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गेस्ट टीचर्स: नई सरकार, पुरानी मांग

28 वर्षीय आशिभा शर्मा एक महीना पहले अतिथि शिक्षिका थीं. 2014 से कार्यरत आशिभा की जगह स्थाई शिक्षक की नियुक्ति के बाद 10 जनवरी, 2020 को उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. 28 अक्टूबर, 2019 को एक सड़क दुर्घटना में उनके पिता की मौत हो गई और मां गंभीर रूप से घायल होकर बिस्तर पर पड़ीं हैं. बेरोजगार आशिभा पर अब भाई, बहन की देख-रेख और बीमार मां के इलाज कजिम्मेदारी है. इस जिम्मेदारी को वह कैसे पूरा करेंगी? यह सवाल पूछने पर वो खामोशी ओढ़ लेती हैं.

दिल्ली के विद्यालयों में पढ़ाने वाले 5,570 गेस्ट टीचर्स को अलग-अलग कारणों से हटाया जा चुका है. इनमें लक्ष्मी नारायण, सतीश और सत्यवान जैसे विकलांग भी शामिल हैं. लक्ष्मी नारायण को 28 अक्टूबर, 2015 को स्कूल में ही हुई दुर्घटना में पहले से ही पैरालाइज पैर में रॉड डलवाना पड़ा था. इलाज के लिए पर्याप्त छुट्टी भी नहीं दी गई, जितनी मिली उनके पैसे काटे गए. जुलाई 2019 में उन्हें भी नौकरी से निकाल दिया गया. अब दिल्ली में किराये के कमरे में रहकर दो बच्चों का पालन-पोषण करना उनके लिए बड़ी चुनौती बन गया है.

दिल्ली विधानसभा के चुनाव में सत्ताधारी पार्टी अपने काम गिनाती रही, दूसरी तरफ विपक्षी कमियों पर बात करते रहे. देश से अलग दिल्ली के विधानसभा चुनाव विकास के मुद्दों पर हुए. आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता इस प्रचार युद्ध में जीते और पार्टी को 70 में से 62 सीटों पर जीत हासिल हुई. इस चुनावी जंग में 22,000 परिवारों को प्रभावित करने वाले गेस्ट टीचर्स के मुद्दे पर पर्याप्त चर्चा नहीं हुई. गेस्ट टीचर्स को अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में सरकार आने पर परमानेंट करने का वादा किया था, लेकिन कार्यकाल बीत जाने के बाद भी वादा पूरा नहीं हुआ.

लगभग 22,000 गेस्ट टीचर्स में से ज्यादातर 4 से 8 वर्षों से सेवाएं दे रहे हैं. बढ़ती उम्र के कारण वह दूसरी नौकरियों के लिए अयोग्य हो चुके हैं या होते जा रहे हैं और गेस्ट टीचर्स के तौर पर भी उनकी नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है. स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण जिस पद पर होता उस पर तैनात गेस्ट टीचर को नौकरी से हाथ धोना पड़ता है.

अप्रैल 2013 में प्रदर्शन कर रहे गेस्ट टीचर्स से केजरीवाल ने सरकार बनने पर परमानेंट करने का वादा किया था. आंदोलन से निकले नेता और ’स्वच्छ‘ राजनीति की बात करने वाले केजरीवाल पर गेस्ट शिक्षकों ने भरोसा किया जो चुनावी नतीजों में भी दिखा. गेस्ट टीचर्स 11 महीने के अनुबंध पर तैनात किए जाते हैं. ऑल इंडिया गेस्ट टीचर्स एसोसिएशन के सदस्य सुनील ने बताया, “अनुबंध खत्म होने के महीना भर पहले ही हम प्रदर्शन की तैयारियों में जुट जाते हैं, हमारे प्रदर्शन करने के बाद ही अनुबंध का विस्तार होता है.” आप सरकार बनने के बाद भी ऐसा नहीं हुआ कि शासन ने स्वतः गेस्ट टीचर्स के अनुबंध को विस्तार दिया हो.

