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जेल, क़ैदी और कोरोना

24 मार्च को रात आठ बजे देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले 21 दिनों के लिए देशभर में पूर्ण रूप से लॉकडाउन करने का फैसला सुनाया.

अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने साफ़ शब्दों में कहा कि इस बीमारी का एकमात्र इलाज लोगों से दूरी बनाकर अपने घरों में रहना है. उन्होंने कहा कि जिन राष्ट्रों में सबसे बेहतर मेडिकल सुविधाएं हैं, वे भी इस वायरस को रोक नहीं सके. इसे कम करने का उपाय केवल सोशल डिस्टेंसिंग यानी सामाजिक दूरी है.

लोग एक जगह एकत्रित न हो इसके लिए भारतीय रेलवे ने ट्रेनों का परिचालन 31 मार्च तक रोक दिया है. दिल्ली सरकार ने मेट्रो, अन्तर्राजीय बस सेवाओं और बाकी प्राइवेट वाहनों के परिचालन पर रोक लगा दिया है. वहीं धार्मिक स्थलों पर भी हर तरह की गतिविधियों पर रोक लगा दिया है.

दिल्ली में कर्फ्यू के बावजूद लोग घरों से बाहर निकल जा रहे हैं. ऐसे में दिल्ली पुलिस के जवान गलियों में घूमकर लोगों को घरों में रहने के लिए समझा रहे हैं और कई जगहों पर बल प्रयोग भी कर रहे हैं.

इस सबका एक ही मकसद है कि लोग एक जगह इकठ्ठा न हों. ऐसी तस्वीरें दिल्ली के अलावा अलग-अलग राज्यों से भी आ रही है जहां पुलिस सख्ती करते दिख रही है.

इसी सबके बीच सवाल उठने लगा कि भारत के जेलों में बंद कैदी कितने सुरक्षित हैं? संक्रमण और गंदगी के लिहाज से भारत की जेलें दुनिया की कुछ सबसे खराब जगहों में हैं. एक-एक कमरे चार-चार, पांच-पांच लोग रहते हैं, कई जगहों पर सामूहिक हॉल में उठते-बैठते हैं, इनके शौचालय गंदगी का अंबार हैं. ऐसे में अगर जेलों के अदंर कोरोना पहुंच जाता है स्थितियां भयावह हो सकती हैं.

भारत के जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने बीते साल देश के अलग-अलग जेलों में बंद कैदियों को लेकर एक रिपोर्ट जारी किया था. रिपोर्ट के अनुसार भारत के जेलों में क्षमता से बहुत ज्यादा कैदी रह रहे हैं. यह सिलिसला लंबे समय से चलता आ रहा है.

आंकड़ों के अनुसार साल 2016 में भारत की1,412 जेलों में कैदियों की क्षमता 3,80,876 थी लेकिन उसमें बंद कैदी 4,33,003 थे. साल 2017 में इस संख्या में ज्यादा अंतर नहीं आया बल्कि बढ़ गया. 2017 में 1,361 जेलों में कैदियों की संख्या 4,50,696 रही जबकि इसकी क्षमता 3,91,574 थी. साल 2018 में यह संख्या और बढ़ गई. 31 दिसंबर 2018 तक 1,339 जेलों में कैदियों की संख्या 4,66,084 रही जबकि इसकी क्षमता 3,92,230 थी.

भारत के जेलों में बंद 4,66,084 कैदियों में से 4,46,842 कैदी पुरुष हैं जबकि 19,242 कैदी महिलाएं हैं.

रिपोर्ट के अनुसार भारत में अभी जेलों की बात करें तो यहां 1,399 जेलों में से 144 सेंट्रल जेल, 628 सब जेल, 404 जिला जेल, 77 ओपन जेल, 41 स्पेशल जेल, 24 महिला जेल और 21 अन्य जेलें हैं.

