Newslaundry Hindi
कुमार विश्वास: जनकवि नहीं, भीड़ का चहेता कवि
25 जनवरी को गीतकार कुमार विश्वास कानपुर आये थे. उनके साथ कविता-पाठ करने के लिए तीन लोग और भी थे, मगर वे मुझे कविता की दुनिया के नागरिक ही नहीं लगे. इसलिए यह एक तरह से कुमार विश्वास के एकल काव्य-पाठ का आयोजन था. बेहद कमज़ोर और निष्प्रभ साथियों का चुनाव इस मक़सद से किया गया होगा कि विश्वास उनके बीच सर्वश्रेष्ठ ही नहीं, अप्रतिम नज़र आयें!
आयोजक कानपुर क्लब था और मुख्य अतिथि सेना के एक ब्रिगेडियर साहब. गणतंत्र दिवस की पूर्व सन्ध्या थी ही.
कुमार विश्वास ने कोई डेढ़-दो घंटे का समय लिया, लेकिन कविताएं कुल मिलाकर तीन-चार, यानी पन्द्रह मिनट ही सुनायी होंगी. कहते हैं कि उन्होंने अपनी इस प्रस्तुति के लिए बारह लाख रुपये लिए.
स्वयं उन्होंने बताया कि वह पांचसितारा होटेल के प्रेसीडेंशियल स्युएट में ही ठहरते हैं. लिहाज़ा लैंडमार्क होटेल यहां उनका ठिकाना था. उसमें उनके बेड पर आठ-दस क़िस्म के तकिये थे, उनकी समझ में नहीं आया कि "सोया कहां जाए और उनमें जो दो लम्बे-से गोल तकिए थे, उनका क्या इस्तेमाल है?: सोचा कि परिचारिका से पूछ लूं, मगर इसलिए नहीं पूछा कि पांच-छह साल बाद कहीं वह 'मी टू' में मेरा नाम न उछाल दे!"
अपनी कार का नाम उन्होंने शायद मर्सिडीज़ बताया और यह भी कि आजकल अंतरराष्ट्रीय फ़ैशन के मुताबिक़ नोएडा में करोड़पति पड़ोसियों के बग़ल में मौजूद अपने घर का इंटीरियर डेकोरेशन उन्हें हर दूसरे साल बदलवाना होता है.
यह भी कि कविता-पाठ के सिलसिले में वह अब तक 36 देशों की यात्राएं कर चुके हैं, डॉक्टर (पी-एच.डी.) हैं, एक कॉलेज में एसोसिएट प्रोफ़ेसर रहे हैं और उनकी उपलब्धि यह है कि जहां भी जाते हैं, एक लाख लोग उनके साथ उनकी कविताओं को गाते हैं.
इस सबके बावजूद उनकी मुखरता के कारण उन्हें अब तक पद्मश्री या साहित्य अकादेमी पुरस्कार जैसा कोई सम्मान नहीं दिया गया है. इसलिए पुरस्कार वापसी अभियान के दौरान वह लौटाते भी, तो क्या?
कुमार विश्वास ने कश्मीर में धारा 370 हटाने के 'ऐतिहासिक' योगदान के लिए प्रधानमंत्री का शुक्रिया अदा किया और कहा कि ऐसा करके "उन्होंने भारतमाता के माथे की पीर हर ली है."
उन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द और एकता की अपील की और हिन्दू-मुसलमान वैमनस्य भड़काने और उसकी आंच पर अपनी रोटियां सेंकने के लिए हिन्दी के कुछ अख़बारों एवं टीवी चैनलों की ख़ास तौर पर और सभी नेताओं की आम तौर पर निन्दा की. कहा कि वे "प्याज़ ज़ी टीवी से ख़रीदते हैं और एनडीटीवी को बेच देते हैं." एक प्याज़ को सस्ता बता रहा है, दूसरा महंगा. ऐसे में सच क्या है ? सच केवल कवि बता रहे हैं!
उन्होंने यह भी बताया कि आज सुबह जब वह घर से चले; सेंट ज़ेवियर और जे.एन.यू. सरीखी संस्थाओं से, टैक्सपेयर जनता की कमाई से पढ़ा हुआ एक नौजवान भारत से असम की आज़ादी की बात कर रहा था. लिहाज़ा सुबह से ही उनका मन बहुत विचलित है.
विश्वास ने कहा कि सी.बी.आई. और पुलिस सरीखी ज़्यादातर संवैधानिक संस्थाओं का बहुत पतन हो चुका है. अगर किसी का पतन नहीं हुआ, तो वह भारतीय सेना है. इसीलिए "मैंने कहा था कि 'सर्जिकल स्ट्राइक' पर राजनीति मत करो !" लेकिन लोग नहीं माने. नतीजा सामने है.
कुमार विश्वास ने चीनी सैनिकों के छोटे क़द और छोटी-छोटी आंखों के कारण उनके समवेत पराक्रम को भारतीय सैन्य-शक्ति के सामने कमतर और हास्यास्पद बताया. यह भी कि पाकिस्तान कोई संजीदा मुल्क नहीं, बल्कि एक 'लॉफ़्टर शो' है, जो हमारे पड़ोस में अनवरत खुला हुआ है. विंग कमांडर अभिनन्दन जब वहां फंस गये थे, तो उन्हें विश्वास था कि वह लौट आयेंगे ; क्योंकि हनुमान् लंका में रहते नहीं, अपना काम करके वापस आ जाते हैं. फ़र्क़ सिर्फ़ यह है कि हनुमान् की पूँछ बड़ी थी और अभिनन्दन की मूँछें बड़ी हैं !
