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एनएल चर्चा 107: ज्योतिरादित्य सिंधिया, मध्य प्रदेश, यस बैंक और दिल्ली दंगा

न्यूज़लॉन्ड्री चर्चा के 107वें एपिसोड में हमने ज्योतिरादित्य सिंधिया के 18 साल बाद कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने और इससे कमलनाथ सरकार पर छाए संकट के बादल, आरबीआई द्वारा यस बैंक पर कसी गई लगाम, दिल्ली दंगों पर संसद के दोनों सदनों में हुई चर्चा, दिल्ली कें दंगे, कोरोनो वायरस के बढ़ते प्रभाव, इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ यूपी सरकार की सुप्रीम कोर्ट में याचिका आदि पर चर्चा की.

इस सप्ताह चर्चा में सत्याग्रह डॉटकॉम के संपादक संजय दुबे, मध्यप्रदेश की राजनीति पर बात करने के लिए इंदौर से वरिष्ठ पत्रकार जयश्री पिंगले और न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाथ एस शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

चर्चा की शुरुआत ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने से हुई. अतुल कहते हैं- “लंबे समय तक कांग्रेस में रहने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा का साथ पकड़ लिया. उनके परिवार का एक इतिहास भी है. विजयाराजे सिंधिया, उनकी दादी जो जनसंघ से जुड़ी थी, फिर भाजपा के संस्थापको में भी रहीं, उनके परिवार के अन्य सदस्य (बुआ) पहले से ही भाजपा में शामिल हैं. उनके परिवार की जड़ें पहले से ही भाजपा में हैं.”

अतुल ने संजय दुबे से कांग्रेस के हालात पर सवाल पूछा, "गांधी परिवार के साथ अजीब विडंबना है वह बार-बार अनायास मुसीबतें खड़ी करती रहती है. पूर्व में जगन मोहन को लें या हिमांत बिस्व शर्मा को लें, सबकी यही शिकायत रही कि परिवार के पास उनसे मिलने का वक्त तक नहीं है. इस मामले को भी संभाला जा सकता था लेकिन परिवार ने इसको तवज्जो नही दिया और एक बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई. परिवार इस बुरे दौर में भी सच्चाई को क्यों नही समझ पा रहा है?”

इस प्रश्न के जवाब में संजय दुबे कहते हैं, “यह जो हुआ है, अगर वह ना हुआ होता तो मुझे आश्चर्य होता. क्योंकि जिस तरह से डिफाल्ट मोड में कांग्रेस पार्टी चल रही है, वह एक दो जगह तो चल सकती है लेकिन हर जगह ऐसे ही नहीं चल सकती. कांग्रेस पार्टी में कोई इंचार्ज नहीं हैं और यह कैसा दुर्भाग्य है की सोनिया गांधी को एक बार पद छोड़ने के बाद वापस अध्यक्ष बनना पड़ा. राहुल गांधी लोकसभा चुनावों के बाद पहली बार कुछ लायक बने थे कि वह कांग्रेस पार्टी को संभाल सकते थे, लेकिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया.”

यहां पर अतुल ने चर्चा में जयश्री को शामिल किया और पूछा, “मध्यप्रदेश में इसे किस तरह से देखा जा रहा है-गांधी परिवार की असफलता या सिंधिया के अवसरवाद के रुप में?”

इसके जवाब में जयश्री कहती हैं,“यह पूरा मामला इस तरह से देखा जा रहा है कि कैसे गांधी परिवार की गलतियों के कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया को लंबे समय से तवज्जो नही दिया गया. 14 महीने की सरकार में उन्हें कुछ हासिल नहीं हो पाया और सिंधिया को हाशिए पर रख दिया गया. उन्हें पद देने के नाम पर पश्चिमी यूपी का इचार्ज बना दिया गया जहां उनकी ना तो कोई ज़मीन है और ना ही उनका कोई काम.”

इस बीच संजय ने जयश्री से पूछा-“ऐसा कहा जा रहा था कि उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया जा रहा था, लेकिन उन्होंने इसके लिए मना कर दिया, तो उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा?”

इस पर जयश्री कहती हैं, "वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, उनको यह ऑफर चुनाव के समय किया गया था क्योंकि उनका लोगों पर प्रभाव है, उनकी साफ सुथरी इमेज पर लोगों को विश्वास है, लेकिन चुनावों के बाद जब उन्हें उपमुख्यमंत्री पद दिया जा रहा था तो उन्होंने उसके लिए मना कर दिया क्योंकि उन्हें मुख्यमंत्री बनना था. उसके बाद पार्टी ने उन्हें महासचिव बना दिया गया. लेकिन वह उम्मीद कर रहे थे कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का पद दिया जाएगा पर ऐसा नही हुआ."

चर्चा के दौरान ही मेघनाथ ने जयश्री से सवाल किया- “हमने देखा और सुना है कि सिंधिया सांसद रहते हुए गुना में कोई खास विकास कार्य नही कर पाए. न्यूज़लॉन्ड्री के प्रतीक गोयल ने इसके ऊपर एक बड़ी ग्राउंड रिपोर्ट भी किया है जिसमें यह निकलकर आया कि कमलनाथ का प्रभाव पूरे प्रदेश में है, जबकि सिंधिया का प्रभाव उनके इलाके में ही है, तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि पार्टी हाईकमान को लगा हो कि सिंधिया को केन्द्र में रखा जाए और कमलनाथ को प्रदेश में.”

मेघनाथ के सवाल का उत्तर देते हुए जयश्री कहती हैं, “ऐसा तो नहीं है क्योंकि विधानसभा चुनावों के समय सभी लोगों को यही लग रहा था और खुद सिंधिया भी कहीं ना कहीं यही समझ रहे थे कि वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन कमलनाथ का जो पालिटिकल मैनेजमेंट है और हाईकमान के साथ रिश्ता बहुत अच्छा है. इसके अलावा चुनाव के लिए दूसरी चीजों की भी जरूरत होती है जिसमें कमलनाथ काफी आगे हैं,इसलिए वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.

बाकी विषयों पर भी विस्तार से चर्चा हुई. पूरी चर्चा सुनने के लिए पॉडकास्ट सुने साथ ही न्यूजलॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और गर्व से कहें- 'मेरे खर्च पर आज़ाद हैं खबरें.'

पत्रकारों की राय, क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.

संजय दुबे

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