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नोएडा एसएसपी वैभव कृष्ण का निलंबन और मीडिया कनेक्शन

अन्ततः उत्तर प्रदेश के पुलिस महकमे में पिछले नौ दिन से चल रही खींचतान का समापन हुआ और हाल ही में चर्चा में आए नोएडा के पूर्व पुलिस कप्तान वैभव कृष्ण को उत्तर प्रदेश की सरकार ने सस्पेंड कर दिया. गौरतलब है कि पिछले दिनों वैभव कृष्ण का एक महिला से चैट का वीडियो वायरल हुआ था जिसे उन्होंने फर्जी बताया था, लेकिन गुजरात की फॉरेंसिक लैब की रिपोर्ट में वह वीडियो और चैट सही बताया गया. इसके बाद वैभव कृष्ण को सस्पेंड कर दिया गया.

इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में कुल 14 अन्य आईपीएस अधिकारियों के तबादले एवं निलंबन भी हुए हैं. इसमें लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी, रामपुर के एसएसपी अजय पाल शर्मा एवं गाजियाबाद, सुल्तानपुर, इटावा और बांदा के पुलिस कप्तान भी शामिल हैं.

कथित वीडियो वायरल होने के बाद वैभव कृष्ण ने खुद एफआईआर कराई थी. इस मामले में मेरठ के एडीजी और आईजी को जांच की जिम्मेदारी दी गई थी. वैभव कृष्ण को अधिकारी आचरण नियमावली के उल्लंघन के वजह से सस्पेंड किया गया है और कहा गया है कि उन्होंने पत्रकार वार्ता बुलाकर प्रशासन को भेजी गई गोपनीय रिपोर्ट को लीक कर दिया था.

वैभव कृष्ण ने आईपीएस अफसरों के खिलाफ मुख्यमंत्री कार्यालय समेत, डीजीपी और अपर मुख्य सचिव (गृह) को अक्टूबर महीने में एक गोपनीय जांच रिपोर्ट भेजी थी, और दावा किया था कि जबसे उन्होंने रिपोर्ट भेजी है तबसे एक बड़ी लॉबी उनके ख़िलाफ़ साजिश रच रही है. कृष्ण के मुताबिक जो वीडियो वायरल किया गया है वो वीडियो सही नहीं है और वह इसी साजिश का हिस्सा है.

कहानी थोड़ा पीछे से

नए साल के पहले दिन जब समूचा प्रदेश ठण्ड के आगोश में था, उसी दिन दोपहर को एसएसपी वैभव कृष्ण का एक कथित विडियो सोशल मीडिया के माध्यम से सामने आया और कुछ ही घंटों के अंदर वैभव कृष्ण ने इस बारे में अपनी बात रखने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाया. उन्होंने अपने खिलाफ हो रही साजिश का आरोप लगाते हुए एक गुप्त रिपोर्ट की बात कही जो अक्टूबर में उन्होंने शासन को भेजी थी. हालांकि प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने उस गुप्त रिपोर्ट के बारे में कुछ खास नहीं बताया. बस इतना ही कहा कि वह रिपोर्ट उनके अपने ही पुलिस विभाग से जुड़ी है.

उसी दिन देर रात वैभव कृष्ण की गोपनीय रिपोर्ट मीडिया में लीक हो गई. इस रिपोर्ट के मीडिया में आने के बाद पुलिस महकमे और सरकार के आला अफसरों में हड़कम्प मच गया. आरोप लगा कि यह लीक वैभव कृष्ण ने ही किया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बाबत रिपोर्ट तलब की. दूसरी तरफ सपा-कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष ने इस मामले की सीबीआई से जांच की मांग को लेकर सरकार को घेरना शुरू कर दिया. यहां से इस मामले ने एक नया रंग ले लिया. अब कथित वायरल विडियो से ज्यादा चर्चा उस गुप्त रिपोर्ट की होने लगी. मामला तूल पकड़ने लगा. लगातार सवाल उठने के बाद गुरुवार को प्रदेश के डीजीपी व अपर मुख्य सचिव गृह को प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस मामले में सफाई देनी पड़ी.

एसएसपी नोएडा रहे वैभव कृष्ण ने अपनी गोपनीय रिपोर्ट में कविनगर पुलिस की भूमिका के जरिए विभाग में जारी ट्रांसफर-पोस्टिंग के घोटाले, उगाही और भ्रष्टाचार का जिक्र किया था. इसमें सूबे के 5 बड़े आईपीएस अधिकारियों का बाकायदा नाम लेकर उनके भ्रष्ट आचरण का सबूत दिया गया था.

