Newslaundry Hindi
संविधान क्लब में असंवैधानिक विमर्श का आयोजन
दक्षिणपंथी विचारधारा का प्रतिनिधि कहने वाले कुछ मीडिया संस्थानों ने मंगलवार को देश के सबसे वीवीआईपी इलाके में स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया में एक दिन का विमर्श कार्यक्रम आयोजित किया. माय नेशन और ऑप इंडिया के साझा बैनर तले “भारत बोध” नामक कार्यक्रम के आमंत्रण पत्र से ही जाहिर था कि इसमें किस तरह की बातें और चर्चाएं होनी हैं. हमने सोचा क्यों ना इस पूरे कार्यक्रम को कवर किया जाय और समझा जाय कि विभाजनकारी, सांप्रदायिक, संकीर्ण वैचारिकता और घृणा फैलाने का आरोप झेलने वाली इन वेबसाइटों का सच क्या है. सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे तक चले इस कार्यक्रम का थीम था- “क्या भारत को ख़िलाफ़त 2.0 के तरफ़ धकेला जा रहा है?”
ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर कंस्टीटूशन क्लब ऑफ़ इंडिया में इतना बड़ा इवेंट आयोजित करने के लिए जाहिरन बड़ी पहुंच और संसाधनों की जरूरत होती है, जो इस कार्यक्रम के आयोजकों के पास था. वरना ऐसा करने की हिमाकत कौन कर सकता है कि देश की राजधानी के वीवीआईपी इलाके में, संसद भवन से महज 200 मीटर दूर यह कार्यक्रम बदस्तूर जारी रहा वो भी तब जब कथित तौर पर उन्हें बार-बार सुरक्षा एजेंसियों के फोन आ रहे थे. ये बात हम नहीं कह रहे हैं बल्कि अभिनव खरे,जो कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे, उन्होंने खुद कहा.
बकौल खरे, “हमारे पास 2-3 बार सुरक्षा एजेंसियों का फ़ोन आ चुका है क्योंकि हम सीएए के समर्थन में यहां बात कर रहे है, लेकिन हम डरेंगे नहीं.” खरे एशियानेट नेटवर्क के सीईओ भी हैं. चक्कर आ गया न, सीएए के समर्थन में कार्यक्रम करने के लिए उन्हें सुरक्षा एजेंसियों की ओर से धमकी आ रही थी. उस सीएए के समर्थन के लिए जिसके समर्थन में सत्ताधारी भाजपा पूरे देश में 700 रैलियां कर रही है.
आगे बढ़ते हैं, ऐसे तमाम मनोरंजन इस कार्यक्रम में देखने सुनने को मिले. कार्यक्रम की शुरुआत राहुल रौशन ने इस जिक्र के साथ किया कि “ख़िलाफ़तआंदोलन 1.0 क्या था और आज के परिप्रेक्ष्य में इसका क्या मतलब है?” इसके बाद मुख्य अतिथि और भाजपा के राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने सीएए और एनआरसी को एक बार फिर से वहां मौजूद लोगों को समझाया की कैसे यह दोनों कानून देश के लिए महत्वपूर्ण है.
राजीव चंद्रशेखर के भाषण के बाद शुरू हुआ पहला सत्र जिसमें 4 लोग थे. “सीएए क्या मुस्लिम विरोधी है? और क्या भारत में भी इसराइल की तरह “लॉ ऑफ़ रिटर्न” होना चाहिए” जैसे मुद्दे पर बातचीत शुरू हुई. इस सत्र का संचालन ऑप इंडिया हिंदी के एडिटर अजीत भारती कर रहे थे. ये वही ऑप इंडिया है जिसके बारे में अगर आपको विस्तार से जानना हो तो यहां पढ़ सकते हैं. पहले सत्र में शामिल चार लोगों में मधु किश्वर, आशीष धर, अभिजीत अय्यर मित्रा और कोएंराड एल्स्ट शामिल थे.
आशीष धर ने कहा कि सीएए के ख़िलाफ़ मुसलमानों का विरोध उसी हद तक है जितना बंटवारे के वक्त था. मधु किश्वर ने जोड़ा कि “सीएए में जो माइनॉरिटी शब्द का इस्तेमाल किया गया है वही गलत है, यह सरकार की सबसे बड़ी चूक है.” वो दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत पर ख़ुशी मना रहे बच्चों पर भी नाराज़ दिखी, उन्होंने कहा, “दिल्ली के कैंटोनमेंट एरिया और शाहीन बाग़ में जहां से आप जीती है, हमें यह ध्यान देने की जरुरत है कि, फौजियों के बच्चे भी आप और शाहीनबाग़ के साथ है.” समझिए कि किश्वर की चिंता का दायरा कितना विस्तृत है. उन्हें दुख है कि सारे फौजियों के बच्चे उनकी तरह नहीं सोचते हैं.
