Newslaundry Hindi
मौत का नाला: जहां चली हत्याओं की होड़
55 वर्षीय चन्द्रावती देवी को अब भी नाले में बहकर जाते शव का दृश्य याद कर चक्कर आने लगते हैं.
चन्द्रावती उत्तर-पूर्वी दिल्ली के गोकुलपुरी के संजय कॉलोनी की रहने वाली हैं. इनके घर के बिलकुल पीछे से नाला बहता हुआ जाता है. वो बताती है, “एक मार्च को दोपहर के तीन बज रहे थे. हमारे आसपास शोरगुल हुआ. हमने देखा कि नाले से एक शव बहता हुआ गोकुलपुरी मेट्रो की तरफ जा रहा था. उसका पीठ ऊपर था. उसका बेल्ट और जूता चमक रहा था. बेचारा किसी का बेटा होगा. मैं यहां 40 साल से रह रही हूं, लेकिन नाले में इस तरह से लाश को पहले कभी नहीं देखा था.’’
चन्द्रावती के बगल में खड़ी काजल कहती हैं, ‘‘जिस दिन से नाले से शव को बहते जाते देखा उस दिन से खाया तक नहीं जा रहा है.’’
यह लाश उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जौहरीपुर से गोकुलपुरी तक बहकर आई थी. मेट्रो स्टेशन के पास इसे बाहर निकाला गया. काफी देर तक लोग भीड़ लगाकर लाश को देखते रहे. सभी के अंदर ये डर बैठ गया कि फिर से हंगामा शुरू तो नहीं हो गया.
यह शव आस मोहम्मद का था. आस मोहम्मद का शव जब मिला तो उनका शरीर फूल चुका था. चेहरा विकृत हो चुका था. उसके पैरों का मांस गल गया था, उनकी आंखें बाहर निकल आई थीं.
आस मोहम्मद 25 फरवरी को लापता हो गए थे. उस दौरान उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा अपने चरम पर थी. उनकी लाश पांच दिन बाद नाले में बहती नजर आई. इस दौरान बारिश होने की वजह से नाले का बहाव तेज़ हो गया था.
शव को निकालने वाले 27 वर्षीय अरुण कुमार संजय कॉलोनी के अपने छोटे से कमरे में अपने परिवार के साथ रहते हैं. दिल्ली में ही पैदा हुए और पले बढ़े अरुण यमुना विहार में एक प्राइवेट कंपनी में चपरासी की नौकरी करते हैं. अरुण से जब हम मिलने पहुंचे तब वो खाना खा रहे थे. खाना खाने के बाद अरुण न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘उस दिन इतवार का दिन था. मैं अपने दोस्तों के साथ नाले के बगल में खड़ा था तभी एक शव बहता हुआ गया. आगे जाकर वो पुलिया के पास फंस गया. मैं अपने दोस्तों के साथ नाले के पास पहुंचा. तब तक वहां भीड़ लग गई थी. पुलिस भी पहुंच गई थी. पुलिस के लोगों ने रस्सी फेंकर लाश को निकालने की कोशिश की लेकिन वो सफल नहीं हो पाए. लोग लाश को देख रहे थे लेकिन किसी को हिम्मत नहीं हो रही थी कि नाले में उतरे.’’
अरुण आगे कहते है, ‘‘लाश फंसी हुई थी तभी मेरे दोस्तों ने कहा कि तुझे तैरना आता है तो चला जा. दोस्तों के बार-बार कहने के बाद मैं नाले में उतर गया. मेरे मन में उस वक़्त आया कि जिसका भी शव हो उसके अपने कम से कम इसका अंतिम संस्कार तो कर देंगे. मैं रस्सी लेकर नाले में उतरा और शव को बांधकर खींचते हुए बाहर लाया. उसका चेहरा बिलकुल फुला हुआ था. आंखें बाहर निकली हुई थी. मैं उस मंजर को कभी याद नहीं करना चाहता. इस काम के बदले पुलिस वालों ने मुझे 300 रुपए दिए थे.’’
अरुण की पत्नी कहती हैं कि मैंने उस बारे में कभी इनसे बात नहीं की. अगर ये मुझे बता देते तो मुझे परेशानी होती.
हमने अरुण को आस मोहम्मद की तस्वीर दिखाते हुए पूछा कि क्या उसी शव की तस्वीर है तो वे ध्यान से तस्वीर को देखने के बाद हां में सर हिलाते हैं. इसके अलावा वो कुछ भी नहीं कहते. ऐसा लगता है जैसे उनके गले में कुछ अटक गया हो.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे के दौरान यह इलाका काफी प्रभावित हुआ था. संजय कॉलोनी में क्या माहौल था. इस सवाल के जवाब में चन्द्रवाती कहती हैं, ‘‘उस दिन तो सब डरे हुए थे. इस गली के सभी मुसलमान घर छोड़कर चले गए थे. अब तो सब आ गए हैं. हमारी गली में कोई बवाल नहीं हुआ. लेकिन आसपास जमकर बवाल हुआ था.’’