सबसे ज्यादा कैदी सेंट्रल जेल में हैं. रिपोर्ट के अनुसार सेंट्रल जेल की क्षमता 1,75,820 हैं लेकिन 31 दिसंबर, 2018 तक वहां 2,09,278 कैदी थे. अगर बात जिला जेलों की करें तो देश भर की जिला जेलों की क्षमता 1,55,490 है लेकिन इसमें बंद कैदियों की संख्या 2,06,518 है.

सबसे ज्यादा सेंट्रल जेल दिल्ली में है, जिसकी संख्या 14 है. वहीं सबसे ज्यादा जिला जेल उत्तर प्रदेश में है, जिसकी संख्या 61 है.

किस तरह के कैदी जेलों में बंद

एनसीआरबी द्वारा जारी इस रिपोर्ट के अनुसार जेल में बंद 4,66,084 कैदियों में से 1,39,488 लोगों को सज़ा हो चुकी है. 3,23,537 के मामले अभी कोर्ट में चल रहा है. वहीं 2,384 लोगों को एहतियातन डीटेन करके रखा गया है.

जेल में अंडरट्रायल कैदियों में से 40,217 कैदी एक से दो साल से जेल में हैं. 22,359 कैदी 2 से 3 साल से जेल में बंद हैं. वहीं 14,316 कैदी हैं जो 3 से 5 साल से जेलों में बंद हैं. 5,104 कैदी पिछले पांच साल से जेल में बंद है और उनका मामला चल रहा है. यह सभी आंकड़े 31 दिसंबर, 2018 तक के हैं.

ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जेलों में बंद उन कैदियों को फिलहाल छोड़ दिया जाए जो लंबे समय से जेल में बंद है या जिनके मामले कोर्ट में अभी लंबित हैं. उन्हें पेरोल पर दो से तीन महीने के लिए घर भेजा जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उच्च-स्तरीय पैनल गठित करने का आदेश दिया, जो जेल में बंद उन लोगों के बारे में विस्तार से जानकारी इकट्ठा करके पेरोल पर रिहा कर दें जो सात साल या उससे कम के सज़ायाफ्ता हैं.

जिस बेंच ने यह आदेश दिया है, उस बेंच का नेतृत्व मुख्य न्यायधीश एसए बोबडे कर रहे हैं. सोमवार, 24 मार्च को अपने दिए आदेश में कोर्ट ने कहा है कि कोरोना के प्रकोप को रोकने के लिए हर प्रदेश में उच्च-स्तरीय पैनल का गठन किया जाय जो जेल में बंद सात साल तक की सज़ा पाए सभी दोषियों और सात साल की सज़ा पाने वाले अपराधिक मामले में जेल में बंद और ट्रायल से गुजर रहे कैदियों की रिहाई करने पर विचार करे. यह उच्च-स्तरीय पैनल हर सप्ताह मीटिंग करे.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इस पैनल में राज्य क़ानूनी सेवा समिति के चेयरमैन शामिल होंगे. इसके अलावा जेल के डायरेक्टर जनरल भी होंगे और वे बतायेंगे कि किन कैदियों को पेरोल और जमानत पर कितने दिनों के लिए छोड़ा जा सकता है.

यानी उन कैदियों को छोड़ने या पेरोल पर भेजने का विचार हो सकता है जिनकी सज़ा सात साल तक की हो या जिन्होंने उस स्तर का अपराध किया हो जिसमें दोषी साबित होने के बाद सात साल की सज़ा का प्रावधान हो.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इस आदेश पर वरिष्ठ वकील विराग गुप्ता कहते हैं, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 141 और 142 के तहत सुप्रीम के पास दो असाधारण शक्तियां है. पहला अपने आदेशों के पालन करने के लिए कोई भी विशेष आदेश जारी करना. दूसरा सुप्रीम कोर्ट का आदेश देश का कानून माना जाता है. इस तरह से किसी भी मामले में पूर्ण आदेश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पास विशेष अधिकार है. विचाराधीन क़ैदी,जो आर्थिक वजहों से, कानून की सही जानकारी नहीं होने के कारण या जिनके पास कानूनी सहयता नहीं है. ऐसे कैदियों की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अनेक बार आदेश पारित किया है.’’

