Newslaundry Hindi

अंकित शर्मा मर्डर से जुड़ी वो बातें जिन्हें मीडिया नहीं बता रहा

उत्तर पूर्व दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों में अबतक 53 लोगों की जान जा चुकी है. न्यूज़ रिपोर्ट्स की बात करें तो मीडिया का सूचना-चक्र इंटेलिजेंस ब्यूरो के कर्मचारी 26 वर्षीय अंकित शर्मा की मौत के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा. हत्या के बाद अंकित का शव 26 फ़रवरी को दिल्ली के चांदबाग़ इलाके के क़रीब स्थित नाले से बरामद हुआ. इसके तुरंत बाद ही फ़ौरी तौर पर ख़बरों की घुड़दौड़ में शामिल होते हुए ‘रिपब्लिक टीवी’, ‘टाइम्स नाउ’, ‘ज़ी न्यूज़’, ‘आज तक’, ‘सीएनएन न्यूज़ 18’, ‘न्यूज़ 18 इंडिया’, ‘न्यूज़ नेशन’ और ‘इंडिया टीवी’ जैसे न्यूज़ चैनलों ने ‘एक्सक्लूसिव’ करार देते हुए ख़बर चलाई.

हालांकि तमाम न्यूज़ चैनलों की रिपोर्ट्स पर गौर करने पर उनमें कई अनियमितताएं साफ नज़र आती हैं, मसलन हत्या की साज़िश, अंकित के साथ हुई वारदात से जुड़े बुनियादी तथ्य, अंकित को कहां पकड़ा गया, वह कौन था जो वारदात के वक्त अंकित के साथ था, अंकित की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आदि. ज़्यादातर रिपोर्ट्स में अंकित की हत्या की परिस्थितियों के तार ठीक से नहीं जोड़ा गया. यह देखते हुए फिलहाल इस स्टोरी में बदलाव हो रहे हैं. यहां हम उनमें से कुछ की पड़ताल कर रहे हैं.

अंकित कब घर से निकला

अंकित के पिता ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को जो बयान दिया है उसके मुताबिक़ अंकित रोजमर्रा के इस्तेमाल की कुछ चीज़ें ख़रीदने घर से बाहर निकला था. वहीं ‘न्यूज़ 18’ की रिपोर्ट में अंकित के पिता के हवाले से दावा किया गया है कि अंकित अपनी ड्यूटी से वापस घर लौट रहा था और रास्ते में तक़रीबन 15-20 लोग ताहिर के घर से बाहर आए और अंकित को कुछ और लोगों के साथ अंदर घसीट ले गये.

ताहिर का मतलब यहां आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन है जिनके ऊपर सांप्रदायिक हिंसा का षडयंत्र रचने का आरोप है. ताहिर हुसैन पर आगज़नी व हत्या की धाराओं के तहत अब मामला दर्ज़ कर लिया गया है लेकिन वे ख़ुद पर लगाए गये तमाम आरोपों को सिरे से खारिज़ करते हैं.

अंकित के एक पड़ोसी ने भी तक़रीबन यही बात न्यूज़लॉन्ड्री को बताई. ‘दप्रिंट’ की रिपोर्ट में अंकित की मां के बयान का हवाला देते हुए बताया गया है कि अंकित अपने भाई अंकुर को खोजने बाहर गया था क्योंकि उन्हें इस बात की चिंता हो रही थी कि अंकुर कहीं दंगे में फंस न गया हो. जबकि अंकुर ने बाद में ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ को बताया कि अंकित बाहर यह देखने गये थे कि आसपास क्या हो रहा है.

दक्षिणपंथी मीडिया संस्था ‘स्वराज्य’ ने एक ऐसे ‘चश्मदीद’ के मिलने का दावा किया है जो हिंसा के वक़्त अंकित के साथ मौजूद था. चश्मदीद ने कथित रूप से दावा किया है कि भारी पत्थरबाज़ी के बीच मुस्लिम बाहुल्य इलाक़े से गुज़रते हुए अंकित एकदम से कहीं ग़ायब हो गया.

