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एनएल चर्चा 98: जेएनयू हिंसा, अमेरिका-ईरान तनाव और अन्य
न्यूज़लॉन्ड्री चर्चा के इस संस्करण में मुख्यतः चर्चा का विषय रहा पिछले रविवार को जेएनयू में हुई हिंसा, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और ईरान के बीच पैदा हुआ तनाव, पाकिस्तान के ननकाना साहिब गुरुद्वारे पर हुई पत्थरबाजी और आगामी दिल्ली चुनाव. बीते रविवार की शाम तक़रीबन 50-60 की संख्या में नकाबपोश हमलावरों ने जेएनयू कैंपस में घुस कर छात्रों, अध्यापकों एवं कर्मचारियों के साथ बेरहमी से मारपीट की. इस हिंसा में जेएनयूएसयू की अध्यक्ष आइशी घोष समेत 36 लोगों को गंभीर चोट लगी है. आइशी के सर पर 16 टांके लगे हैं. दिल्ली पुलिस ने यह मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया है.
इस बीच चुनाव आयोग ने दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा कर दी है. फ़रवरी 8, 2019 को दिल्ली में मतदान होगा और परिणामों की घोषणा 11 फ़रवरी को होगी. बीते शुक्रवार को इराक में अमरीकी ड्रोन हमले में ईरान के सैन्य कमांडर कासिम सुलेमानी की मौत होने के बाद से अमेरिका और इरान के बीच तनाव और गहराता दिख रहा है. पिछले हफ्ते पाकिस्तान स्तिथ ननकाना साहिब पर भी कुछ लोगों के समूह ने पत्थरबाज़ी की. उस समूह का नेतृत्व करने वाले इमरान नामक व्यक्ति ने धमकी दी थी की हम ननकाना साहिब का नाम बदल कर गुलाम-ए-मुस्तफा कर देंगे.
इस सप्ताह चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार मयंक मिश्रा और द वायर की सलाहकार संपादक अरफ़ा ख़ानम शेरवानी बतौर मेहमान शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत अतुल ने मयंक मिश्र से जेएनयू में हुई हिंसा पर सवाल करते हुए शुरू की कि, “जिस तरह से जेएनयू में हमले को अंजाम दिया गया, बहुत सारे हथियारबंद लोग कैंपस में घुस गए, पुलिस गेट के बाहर खड़ा रहकर उनको बाहर जाते देखती रही, पूरे इलाके में बिजली काट कर अंधेरी किया गया, पत्रकारों को पुलिस के सामने पीटा गया लेकिन पुलिस मूकदर्शक बनी रही. यह सब एक सुनियोजित साजिश का इशारा करता है. मयंक आप पुलिस और प्रसाशन की इस भूमिका को किस तरह देखते हैं?”
मयंक ने अपने जवाब में कहा, “मेरा एक ही इमोशन है जिसे में एक ही शब्द में कहूंगा शर्म, मुझे शर्म आती है. जेएनयू में जो कुछ भी हुआ उसे शर्मनाक के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता. अगर कोई लड़का या लड़की बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा के किसी गांव में जेएनयू या डीयू में पढ़ने का सपना देख रहा होगा तो उसके सपने मिट्टी में मिल गए होंगे. दूरदराज के परिजन इस भयावह नजारे के बाद अफने बच्चों को जेएनयू में भेजने से डरेंगे. अगर दिल्ली में विश्वविद्यालय सुरक्षित नही हैं तो सोचिये की लाखों बच्चों का क्या होगा.”
इस मसले पर अपनी टिप्पणी करते हुए अरफा खानम शेरवानी ने दिल्ली पुलिस पर तंज कसा, “जेएनयू में जो हुआ उसे समझने के लिए कोई राकेट साइंटिस्ट होने की ज़रुरत नहीं है. हो सकता है पुलिस को न पता हो की हमलावर कौन थे. जिन्होंने नकाब पहना था, उनका नकाब क्यों नही उतारा गया. लेकिन उनके नकाब अब उतर चुके हैं. जो लोग नकाब पहने थे उनके नकाब काले ज़रूर नज़र आ रहे थे लेकिन वो भगवा नकाब थे.”
पूरी चर्चा का मुख्य बिंदु जेएनयू हिंसा बना रहा साथ में ईरान अमेरिका तनाव का भारत पर किस रूप से प्रभाव पड़ेगा इस पर विस्तार से चर्चा हुई. पाकिस्तान में ननकाना साहिब पर पत्थरबाज़ी से जो नया विवाद उत्पन्न हुआ है उस पर भी पैनलिस्टों ने अपने अपने विचार रखे.
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पत्रकारों की राय, क्या देखा, सुना और पढ़ा जाय:
मयंक मिश्रा
आरफ़ा ख़ानम शेरवानी
अतुल चौरसिया
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