उन्होंने ख़ुद शादी न करने और दूसरों को "पांच बच्चे पैदा करने" की सलाह देने के लिए साक्षी महाराज को आड़े हाथों लिया. इसी तरह शादी न करने के लिए राहुल गांधी और पवित्रता के संकल्प के साथ सार्वजनिक जीवन शुरू करने वाले अरविन्द केजरीवाल का, उनकी मौजूदा राजनीति की 'अपवित्रता' के लिए उपहास किया. उन्होंने कहा कि "मोदी जी ने कहा था : 'न खाऊँगा, न खाने दूँगा.' लेकिन (विजय माल्या जैसे) लोगों ने इस बीच न सिर्फ़ खाया, बल्कि वे खाना पैक कराके भी (विदेश) ले गये!" चार पंक्तियाँ सुनायीं, जिनमें-से उनके ही अनुसार पहली पंक्ति राहुल जी, दूसरी मोदी जी और शेष दो केजरीवाल जी के लिए लिखी गयी हैं :
"इस अधूरी जवानी का क्या फ़ायदा,
बिन कथानक कहानी का क्या फ़ायदा
जिससे धुलकर नज़र भी न पावन बने
आंख में ऐसे पानी का क्या फ़ायदा"
कुमार विश्वास की आवाज़, गायन और याददाश्त अच्छी है. इसके अलावा उनकी शोहरत सतही रोमानियत से लैस गीतों के लिए है. लेकिन उनकी ऐसी बातों से ज़ाहिर है कि कवि-सम्मेलनों के अपने लम्बे अनुभव से उन्होंने एक अच्छे-ख़ासे हास्य-कवि की महारत हासिल कर ली है और अब वह चाहें, तो इस काम के लिए अलग से एक प्राणी साथ लेकर चलने की ज़रूरत उन्हें नहीं है.
यह एक ऐसा हास्य है, जिसमें कविता कहीं नहीं है और जिसकी कोई धुरी या दिशा नहीं है ; इसलिए वह सबके ख़िलाफ़ लगता हुआ भी दरअसल किसी के ख़िलाफ़ नहीं है और आख़िरकार चीज़ों की हास्यास्पदता को ही सर्वोच्च मूल्य के तौर पर प्रतिष्ठित करता है. याद आते हैं रघुवीर सहाय :
"बेहतर है कि जब कोई बात करो तब हंसो
ताकि किसी बात का कोई मतलब न रहे"
कुमार विश्वास ने हंसी-हंसी में यह भी बताया कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमन्त्री के शपथ-ग्रहण समारोह के लिए, उनके कार्यालय से फ़ोन आया था. मगर उन्होंने जवाब दिया कि "अब शपथग्रहण देखने नहीं, बल्कि शपथ लेने ही आऊँगा."
विश्वास ने कहा कि मीडिया उन्हें जब-तब कोई पार्टी ज्वाइन कराती रहती है, मगर ख़ुद उन्हें ही इसकी कोई ख़बर नहीं! यह भी कि प्रधानमन्त्री उनके मित्र हैं और जब वह मुख्यमन्त्री थे, तो उनके कई कवि-सम्मेलन उन्होंने करवाये थे.
विश्वास का पूरा रवैया यह साबित करता था कि किसी पार्टी में जाये बग़ैर, औपचारिक रूप से उस पार्टी में होने से बड़ी उसकी सेवा की जा सकती है.
एकल कविता-पाठ का समापन उन्होंने पुलवामा के शहीद सैनिकों पर लिखे गए एक भावुक गीत से किया, जो युद्ध की विडम्बना से सावधान नहीं करता था, बल्कि युद्धोन्माद जगाता था.
श्रोता गद्गद, कृतार्थ और उन्मत्त थे. वे चीख़ रहे थे. उन्हें आत्ममुग्धता, अंधराष्ट्रवाद और युद्धोन्माद की उनकी ज़रूरी और पसन्दीदा ख़ुराक मिल गयी थी.
मुझे लगा कि मैं काव्य-प्रेमियों नहीं, बल्कि देश के बेशतर ख़ुशहाल मध्यवर्ग द्वारा समर्थित भीड़ के जत्थों से घिरा बैठा हूँ ; जो ज़रा-से उकसावे पर किसी भी असहमत, कमज़ोर, ग़रीब, संदिग्ध विधर्मी अथवा 'शरणार्थी अ-नागरिक' की हत्या कर सकते हैं.
मैं जनता के कवि या जनकवि के बारे में सुनता आया था, मगर यह भीड़ का चहेता कवि था. एक बिलकुल नयी सामाजिक-राजनीतिक अवधारणा का साकार रूप !
( पंकज चतुर्वेदी जानेमाने कवि-आलोचक हैं )
Also Read
-
Two years on, ‘peace’ in Gaza is at the price of dignity and freedom
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians