Newslaundry Hindi
शासक को ललकारने के लिये कवितायें गढ़ती हैं विद्रोह के सुर
असम के नागरिकता आंदोलन में एक नया और महत्वपूर्ण अध्याय तब जुड़ा जब चार साल पहले वहां आंदोलनकारियों ने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़नशिप (एनआरसी) के विरोध में कवितायें लिखना शुरू किया. बुज़ुर्ग शिक्षक और लेखक हाफिज़ अहमद की 2016 में लिखी कविता ‘राइट डाउन, आइ एम ए मियां’ बहुत लोकप्रिय हुई. कविताओं की यह श्रृंखला ‘मियां कविता’के नाम से जानी जाती है और अहमद की रचना इस कड़ी में पहली कविता है.
कला के साथ कवितायें और गीत समाज में विद्रोह और विरोध का तरीका रहे हैं. कवि अशोक वाजपेयी कहते हैं कि विरोध में कई बार बहुत ख़राब कवितायें भी लिखी जाती हैं लेकिन नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) को लाये जाने के बाद तमाम शांतिपूर्ण विरोधों में कविता ने एक अहम रोल अदा किया है.
जनकवि और पेशे से किसान बल्ली सिंह चीमा का नया कविता संग्रह ‘उजालों को ख़बर कर दो’ इत्तफाक़ से कुछ ऐसी कवितायें समेटे है जो इस दौर में सत्ता और न्यायपालिका दोनों को झकझोरती है.
हुकूमत की नज़र से देखती है जब अदालत भी,
तो इकतरफा हुये क़त्लों को दंगा मान लेती है.
बल्ली के शब्द दिल्ली में भड़की हिंसा को ही नहीं सत्ता के संरक्षण में कराये जाने वाले तमाम नरसंहारों पर एक सवाल है. भारत में आज़ादी के बाद से 1984, 2002 और अब 2020 के अलावा कई ‘दंगे’ हुए जिसमें पुलिस और सत्ता की ढिलाई और मिलीभगत जगज़ाहिर है. इन्हें दंगे लिखकर निष्पक्ष दिखने का जो ढकोसला मीडिया करता है एक कवि की ईमानदारी उसे उस न्यूट्रेलिटी से दूर रखती है. इसीलिये बल्ली बिना डरे लिख पाते हैं-
दंगे ने इक दरिंदे को नेता बना दिया
सुअर ने फिर से शहर में दंगा करा दिया.
किसी भी दंगे और नरसंहार की शुरुआत एक घृणा फैलाने वाले भाषण से होती है. ऐसे भड़काऊ नारों, भाषणों और बयानों को आज सत्ता का संरक्षण हासिल है और यही नेता दंगों को भड़काने के बाद अब शांति मार्च भी निकाल रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव के सलाहकार अडामा डींग याद दिलाते हैं कि किसी भी जीनोसाइड से पहले एक हेट-स्पीच दी जाती है. हिटलर की जर्मनी को याद करें तो गैस चेंबरों में यहूदियों का नरसंहार होने से पहले सड़कों पर भाषणों की शक्ल में घृणा का सैलाब बहाया गया. यह भी याद रखना होगा कि इस घृणा को फैलाने में संचार माध्यमों क्या रोल था.
1994 में रवांडा में 100 दिन तक चले नरसंहार में 10 लाख से अधिक तुत्सी मारे गये. जर्मनी में अंगूरा मैग्ज़ीन का जो रोल यहूदियों के खिलाफ हिंसा भड़काने में था वही भूमिका रवांडा में आरटीएलएम नाम के रेडियो स्टेशन ने हुतू आदिवासियों को भड़का कर तुत्सी समुदाय को मिटाने में अदा की. हमारे टीवी चैनल इन दिनों घृणा फैलाने की फैक्ट्री बने हैं और सोशल मीडिया के साथ उनका गठजोड़ और भी ख़तरनाक हो गया है.
ऐसे में कवितायें एक उम्मीद जगाती हैं. जनकवि वीरेन डंगवाल अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में’ कई महत्वपूर्ण सामयिक सवाल खड़े करता है.
‘बाबा, मुठभेड़ में क्यों मार देते हैं पुलिस वाले?’
कक्षा सात की बच्ची भाषा के मुंह से यह सवाल डंगवाल की कविता में गूंजता है. इन दिनों न जाने कितने बच्चे ऐसे दर्जनों सवाल लिये घूम रहे हैं. घरों में होने वाले विमर्श कई बार सवालों के साथ उनके बौद्धिक पटल पर क़ब्ज़ा कर रहे विचारों को भी उजागर कर देते हैं जब मासूम बच्चे बर्थडे पार्टियों में कह उठते हैं कि मुसलमानों को पाकिस्तान जाना होगा.
उत्तराखंड के एक सम्पन्न परिवार में जन्मे डंगवाल पूरी ज़िंदगी एक जनकवि होने के साथ सहृदय इंसान बने रहे और अपने आर्थिक रूप से कमज़ोर मित्रों की दिलखोल कर मदद की लेकिन कभी ढिंढोरा नहीं पीटा. जनआंदोलनों से जुड़े कवि देशप्रेम और राष्ट्रवाद के अंतर को समझते हैं इसलिये डंगवाल अपनी कविता में सैनिक रामसिंह से पूछ पाते हैं –
तुम किसकी चौकसी करते हो रामसिंह?