इस पूरे प्रकरण की जड़ें पिछले साल अगस्त महीने में हुई एक घटना से जुड़ी हैं. 23 अगस्त, 2019 को नोएडा पुलिस ने लखनऊ, गाजियाबाद और नोएडा में छापेमारी कर 4 पत्रकारों को गिरफ्तार किया था. इनके नाम नीतिश पांडेय, चंदन राय, सुशील पंडित, उदित गोयल और रमन ठाकुर हैं. 5वां अभी फरार है, उसके ऊपर 25 हजार रुपये का इनाम है. इन चारो पत्रकारों पर गैंगस्टर एक्ट की धारां लगाई गई थीं. इन्हें फर्जी खबरें चलाने का आरोपी बताया गया था. यह बात तो सामने आई थी लेकिन असली वजह कुछ और थी. ये चारो पत्रकार नोएडा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में ट्रांसफर पोस्टिंग का रैकेट चला रहे थे. इसके जरिए ये खुद और कई अन्य बड़े पुलिस अधिकारियों के लिए धन उगाही का काम करते थे. गिरफ्तार पत्रकारों के मोबाइल फोन की जांच के आधार पर तैयार इस रिपोर्ट को वैभव कृष्ण ने पुलिस महानिदेशक और अपर मुख्य सचिव गृह को भेजा था. इस रिपोर्ट के मुताबिक, मोबाइल सीडीआर की जांच में पाया गया कि आईपीएस अजयपाल शर्मा और चार अन्य अधिकारी इन अभियुक्तों के संपर्क में थे.

इस रिपोर्ट के अनुसार लखनऊ से लेकर नोएडा तक कई अधिकारी इसमें लिप्त थे. पुलिस अधिकारियों की ट्रांसफर, पोस्टिंग के नाम पर चल रहे गड़बड़झाले को उजागर करती इस रिपोर्ट में चुनिंदा आईपीएस अफसरों के अलावा 9 हेड कांस्टेबल और इंस्पेक्टरों के नाम भी शामिल हैं. कृष्णा की रिपोर्ट में ट्रांसफर, पोस्टिंग के इस खेल का मास्टरमाइंड चंदन राय और अतुल शुक्ला को बताया गया है जो कि एक बड़े आईपीएस अधिकारी के नजदीकी हैं.

पांच अफसर और उनके मामले

1-अजयपाल शर्मा, पुलिस अधीक्षक रामपुर

अभियुक्त चंदन राय व अजयपाल शर्मा के बीच बातचीत का हवाला देते हुए दो ऑडियो रिकॉर्डिंग दी गई है जिसमें उनकी पोस्टिंग मेरठ कराने के एवज में 80 लाख रुपये लिये जाने की बात सामने आई है. कुल धनराशि का 50 प्रतिशत एडवांस और बाकी रकम एक माह के अंदर देने की बात भी रिपोर्ट में लिखी गई है. अजयपाल की पोस्टिंग के लिए चंदन राय की लखनऊ के अतुल शुक्ला से बातचीत का जिक्र भी किया गया है. रिपोर्ट में दीप्ति शर्मा नामक महिला का भी जिक्र है जिसने अधिकारी पर शारीरिक शोषण का आरोप लगाकर शिकायत की थी. उक्त महिला को बाद में थाना कविनगर, गाजियाबाद से गिरफ्तार किया गया था. इसी महिला का मोबाइल चंदन राय के पास से बरामद हुआ था. चंदन राय ने एक वीडियो अजयपाल शर्मा को व्हाट्सएप पर भेजा था जिसमें दीप्ति के मोबाइल फोन में मौजूद समस्त फोटो व वीडियो का विवरण है. अजयपाल ने चंदन को उक्त फोटो व वीडियो डिलीट करने के लिये कहा था. रिपोर्ट में थाना कविनगर की भूमिका पर भी संदेह जताया गया है.

2-सुधीर सिंह ( तत्कालीन एसएसपी गाजियाबाद)

अभियुक्त चंदन राय के मोबाइल फोन से एक एसएमएस ट्रेल का विवरण पाया गया जिसमें अभियुक्त द्वारा इंस्पेक्टर संजय वर्मा को गाजियाबाद के सिहानी गेट थाने का चार्ज दिलाने के लिये वहां के एसएसपी सुधीर सिंह से कहा गया है. सुधीर सिंह द्वारा उक्त इंस्पेक्टर को सिहानी गेट थाने का चार्ज देने से मना करने पर चंदन द्वारा विजय नगर थाने का चार्ज देने के लिए कहा गया. रिपोर्ट के मुताबिक सुधीर सिंह ने बात इधर-उधर न होने का हवाला देकर शाम को मिलने के लिए बुलाया था.

इस मामले में जब सुधीर सिंह से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने यह कहकर फोन काट दिया कि, “चंदन से मेरा कोई वास्ता नहीं है, मेरी उससे कोई चैट नहीं हुयी, सब आरोप निराधार हैं, मैंने उच्चाधिकारियों को पत्र लिखकर अपने पक्ष से अवगत करा दिया है.”

3-गणेश साहा (तत्कालीन पुलिस अधीक्षक बांदा)

चंदन राय के मोबाइल फोन के एक अन्य एसएमएस ट्रेल विवरण में एसपी बांदा के साथ संदेशों का आदान प्रदान हुआ है जिसमें गाड़ियां निकलवाने के एवज में रूपए दिये जाने का जिक्र किया गया है. रिपोर्ट में नंदग्राम, गाजियाबाद निवासी राजेश राय को एसपी बांदा के साथ हुए व्हाट्सएप विवरण भेजने का जिक्र भी है, जिसमे गाड़ियों को निकलवाने से पहले टोकन देने की बात कही गई है, साथ ही, अकाउंट डिटेल व पैसे भेजने की बात भी है.