‘प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘द हिन्दू’ और ‘स्क्रॉल’ की रिपोर्ट्स में इस बात को लेकर तरकीबन सहमति है कि अंकित दंगे की शाम आसपास के माहौल का जायज़ा लेने के लिए बाहर निकला था.

'टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ की 5 मार्च को प्रकाशित रिपोर्ट में कई सूत्रों का हवाला देते हुए कहा गया है कि ‘घटना के कुछ चश्मदीदों ने पुलिस को बताया कि अंकित को चलते हुए पत्थर से ठोकर लगी और वे गिरगए. फिर दूसरी तरफ़से 3-4 लोग आए और अंकित को घसीटते हुए ले गए.’ रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि अंकित शर्मा की हत्या सुनियोजित ढंग से कीगई है.

रिपोर्ट के अनुसार , ‘अंकित, उनका दोस्त कालू व कुछ और लोग पुलिया के एक तरफ़ थे और ठीक उसी वक़्त सामने की तरफ़ से पत्थरबाज़ी जारी थी. इस दौरान अंकित सबसे आगे थे.’

अंकित के साथ कौन था?

अब बात आती है उन दावों की कि अंकित घर से निकलने के वक्त उसके साथ कौन था. ‘द हिन्दू’ और ‘स्क्रॉल’ की रिपोर्ट में इसका कोई ज़िक्र नहीं मिलता कि घर से निकलते वक्त अंकित के साथ कोई था.

‘द प्रिंट’ की रिपोर्ट में भी उस तथाकथित साथी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती. बल्कि रिपोर्ट में अंकित की बहन के हवाले से यह कहा गया है, “हमारे परिवार को यह बताया गया कि ताहिर और उसके कुछ साथी मेरे भाई व दो और लोगों को घसीटते हुए उसके दफ़्तर में ले गए और क़त्ल कर दिया.”

‘स्वराज्य’ की रिपोर्ट में भी तक़रीबन यही दावा देखने को मिलता है. रिपोर्ट में अज्ञात गवाह का हवाला दिया गया है, जो कहता है,“उस दिन घरों की छत से भारी पत्थरबाज़ी के दौरान अंकित, ‘मैं’ व दो और लोग एक मुस्लिम इलाक़े से गुज़र रहे थे…’

‘हिंदुस्तान टाइम्स’ की ख़बर में यह ज़िक्र आता है कि प्रदर्शनकारियों ने अंकित के उन दोस्तों को भी पकड़ लिया जो उसे बचाने गए. यानी ये कथित दोस्त उस वक़्त अंकित के साथ नहीं थे जब उन पर हमला हुआ बल्कि उन्हें बाद में पकड़ा गया.

‘न्यूज़ 18’ ने अंकित के पिता के बयान का हवाला दिया जिस में वे कहते हैं, “जो लोग उनके बेटे को बचाने गए उनपर गोली चलाई गई और पेट्रोल बम व एसिड से हमला किया गया.’ क्या बचाने गए लोग भी पकड़ लिए गए, रिपोर्ट में इस बात का कहीं कोई ज़िक्र नहीं मिलता.

अंकित के पिता ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि, ‘मुझे एक पड़ोसी ने बताया कि उसने अंकित को एक दोस्त के साथ देखा था. हम उसके घर गए और अंकित के बारे में पूछताछ की. ’‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ की 5 मार्च की रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि घटना की शाम अंकित अपने दोस्त ‘कालू’ व कुछ और लोगों के साथ था.

अंकित की हत्या

अंकित की मौत के कारणों की पड़ताल करने के क्रम में ज़्यादातर रिपोर्ट्स में यही बात सामने आती है कि अंकित को ताहिर हुसैन के घर में घसीट कर ले जाया गया और हत्या कर दी गई. एफ़आईआर दर्ज़ करते हुए अंकित के पिता ने हत्या के संदर्भ में यही बताया. ‘दप्रिंट’ की रिपोर्ट में इस संदर्भ में कहा गया है कि अंकित की मौत के संबंध में उनके पिता के तमाम दावे आस-पड़ोस के लोगों के बयानों पर आधारित हैं.