आम आदमी पार्टी की सरकार पहली बार जब 49 दिनों के लिए बनीं तब गेस्ट टीचर्स ने एक जनवरी से 15 जनवरी 2014 तक प्रदर्शन किया था, फिर सरकार की ओर से पॉलिसी तैयार करने का दावा किया गया. इस बीच सरकार गिर गई. केजरीवाल ने फिर से कहा कि दुबारा सत्ता में लाइये हम अधूरी प्रकिया को पूरा कर आपको परमानेंट कर देंगे.

दूसरी बार भी जब सरकार की ओर से कोई ठोस पहल नहीं हुई तो टीचर्स ने फिर प्रदर्शन शुरू किया. अप्रैल 2015 में उपमुख्यमंत्री व शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया के घर के बाहर दस दिनों से अधिक प्रदर्शन हुआ. मई 2015 में जंतर-मंतर पर एक सप्ताह तक आमरण-अनशन हुआ, जुलाई में फिर सिसोदिया के घर के बाहर प्रदर्शन हुए. 2016 में भी मार्च, अप्रैल, मई, जुलाई व अगस्त महीनों में कई बार शिक्षामंत्री के घर सहित कई जगहों पर गेस्ट टीचर्स ने प्रदर्शन कर सरकार से वादा पूरा करने को कहा.

दिसंबर 2016 में सरकारी खर्च पर छत्रसाल स्टेडियम में कार्यक्रम आयोजित कर सभी गेस्ट टीचर्स को आमंत्रित किया गया. शिक्षकों को बताया गया कि मुख्यमंत्री उन्हें ‘खुशखबरी’ सुनाने वाले हैं. 22 दिसंबर को आयोजित इस कार्यक्रम में केजरीवाल ने कहा- “अब गेस्ट टीचर्स को दिन या घंटे नहीं, बल्कि महीने केहिसाब से सैलरी दी जाएगी और उन्हें रेग्युलर टीचर्स की तरह छुट्टियां भी मिलेंगी. आज यह सब ऐलान कर पाने के लिए हमें व्यवस्था से बहुत लड़ना पड़ा है. यह प्रस्ताव कैबिनेट में पास हो गया है और एलजी साहब को भेजा गया है. मुझे उम्मीद है कि एलजी साहब शिक्षकों के भविष्य से जुड़े फैसले पर हामी भरेंगे. गेस्ट टीचर्स को पक्का करने का काम दिल्ली सरकार जल्द से जल्द पूरा कर लेगी.” इसके बाद गेस्ट टीचर्स ने पूरे कार्यक्रम को चुनावी स्टंट बताते हुए जमकर हंगामा किया.

4 अक्टूबर, 2017 को दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल सरकार ने गेस्ट टीचर्स को स्थायी करने को लेकर एक बिल पास किया जिसके तहत केन्द्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा पास कर चुके 15,000 गेस्ट टीचर्स को स्थाई करने का प्रावधान था. लेकिन तत्कालीन उपराज्यपाल ने उसे मंजूरी नहीं दी.

28 फरवरी, 2019 को अनुबंध समाप्त होने के बाद गेस्ट टीचर्स ने एक मार्च से उपमुख्यमंत्री के घर के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया. 5 मार्च को शिक्षकों ने मुंडन कराया और सामूहिक आत्मदाह की चेतावनी दी. शिक्षामंत्री ने अधिकारियों के साथ बैठक के बाद उपराज्यपाल को पत्र लिखकर पूछा ‘गेस्ट टीचर्स को लेकर आपके पास क्या योजना है?’ लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका.

मार्च 2017 में केजरीवाल सरकार द्वारा गेस्ट टीचर्स की सैलरी में 80 फीसदी तक बढ़ोत्तरी से शिक्षकों को काफी राहत मिली थी. गेस्ट टीचर अजीज बताते हैं, “2013 से प्रतिवर्ष हमारे दैनिक मानदेय में 100 रुपये की वृद्धि की जाती थी. जिसे 2015 के बाद से रोक दिया गया था, 2017 के बाद से अभी तक कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई है.”