विराग गुप्ता आगे कहते हैं, ‘‘कोरोना के आंतक के बाद अंतरराष्ट्रीय जेलों में भगदड़ और हिंसा की घटनाएं हुई हैं. उस तरह की घटनाओं को भारत में रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक नया आदेश जारी करके विशेष प्रकार के कैदियों को जमानत या पेरोल पर छोड़ने का आदेश दिया है. इस आदेश का पालन करना सभी जेल अधिकारियों की जिम्मेदारी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश देश का कानून माना जाता है. यह आदेश डिजिटल माध्यम से देश के सभी जेल अधिकारियों के पास पहुंच गया है. और इसपर किसी विमर्श की ज़रूरत नहीं है.’’

तिहाड़ में कैदियों को छोड़ने की तैयारी शुरू

कोर्ट के आदेश के बाद तिहाड़ जेल ने कैदियों को पेरोल पर भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. तिहाड़ जेल के अधिकारी करीब तीन हजार कैदियों को रिहा करने की योजना बना रहे हैं.

नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार जेल महानिदेशक संदीप गोयल ने कहा है, ‘‘अगले तीन-चार दिनों के अंदर करीब 1,500 कैदियों को पैरोल पर रिहा करने की कोशिश करेंगे. फिर 1500 विचाराधीन कैदियों को रिहा करेंगे ताकि कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए जेलों में भीड़ कम की जा सके. इसमें कोई खतरनाक कैदी शामिल नहीं होंगे.’’

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए तिहाड़ जेल के पीआरओ राजकुमार बताते हैं, ‘‘हमारे पास लोगों को छोड़ने का पॉवर नहीं है. सुप्रीम के आदेश का पालन करते हुए हमने लगभग 3 हज़ार लोगों का नाम कोर्ट और राज्य सरकार को भेजा है. अब इन दोनों पर निर्भर करता है कि वे किसे छोड़ने का आदेश देते हैं और किसे नहीं.’’

राजकुमार आगे जोड़ते हैं, ‘‘जिन कैदियों का मामला विचाराधीन हैं उनको छोड़ने पर फैसला लेने का हक कोर्ट को है. लेकिन जिनको सज़ा हो चुकी है उन्हें छोड़ने का फैसला लेना दिल्ली सरकार के हाथ में है. हमने अपना काम कर दिया है. अब कोर्ट और दिल्ली सरकार को निर्णय लेना बाकी है.’’

मौजूदा समय में आपराधिक मामलों के अलावा तमाम राजनीतिक क़ैदी भी जेलों में बंद हैं, इनमें भीमा कोरेगांव के नागरिक अधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं.

दिल्ली के तिहाड़ जेल में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, सिवान से सांसद रहे शहाबुद्दीन समेत कई नामी गिरामी कैदी भी बंद हैं.

क्या जिनको छोड़ने की बात हो रही है उसमें से कुछ राजनीतिक व्यक्ति भी हो सकते हैं. इस सवाल के जवाब में राजकुमार कहते हैं, ‘‘सुप्रीम कोर्ट ने जो गाइडलाइंस दी है उसके अंतर्गत जो भी आ सकता है उनकी संख्या तीन हज़ार तक है. हमने कोर्ट और सरकार को लिस्ट भेज दिया है. अभी हम किसी का नाम नहीं बता सकते.’’

उत्तर प्रदेश में जेलों और कैदियों की बड़ी संख्या को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का महत्व बढ़ जाता है. उत्तर प्रदेश जेल विभाग के पीआरओ संतोष वर्मा न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अभी कोई काम नहीं हुआ है लेकिन इसको लेकर सीनियर अधिकारियों की जल्द ही मीटिंग होने वाली है. उसके बाद निर्णय लिया जाएगा कि किन अपराधियों को छोड़ा जाएगा. हम जल्द ही इसको लेकर लिस्ट सरकार और कोर्ट को देने वाले हैं.’’