***
उत्तर पूर्वी दिल्ली के गोकुलपुरी पुलिस थाने के प्रवेश गेट पर कई भगवानों की मूर्तियां लगी हुई हैं. गेट पर जय श्रीराम लिखा हुआ है. एक बारगी तो यह किसी मंदिर का गेट लगता है, लेकिन आसपास पुलिस वालों की मौजूदगी और इसके छोटे से कैपस में दंगे के दौरान जली हुई गाड़ियां रखी होने के कारण यह भ्रम ज्यादा देर तक नहीं रहता. सीढ़ियों से चढ़ते हुए हम थाने में पहुंचते हैं. दंगे के दौरान नाले से सबसे ज्यादा लाशें इसी थाने के अतर्गत मिली है. यहां के अधिकारी ऑन द रिकॉर्ड कुछ भी बताने या बात करने से साफ़ मना कर देते हैं.
एक अधिकारी हमें कुछ मृतकों का डिटेल तो बता देते है लेकिन कुछ भी ऑन द रिकॉर्ड कहने से मना करते हैं. अधिकारी से मिली जानकारी के अनुसार अभी तक नाले से नौ लाशें इस थाने के अंतर्गत बरामद की गई है. बगल के दयालपुर थाने के अंतर्गत तीन लाशें बरामद हुई है. कुल 12.
थाने के बिलकुल सामने ही नाला बहता हुआ जा रहा है. एक मार्च को यही से एक लाश (आस मोहम्मद) पुलिस ने स्थानीय युवक अरुण कुमार की मदद से निकाली थी. नाले को ढकने के लिए दीवार बनाई गई है. दीवार पर मिथिला पेंटिंग बनाई गई है, जो देखने में काफी खूबसूरत है लेकिन एक बार गर्दन उठाकर अंदर देखने पर हकीकत समझ आती है. कपड़ों और कूड़े को अपने साथ धीरे-धीरे बहाकर ले जा रहे इस नाले का पानी बिलकुल काला है. यह नाला अक्षरधाम के पास यमुना नदी में मिलता है.
नाले के आसपास कुत्ते गंदगी में मुंह मारते नज़र आते हैं. कुछ पानी में नजरें टिकाए हुए हैं. एक कुत्ता एक सड़ी लाश को नोचकर खा रहा था. हम थोड़ा और पास गए तो पता चला कि यह किसी मरे हुए जानवर का शव है. हम इसके बाद आगे बढ़ जाते है. इस नाले में पानी के साथ आसपास का कूड़ा, मरे हुए जानवरों का शव, मांस की दुकानों से बचा अपशिष्ट सबकुछ बहता है. यह नाला सारे कचरे का डंपिंग ग्राउंड है, इंसानी लाश का भी.
नाले के अंदर और उसके किनारे जले पड़े ई-रिक्शा और मोटरसाईकिल 24 से 26 फरवरी को यहां फैली अराजकता और मारकाट की चुगली करते हैं. एक तस्वीर तो हमें अंदर तक हिला देती है. यह तस्वीर है एक तिपहिया गाड़ी की जिसका इस्तेमाल विकलांग लोग करते है. दंगे के दौरान नफरत में उबल रहे दंगाइयों ने किसी विकलांग की इस गाड़ी को भी नहीं बख्शा. इस गाड़ी का इस्तेमाल करने वाले के साथ क्या हुआ इसकी जानकारी हमें अभी तक नहीं मिली है. धीरे-धीरे नाले की सफाई जारी है और मलवे को किनारे रखा जा रहा है. यह नाला न जाने कितने परिवारों की खुशियां अपने साथ बहाकर ले गया है.
भागीरथी विहार के पास एक शव नाले में फंस गया था. जिसे स्थानीय लोगों ने देखा लेकिन किसी ने उसे निकालने की कोशिश नहीं की. फिर वो बहता हुआ आगे निकल गया. शव को देखने वाले अशोक कुमार बताते हैं, ‘‘25 तारीख की सुबह हमने देखा कि यहां एक शव फंसा हुआ था. उसकी पीठ ऊपर की तरफ थी और गर्दन पानी के नीचे था. उस दृश्य को याद करने के बाद मेरे मन में दहशत भर गई.’’
अब तक की जानकारी के मुताबिक सबसे ज्यादा लोगों की हत्या जौहरीपुर पुलिया के पास हुई थी. इसी के आस-पास से ज्यादातर लाशें भी मिली हैं. इस जगह पर करावल नगर, मुस्तफाबाद और लोनी के नाले आकर मिलते हैं. यह आगे गोकुलपुरी होते हुए अक्षरधाम के पास यमुना नदी में मिलता है. 24 और 25 फरवरी को दंगाइयों ने इस जगह को अपना अड्डा बनाया था. यह जगह दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सीमा है. गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में बताया था कि यूपी से 300 की संख्या में लोग दंगा फ़ैलाने के लिए आए थे. उसमें से ज्यादातर लोग इसी जगह पर थे. दो दिनों तक यहां पर लोगों को पहचान करके मारा गया था.
जौहरीपुर पुलिया के पास एक झुग्गी बस्ती है. यहां लगभग 125 झुग्गियां हैं लेकिन 25 फरवरी की रात उसमें से छह झुग्गियां जला दी गई. यह छह झिग्गियां मुसलमानों की थी. झुग्गी में रहने वाले हिन्दू समुदाय के लोगों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि आस पास के कॉलोनी के लोगों ने कहा था कि तुम सब हिन्दू हो. तुम लोगों को टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है.
