Newslaundry Hindi
रिचा चड्ढा: सिर फोड़ कर आप सोच नहीं बदल सकते…
नागरिकता कानून में संशोधन को लेकर जारी वर्तमान विरोध और प्रदर्शन के बहुत पहले से रिचा चड्ढा देश के हालात पर मुखर रही हैं. वह आज के हालात के पीछे की राजनीति भी समझने लगी हैं. वह देश की गिरती आर्थिक दशा, छात्रों की फ़ीस वृद्धि, किसानों-मजदूरों की दुर्दशा से चिंतित है. ऊपर से सीएए और एनआरसी की अस्पष्टता, वह मानती हैं कि वर्तमान आन्दोलन नागरिकों के सामूहिक गुस्से का इजहार है. उनसे हुई बातचीत का पहला अंश…
व्यापक विरोध के उभार की क्या वजह है? फिल्म इंडस्ट्री, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, आम जनता… हर कोई विरोध कर रहा है?
पहली बात तो यह कि कोई भी सरकार का विरोध करना नहीं चाहता है. आखिर सरकार भी हमारी ही है. हमने ही उसे चुना है. अपने देश में जब तक चीजें हद से बाहर न चली जाएं, लोगों को गुस्सा ना आ जाए, तब तक कोई कुछ बोलता नहीं है. कोई नहीं चाहता अपनी रोजमर्रा जिंदगी से समय निकालकर प्रदर्शन में जाना, धरने पर बैठना, नारे लगाना. लेकिन जब पानी सिर के ऊपर चला जाता है तब करना पड़ता है. सारा विरोध नागरिक संशोधन अधिनियम से शुरू हुआ. अब तो इसकी अधिसूचना जारी हो गई है और यह कानून बन गया है. यह तो कॉमन सेंस की बात है. जब देश ऐसी बुरी स्थिति से गुजर रहा है. जहां अर्थव्यवस्था लगातार कमजोर हो रही है. जल्द ही वो दिन भी आ सकता है जब गरीब आदमी के पास खाने-पहनने के लिए पैसा नहीं होगा. पर्यावरण का संकट अलग है. खेती की हालत बिगड़ती जा रही है. नोटबंदी का झटका अभी तक खत्म नहीं हुआ है. उसका असर पीटीएसडी की तरह है. पूरी दुनिया के वित्त मामलों के एक्सपर्ट ये बातें बता रहे हैं. तो इन बातों को उठाने, इनके बारे में सवाल पूछने और विरोध करने से आप गद्दार नहीं हो जाते हैं. यह बात तो सामने आ चुकी है कि देश की आर्थिक स्थिति 42 सालों में सबसे बदतर मुकाम पर है. ऐसे माहौल में इतना बड़ा खतरा उठाना… नागरिक संशोधन अधिनियम लागू करना चिंता की तो बात है ही. असम में यह प्रयोग विफल रहा है. डिटेंशन सेंटर में केवल मुसलमान ही नहीं हिंदू भी गए हैं.
नागरिक संशोधन कानून लाने के पीछे एक तर्क यह दिया जा रहा है कि एनआरसी की वजह से बेदखल हुए हिंदुओं को नागरिकता दी जा सके…
अच्छी बात है आप हिंदुओं को शामिल कीजिए. उन्हें नागरिकता दीजिए. फिर श्रीलंका के तमिलों ने क्या जुल्म किया है. उन्हें भी नागरिकता दीजिए. वे भी तो 30 साल से संघर्ष कर रहे हैं, प्रताड़ित हैं. तत्कालीन प्रधानमंत्री पर श्रीलंका में आक्रमण हुआ था. बाद में राजीव गांधी की हत्या भी हुई. अनेक तमिल भारत आए हुए हैं. उन्हें भी तो नागरिकता मिलनी चाहिए. इसमें अनेक विरोधाभास है. अभी कुछ समझ में नहीं आ रहा है. गृहमंत्री ने पहले कुछ कहा. प्रधानमंत्री ने कुछ और समझाया. कुछ तो स्पष्ट हो कि सीएए, एनआरसी और एनआरपी में परस्पर क्या संबंध है? यह तो फिल्म इंडस्ट्री वाली बात हो गई. किसी की फोटो लीक हो जाती है तो वह कहता है कि किसी ने फोटोशॉप कर दिया है. देश के जिम्मेदार पदों पर बैठे हुए लोगों के बयानों में विरोधाभास बताता है कि कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ है.
भारत अभी ‘डिप्लोमेटिक आइसोलेशन’ से गुजर रहा है. देश के अंदर और बाहर की स्थिति ठीक नहीं है. मेहमानों की यात्राएं रद्द हुई हैं. देश के अंदर ही मंत्री जा नहीं पा रहे हैं. मैंने तो अपनी जिंदगी में कभी ऐसा नहीं देखा कि इतने सारे लोग सड़कों पर आ जाएं और चिल्ला-चिल्ला कर सरकार से नाराजगी दर्ज करें. ये लोग अगर कुछ कह रहे तो सरकार को सुनना चाहिए. लोगों से ही तो देश बना है. देश में इतनी दिक्कतें लाने की क्या जरूरत है? वह भी तब जब देश की इकोनॉमी आईसीयू में है.
