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एनएल चर्चा 104: जामिया पुलिस लाठी चार्ज का वीडियो, ट्रंप की भारत यात्रा और अन्य
न्यूज़लॉन्ड्री चर्चा के इस भाग में हमने डोनाल्ड ट्रंप का भारत दौरे, जामिया में हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा किए गए बर्बर लाठीचार्ज, ट्रंप के दौरे को लेकर अहमदाबाद में हो रही तैयारियां पर विस्तार से चर्चा की. इसके साथ ही आम आदमी के पार्टी के विधायक द्वारा अपने विधानसभा क्षेत्र में प्रत्येक मंगलवार को सुंदरकांड पाठ के आयोजन, नरेंद्र मोदी द्वारा सीएए, एनआरसी और 370 पर दिया गया ताजा बयान और सुप्रीम कोर्ट का शाहीनबाग मामले में नियुक्त की गई दो सदस्यों की कमेटी के मसले पर भी चर्चा हुई.
इस सप्ताह चर्चा में दिल्ली यूनिवर्सिटी के एकेडमिक काउंसिल की सदस्य गीता भट्ट, न्यूज़लॉन्ड्री के सीनियर एडिटर मेहराज लोन शामिल हुए. चर्चा का संचालन कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत जामिया हिंसा से करते हुए अतुल ने गीता से सवाल किया, "पुलिस ने जिस तरह से जामिया हिंसा को लेकर दावा किया था और साउथ ईस्ट दिल्ली के डीसीपी चिन्मय बिस्वाल, जिनका बाद में चुनाव आयोग ने ट्रांसफर भी कर दिया था, उनका कहना था कि कैंपस में कोई टीयर गैस नहीं छोड़ी गई, पुलिस कैंपस में नहीं घुसी, लाठीचार्ज भी नहीं हुआ. इन सब के बाद जो वीडियो सामने आया है ये कई सवाल खड़े करते हैं. आपकी इसपर क्या राय है?"
अतुल के सवाल का जवाब देते हुए गीता कहती हैं, "देखिये पहली बात तो ये है कि जब भी कोई प्रदर्शन निकलता है अगर वो कहीं भी किसी तरह से हिंसक होता है, वहां पत्थरबाजी और मारपीट होती है या बस जलाई जाती हैं तो हिंसा की रिपॉन्स पुलिस द्वारा ऐसा ही रहता है. ये बात तो साफ है कि उपद्रवी कैंपस के अंदर घुस गए थे और भीतर से भी पत्थरबाजी हुई थी. वीडियो भी दोनों तरह के सामने आए हैं. लेकिन जो लोग अंदर मुंह पर कपड़ा बांध कर पढ़ रहे, ऐसे तो कोई नहीं पढ़ता है."
इसपर अतुल गीता को जवाब देते हैं, "इसका एक और वर्जन है कि बाहर टीयर गैस छोड़ी जा रही थी तो हो सकता है छात्र इसलिए कपड़े बांध रखे हो?" इसके बाद अतुल ने मेहराज से सवाल किया, "वीडियो आने के बाद पुलिस की रवैया देखने के बाद आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?"
मेहराज कहते हैं, "पुलिस ने जो जामिया में किया है वहीं चीजें जेएनयू और अलीगढ़ में भी हुई हैं. चलिए मान लेते हैं कि जामिया में बाहर के लोग घुसे हुए थे. लेकिन पुलिस का प्रोसीजर पहले जांच करने का, लोगों को पहचानने का होता है. एक तरफ छात्र हैं दूसरे तरफ स्टेट की ताकत है और उनके हाथ में बंदूकें हैं, ऐसे में फिर दोनों में फर्क क्या रहा और हर जगह पर ऐसे ही क्यों हो रहा है? इस देश में जवाबदेही की रवायत कभी भी नहीं रही है. आम आदमी के पास कोई भी शक्ति नहीं है."
बाकी विषयों पर भी विस्तार से तथ्यपरक चर्चा हुई. पूरी चर्चा सुनने के लिए पॉडकास्ट सुने साथ ही न्यूजलॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और गर्व से कहें- 'मेरे खर्च पर आज़ाद हैं खबरें.'
पत्रकारों की राय, क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.
गीता भट्ट
द सोल ऑफ इंडिया – विपिन चंद्र पॉल
मेहराज
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अतुल चौरसिया
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