अब यहां ‘न्यूज़18’ एक दिलचस्प बात बताता है, “स्थानीय लोगों का दावा है कि शायद अंकित की मौत पत्थरबाज़ी से हुई हो.” रिपोर्ट में न तो ‘स्थानीय लोगों’ का कोई ब्यौरा है या पड़ताल नहीं है. अंकित की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट मीडिया में लीक होते ही भ्रम अनियमितता तेड़ हो गई.

‘ज़ी न्यूज़’ के संपादक सुधीर चौधरी ने यह पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ऑन एयर पढ़ा और दावा किया कि अंकित के शरीर पर चाकुओं से वार के अनगिनत निशान हैं. ‘रिपब्लिक टीवी’ ने ‘सूत्रों’ के हवाले से ख़बर चलाई कि अंकित को 400 से भी अधिक बार चाकू घोंपा गया. ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट में यह संख्या तनिक कम होकर लगभग 250 हो गई, वहीं ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ की रिपोर्ट में अंकित शर्मा के शरीर पर चाकू घोंपने से बने गहरे घाव समेत ज़ख्म के 200 निशान मिलने का ज़िक्र किया गया है.

5 मार्च को ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने यह दावा किया कि अंकित के शरीर पर कम से 54 गहरे घाव हैं जो चाकू लगने से बने हैं.

वहीं अंकित की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट मिलने के बाद ‘आईएएनएस’ की रिपोर्ट में कहा गया कि अंकित के शरीर पर तेज़ धार वाले हथियार से गहरे घाव और खरोंचे हैं. साथ ही जोड़ा कि उन पर चाकू से कई मर्तबा वार किया गया. हालांकि इस रिपोर्ट में अंकित के शरीर पर चाकू से वार की संख्या का कोई उल्लेख नहीं है.

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने अंकित के पोस्टमॉर्टम को केंद्र में रखकर कोई ख़बर तो प्रकाशित नहीं की, लेकिन इस अंग्रेज़ी दैनिक ने जीटीबी अस्पताल के डॉक्टरों से बात की जिन्होंने बताया कि ‘अंकित को कई बार चाकू से गोदा गया’. यहां सवाल उठता है कि 400 का आंकड़ा कहां से आया?

अंकित के भाई और ‘द वाल स्ट्रीट जर्नल’ का मसला

दिल्ली दंगे में अंकित की मौत के बाद एक विवाद तब खड़ा हो गया जब न्यूयॉर्क स्थित अख़बार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने अंकित के भाई अंकुर के हवाले से लिखा, “हाथों में पत्थर, रॉड, चाकू और यहां तक कि तलवार लिए हुए उपद्रवी भीड़ आई थी. भीड़ ऊंची आवाज़ में ‘जय श्रीराम का’ का नारा लगा रही थी...”

न्यूज़पेपर की तरफ़ से फ़ोन पर अंकुर का इंटरव्यू लिया गया था. अंकुर ने ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ को बताया, ‘आसपास से जो कोई भी अंकित की मदद के लिए आगे आया, वे उस पर ईंट-पत्थर फेंकने लगे...बाद में अंकित का शव पास के ही नाले से बरामद हुआ.”

हालाँकि बाद में अंकुर इंटरव्यू में कही गई बात से मुकर गया. अंकुर के परिवार ने अख़बार के ख़िलाफ़ ‘धार्मिक छवि को नुकसान पहुंचाने और सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने’ का आरोप लगाते हुए केस दर्ज़ करवाया.

इसके तुरंत बाद मामले में सरकारी दख़ल देखने को मिला. ‘प्रसार भारती’ ने इस वाकये के बाद ट्वीट किया कि अंकुर ने ‘प्रसार भारती न्यूज़ सर्विस’ से कहा है कि उन्होंने ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ को ऐसा कोई स्टेटमेंट नहीं दिया है. यह उनके भाई व परिवार को बदनाम करने का हथकंडा है.