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव विमेंस एसोसिएशन ने सीएए और एनआरसी को लेकर हुए प्रदर्शन के दौरान यूपी और दिल्ली में जेलों में डाले गए लोगों को भी छोड़ने की मांग की है.

एसोसिएशन ने एक प्रेस रिलीज जारी करके कहा कहा कि-“लखनऊ के घंटाघर से नितिन राज और अश्विनी यादव सहित तमाम आंदोलनकारियों को झूठे आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया. दिल्ली में भी इसी तरह फर्जी आरोपों में यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के खालिद सैफी की प्रताड़ना कर उन्हें जेल में रखा गया है.कोरोना वायरस महामारी के समय इनके जैसे तमाम राजनीतिक बंदियों को जेल में रखना, उनकी जान को खतरे में डालना है. इन्हें जल्द ही छोड़ा जाए.’’

ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव विमेंस एसोसिएशन की सेक्रेटरी कविता कृष्णन न्यूजलॉन्ड्री से कहती हैं, ‘‘सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मकसद है कि जेल में कैदियों की संख्या कम हो. ऐसे में जिन लोगों को पिछले दिनों प्रदर्शन स्थलों से उठाया गया है उन्हें तत्काल रिहा करना चाहिए. कोर्ट में काम कम होने और कोरोना की वजह से लॉकडाउन होने के कारण उनकी जमानत के लिए भी कोई कुछ नहीं कर सकता और उनका गुनाह इतना बड़ा नहीं है कि उन्हें लम्बे समय तक जेल में रखा जाय. ऐसे में राजनीतिक बंदियों को तत्काल रिहा किया जाए.’’

भीमा कोरेगांव मामले में कई सामाजिक कार्यकर्ताओं को महाराष्ट्र की अलग-अलग जेलों में रखा गया है. उनका मामला देख रही वकील सुसान अब्राहम न्यूजलॉन्ड्री को बताती हैं, ‘‘उनका अपराध बड़ा नहीं है लेकिन उन्हें राजनीतिक कारणों से जेल में रखा गया है. हमने महाराष्ट्र सरकार के पास उन्हें जमानत देने के लिए अपील किया है. उन्हें तत्काल रिहा किया जाना चाहिए. लेकिन अब उनसे मिलने ही नहीं दिया जा रहा, ना ही फोन पर बात करने की इजाजत है. सुरक्षा कारणों से अगर सरकार ने बंदियों की मुलाकात पर रोक लगाई है तो कम से कम फोन पर तो उन्हें अपने परिजनों से बात करने की इजाजत देनी चहिए. यह हैरान करने वाला है. देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद महाराष्ट्र सरकार क्या फैसला लेती है. हमें उम्मीद है कि सरकार उन्हें रिहा करेगी.’’

जेलों में सुरक्षा के इंतज़ाम

इटली में जब कोरोना का प्रकोप बढ़ा तो वहां के प्रशासन ने जेल के नियमों में बदलाव किया था. परिजनों को कैदियों से मुलाकात पर रोक लगा दी गई थी. ऐसे में जेल के अंदर लोग भड़क गए और हिंसा में कई लोगों की मौत हो गई थी.

भारत के ज्यादातर जेलों ने भी अपने यहां मुलाकात बंद कर दिया है.

राजकुमार बताते हैं, ‘‘18-19 मार्च से ही हमने लोगों की मुलाकात पर रोक लगा दी है. जेल के अंदर रह रहे कैदियों को अधिकारी मुलाकात पर लगी रोक का कारण बता रहे हैं तो वे इसको समझ रहे है और यहां कोई हंगामा नहीं हो रहा है. जेल में रह रहे लोगों को भी समझ है कि बाहर लॉकडाउन की स्थिति में उनके परिजनों के आने जाने में परेशानी का सामना करना पड़ेगा.’’