अभिजीत अय्यर मित्रा ने हस्तक्षेप किया, “शाहीनबाग़ का विरोध अभी तक जो चल रहा है वो बीजेपी का आईडिया था की वह शाहीनबाग़ के नाम पर चुनाव जीत लेगी, यही उसकी सबसे बड़ी गलती थी.” उन्होंने आगे कहा, “पाकिस्तान तुम्हारे देश की राजधानी में ही है और तुम लोगों को पाकिस्तान जाने की बात करते हो?” इस दरजे की एंटी कॉन्स्टीट्यूशनल बातें कॉन्सटीट्यूशन क्लब में कही गई. ऐसे ही मौकों के लिए कहा गया है कि आइरनी ने आत्महत्या कर ली.
इस सेशन के बाद सवाल जवाब का सिलसिला शुरू हुआ. सभी वक्ताओं ने एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने की बात पर जोर दिया जैसा कि कांग्रेस और लेफ्ट ने बनाया है.सभा में दर्शकों और वक्ताओं की एक चिंता यह भी उठी कि बीजेपी की सरकार अपने ही लोगों की मदद नहीं करती. इस पर राहुल रौशन ने कहा, “बीजेपी सपोर्ट करती है, जब हम मदद के लिए हाथ बढ़ाते है. आज जो हम खुलकर बोल पा रहे है, क्योंकि बीजेपी आज पावर में है.”
कार्यक्रम के दूसरे सत्र की शुरुआत, “क्या मीडिया ख़िलाफ़त 2.0 के लिए जिम्मेदार हैं”. इस सत्र में भी कुल 4 पैनेलिस्ट थे- मेजर गौरव आर्य (रिटायर), अंकुर सिंह, विकास पांडे, अनुभव खरे और नूपुर शर्मा. सबसे पहले गौरव आर्य ने बोलते हुए कहा, “पाकिस्तानी आतंकवादियों के वजह से कश्मीरी पंडित नहीं भागे, बल्कि उन्हें वहां के लोगों ने भगाया और यह सब जानते हैं की कश्मीर में मुस्लिम आबादी कितने प्रतिशत है. फिर भी यह लोग उत्पीड़ित होने का गेम खेलते है.”
विकास पांडे (जिन्होंने सपोर्ट नमो जैसा सोशल मीडिया अभियान चलाया था और बीजेपी को जीत में मदद की थी) कहते हैं, “हमें खुद का मीडिया हाउस बनाना होगा तभी हम लेफ़्ट विचारधारा और उनके अभियान का सामना कर पाएंगे.” उन्होंने खिलाफ़त अभियान 2.0 पर कहा कि, यह जेएनयू और लेफ़्ट वाले हिंदुत्व के ख़िलाफ़ अभियान करना चाहते है और हमें इनके ख़िलाफ़ लड़ना होगा.
अंकुर सिंह पॉलिटकल कीड़ा नाम से फेसबुक और ट्विटर पेज चलाते हैं. उन्होंने कहा, शारजील इमाम ने जो असम को तोड़ने को लेकर विवादित बयान दिया था, हो सकता है उसने रवीश कुमार का शो देखकर ऐसा किया हो. वही राजदीप सरदेसाई पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, “राजदीप तो आप के कार्यकर्ता है इसलिए पार्टी के जीतने पर वह मिठाई और टीवी पर डांस कर रहे थे.”
इसी तरह की हवाबाजी और उल-जुलूल आरोप पूरे सत्र में तमाम पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर लगाए गए जिनमें न्यूज़लॉन्ड्री भी शामिल है.
नूपुर शर्मा जो (ऑपइंडिया) की एडिटर हैं, उन्होंने कहा,“वामपंथी और जिहादी एक ही बात है. और मीडिया भी जिहादी ही है. न्यूज़लॉन्ड्री असल में नक्सल लॉन्ड्री है.”
इसी दौरान दर्शकों के बीच मौजूद मधु किश्वर ने एक नया राग छेड़ दिया, “2014 में जब यह तय हुआ था कि नरेंद्र मोदी न्यूज़लॉन्ड्री और एनडीटीवी पर लंबीवार्ता के लिए जाएंगे तो मैंने अभिनंदन सेखरी को फ़ोन लगाकर पूछा क्या यह सच है? और उन्होंने कहा की हां वह आ रहे हैं, तो मैंने कहा की मैं सच में नरेंद्र मोदी को कच्चा चबाकर खा जाउंगी अगर वह गए तो. फिर इसके बाद वह प्रोग्राम कैंसिल हो गया.”अपने बड़बोलेपन और ट्विटर पर फर्जी खबरें शेयर करने की लिए खासा बदनाम मधु किश्वर के इस दावे की न्यूज़लॉन्ड्री ने 14 मार्च, 2014 को ही पोल खोल दी थी. एक बार फिर से आपको उसकी याद दिलाने के लिए वह लेख हम यहां साझा कर रहे हैं.