यहां यह बताते चलना जरूरी है कि प्रसार भारती और ख़ासतौर पर ‘पीबीएनएस’ सरकारी तंत्र का हिस्सा है. हाल ही में न्यूज़लॉन्ड्री की एक पड़ताल में यह बात सामने आई थी जब इसने जनवरी में जवाहर लाल नेहरू युनिवर्सिटी में हुई हिंसा के बाद गलत जानकारी फैलाने का काम किया था.

‘रिपब्लिक टीवी’ की रिपोर्ट के अनुसार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने मामले के विवादास्पद हो जाने के बाद अपना बचाव करते हुए अंकुर के स्टेटमेंट की रिकॉर्डिंग के होने का दावा किया है. ‘न्यूज़लॉन्ड्री’ मामले के विवादास्पद हो जाने के बाद अख़बार के इस स्टैंड की पुष्टि नहीं करता.

हमने अपनी तरफ़ से ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ को कुछ सवाल भेजे. जवाब में अख़बार के प्रवक्ता ने कहा, “हम अपनी रिपोर्ट के तथ्यपूर्ण होने को लेकर आश्वस्त हैं. हम हिंदुस्तान में हो रही हर उथल-पुथल को कवर करने के लिए तटस्थ और निष्पक्ष नज़रिए के साथ समर्पित हैं.”

हत्या की परिस्थिति ?

‘स्क्रॉल’ को छोड़कर अन्य किसी भी मीडिया समूहों ने अंकित के हत्या की परिस्थिति की पड़ताल नहीं की. मसलन, खजूरी ख़ास में उस वक़्त आख़िर कैसा माहौल था जब अंकित को पकड़ लिया गया और दो समूह टकराव के वक्त कहां खड़े थे.ये कुछ ऐसे ज़रूरी बिंदु हैं जिन्हें लगभग हर रिपोर्ट में नज़र अंदाज़ कर दिया गया.

अंकित का घर खजूरी ख़ास के ई ब्लॉक स्थित गली नम्बर 6 में है. जिस नाले से अंकित का शव बरामद हुआ, वह उनकी गली से तक़रीबन 200 मीटर दूर है. ताहिर हुसैन का घर अंकित के घर और नाले के बीच में पड़ता है.

23, 24, और 25 फ़रवरी को हुई हिंसा की मुख्य जगह खजूरी ख़ास और मूंगा नगर को अलग करती करावल नगर की सड़क है. दोनों ही इलाकों के रहने वालों ने ‘न्यूज़लॉन्ड्री’ को बताया कि 23 फ़रवरी की शाम लगभग 10 बजे के क़रीब पत्थरबाज़ी शुरू हुई और माहौल में देर रात तक नरमी आ गई थी.

इस हिंसा की शुरुआत किसने की?इस सवाल का जवाब वैसे ही बदलता जाता है जैसे उसका धर्म बदलता है. हिंदू-मुसलमान दोनों की उंगलियां एक-दूसरे की ओर तनी हुई मिलती हैं.

24 फ़रवरी की दोपहर लगभग 2 बजे के क़रीब हिंसा दोबारा शुरू हो गई और तक़रीबन रात 7-8 बजे तक जारी रही. इसी दिन दुकानों और घरों में लूटपाट और आगज़नी की गई. उपद्रवी भीड़ ने 24 फ़रवरी को करावल नगर रोड पर अपने पांव जमा लिए. खजूरी ख़ास की गली नंबर 4 के मुहाने पर ताहिर हुसैन के घर के क़रीब स्थित जामुन का पेड़ दो गुटों के उपद्रव के दौरान सरहद की तरह हो गया. अगले दो दिनों तक यह सीमा रेखा गुटों के दबदबे के आधार पर आगे-पीछे खिसकती रही.

जामुन के पेड़ के दाहिने तरफ़ चांदबाग़ की ओर मुस्लिम उपद्रवियों की भीड़ खड़ी थी वहीं हिंदू उपद्रवियों की भीड़ पेंड़ के बाईं ओर करावल नगर की तरफ़ खड़ी थी. अंकित का घर जिस गली में पड़ता है वह इलाका हिन्दू बाहुल्य है. उनके पड़ोसियों ने ‘न्यूज़लॉन्ड्री’ से बातचीत में इस बात की पुष्टि की कि अंकित के घर की ओर जाने वाली गली के बाहर से हिंदू उपद्रवियों की भीड़ मुस्लिमों पर पत्थर फेंक रही थी.