जिस वक़्त इन झुग्गियों में आग लगाई गई न्यूज़लॉन्ड्री के रिपोर्टर आयुष वहां मौजूद थे. हिंसक भीड़ जय श्रीराम के नारे लगाते हुए आई और झुग्गियों को आग के हवाले कर दिया. इत्तेफाक से झुग्गी में रहने वाले लोग एहतियातन वहां से 24 फरवरी को ही भाग गए थे.
झुग्गी के बगल खेल रहे कुछ बच्चों से जब हमने 24 और 25 फरवरी के हालात पर बात की तो वे कहने लगे, ‘‘उस दिन यहां नाम पूछ-पूछकर मारा जा रहा था. हमने देखा कि एक आदमी डर के मारे अपनी मोटरसाईकिल समेत नाले में कूद गया और उसकी मौत हो गई. यहां से जो भी मुसलामन गुजर रहा था उसको मारा जा रहा था.’’
आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की भी दंगाइयों ने हत्याकर शव को नाले में फेंक दिया था. उनका शव चांद बाग़ नाले से 26 फरवरी को निकाला गया था. इसके अलावा 27 फरवरी को चार और लाशें नाले से निकाली गई जिनमें दो सगे भाई आमिर खान और हाशिम अली, अकील अहमद और मुशर्रफ की थी. इसके अलावा पांच लाशें एक मार्च और दो मार्च के दौरान बरामद हुई जिनके नाम आस मोहम्मद, भूरे अली हमज़ा, आफताब और एक लाश की अबी तक पहचान नहीं हो सकी है. ये तमाम लाशें बहकर नाले में आई थी इसके बावजूद पुलिस ने अभी तक अपनी तरफ से नाले की व्यापक छानबीन का कोई प्रयास नहीं किया है. आसपास के लोगों की माने तो नाले की ठीक से सफाई होना जरूरी है, क्योंकि इसमें से बड़ी संख्या में लाशें निकली हैं.
***
आस मोहम्मद: 14 दिन बाद पता चला उनकी हत्या हो गई है
28 वर्षीय आस मोहम्मद दयालपुर के शक्ति विहार के रहने वाले थे. शक्ति विहार मुस्तफाबाद का ही एक इलाका है लेकिन दंगों को दौरान यहां कोई बवाल नहीं हुआ. यहां कुछ हिन्दू आबादी भी रहती है. स्थानीय नागरिक बताते हैं कि दोनों तरफ के बड़े-बुजुर्ग दंगों के दौरान अपने अपने इलाके में रखवाली करते रहे ताकि कोई बवाल न हो.
आस मोहम्मद के छोटे भाई नाजिम बताते हैं, ‘‘मेरे तीन भाई और तीन बहनें थीं. अब हम सिर्फ चार रह गए हैं. एक बहन की पिछले दिनों बीमारी से मौत हो गई थी.भाई कभी मजदूरी करते थे तो कभी रिक्शा चलाकर अपने बच्चों का पेट भरते थे. हम एक ही घर में रहते हैं लेकिन उनका खाना अलग बनता था.’’
बातचीत के दौरान एक आठ-नौ साल का लड़का हमारे बीच चला आता है. नाजिम उसकी तरह इशारा करते हुए हुए कहते हैं कि ये उनका लड़का है. उनके दो बेटे और एक बेटी है.
नाजिम आगे कहते हैं, ‘‘25 फरवरी को सुबह-सुबह महौल शांत था तो वो काम के सिलसिले में निकल गए. वे फ़ोन भी नहीं रखते थे. 25 फरवरी को वे नहीं लौटे तो हमारी चिंता बढ़ गई. उस शाम इलाके का महौल एकदम बिगड़ गया था. हमने ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करने की कोशिश कि लेकिन हो नहीं पाया. पुलिस से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन यह भी नहीं हो पाया. हमें लगा कि भाई के साथ कुछ बुरा हो गया. 25 फरवरी के बाद दंगे बढ़ने की खबर आने लगी. जिस कारण हमारा घर से निकलना मुश्किल हो गया था. हर जगह दंगाई थे हम सब अपने कमरों में कैद थे. बुजुर्गों ने घर से निकलने पर रोक लगा दिया था. पुलिस की डर से हम थाने भी नहीं गए लेकिन अस्पतालों का चक्कर काटते रहे पर हमें भाई की कोई खबर नहीं मिली.’’
आस मोहम्मद के गायब होने के दो सप्ताह बाद जब दंगा बिलकुल शांत हो गया. दुकानें खुलने लगी. तब जाकर आस के परिजनों को हिम्मत आई और वे एक पड़ोस में ही रहने वाले एक पुलिस वाले के यहां पहुंचे. नाजिम कहते हैं, ‘‘पुलिस वालों ने हमसे गोकुलपुरी थाने में जाकर उन अधिकारियों से मिलने के लिए कहा जिनके पास नालों से बरामद शवों की जानकारी और तस्वीरें थीं. उनके कहे अनुसार मैं अपने परिजनों के साथ थाने पहुंच गया.’’
