Newslaundry Hindi
बीबीसी बनाम प्रसार भारती: प्रचार भारती कहने से गहराया विवाद
12 मार्च को एक असाधारण घटनाक्रम के तहत प्रसार भारती के 100 से ज्यादा कर्मचारियों ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर प्रसार भारती के पूर्व सीईओ जवाहर सरकार और साथ में अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्था बीबीसी की कड़ी निंदा की.
समूचे घटनाक्रम की शुरुआत हुई प्रसार भारती के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) शशिशेखर वेम्पति द्वारा बीबीसी के एक कार्यक्रम का आमंत्रण ठुकराने के साथ. इसी महीने 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर बीबीसी ने नई दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था. जिसमें केंद्रीय खेल राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) किरण रिजिजू, कांग्रेस नेता शशि थरूर सहित देश की तमाम जानी-मानी हस्तियों ने भाग लिया. भारतीय महिला खिलाड़ियों के लिए आयोजित इस सम्मान समारोह के आमंत्रण को ठुकराते हुए शशि शेखर ने बीबीसी पर दिल्ली दंगे पर एकपक्षीय, तथ्यहीन औरभारत विरोधी रिपोर्टिंग का आरोप लगाया. उन्होंने बीबीसी पर यह आरोप भी लगाया कि उसने देश की संप्रभुता का अनादर किया है.
वेम्पति ने बीबीसी के डायरेक्टर जनरल टोनी हॉल को इस बाबत एक पत्र भी लिखा. पत्र में शशि शेखर ने लिखा, “दिल्ली में हिंसा की घटनाओं के बारे में बीबीसी की कवरेज को देखते हुए मैं सम्मानपूर्वक यह न्यौता ठुकरा रहा हूं.” पत्र में उन्होंने उम्मीद जताई कि बीबीसी आगे से देश की संप्रभुता का ध्यान रखेगा.
पत्र में उन्होंने हवाला दिया कि बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में उस दंगाई भीड़ का जिक्र नहीं किया जिसने दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल और आईबी कर्मचारी अंकित शर्मा की निर्मम हत्या कर दी थी. डीसीपी पर हमले का भी कोई जिक्र नहीं किया गया है.
गौरतलब है कि फरवरी के अंतिम सप्ताह में राजधानी दिल्ली में हुए साम्प्रदायिक दंगों में पुलिस के जवान सहित 53 लोगों की मौत हो गई थी जबकि सैंकड़ों लोग घायल हो गए थे. इसके अलावा भारी मात्रा में सम्पत्ति का नुकसान हुआ और बहुत से लोगों को अपना घर-बार छोड़कर अन्य जगहों पर शरण लेनी पड़ी.
दिल्ली दंगा बना अखाड़ा
बीबीसी और प्रसार भारती के बीच कड़वाहट की शुरुआत दंगों के दौरान रिपोर्टिंग से ही हो चुकी थी. भारतीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इन दंगों में दिल्ली पुलिस की भूमिका पर कई सवाल उठाए थे और पक्षपात करते हुएएक दंगाई समूह का साथ देने का आरोप लगाया था. इससे जुड़े कई वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे.
बीबीसी की योगिता लिमये द्वारा की गई की एक विडियो रिपोर्ट में दिखाया गया था कि कैसे पुलिस दंगाईयों के गुट के साथ मिलकर दूसरे गुट के लोगों पर पत्थर बरसा रही थी. इस रिपोर्ट को बाद में ब्रिटिश संसद में लेबर पार्टी के सांसद तनमनजीत सिंह धेसी ने उठाया. इससे भारत सरकार और पुलिस की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खासा किरकिरी हुई. पुलिस का दंगाइयों के साथ मिलकर काम करना एक पेशेवर पुलिस संस्था पर गहरे सवाल खड़ा करता है.
प्रसार भारती के सीईओ द्वारा लिखे गए पत्र और बीबीसी का आमंत्रण ठुकराने के बाद पैदा हुई परिस्थितियों में हमने बीबीसी इंडिया की संपादक रूपा झा से बातचीत करने की कोशिश की. उन्होंने ये कहकर बात करने से इनकार कर दिया कि वो इसके लिए अधिकृत नहीं हैं.
इसी बीच बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के डायरेक्टर जेमी एंगस ने न्यूज़लॉन्ड्री को एक विस्तृत इंटरव्यू दिया. इस इंटरव्यू में उन्होंने प्रसार भारती के साथ पैदा हुए विवाद पर विस्तार से बातचीत की और उनके आरोपों का जोरदार खंडन किया. उन्होंने कहा, “हम अपनी रिपोर्टिंग के साथ डटकर खड़े हैं. ये याद रखना जरूरी है कि बीबीसी किसी एजेंडे के तहत काम नहीं करता बल्कि स्वतंत्र रूप से काम करता है. और हमारे भारतीय दर्शक भी इसे बखूबी समझते हैं. यही कारण है कि वे हमारे पास आते हैं. हमारे एक सप्ताह के कुल दर्शकों की संख्या 50 मिलियन है. पिछले कुछ वर्षों में हमारे भारतीय दर्शकों में काफी इजाफा हुआ है, क्योंकि हम निष्पक्ष रिपोर्टिंग करते हैं.”
एंगस ने आगे कहा, “दिल्ली हिंसा में हमने यही किया है, और हम अपनी रिपोर्टिंग के साथ डटकर खड़े हैं. हमारा काम यहां भड़काऊ भाषा का प्रयोग करना नहीं है. हमारे ग्राउंड रिपोर्टरों ने जो पाया उसी के हिसाब से रिपोर्टें दी हैं, और दिल्ली पुलिस ने भी हमें अपना बयान दिया है.”