मूंगानगर में ताहिर हुसैन के घर के सामने रहने वाले राम कुमार कहते हैं, “मुस्लिम समुदाय के लोग सड़क पर जामुन के पेंड़ तक थे. पेड़ के दूसरी तरफ हिन्दू लोग थे.” आस पास के दुकानदारों के साथ-साथ खजूरी ख़ास व मूंगानगर के रहने वाले तमाम लोग इस बात की तसदीक करते हैं.

अंकित की गली के ठीक बाहर ‘पाल कम्युनिकेशन्स’ स्थित है. दुकान के मालिक कहते हैं, “उन्हें (मुस्लिमों को) डर था कि उनकी जान जा सकती है, हम में डर घर कर गया था कि वे हमें जान से मार सकते हैं. इसलिए यह सड़क जंग के मैदान में बदल गई. हिंदू उपद्रवी इस दुकान के बाहर से पत्थरबाज़ी कर रहे थे तो मुस्लिम लोग जामुन के पेड़ के उस पार से.”

अब यहाँ गौर करने वाली बात है कि अगर अंकित के भाई अंकुर 25 फ़रवरी को अपने घर या गली के बाहर मौजूद होंगे तो बहुत संभव है कि उन्होंने हाथ में रॉड और पत्थर लेकर भीड़ को ‘जय श्री राम’ का नारा लगाते सुना हो. ‘न्यूज़लॉन्ड्री’ को ऐसे वीडियो सबूत हासिल हुए हैं जिनमें इसे देखा जा सकता है. हालांकि इस का यह मतलब नहीं कि इसी भीड़ ने अंकित की हत्या की होगी.

पत्थरबाज़ी और आगज़नी की इस घटना को न केवल गलियों बल्कि घरों की छत से भी अंजाम दिया गया. मूंगानगर स्थित गली नम्बर 5 में मुस्लिम उपद्रवी गली के एक तरफ़ स्थित मकानों की छत पर चढ़ गये तो हिंदू दूसरी तरफ के मकानों की छत पर चढ़ गए. उसके बाद उन्होंने एक दूसरे पर पत्थर और पेट्रोल बम फेंके.

गली में स्थित शिव मंदिर के पुजारी गोकुल चंद्र शर्मा मंदिर की छत पर ही रहते हैं. उन्होंने ‘न्यूज़लॉन्ड्री’ से कहा कि छतों से हुए इस टकराव में उनके कपड़े और फर्नीचर में आग लग गई थी.

उन्होंने कहा, “उपद्रवी भीड़ ने मंदिर पर हमला नहीं किया लेकिन छत पर पड़े मेरे कुछ सामान जल गए. मैंने उस दिन अपने परिवार को घर में ही बंद कर दिया और बाद में उन्हें यहां से दूर भेज दिया.”

मुस्लिम पक्ष की तरफ़ से ताहिर हुसैन के घर के बाहर से शूट किया गया वीडियो 29 फ़रवरी को फेसबुक पर पोस्ट किया गया, इसमें यह साफ़ नज़र आता है कि दोनों गुटों के लोग न केवल छतों से बल्कि गली में भी एक-दूसरे पर हमलावर थे

ऐसा नहीं है कि उस दिन सिर्फ़ ताहिर हुसैन की छत पर ही उपद्रवी भीड़ मौजूद रही हो. स्थानीय लोगों का कहना है कि निश्चित तौर उनकी छत पर बाकियों की तुलना में अधिक तादाद में लोग थे. यह मौजूदगी छत तक ही सीमित नहीं थी बल्कि हिंसा की भाषा बोलते लोग उनके घर में भी दाख़िल हो गए थे.