गोकुलपुरी थाने पहुंचने के बाद पुलिस अधिकारी ने हमें गुरु तेगबहादुर अस्पताल भेज दिया. वहां से हमें राम मनोहर लोहिया अस्पताल भेज दिया गया. उन्होंने कहा कि पिछले दिनों जो भो बॉडी मिली है वो वहीं रखी हुई हैं. वहां हमें शव दिखाया गया. नाजिम आगे बताते हैं, ‘‘नौ मार्च का दिन था. उन्होंने चेहरा नहीं दिखाया उससे पहले ही अपने भाई के कपड़े देखकर मैं पहचान गया. उन्होंने काले रंग की पैंट, जैकेट पहनी हुई थी. मेरे भाई थे कैसे नहीं पहचान पाता. उनके सर में गहरी चोट लगी थी.’’
आस मोहम्मद के परिजनों को दिल्ली सरकार द्वारा दिया जाना वाला मुआवजा अभी नहीं मिला है. हालांकि इसको लेकर फॉर्म भरे जा चुके है. आस मोहम्मद के सबसे छोटे भाई चांद कहते हैं, ‘‘सरकारी मदद तो मिल जाएगी लेकिन हमको भाई कहां से मिलेगा?’’
आस मोहम्मद की हत्या के मामले में पुलिस ने एक एफआईआर दर्ज किया है. यह मुकदमा आईपीसी की धारा 147/148/149/302/201 तहत दर्ज किया गया है.
एफआईआर के अनुसार एक मार्च को पुलिस को सूचना मिली कि नाले से बहता हुए एक शव आ रहा है. पुलिस को सूचना जब मिली तब शव गंगा विहार पब्लिक स्कूल के पास था. तेज बहाव के कारण शव बहता हुआ गोकुलपुरी मेट्रो स्टेशन के पास पहुंच गया. यहां उसे निकाला गया. एफआईआर के अनुसार जब पुलिस को लाश मिली तो उसपर कोई चोट का निशान नहीं था लेकिन एफआईआर में ही आगे लिखा गया है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद बताया गया कि दंगाइयों ने घातक हथियार से आस मोहम्मद के सर पर हमला कर उसकी हत्या कर दी और सबूत मिटाने के मकसद से शव को नाले में फेंक दिया.
आस मोहम्मद के परिवार को अभी तक पोस्टमार्टम की कॉपी नहीं दी गई है. उनके पास बस पुलिस द्वारा दर्ज कराया गया एफआईआर है.
हमज़ा: बेहतर जिंदगी की तलाश में आया था दिल्ली
पुराने मुस्ताफबाद के गली नम्बर 9 में जिस घर में किराये पर हमज़ा रहते थे उसके गेट पर ताला लटका हुआ था. प्लास्टर उजड़े इस मकान में अपनी बहन और जीजा के साथ रह रहा 25 वर्षीय हमज़ा बेहतर जिंदगी की तलाश में छह महीना पहले मेरठ से दिल्ली आया था लेकिन उसे क्या पता था कि यहां मौत उसका इंतजार कर रही है.नौ नम्बर को गली में दंगे के दो सप्ताह बाद भी ख़ामोशी छाई हुई है.
हमज़ा जिस घर में किरायेदार थे उसके बिलकुल सामने अपनी मेडिकल शॉप पर बैठे नूर आलम कहते हैं, ‘‘अभी तो उसको यहां आये तीन से चार महीने भी नहीं हुए थे. उसके जीजा और मामा लम्बे समय से यहां रह रहे हैं. जिस कारण सबसे उनकी जान पहचान थी. वो एक नेक दिल, सीधासादा बंदा था.’’
इतना कहने के बाद नूर आलम भावुक हो जाते हैं और कहते हैं, ‘‘यह सब आपको बताते हुए तकलीफ हो रही है. कल तक जिन लोगों के साथ बैठकर बातचीत करते थे आज उनके ही जनाजे में जाना पड़ रहा है. यह सब तकलीफदेह है.’’
एक कम्यूटर शॉप पर काम करने वाले हमज़ा के जीजा का बगल में ही ‘सूरत चाइनीज फ़ास्ट फ़ूड शॉप’ है जो अभी बंद पड़ा हुआ है. वो अक्सर इस दुकान पर आया करता था. दुकान के बगल में ही एक और मेडिकल शॉप है जिसके मालिक हैं सफनिया. वे कहते हैं, ‘‘लड़का सज्जन था. बुरे स्वाभाव का होता तो मैं यकीनन आपको सच बताता. वो दंगे में शामिल हो नहीं सकता. वो गायब हुआ तो एक सप्ताह तक लगा कि पुलिस उठाकर ले गई होगी लेकिन बाद में पता चला तो बहुत दुःख हुआ. पर क्या कर सकते हैं. अल्लाह के हाथ में सबकुछ है.’’
