया काम. वैसे वो सामान्यतः धोती कुर्ता पहनते लेकिन बीच में बंद गले का कोट और पैंट के अलावा इंग्लिश में भी बोलने लगे थे. जवाब यही था कि अब कांग्रेस में हैं. बैठकी करने का बहुत शौक था, बाराबंकी में अक्सर वो शाम को देर तक जमावड़ा लगाते थे भले उसमें बोले कुछ नहीं लेकिन सबकी सुनते थे.
राजनीतिक ककहरा चौधरी चरण सिंह से सीखा, मुलायम के साथ उनकी जोड़ी बहुत मशहूर थी तो मुलायम से अलगाव ऐसा किया कि जब-तब कोई न कोई बयान जारी कर देते जो ख़बर बन जाती. अपनी पार्टी समाजवादी क्रांति दल भी बनायी और अयोध्या से चुनाव लड़े लेकिन हार गये. पत्रकारों से मुद्दे पर कम और इधर-उधर की बात ज्यादा करते थे. कांग्रेस में गये तो फिर मंत्री बने, फिर वापसी सपा में की और राज्यसभा सांसद हुए. विधायक, मंत्री, सांसद तो बहुत हुए लेकिन बाराबंकी की नब्ज़ उन्हें खूब पता थी. लोगों को जोड़ना और विरोधियों को मिलाना वो बखूबी जानते थे.
एक तरह से उन्होंने बाराबंकी पर एकक्षत्र राज किया.
Also Read
-
Rajiv Pratap Rudy on PM’s claims on ‘infiltrators’, ‘vote-chori’, Nishikant Dubey’s ‘arrogance’
-
Unchecked hate speech: From Kerala's right wing X Spaces to YouTube’s Hindutva pop
-
यूपी की अदालत ने दिया टीवी एंकर अंजना ओम कश्यप पर मामला दर्ज करने का आदेश
-
UP court orders complaint case against Anjana Om Kashyap over Partition show
-
The meeting that never happened: Farewell Sankarshan Thakur