यह हाल तब है दिल्ली के विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था गेस्ट टीचर्स के भरोसे ही चल रही है. एक आरटीआई के जवाब में शिक्षा निदेशालय ने बताया कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में कई अहम विषयों के शिक्षकों, प्रधानाचार्यों व उपप्रधानाचार्यों के पद खाली पड़े हैं. दिल्ली सरकार के 1,030 स्कूलों में कक्षा 6 से10वीं तक के शिक्षकों के 3,825 पद खाली हैं. इनमें स्वीकृत 33,397 पदों में से स्थाई शिक्षक 17,695 और 11,877 गेस्ट टीचर्स पढ़ा रहे हैं. 

नेतृत्व में एकजुटता नहीं

पिछले दो बार विधानसभा चुनावों के दौरान प्रदर्शन कर रहे गेस्ट टीचर्स इस बार शांत रहे. खुद को गेस्ट टीचर्स का अगुवा कहने वाले दो संगठन हैं. आल इंडिया गेस्ट टीचर्स एसोसिएशन भाजपा और दिल्ली अतिथि शिक्षक संघ का नेतृत्व आम आदमी पार्टी समर्थक है. दोनों संगठनों के नेतृत्वकर्ताओं ने राजनीतिक पार्टियों के समर्थन में प्रचार भी किया. जबकि स्थाई शिक्षकों के पदोन्नति और स्थानानांतरण की सूची तैयार हो चुकी है और चुनाव बाद ही करीब 5 हजार गेस्ट टीचर्स की नौकरी जाने की आशंका है.

आल इंडिया गेस्ट टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रवीण तोबड़िया बताते हैं, “दिल्ली अतिथि शिक्षक संघ का गठन आप पार्टी के नेताओं के इशारे पर गेस्ट टीचर्स के आंदोलन को कमजोर करने के लिए हुआ है. छत्रसाल स्टेडियम की घटना के बाद इस संगठन ने शिक्षकों से माफीनामा लिखवाया. यह सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में कभी हिस्सा नहीं लेते और दूसरों को भी रोकते हैं.”

दिल्ली अतिथि अध्यापक संघ के अध्यक्ष प्रभंजन झा आरोपों का खंडन करते हुए कहते हैं, “हम लोगों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन तब किया जब बात नहीं सुनी गई. जबकि सरकार लगातार बातचीत करके हमारे हित में दो बार बिल पास कर चुकी है. यहां तक कि शिक्षामंत्री हमारे पक्ष में कोर्ट में भी गए हैं. तो हम कैसे मान लें कि सरकार हमें धोखा दे रही है. सरकार हमारी मांगों के प्रति गंभीर है, विरोध के लिए विरोध करना हमारी रणनीति नहीं.”

गेस्ट टीचर्स के नेताओं में एकजुटता नहीं होने के कारण आम शिक्षक दुविधा में हैं. बीतते समय के साथ नौकरी के प्रति उनकी असुरक्षा बढ़ती जा रही है. गेस्ट टीचर्स को तभी राहत मिल सकती है जब केन्द्र और राज्य सरकार दोनों उनके समस्याओं के समाधान पर संवेदनशील नजरिए के साथ विचार करें.

गेस्ट टीचर्स की मांगें-

1- सभी गेस्ट टीचर्स को स्थाई किया जाय.

2- स्थाई किए जाने तक परमानेंट शिक्षकों की तरह एकमुश्त मासिक वेतन

दिया जाए.

3- जिस पोस्ट पर गेस्ट टीचर्स तैनात हैं उस पोस्ट को रिक्त नहीं दिखाया

जाए.

4- जिन टीचर्स को परमानेंट शिक्षकों की नियुक्ति, प्रमोशन या स्थानांतरण के

बाद निकाला गया है उन्हें नियुक्त किया जाए.

5- महिला शिक्षिकाओं को वैतनिक मातृत्व अवकाश दिया जाए.