24 और 25 फरवरी को उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई दुकानों को दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया. 26 फरवरी को दंगा कुछ कम हुआ तो हमज़ा उस जगह को देखने गया जहां वो काम करता था. उसकी दुकान त्रिपाल फैक्ट्री के पास थी. कुछ देर वो नहीं लौटा तो उसके जीजा आरिफ अंसारी ने जानकारी के लिए उसे फोन किया लेकिन उसका फोन बंद आ रहा था. जिससे उनका संदेह बढ़ गया. वह उस रात वापस नहीं आया.
आरिफ अंसारी याद करते हैं, ‘‘आसपास के इलाकों में तबाही हो रही थी. घरों को आग के हवाले किया जा रहा था. उस दौरान पुलिस का रवैया भी परेशान करने वाला था. लगातार दो दिन मैं थाने गया कि एफआईआर दर्ज करा दूं लेकिन पुलिस ने एफआईआर तक दर्ज नहीं किया. उन्होंने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया. पुलिस वालों ने कहा आप जाओ हम अभी रिपोर्ट नहीं लिखेंगे. मैं खुद ही अलग-अलग अस्पतालों में जाकर पता किया लेकिन कहीं भी कोई जानकारी नहीं मिल पाई. दिन-ब-दिन नाउम्मीदी बढ़ती जा रही थी.’’
दंगे का असर कम होने के बाद पीड़ितों की मदद के लिए वकीलों का कई दल दंगा प्रभावित इलाकों में गया तब उनकी मदद से हमज़ा के गायब होने के तीन दिन बाद 29 फरवरी को आरिफ ने गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया. चार मार्च को जज ने पुलिस को इस मामले को देखने का आदेश दिया. आखिरकार पांच मार्च को राम मनोहर लोहिया अस्पताल में हमज़ा के शव की शिनाख्त आरिफ ने की. उसका शव फूल गया था. चेहरा मुड़ा हुआ था. यानी गायब होने के नौ दिन बाद उसकी लाश परिजनों को मिली.
जब न्यूज़लॉन्ड्री ने गोकुलपुरी थाने में पूछताछ की तो वहां हमें जानकारी दी गई कि हमज़ा की लाश भागीरथी विहार नाले से एक मार्च को मिली थी. जबकि अस्पताल ने आरिफ को बताया था कि 2 मार्च को नाले से शव निकला गया था.
हमज़ा के पिता गयासुद्दीन अंसारी दिहाड़ी मजदूर हैं. उनके चार बेटे और तीन बेटियां थी. हमज़ा की मौत से उन्हें भारी सदमा पहुंचा है, वो बात करने की स्थिति में नहीं हैं.
वहीं पर हमारी मुलाकात मोहम्मद रशीद से हुई. 26 वर्षीय रशीद के हाथ में प्लास्टर लगा हुआ है. उनके चेहरे पर भय की रेखाएं आसानी से दिख जाती है. वे कहते हैं, ‘‘दंगे की वजह से आसपास की दुकानों में दूध खत्म हो गया था. आसपास की महिलाएं अपनों बच्चों के दूध के लिए परेशान थी. मैंने एक लड़के को दूध पहुंचाने के लिए फोन किया तो उसने कहा कि बवाल बढ़ रहा है. मैं कुछ दूर तक लेकर आ रहा हूं रास्ते से तुम आकर ले लो. इसके बाद मैं और मेरा दोस्त अब्दुल वाजिद 25 फरवरी की सुबह दूध लाने के लिए मोटरसाईकिल से निकले थे. हम दूध लेकर आ रहे थे. रास्ते में 20-25 लोगों की भीड़ ने हमें घेर लिया. उन्होंने हमसे आईडी मांगी उसके बाद मोटरसाईकिल में आग लगा दी. वे हमेंमारने लगे. जैसे तैसे हम वहां से भागे. वो हमारे पीछे थे. मैं एक दुकान में घुस गया. वे लगातार मारते रहे. वो मेरे सिर को निशाना बनाकर मार रहे थे. मेरा हाथ टूट गया क्योंकि मैं सर बचाने के लिए हाथ से उनके वार को रोक रहा था. बहुत मुश्किल से हम अपनी जान बचाकर वहां से भागने में कामयाब हुए थे. उस दिन मैंने कम से कम 30 बार सौ नम्बर पर फोन किया लेकिन कोई भी पुलिस वाला नहीं आया.’’
एक घंटे के बाद राशिद को 112 नम्बर से फोन आया. दूसरी तरफ से कहा गया कि ‘‘आप टेंशन मत लो हम देख लेंगे.’’ राशिद कहते हैं, ‘‘अगले 72 घंटों तक इस इलाके में कोई भी पुलिस वाला नजर नहीं आया. यहां मृतकों और घायलों के लिए कोई एम्बुलेंस की सुविधा भी नहीं थी. जिनके लोग लापता थे वे डर के मारे घर से निकल तक नहीं निकल रहे थे. हिंसा के12 दिन बाद भी अपनी फैक्ट्री पर जाने में मुझे डर लग रहा है. शेरपुर चौक पर मेरी फैक्ट्री है. न जाने वो बची है या जला दी गई है. वहां कई दुकानों और फैक्ट्रियों में आग लगाई गई थी.’’
