Newslaundry Hindi
'दस हजार से अधिक नवजात मर गए, लेकिन अस्पताल प्रशासन के लिए यह सामान्य बात है'
गोरखपुर, मुजफ्फपुर और बाद में कोटा में सैकड़ों बच्चों की मौतें हुई, जो लगभग हर अखबार व चैनल की सुर्खियां बनी और कुछ दिन बाद सब कुछ सामान्य हो गया. नहीं बदला तो अस्पताल प्रशासन का रवैया.
यह रवैया न तो उक्त तीनों अस्पताल में बदला है और ना ही देश के अन्य अस्पतालों में. हमनें जनवरी व फरवरी माह के दौरान देश के 10 राज्यों के 19 सरकारी अस्पतालों की पड़ताल की तो पाया कि 2019 में इन अस्पतालों में 10 हजार से अधिक नवजात मर गए. लेकिन अस्पताल प्रशासन का उत्तर था कि यह सब सामान्य बात है. यानी कि नवजात की मौत अस्पताल प्रशासनों के लिए सामान्य बात से अधिक तब तक नहीं है, जब तक हंगामा न हो.
इन 19 अस्पतालों में 2019 में 70253 नवजातों ने या तो जन्म लिया या भर्ती हुए. इनमें से 9886 नवजात की मौत हो गई. मतलब, 14 फीसदी नवजात जीवन शुरू होने से पहले ही अस्पताल में समाप्त हो गया. 28 दिन तक के शिशु को नवजात कहा जाता है.
हमने जिन 10 राज्यों के अस्पतालों का विश्लेषण किया, उनमें राजस्थान के पांच अस्पताल, गुजरात के दो, मध्यप्रदेश के दो अस्पताल, बिहार के दो, झारखंड के एक, उत्तराखंड का एक, पंजाब का एक, उत्तर प्रदेश के तीन, पश्चिम बंगाल का एक और हरियाणा का एक अस्पताल शामिल है.
2019, फरवरी में राज्यसभा के एक जवाब में सरकार की ओर से नवजात शिशुओं की मृत्युदर के आंकड़े दिए गए थे. इन आंकड़ों के मुताबिक देश में नवजात (नियो-नटल) शिशु मृत्यु दर प्रति हजार में 24 है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक 2017 में 2,2104,418 जीवित बच्चों के जन्म पंजीकृत किए गए. इनमें से करीब 529,976 नवजात शिशुओं की मौत हुई. यह अब तक का उपलब्ध सरकारी आंकड़ा है.
इस आंकड़े का विश्लेषण और ग्राउंड चेक यही बताता है कि जच्चा-बच्चा को संभालने वाला सरकारी स्वास्थ्य तंत्र अब भी जर्जर हैं. खासतौर से किसी भी राज्य के जिले में मुख्य अस्पताल समेत सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र सुरक्षित तरीके से बच्चे को जन्म देने और 28 दिनों के भीतर उसे बचाने की बड़ी चुनौती का सामना करने में नाकाम हैं.
इंडियन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिसियन्स के सचिव रमेश कुमार ने हमें बताया कि नवजात शिशुओं की अधिकांश मृत्यु अस्पतालों में ही होती है. महज 0.1 फीसदी नवजात शिशुओं की मौत ही अस्पताल से बाहर होती है.
वे कहते हैं, "अधिकांश परिस्थितियों में अभिभावक नवजात को लेकर अस्पताल तक पहुंचने में सक्षम होते हैं. स्थितियां इससे भिन्न हो सकती हैं. इसलिए नवजात शिशु के अस्पतालों में मृत्यु का आंकड़ा ही स्पष्ट गणना के ज्यादा करीब पहुंचाता है."
बच्चों पर काम करने वाली गैर सरकारी संस्था सेव द चिल्ड्रेन ने बताया कि हॉस्पिटल में होने वाली बच्चों की मृत्युदर को निश्चित करना बहुत जटिल है. इसमें कई कारक शामिल होते हैं जैसे अस्पतालों के स्तर , मरीज का प्रकार, रोग की गंभीरता, निजी और सरकारी अस्पताल आदि. अस्पतालों के आंकड़े एचएमआईएस से जुटाए जाते हैं. लेकिन डाटा की गुणवत्ता जांच एक बड़ी चिंता का विषय है. निजी अस्पतालों के आंकड़े जुटाने का कोई तंत्र नहीं है. बहरहाल 0.1 फीसदी शिशुओं की मृत्यु को अस्पताल से बाहर करने के बाद देशभर के अस्पतालों में नवजात शिशुओं की मृत्यु का आंकड़ा बेहद चिंताजनक है.
(इस रिपोर्ट में इस्तेमाल हुई तस्वीर सांकेतिक है)
Also Read
-
Hafta X South Central: Highs & lows of media in 2025, influencers in news, Arnab’s ‘turnaround’
-
TV Newsance 2025 rewind | BTS bloopers, favourite snippets and Roenka awards prep
-
Is India’s environment minister lying about the new definition of the Aravallis?
-
How we broke the voter roll story before it became a national conversation
-
BJP got Rs 6000 cr donations in a year: Who gave and why?