तुम बन्दूक के घोड़े पर रखी किसकी उंगली हो?
किसका उठा हुआ हाथ?
यह कविता याद दिलाती है कि कैसे सेना का राजनीतिकरण करने के साथ ‘देशप्रेम’ की दुकान खोले बैठी सत्ता एक सैनिक को मोहरा बना देती है. इसीलिये पुलवामा में मारे गये जवानों की मौत की जांच में सरकार भले ही उदासीन दिखी हो लेकिन उसने दिल्ली के बीचों-बीच एक भव्य राष्ट्रीय समर स्मारक (नेशनल वॉर मेमोरियल) ज़रूर खड़ा कर लिया है.
पहले वे तुम्हें कायदे से बन्दूक पकड़ना सिखाते हैं
फिर एक पुतले के सामने खड़ा करते हैं
यह पुतला है रामसिंह, बदमाश पुतला
इसे गोली मार दो, इसे संगीन भोंक दो
उसके बाद वे तुम्हें आदमी के सामने खड़ा करते हैं
ये पुतले हैं राम सिंह, बदमाश पुतले
इन्हें गोली मार दो, इन्हें संगीन भोंक दो…
संकीर्ण विचारों के बीच पनपती हिन्दू राष्ट्रवादी पहचान और इसके असहिष्णु होने के ख़तरे को उजागर करती है कवि और लेखक प्रियदर्शन की कवितायें. अपने नये कविता संग्रह ‘यह जो काया की माया है’ में वह उद्घोष करते हैं-
मेरा हिन्दू होना अगर मेरी मनुष्यता के आसमान को
कुछ व्यापक बना सके तो मेरा इससे कोई झगड़ा नहीं,
लेकिन अगर वह मुझे छोटे-छोटे बाड़ों में बांधना चाहे
और दुर्विनीत या घमंडी बनाये तो इस हिन्दुत्व और सारे देवताओं को
मैं दूर से प्रणाम करता हूं.
आज जगते घरों और तड़पते इंसानों के बीच जब दंगाई ‘जय श्री राम’ के नारे लगाते हैं,भारत माता की जय चिल्लाते हैं तो वह एक सहिष्णु हिन्दू का नहीं बल्कि राम के शत्रु का ही चीत्कार है. ऐसे में अल्लामा इक़बाल की पंक्तियां याद आती हैं जिन्होंने कभी लिखा –
है राम के वजूद पर हिन्दोस्तां को नाज़,
अहले वतन समझते हैं जिसको इमाम-ए-हिन्द.
लेकिन दिल्ली के दंगों में हमने बलवाइयों को मुस्लिम घरों और दुकानों के साथ पूजास्थलों को जलाते और तिरंगे को बचाते देखा है. ऐसा संकीर्ण राष्ट्रवाद किस काम का है जो संविधान को ताक पर रखकर अन्याय को महिमामंडित करता है. यही अन्याय इंसानी स्वभाव की सबसे खूबसूरत अनुभूति को भी ललकारता है जिसे हम प्रेम या इश्क़ कहते हैं.
प्रियदर्शन के कविता संग्रह की एक रचना लव जेहाद में यह स्वर गूंजता है-
प्रेम पर पाबन्दी नहीं होगी
लेकिन उसके सख़्त नियम होंगे
जिन पर अमल का बीड़ा वह उठायेंगे
जिन्होंने कभी प्रेम नहीं किया.
बल्ली मूलत: कवि हैं जबकि हालांकि डंगवाल लम्बे वक्त तक अख़बारी दुनिया में संपादक रहे. प्रियदर्शन लेखक और कवि होने के साथ पिछले करीब 20 साल से टीवी समाचार की दुनिया में हैं. समझा जा सकता है कि जो कविता करना जानता हो उस पत्रकार की अभिव्यक्ति समाचारों में नहीं बल्कि काव्य में अपनी पूर्णता पाती है.
एक मदान्ध और कट्टर शासक को ललकारने का काम कवि ही कर सकते हैं और अशोक वाजपेयी का यह बयान उसी अभिव्यक्ति को सुर देता है.
‘कवियों का काम टोकना है. आपको अच्छा लगे तब भी हम टोकेंगे और बुरा लगे तब भी हम टोकेंगे क्यों यह हमारा काम है. कविता में जो सच समझ में आता है वह बोलने के लिये विवश करती है. वह कितनों को पसंद आयेगा या कितनों को पसंद नहीं आयेगा इसकी चिन्ता हम नहीं कर सकते.’
Also Read
-
‘Foreign hand, Gen Z data addiction’: 5 ways Indian media missed the Nepal story
-
Mud bridges, night vigils: How Punjab is surviving its flood crisis
-
Adieu, Sankarshan Thakur: A rare shoe-leather journalist, newsroom’s voice of sanity
-
Corruption, social media ban, and 19 deaths: How student movement turned into Nepal’s turning point
-
Hafta letters: Bigg Boss, ‘vote chori’, caste issues, E20 fuel