इलाके में हुए दंगे ने हिन्दू-मुस्लिमों के बीच एक दीवार खड़ी कर दी है. क्या इसका असर आप लोगों पर भी हुआ है? इस सवाल का जवाब देते हुए राशिद कहते हैं, ‘‘इसमें कोई दो राय नहीं कि दोनों समुदाय के बीच नफरत की दीवार खड़ी कर दी गई है. मैं जिनके साथ बिजनेस करता था उसमें से ज्यादातर हिन्दू हैं. और मुझे मारने की कोशिश करने वाले भी वहीं थे. इसका असर मुझपर भी होगा लेकिन रहना तो यहीं है. मिलकर रहने में ही सबकी भलाई है.’’
भूरे अली: बच्चों ने पहले मां को खोया और अब पिता
उत्तर पूर्वी दिल्ली में 23 फरवरी से शुरू हुई हिंसा ने कई घरों और परिवारों को बर्बाद कर दिया है. दंगों में अब तक 53 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है.
इस दंगे में 60 साल के हसन अली ने अपने 30 वर्षीय बेटे भूरे अली को खो दिया. एक चाय की दुकान चलाने वाले हसन अली की तकलीफ शायद ही कभी कम हो पाए.
भूरे अली का शव भागीरथी विहार के ई ब्लॉक के पास नाले से बरामद हुआ था. मजदूरी करके अपने परिवार का पालन-पोषण करने वाले भूरे अली का परिवार उत्तर प्रदेश के लोनी के रघुनाथ कॉलोनी में रहता है. यह जगह गोकुलपुरी थाने से दो किलोमीटर की दूरी पर है.रघुनाथ कॉलोनी में दंगे का कोई असर नहीं था.
हसन अली से हमारी मुलाकात उनकी चाय की दुकान में हुई. किराये के कमरे में चाय की दुकान चलाने वाले हसन अली कहते हैं, “भूरे 26 फरवरी को काम के लिए निकला था. लेकिन वापस नहीं लौटा. हमने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट 26 फरवरी को ही दर्ज कराई और आसपास के इलाके में तलाश शुरू कर दी. इस दौरान एक हेड कांस्टेबल ने हमें चार शवों के बारे में बताया और पहचान के लिए लोहिया अस्पताल बुलाया. अस्पताल में हमने 2 मार्च को उसके शव को पहचाना. उसके गायब होने के पांच दिन बाद. उसका चेहरा बिलकुल तबाह हो चुका था. हमने उसे एक अंगूठी और हाथ में उसके लिखे नाम से पहचाना.’’
जिस दिन हमारी मुलाकात हसन अली से हुई उस दिन भूरे अली का दसवां था. यानी उनकी मौत का दसवां दिन था.
भूरे अली के शव को पुलिस वालों ने उनके घर नहीं लाने दिया. उन्हें वहीं पास में ही सुपुर्दे खाक करने के लिए कहा गया. पुलिस वालों को डर था कि शव के लोनी आने से विवाद बढ़ सकता है. इसके बाद परिजनों ने मौजपुर में ही भूरे अली का अंतिम संस्कार किया. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए अपनी तकलीफ को छुपाते हुए हसन कहते हैं, ‘‘हम पर क्या गुजरी है हम आपको कैसे बताये. हमारे पर जो गुजर रही है वो बता नहीं सकते हैं.’’
अरविन्द केजरीवाल सरकार द्वारा हसन अली के परिवार को एक लाख रुपए की तत्काल आर्थिक मदद और नौ लाख रुपए का चेक दिया गया है. भूरे अली के पीछे उनका पूरा परिवार और दो बेटे रह गए है. हसन अली कहते हैं, ‘‘भूरे की बीबी की पिछले दिनों हत्या हो गई थी. उस हत्या के मामले में दो लोग अभी जेल में है. अब भूरे की भी हत्या हो गई. उसके बच्चे अनाथ हो गए हैं. हमारे ऊपर ही उनकी जिम्मेदारी है. सरकार ने कुछ आर्थिक मदद की है उसी से उसके बच्चों का पालन पोषण करेंगे.’’
हाशिम और आमिर: दो सगे भाई जो वापस नहीं लौट पाए
मुस्ताफबाद का गली नम्बर 17. पतली गली से होते हुए हम बाबू खान के घर तक पहुंचे. इस दंगे ने बाबू खान के परिवार को तहस-नहस कर दिया है. बाबू खान के दो बेटों हाशिम अली (30 वर्ष) और आमिर खान (19 वर्ष) को मारकर दंगाइयों ने नाले में फेंक दिया था.
जब हम बाबू खान के घर पहुंचे तो एक पर्दे के पीछे एक महिला नमाज़ पढ़ रही थी. बच्चों ने अचानक से उस पर्दे को हटा दिया. पर्दे को ठीक करते हुए हाशिम की मां कहती हैं, ‘‘हमारा तो सबकुछ लुट गया. मेरे तो दो बेटे छीन लिया इनलोगों ने.’’ इतना कहने के बाद वो दहाड़े मार कर रोने लगीं.
अंदर जो महिला नमाज़ पढ़ रही थीं वो हाशिम की पत्नी शबीना है जो अभी गर्भवती है. हाशिम की मां बताती हैं, ‘‘उसकी दो बेटियां हैं. अभी ये (पर्दे की तरफ इशारा करते हुए) पेट से है. जो बच्चा होगा उसका बाप हम कहां से लाकर देंगे? उसकी बेटी अक्सर पूछती है कि अब्बू कहां हैं. उसको जवाब देने के लिए हमारे पास कुछ भी नहीं है. हमलोग टूट गए हैं.’’