ऐसा जनविरोध आपातकाल के बाद जेपी आंदोलन के समय दिखाई पड़ा था…
वह तो आपने और आपकी पीढ़ी ने देखा होगा. मेरी जिंदगी में तो ऐसा जनसैलाब नहीं दिखा. अन्ना हजारे का आंदोलन जंतर मंतर और रामलीला मैदान के आसपास ही केंद्रित था. दिल्ली तक ही सीमित था. लेकिन यह आंदोलन केरल से असम तक फैल गया है. देश के हर कोने में विरोध हो रहा है. लोग अल्पनाओं से कल्पनाओं तक विरोध कर रहे हैं. विरोध की शायरी चल रही है. अच्छा ही है कि हमारी पीढ़ी फैज और दुष्यंत कुमार से परिचित हो गई.
भारत के संयुक्त परिवारों में घर के बच्चों की लड़ाई हो जाती है तो कोई बड़ा-बुजुर्ग उन्हें बिठाकर समझा देता है. यहां तो उल्टा हो रहा है बच्चों की पिटाई हो रही है. उन्हें डंडे मारे जा रहे हैं. आपको क्या लग रहा है कि सिर फोड़ कर उनकी सोच बदल देंगे. ऐसा नहीं हो सकता. बिल्कुल आग में घी डालने वाली बात हो रही है. छात्रों के ऊपर जो हिंसा हो रही है, वह कभी नहीं भूल पाएंगे. ये 10-20 सालों में तो आप गुजर जाएंगे, लेकिन युवा पीढ़ी को गहरा जख्म दे जाएंगे. वे इसे कभी नहीं भूल पाएंगे?
क्या लगता है? क्यों ऐसा हो रहा है?
इन्होंने (सरकार) स्थिति संभालने के बजाय बिगाड़ दी है. पहले फीस वृद्धि का मामला था. छात्रों पर आर्थिक बोझ बढ़ा. दिल्ली यूनिवर्सिटी के शिक्षकों को निकाल दिया गया. उन्होंने भी धरना दिया, हड़ताल की. फिर छात्र भी विरोध में आ गए. उसके बाद सीएए और एनआरसी आ गया. यह चल ही रहा था कि जेएनयू में नकाबपोशों हमलावरों ने छात्रों को पीट दिया. लोग इतने नाराज और निराश हुए कि खुद ही सड़कों पर निकल आए. मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया और कार्टर रोड पर आया जनसमूह स्वत:स्फूर्त था. वह विरोध आयोजित नहीं था. कितने लोग समर्थन में आ गए. प्रदर्शनकारियों के लिए लोग पानी, खाना, दवाइयां लेकर आए. सरकार को समझना चाहिए कि यह कांग्रेस या विरोधी पार्टियों के लोग नहीं करवा रहे हैं. कांग्रेस इतनी क्षमतावान होती तो इलेक्शन नहीं जीत जाती. उनके कॉल पर तो कोई आता भी नहीं है. क्या किसी प्रदर्शन में आपने किस को ये नारा लगाते सुना कि हमारा नेता राहुल गांधी है?
आपने ऐसी स्थिति बना दी है कि आम नागरिक ही विपक्ष हो गया है. ऐसी हालत में तो आगे और दिक्कतें पैदा होंगी. अभी का विरोध प्रदर्शन गांधी के रास्ते पर चल रहा है. गांधी ने ब्रिटिश शासकों के खिलाफ जनसमूह को खड़ा किया था. उनके आर्मी, ऑफिसर और लाठी के सामने निहत्थी जनता रहती थी. आखिर इस जनसमूह में आप कितने लोगों को मारेंगे? जितने लोगों को मारेंगे, उतना आपका भी नुकसान होगा, उतनी बदनामी होगी और वही हो रहा है.
एक बात कही जा रही है कि छात्रों ने बस जला दी. नुकसान हुआ. तो देखना होगा कि किस चीज से कितना नुकसान हो रहा है. कश्मीर में इंटरनेट बंद करने से सारा कारोबार ठप पड़ गया है. पिछले 5 महीनों में कश्मीर में हुआ नुकसान हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के साल भर के कारोबार के बराबर है. 2 अरब डॉलर का हिंदी सिनेमा का सालाना कारोबार है और कश्मीर में 1.9 अरब डॉलर का नुकसान इंटरनेट बैन के चलते हो चुका है. ये बातें सामने आ रही हैं.
आप अपनी सक्रियता के बारे में क्या कहेंगी. इसका एक राजनीतिक पहलू भी है?