एंगस बताते हैं, “हमने उन लोगों से भी सीधे बात की है जिनके घर दंगों में प्रभावित हुए हैं. इस घटना पर हमने अलग-अलग हर तरीके के व्यूज़ दिखाए हैं. और हमारे दर्शक भी हमसे यही आशा करते हैं.”
प्रसार भारती और बीबीसी के बीच यह विवाद चल ही रहा था, इस बीच इसमें प्रसार भारती के पूर्व सीईओ जवाहर सरकार कूद पड़े. वर्तमान सीईओ द्वारा बीबीसी के आमन्त्रण को ठुकराने के लिए जवाहर सरकार ने प्रसार भारती को प्रचार भारती की संज्ञा दे डाली.
सरकार की इस टिप्पणी की प्रसार भारती के सौ से ज्यादा कर्मचारियों और पत्रकारों ने निंदा करते हुए एक प्रेस विज्ञप्ति जारी किया है. डीडी न्यूज के एंकर अशोक श्रीवास्तव के नेतृत्व में 100 से ज्यादा पत्रकारों व प्रसार भारती के कर्मचारियों ने सीईओ शशिशेखर वेम्पति के क़दम की सराहना करते हुए एक हस्ताक्षर अभियान चलाया और पूर्व सीईओ जवाहर सरकार की भर्त्सना की.
इसमें कहा गया है- “अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने एकतरफा, भड़काऊ और भारत विरोधी रिपोर्टिंग की और बहुत हद तक फेक न्यूज़ फैलाई. इनमें बीबीसी भी शामिल था.”
इससे पहले साल 2018 में भी द वायर में जवाहर सरकार ने एक लेख लिखकर प्रसार भारती के अध्यक्ष ए सूर्यप्रकाश की आलोचना की थी कि उनके संबंध विवेकानंद फाउंडेशन से हैं जो कि भाजपा-संघ के सबसे उत्तम नस्ल के वफादारों में से हैं. अपने लेख में सरकार ने कहा था कि वैधानिक निकाय के तौर पर गठित प्रसार भारती में सूचना प्रसारण मंत्रालय का बढ़ता हस्तक्षेप इस बात का सबूत है कि मंत्रालय चीजों को बेहतर बनाने की जगह हर चीज पर नियंत्रण स्थापित करना चाहता है.
हमने जवाहर सरकार से इस पर बातचीत की. उन्होंने कहा, “इस बारे में कोई शक नहीं है कि प्रसार भारती वाकई सरकार के प्रचार का काम कर रहा है. वह एक स्वायत्त संस्था है लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी कहां निभा रहा है? आप खुद देख सकते हैं कि देश में कितना कुछ चल रहा है, चाहे सीएए हो या अन्य कोई मुद्दा, आप इनका स्टैंड खुद देख सकते हैं.”
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए सरकार ने कहा, “ये बात मैंने गुस्से में नहीं बल्कि बेहद निराशा में कही है. आखिर इस संस्था को हो क्या गया है? सरकार के साथ रहना बुरा नहीं है, हर दौर में यह होता है, लेकिन वर्तमान में ये लोग सरकार के ज्यादा ही करीब आ गए हैं. आखिर सरकार के इतने करीब आने की जरूरत क्या है? हमारे समय में भी सरकार का दबाव रहता था, लेकिन कोई इतना नहीं झुकता था.”
“जब मैं सीईओ था, तब मेरी आईटी मंत्री से डेढ़ साल तक बात नहीं हुई थी. क्योकि मैं उनके दबाव में नहीं आया था. इन दिनों लोग मुझसे फोन कर हैरानी से पूछते हैं कि आखिर आपके इस संस्थान को हो क्या गया है?” सरकार ने कहा.
दरअसल प्रसार भारती, प्रसार भारती अधिनियम के तहत स्थापित एक वैधानिक स्वायत्त निकाय है. जिसका गठन 23 नवंबर, 1997 को प्रसारण संबंधी मुद्दों पर सरकारी प्रसारण संस्थाओं को स्वायत्तता देने के मुद्दे पर संसद में काफी बहस के बाद किया गया था.
प्रसार भारती इससे पहले बीते 28 फरवरी को भी अपने एक ट्वीट के कारण विवादों में आ चुका है. उस दिन प्रसार भारती ने एक साथ कई ट्वीट करते हुए अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल को निशाना बनाया था. प्रसार भारती ने मांग की थी कि वॉल स्ट्रीट जर्नल के दक्षिण एशिया डिप्टी ब्यूरो चीफ एरिक बेलमैन को तत्काल प्रभाव से देश से बाहर निकाल दिया जाय. प्रसार भारती का दावा था कि अखबार ने दिल्ली दंगे में आईबी कर्मचारी अंकित शर्मा की मौत को लेकर गलत ख़बर छापी है. हालांकि विदेश मंत्रालय ने इस ख़बर का खंडन किया. इसके बाद प्रसार भारती को अपना ट्वीट डिलीट करके सफाई देनी पड़ी थी.
इन सब घटनाओं पर प्रसार भारती का पक्ष जानने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर वेम्पति से बातचीत करने की कोशिश की. उन्होंने ये कहकर फोन काट दिया कि-“यह बात करने का सही समय नहीं है.” इसके बाद उनसे बातचीत के प्रयास असफल रहे.
Also Read
-
The swagger’s gone: What the last two decades taught me about India’s fading growth dream
-
Independence Day is a reminder to ask the questions EC isn’t answering
-
August 15: The day we perform freedom and pack it away
-
Inside Dharali’s disaster zone: The full story of destruction, ‘100 missing’, and official apathy
-
Supreme Court’s stray dog ruling: Extremely grim, against rules, barely rational