इसी दौरान कहीं से बाबू खान आ जाते हैं. दुबले पतले बाबू खान बोलते हुए अक्सर चुप हो जा रहे थे. वे कहते हैं, ‘‘मैंने किसी का क्या बिगाड़ा था कि मेरे बेटों को मार दिया. वे दोनों अपने नाना को देखने गए थे. उन्होंने लौटने की बात कही तो हमने मना कर दिया लेकिन वे नहीं माने और लौट आए. दोनों अपनी पल्सर गाड़ी से लौट रहे थे कि दंगाइयों ने उन्हें घेर कर मार दिया. उनके सर पर कई बार किए गए. बुरी तरह से उनपर टूट पड़े थे दंगाई.’’
मृतकों की छोटी बहन नगमा हमें अपने फोन से अपने भाई के सर पर लगे निशान को दिखाती है. उनके कान और उसके ऊपरी हिस्से में कई जगहों पर धारधार हथियार से हमला किया गया था. जब वो अपने फोन से तस्वीर दिखा रही थी तभी मृतक हाशिम की 4 साल की नगमा की गोद में जा बैठती है. नगमा हमारी तरफ देखते हुए कहती हैं, ‘‘ये रोज ऐसे ही करती है. भाई इसे बहुत मानते थे. कही से आते थे तो इसके लिए कुछ ना कुछ लेकर आते थे. अब ये रोजाना हमसे पूछती है. अब्बू कहां है? हम क्या जवाब दें इसे.’’
गोकुलपुरी टायर मार्केट से मुस्तफाबाद का रास्ता भागीरथी विहार-जौहरीपुर पुलिया से होकर जाता है. 27 फरवरी की सुबह दोनों भाइयों का शव यही सेमिला था.
हाशिम अली और आमिर खान के मामले में पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया है. जो आस मोहम्मद के एफआईआर से बिलकुल मिलता जुलता है. एफआईआर के अनुसार धारा 147/148/302/201/427 लगाई गई है. एफआईआर में लिखा है, अज्ञात दंगाइयों ने एक मत होकर घातक हथियार से हत्याकर सबूत मिटाने के लिए शव को नाले में फेंक दिया था. यह शव 27 फरवरी को जौहरी की पुलिया के करीब भागीरथी विहार में बरामद की गई थी. एफआईआर में दर्ज है कि शव मोटरसाईकिल के बगल में ही था.
उस रोज हाशिम और आमिर अपनी पल्सर बाइक से गाजियाबाद से अपने नाना को देखकर लौट रहे थे. दूसरे एफआईआर में जिक्र है कि जली हुई बाइक का नम्बर प्लेटर बगल में पड़ा मिला. वहीं दोनों भाइयों का शव 50 मीटर की दूरी पर था.
भागरथी विहार में हमारी मुलाकात बुजुर्ग छेदी लाल से हुई जो यहां सालों से रहते आ रहे हैं. वे बताते हैं, ‘’27 फरवरी की सुबह सात बजे मैंने एक शव को देखा जो अपनी मोटरसाईकिल से लटका हुआ था. उसके चेहरा बुरी तरह क्षतिग्रस्त था. यहां लाश दो घंटे तक पड़ी रही तब पुलिस उठाकर ले गई. जो बवाल मैंने दो दिनों में देखा वैसा बवाल आज तक नहीं देखा. खतरनाक महौल था.’’
बाबू खान बताते हैं कि 25 फरवरी की सुबह वे लोग आरहे थे. हमने मना किया लेकिन नहीं माने. जौहरीपुर पुलिया तक हमारी उनसे बात हुई लेकिन उसके बाद बात नहीं हो पाई. उसके बाद उनका फोन लगना भी बंद हो गया. हमलोग परेशान होकर घूमते रहे. शिकायत कराने पुलिस थाने गए तो पुलिस अधिकारियों ने जो जीटीबी अस्पताल में हमें अज्ञात शव दिखाए जिसमें से दो मेरे ही बच्चों के थे.’’ यह कहने के बाद बाबू खान रोने लगते हैं.
केजरीवाल सरकार की तरफ से इस परिवार को अभी आर्थिक मदद नहीं मिल पायी है. इसको लेकर जब हम बाबू खान से सवाल करते हैं तो वे कुछ बोले उससे पहले उनकी पत्नी बोल पड़ती है, ‘‘गरीब आदमी का संतान ही उसकी संपत्ति होता है. हमारा तो संतान चला गया.’’
***
पुलिस क्या करेगी अब..
गोकुलपुरी थाने के एक आईओ जो नाले में से मिले तीन मामलों की जांच कर रहे थे, उन्होंने बताया कि नाले से मिली लाशों का मामला अब क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया है. अब वे ही इस मामले की जांच कर रहे हैं.