अपने संबोधन के दौरान ही मधु किश्वर ने आह्वान किया कि हमें उन मंत्रियों और नेताओं के खिलाफ कैंपेन चलाना पड़ेगा, जो वामपंथी मीडिया या भाजपा विरोधी मीडिया के पास जाकर इंटरव्यू देते है. इससे वो शर्मिंदा होंगे. बताते चले की मधु किश्वर जिस मीडिया संस्थान (न्यूज़लॉन्ड्री) को कोस रही थी, उसके कार्यक्रम में (मीडिया रम्बल 2016) में राजीव चंद्रशेखर शामिल हुए थे. यानि अपने कार्यक्रम भारत बोध में राजीव चंद्रशेखर को बुलाकर आयोजकों ने गलती कर दी या फिर मधु किश्वर को बुलाकर उनका ऐसे नेताओं को बायकॉट करने का प्रण तोड़ दिया?
हांलाकि जब मधु किश्वर के इस आह्वान पर न्यूज़लॉन्ड्री ने राहुल रौशन से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि मैं व्यक्तिगत तौर पर बायकॉट या विरोध का समर्थन नहीं करता. लेकिन हां हमें ऐसे लोगों पर दवाब बनाना होगा ताकि वह ऐसा ना करें.
इस बीच जब दर्शकों की तरफ से महात्मा गांधी को लेकर सवाल किया गया तो अभिनव खरे कहते हैं, “कौन यह निर्णय करेगा की राष्ट्रपिता कौन है? जहां तक मेरा सवाल है, मेरे लिए तो राष्ट्रपिता सिर्फ भगवान राम हैं और उनके अलावा कोई नहीं है.”
कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में इसी तरह की विडंबनाएं बारंबार दिखी. प्रधानमंत्री कहते हैं कि गांधीजी का अपमान करने वालों को वो दिल से माफ नहीं कर पाएंगे. उनके समर्थन से खड़ा होने वाले मीडिया कहता है गांधी क्या हैं ये तय करने का अधिकार किसी को नहीं है.
अंत में यानी की तीसरे सत्र में फिर से 4 लोगों का पैनल. इस में आनंद रंगनाथन, संध्या जैन, प्रियंका देव और कोएंराड एल्स्ट शामिल थे. इसमें ख़िलाफ़त 2.0 क्या है? पर विस्तार से चर्चा होती है. इसका संचालन राहुल रौशन ने किया. उन्होंने बताया कि ख़िलाफ़त अभियान को ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ जोड़ा गया, लेकिन उसका सम्बन्ध उलमा से था. हम खिलाफत 2.0 की बात आज कर रहे हैं,वो इसलिए क्यों की जब देश आजाद हुआ, अंग्रेज चले गए तब यह उलमा की मांग पाकिस्तान के रूप में जन्मी.
संध्या जैन बताती हैं कि आख़िर क्यों पूर्व आईएएस शाह फैसल तुर्की जाना चाहते थे? शाह फैसल पूर्व आईएएस अधिकारी हैं जिन्होंने जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट नामक राजनीतिक पार्टी बनाई है. संध्या के मुताबिक भारतीय सुरक्षा एजेंसियो का मानना है कि शाह फैसल को आईसआईएस फंड करती है, हालांकि उन्होंने कहा की हमें पता नहीं यह सही या नहीं.
संध्या तुर्की के आर्टिकल 13, जिसमें यूनिवर्सल जुरिडिकेशन लॉ का जिक्र है, के बारे में बताते हुए उसे शाह फैसल से जोड़ती हैं, “अगर फैसल तुर्की जाकर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री और उस समय के चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ़ विपिन रावत के खिलाफ यूनिवर्सल जुरिडिकेशन लॉ के तहत केस फाइल करता, तो फिर इनके ऊपर तुर्की के कानून के तहत केस चलाया जाता. लेकिन हमारे देश की मीडिया शाह फैसल को एयरपोर्ट से पकड़े जाने पर दुःख मनाती है.”
इसी तरह के हवा में उल-जुलूल, तथ्यहीन आरोप उछाले गए, जिसके निशाने पर विपक्षी नेता, विपक्षी मीडिया और महात्मा गांधी तक रहे.
Also Read
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians
-
Lucknow’s double life: UP’s cleanest city rank, but filthy neighbourhoods
-
Delays, poor crowd control: How the Karur tragedy unfolded
-
‘If service valuable, why pay so low?’: 5,000 MCD workers protest for permanent jobs, equal pay, leaves
-
Tata Harrier EV review: Could it be better than itself?