पत्रकार राहुल पंडिता द्वारा 26 फ़रवरी को ट्विटर पर पोस्ट किये गए वीडियो में ताहिर हुसैन की घर के छत पर और नीचे मुस्लिम उपद्रवियों की भीड़ पत्थर और पेट्रोल बम फेंकती नज़र आती है. वीडियो में दाहिने तरफ़ का मंज़र नहीं नज़र आता जहां हिन्दू उपद्रवियों की भीड़ भी उसी वक़्त लगभग 100 मीटर की दूरी पर उसी तरह की हिंसा व आगज़नी कर रही थी. पंडिता के वीडियो में किसी और की छत से पत्थरबाज़ी का कोई दृश्य नजर नहीं आता.

भाजपा का आईटी सेल ट्विटर पर यह वीडियो देखते ही अपने मिशन पर लग गया. उसकी तरफ़ से इस टकराव व दो तरफ़ा हिंसा को धर्म विशेष से जोड़ते हुए ताहिर हुसैन के घर से मुस्लिम समुदाय द्वारा की गई हिंसा के तौर पर सत्यापित करने के लिए ऑनलाइन कैंपेन शुरू कर दिया.

पंडिता ने ट्विटर पर कहा कि 26 फ़रवरी को पूरे दिन वो घटना-स्थल पर रहे, लेकिन उन्होंने ‘ओपन मैगज़ीन’ की अपनी रिपोर्ट में इस पहलू का ज़िक्र नहीं किया.

नुकसान

मुस्लिमों की उपद्रवी भीड़ ने हिंदू समाज की एक बेकरी, एक ई-रिक्शा के रिपेयरिंग की दुकान, एक चाय की दुकान, एक मेडिकल स्टोर और एक घर में आगज़नी की.

खजूरी ख़ास के गली नंबर 4 स्थित जिस मेडिकल स्टोर में आग लगाई गई उस स्टोर के मालिक 45 वर्षीय संजय गोयल हैं. यह स्टोर ताहिर हुसैन के घर के ठीक सामने है. वे ‘न्यूज़लॉन्ड्री’ से बातचीत में बताते हैं, “मुझे कम से कम 15 लाख का नुकसान हुआ है. इस बर्बादी को 24 फ़रवरी को शाम 4 बजे के आसपास मुस्लिमों की उपद्रवी भीड़ द्वारा अंजाम दिया गया.”

अब यहां रुककर गौर करने वाली बात है कि चांद बाग़ में जहां मुस्लिमों का एक ग्रुप आक्रोश में था, वहां हिंदुओं की संपत्ति को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया है. चांदबाग़ स्थित ‘जैन गारमेंट्स’ के मालिक संजीव जैन बताते हैं, “हमारे मुस्लिम भाइयों ने हमारी दुकानें बचा लीं. हम डर गये थे कि अब इन में आग लगा दीजाएगी, लेकिन सालों से साथ रह रहे हमारे पड़ोसियों ने दख़ल देकर हमें नुकसान से बचा लिया.”

दूसरी तरफ़ हालात बिल्कुल अलग थे. जामुन के पेड़ के उस पार मुस्लिम समुदाय के तक़रीबन हर घर, दुकान को हिंदू उपद्रवियों ने खाक कर दिया. मूंगानगर में ताहिर हुसैन के घर के ठीक सामने स्थित मैट्रेस की दुकान उनमें से एक है जिसे न केवल लूटा गया बल्कि आग के हवाले कर दिया गया.

पास में ही किराना स्टोर चलाने वाले राजेश गुप्ता सामने की बिल्डिंग की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, “यह बिल्डिंग जिसकी है वह आदमी तो हिन्दू है लेकिन दुकान एक मुसलमान द्वारा चलाई जाती है जिसका नाम इरशाद है. वह बहुत भला आदमी है. काश उसकी दुकान बच गई होती. 24 फ़रवरी को लगभग 4 बजे के आसपास करावल नगर से आए गुर्जर समुदाय और बजरंग दल के लोगों द्वारा यहां काफ़ी तोड़-फोड़ की गई, मुस्लिमों की दुकानों को निशाना बनाया गया.”

‘न्यूज़लॉन्ड्री’ को मिले एक वीडियो से यह बात साफ़ दिखती है कि दर्ज़नों लोग इरशाद की दुकान में घुसे और मैट्रेस उठाकर ले गये.