गोकुलपुरी थाने के एसएचओ प्रमोद जोशी से जब हम इस मामले में बात करने पहुंचे तो वो किसी भी तरह की जानकारी देने से मना कर देते हैं. वो हमें सीलमपुर डीसीपी कार्यालय जाने के लिए कहते हैं. हम डीसीपी कार्यालय पहुंचे तो वहां भी हमें कोई जानकारी देने से मना कर दिया गया.
जैसा कि पहले हमने बताया है, दिल्ली पुलिस के दो जवान 25 फरवरी की रात जौहरीपुर-भागीरथी विहार पुलिया के पास मौजूद थे. उस रात ही आस मोहम्मद की हत्या की गई थी और अगले 24 घंटे के भीतर बाकी सात लोग मारे गए थे. इसको लेकर न्यूज़लॉन्ड्रीने गोकुलपुरी पुलिस स्टेशन के एसएचओ प्रमोद जोशी से जानकारी मांगी. जोशी ने कहा, ‘‘उस समय मैं छुट्टी पर था. मुझे ठीक से डिटेल्स याद नहीं. हालांकि हमारे सुरक्षाकर्मी हर जगह मौजूद थे. वह बॉर्डर इलाका है तो वहां भी ज़रूर होंगे.’’
सवाल उठता है कि दिल्ली पुलिस को तो जरूर पता होगा कि उस वक्त ड्यूटी पर तैनात वो दो पुलिसकर्मी कौन थे जो उस रात असहाय खड़े होकर दंगाइयों का नंगा नाच 100 की री से देख रहे थे. पुलिस वालों को ज़रूर भीड़ में शामिल लोगों की पहचान हो सकती है. जैसा की हाशिम और आमिर के पिता बाबू खान कहते हैं, ‘‘पुलिस वालों को इलाके के अच्छे और बुरे सबके बारे में पता होता है. कौन किस मुहल्ले में रहता है उन्हें सब पता होता है.’’
24 और 25 फरवरी के कई चश्मदीद दावा करते हैं कि भीड़ में कई हमलावर आसपास की कॉलोनियों के ही थे.
12 मार्च को हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार हत्याकर शव को को भागीरथी विहार नाले में फेंकने के मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है. ये लोग हैं- पंकज शर्मा, लोकेश कुमार सोलंकी, सुमित और अंकित. ये गिरफ्तारी जौहरीपुर पुलिया पर हुई हत्याओं में से केवल चार सेजुड़ी है. बाकी हत्याओं पर अभी तक कोई ख़बर नहीं है. इसकी तुलना अगर अंकित शर्मा हत्याकांड से करें, जिसमें आप पार्षद ताहिर हुसैन को हिरासत में लिया गया है और साथ ही पांच और लोगों को गिरफ्तार किया गया है. यह गिरफ्तारी सीसीटीवी फुटेज, चश्मदीदों और स्थानीय मुखबिरों द्वारा दी गई सूचना के आधार पर की गई है.
दंगे के दौरान पुलिस पर कई तरह के आरोप लगे. आरोपों की पुष्टि करता हुआ कई वीडियो भी सामने आया. हालांकि लोकसभा में गृहमंत्री ने दिल्ली पुलिस की तारीफ करते हुए कहा था कि पुलिस ने दंगे को दिल्ली के बाकी हिस्सों में फैलने नहीं दिया. लेकिन पुलिस की कार्यप्रणाली पर तमाम लोग सवाल उठा रहे हैं. कुछ सवाल जायज भी है. इस बीच पुलिस अधिकारी कोई जानकारी देने से साफ मुकर जाते हैं.
अभी तक जो शव नाले से बरामद हुए हैं वो पुलिस द्वारा नहीं तलाशे गए हैं, खुद ही बहकर आते हुए नज़र आये है. हालांकि कुछ जगहों पर नाले की सफाई होती दिखी, लेकिन स्थानीय निवासी कहते हैं कि नाले की ठीक से सफाई हो तो और भी कई शव इसमें हो सकते हैं.
उतर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे के दौरान यह नाला कई घरों की खुशियां समेट ले गया. शिव विहार के रहने वाले गुलशन सिंह कहते हैं, ‘‘पुलिस अब तक सैकड़ों मामले दर्ज कर हज़ारों लोगों को हिरासत में ले चुकी है. अभी भी लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है. अगर यही तेजी पुलिस ने 24 और 25 फरवरी को दिखाई होती तो इतना नुकसान नहीं होता. लोगों की जान नहीं जाती.’’
जौहरीपुर पुलिया जहां सबसे ज्यादा फसाद हुआ, वहां 25 फरवरी की रात दिल्ली पुलिस के महज दो जवान खड़े थे. वे चुपचाप एक कोने में खड़े होकर तमाशा देख रहे थे. इस तमाशे ने कई घरों में लम्बें समय तक कायम रहने वाला अंधेरा दिया है.
Also Read
-
Adani met YS Jagan in 2021, promised bribe of $200 million, says SEC
-
Pixel 9 Pro XL Review: If it ain’t broke, why fix it?
-
What’s Your Ism? Kalpana Sharma on feminism, Dharavi, Himmat magazine
-
‘India should be more interested than US’: Editorials on Adani charges
-
Voter suppression in UP? Police flash pistol, locals allege Muslims barred from voting