उत्तर प्रदेश में भी जेलों में बंद कैदियों को परिजनों से मुलाकात पर रोक लगा दी गई है. इसको लेकर संतोष वर्मा कहते हैं, ‘‘यह वायरस छुआछूत से फैलता है जिस कारण हमने कैदियों के परिजनों से मुलाकात पर रोक लगा दी है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है कि कैदियों से मुलाकात के लिए अलग-अलग जगहों से लोग जेल आते हैं. वे एक ही वेटिंग रूम में बैठते हैं. ऐसे में कोई वायरस से प्रभावित व्यक्ति आ गया तो जेल के अंदर यह बीमारी पहुंच जाएगी. अभी तक यूपी के किसी भी जेल से इस तरह की कोई ख़बर नहीं आई है.’’

तिहाड़ में सुरक्षा को लेकर राजकुमार बताते हैं, ‘‘जेल में आइसोलेशन वार्ड और क्वारेंटाइन वार्ड बना दिया गया है. क्वारेंटाइन वार्ड में हम उन्हें रख रहे हैं जो अभी नए आ रहे हैं. वहीं उन्हें 14 दिन के लिए आइसोलेशन में रखा जा रहा है जिनकी कोई ट्रैवेल हिस्ट्री रही है. जो विदेश से आते है. अगर उनमें कुछ मिलता है तो हम उन्हें अस्पताल इलाज के लिए भेज देंगे. यहां डॉक्टरों की टीम हर वक़्त मौजूद रहती है. अभी तक तो कोई मामला सामने नहीं आया है.’’

यूपी के जेलों में कोरोना ना फैले इसको लेकर प्रशासन क्या कर रहा है. क्योंकि यूपी की जेलों में सबसे ज्यादा कैदी हैं. उनकी संख्या एक लाख से ज्यादा है.

संतोष वर्मा कहते हैं, ‘‘उत्तर प्रदेश के तमाम जेलों को सेनेटाइज किया जा चुका है. इसके अलावा जेल में ही कैदियों ने मास्क बनाया है. जिसके कारण हर कैदी के पास मास्क मौजूद है. इतना ही नहीं हम कैदियों द्वारा बनाए मास्क बाहर भी भेज रहे हैं. इसके अलावा जेलों में हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध करा दिया है.’’

संतोष आगे कहते हैं, ‘‘हमारे यहां जब से जेल मैनुअल बना तब से आइसोलेशन की व्यवस्था है. जब भी कोई नया कैदी आता है तब उसे अलग कमरे में रखा जाता है. आइसोलेशन कमरा एक ही है तो उसमें जो कैदी जा रहे हैं उन्हें दूरी पर रहने के लिए कहा जा रहा है. साफ़-सफाई का भी इंतज़ाम जेलों में बेहतर किया गया है. जिसका नतीजा है कि अलग-अलग जेलों में एक लाख तीन हज़ार कैदी होने के बाद भी प्रदेश के किसी भी जेल से एक भी मामला सामने नहीं आया है.’’

भारत में कोरोना की स्थिति

25 मार्च तक देश में कोरोना मरीजों की संख्या 606 पहुंच गई. जिसमें से 519 भारतीय और 46 विदेशी हैं. अब तक 43 मरीज ठीक होकर लौट चुके हैं. अब तक 12 लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है.

अपडेट

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने यहां से ग्यारह हज़ार कैदियों को छोड़ने का निर्णय लिया है.

यूपी सरकार ने जिन कैदियों को जमानत पर रिहा करने का फैसला लिया है उसमें 8500 कैदी विचाराधीन हैं वहीं 2500 कैदी वे हैं जो दोषी साबित हो चुके हैं. इन्हें आठ सप्ताह के लिए जमानत पर भेजा गया है.

वहीं महाराष्ट्र सरकार ने 601 कैदियों को बीते तीन दिनों में जमानत दिया है.

इसके अलावा मदुरई सेंट्रल जेल से 58 लोगों को छोड़ने का फैसला लिया गया.

यह तमाम फैसले कोरोना वायरस के फैलने से रोकने के लिए किया गया है.

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