जिन जगहों पर नुकसान सबसे ज़्यादा हुआ है, उन्हीं में से एक मूंगा नगर स्थित कूलर की दुकान है जिसके मालिक 48 वर्षीय पप्पू कूलर वाला हैं.

पप्पू बातचीत में बताते हैं, “70-80 उपद्रवी हिंदुओं की भीड़ ने मेरी दुकान बर्बाद कर दी. उन्होंने सब कुछ तबाह कर दिया. मुझे कम से कम 25 लाख का नुकसान हुआ है. ये सड़क पर बुरी तरह क्षतिग्रस्त पड़े हुए, जले हुए कूलर मेरी ही दुकान के हैं. गर्मी के दिन आने वाले हैं और मैं तो ये सारे कूलर बेचने वाला था.”

मुस्लिमों के मालिकाना हक़ वाली दुकानों मसलन फर्नीचर की दुकान, इलेक्ट्रॉनिक स्टोर व मेडिकल स्टोर को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया गया. इस रिपोर्ट के सिलसिले में घटना स्थल के मुआयने के दौरान हमने सड़क के किनारे की तक़रीबन आधा दर्ज़न मुस्लिम प्रॉपर्टी की यही हालत देखी.

***

टेलीविज़न चैनलों पर अंकित शर्मा की खौफ़नाक मौत के संदर्भ में लगातार चलती रही बात-बहस के बावजूद उनकी हत्या से जुड़े तमाम पहलू अनसुलझे व उलझाऊ ही रह गए. ग्राउंड रिपोर्ट्स में बुनियादी तथ्यों में एकरूपता के अभाव से भी इस बात की ही पुष्टि होती है.

बेहद महत्वपूर्ण बात है कि जहां अपराध को अंजाम दिया गया, ज़्यादातर पत्रकारों द्वारा उस परिस्थिति का ठीक से आकलन नहीं किया. ख़ासतौर से यह जानने की कोशिश बिल्कुल नहीं की गई कि कैसे समुदायों का समूह एक-दूसरे के ख़ून का प्यासा हो गया था. यह भी कि हिन्दू उपद्रवियों की भीड़ अंकित की गली के मुहाने पर खड़ी थी, मुसलमानों की दुकानें लूट रही थी, उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रही थी.

इसका यह कतई मतलब नहीं कि अंकित की हत्या हिंदू भीड़ ने ही की होगी, बल्कि इन तमाम पहलुओं को सामने लाने में हुई लापरवाही की वजह से दर्शकों तक आधी-अधूरी, इकहरीव तोड़-मरोड़कर पेश की गई सूचनाएं पहुंच रही हैं. इसके बाद जब भाजपा के आईटी सेल के लोगों ने अंकित की मौत के बाद आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन को दंगों के ‘मास्टरमाइंड’ के तौर पर पेश करने के मकसद से ऑनलाइन कैंपेन चलाया तो जैसे आग में घी पड़ गया और अफ़वाहों को पंख लग गए.

भारत की मुख्यधारा की मीडिया ने सीमित स्तर की पत्रकारिता का नमूना पेश करते हुए जो माहौल पैदा किया है, उसकी वजह से सरकार की तरफ से न केवल दखल दिया गया बल्कि मन-मुताबिक़ कहानी गढ़ने व परोसने का मौका दिया. फिर चाहे वह ‘प्रसार भारती’ का ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ पर पिल पड़ना हो या अंकित की हत्या के सिलसिले में दिल्ली पुलिस की जांच-पड़ताल हो. एक भारत सरकार का गैर भरोसेमंद प्रसारणकर्ता है तो दूसरा ऐसा सरकारी संस्थान है जिसके माथे पर दंगाइयों के साथ मिली भगत और उदासीनता के दाग हैं.

Also Read: दिल्ली दंगा: क्या सच में शिव मंदिर पर कब्जा और हमला हुआ?

Also Read: दिल्ली दंगा: रिलीफ़ कैंप में जिंदगी, एक शख़्स की मौत