इसके पहले मैं राजनीति पर गंभीरता से सोच-विचार नहीं करती थी. मुझे सारे नेता एक जैसे लगते थे. वोट देने जाती थी तो उस समय जो नेता अच्छे लगते थे उनको वोट दे देती थी. अमेरिका में जैसे ट्रंप के आने के बाद अनेक नागरिकों को अपने दायित्व और मताधिकार का एहसास हुआ है, वैसा ही कुछ यहां पिछले कुछ समय के दौरान होता नजर आ रहा है. यह बहुत अच्छी बात है, लेकिन सरकार के लिए बहुत बुरी बात है. मैं सच कह रही हूं. जब दूसरी बार ये सत्ता में आए तो मुझे लगा कि चलो अब विकास होगा. सबका साथ सबका विकास से आपने विश्वास दिया था, फिर आप विश्वासघात कैसे कर सकते हैं?
डिस्कोर्स इतने निचले स्तर का हो गया है कि आप गाली गलौज के बिना बात ही नहीं कर पाते. आपको एहसास ही नहीं है कि आप कितनी जिम्मेदारी के पद पर हैं. हिंदुस्तान बहुत ही सभ्य देश है. यहां के नागरिक बेहद सरल हैं. आपने कहा काला धन आ जाएगा. वे चार महीनों तक एटीएम लाइन से जूझते रहे. उन्हें लगा कि इसमें उनका और देश का फायदा है. लेकिन हुआ क्या? इकोनामी गिरती चली गई. गुस्सा है. और यह लाजमी है. लोगों के पास नौकरी नहीं है. एक आम हिंदुस्तानी क्या चाहता है कि उसका बच्चा स्कूल में जाए, अच्छी नौकरी पाए. गरीब से गरीब और अमीर से अमीर की यही चाहत रहती है. आप शिक्षा का अपमान कर रहे हैं. किफायती शिक्षा को महंगी बना रहे हैं. जेएनयू का नारा क्या है? पुलिस का बच्चा कहां पढ़ेगा… जेएनयू जेएनयू. आप जेएनयू के उन बच्चों पर डंडे मार रहे हैं. आप जान लीजिए कि ऐसा करते रहे तो एक दिन क्लास पर बात आ जाएगी. कौन किस क्लास का है? लोगों का खीज तो बढ़ ही रहा है. मुझे तो डर है कि ऐसा ही चलता रहा तो सब कुछ ध्वस्त होने के कगार पर पहुंच जाएगा.
देश में कोई विदेशी पूंजी निवेश नहीं कर रहा है. विदेशी निवेशक भाग रहे हैं. सारे बिजनेस ठिकाने ठंडे पड़े हुए हैं. मैं तो बिजनेस परिवार से आती हूं. ना हो तो एक बार चांदनी चौक घूम आइये. किसान-मजदूर सभी तो नाराज हैं. मुझे तो किसी बड़े आंदोलन की शुरुआत लग रही है. किसी ने अनुमान नहीं लगाया था कि वर्तमान सरकार के दूसरे कार्यकाल में इतनी जल्दी, इतना कुछ बिगड़ जाएगा.
इस आंदोलन का स्वरूप क्या होगा?
मैं क्या जानूं क्या होगा? मैं तो इतना ही चाहती हूं कि हिंसा न हो. जान-माल का नुकसान ना हो.
फिल्म बिरादरी की बात करूं तो अभिनेत्रियां ज्यादा मुखर दिख रही हैं. ज्यादातर अभिनेता चुप है. मैं खान, कपूर और बच्चन की बात नहीं कर रहा हूं. यूं उनकी खामोशी भी जायज नहीं है…
जायज है. आपको याद होगा आमिर खान और शाहरुख खान ने कोई टिप्पणी की थी तो क्या हाल हुआ था? नसरुद्दीन शाह ने सहिष्णुता की बात कही लोग गाली-गलौज करने लगे. और फिर केवल मुसलमान कलाकारों से सवाल पूछने का क्या मतलब है? क्या ऐसा लगता है कि सीएए और एनआरसी से केवल मुसलमानों को फर्क पड़ेगा? क्या सारे हिंदुओं का दिल एक ही तरह धड़कता है? क्या सारे हिंदू चाहते हैं कि मुसलमान डिटेंशन सेंटर में जाएं? हम इतने बुरे दौर से गुजर रहे हैं. मेरे बाबा ने पंजाब में टेररिज्म देखा है. उन्होंने हमेशा मेरे लिए सोचा था कि हमारी जनरेशन यह सब स्किप कर जाएगी. पर ऐसा नहीं हो रहा.
(क्रमश: अगले हफ्ते दूसरा हिस्सा)
Also Read
-
Long hours, low earnings, paying to work: The brutal life of an Urban Company beautician
-
Why are tribal students dropping out after primary school?
-
TV Newsance 304: Anchors add spin to bland diplomacy and the Kanwar Yatra outrage
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
‘Opaque editorial decisions, by design’: BBC staff’s open letter on Israel-Palestine coverage