4- राजीव नारायण मिश्र (तत्कालीन पुलिस अधीक्षक कुशीनगर)

अभियुक्त नीतिश पांडेय के साथ तत्कालीन पुलिस अधीक्षक कुशीनगर से व्हाट्सएप पर बातचीत का विवरण मिलने की बात रिपोर्ट में है. इस बातचीत में आपराधिक प्रवृति के एक आरक्षी अनिल तिवारी को एक माह के लिए जनपद में संबद्ध कराने की बात कही गई है. साथ ही, कई चौकियों सहित कुछ आरक्षियों के तबादले रुकवाने के सन्दर्भ में नीतिश पांडेय व एसपी के बीच व्हाट्सएप पर हुई बातचीत के प्रमाण भी हैं.

5-हिमांशु (तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुल्तानपुर)

अतुल शुक्ला व चंदन राय के बीच आईपीएस हिमांशु के स्थानांतरण के संबंध में व्हाट्सएप चैटिंग व ऑडियो रिकॉर्डिंग के विवरण मिले हैं जिसमें बिजनौर के लिए 30 लाख, बरेली के लिए 40 लाख व आगरा के लिए 50 लाख रुपये का उल्लेख किया गया है.

वैभव कृष्ण अकेले व्हिसिलब्लोअर नहीं हैं

इस मामले की जांच जारी ही थी कि एक अन्य आईपीएस अफसर ने वैभव के रास्ते पर चलते हुए प्रदेश सरकार को फिर से कठघरे में खड़ा कर दिया है. इसी प्रकरण का हवाला देते हुए एडीजी जसवीर सिंह ने तत्कालीन एसएसपी नोएडा वैभव कृष्ण की रिपोर्ट के आधार पर पांच आईपीएस अफसरों के खिलाफ नोएडा के सेक्टर 20 थाने में तहरीर दी है और उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अलग से पत्र लिखकर आरोपी अफसरों को उनके पदों से हटाकर निलंबित करने और उनके खिलाफ अलग से एफआईआर दर्ज करने की मांग की है.

वर्तमान में निलंबित चल रहे जसवीर सिंह ने अपनी तहरीर में भ्रष्टाचार विरोधी अधिनियम-1988 की धारा सात का उल्लेख करते हुए लिखा है कि रिपोर्ट के साथ एसएसपी नोएडा ने जो भी साक्ष्य और जानकारियां उपलब्ध करवाईं हैं, वह दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है. उनके मुताबिक़ एसएसपी वैभव कृष्ण ने खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दर्ज अपराध की विवेचना के दौरान पांच आईपीएस अफसरों के खिलाफ इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य होने का दावा किया है. जसवीर सिंह ने अपनी तहरीर में सूचनाकर्ता के रूप में हर तरह का सहयोग करने और जरूरी साक्ष्य उपलब्ध करवाने की बात भी कही है.

जसवीर सिंह ने मुख्यमंत्री को भेजे गये पत्र में लिखा है- “अफसरों द्वारा थानाध्यक्षों की पोस्टिंग-ट्रांसफर, खुद अफसरों की तैनाती को लेकर रेट लिस्ट के संबंध में अपराधियों के साथ सांठगांठ के तमाम प्रमाण हैं. इनका संज्ञान लेते हुए पांचों आरोपी अफसरों को उनके वर्तमान पदों से हटाने की जरूरत है. ऐसा नहीं होने पर वे लोग जांच प्रभावित कर सकते हैं.”

पत्र में जसवीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए लिखा है कि भ्रष्टाचार संबंधित प्रकरणों में किसी भी सामान्य व्यक्ति (जो इस देश का नागरिक हो) के प्रार्थना पत्र पर जांच शुरू की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में समयबद्ध जांच पूरी कर तीन महीने में अभियोजन की स्वीकृति होनी चाहिए इसलिए एसएसपी वैभव कृष्ण की साक्ष्यों के साथ भेजी गई रिपोर्ट पर तुरंत कार्यवाही करते हुए अलग से एफआईआर दर्ज करने की जरूरत है.

न्यूज़लॉन्ड्री के साथ बातचीत में जसवीर सिंह ने बताया, “हालिया सरकार भले ही भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रही हो, लेकिन अब तक इस मामले में किसी कार्रवाई का ना होना कई सवाल खड़े करता है. मैंने होमगार्ड विभाग में फैले भ्रष्टाचार को उजागर किया, प्रमुख सचिव होमगार्ड ने कार्रवाई का आश्वासन दिया, लेकिन उल्टे मुझ पर ही कार्रवाई कर दी गई. जिन पुलिस अफसरों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा है उनका हटाया जाना बेहद जरूरी है तभी निष्पक्ष जांच हो सकेगी.”

पिछले 10 दिनों में वैभव कृष्ण की चर्चा प्रदेश के राजनैतिक गलियारों से लेकर सोशल मीडिया के हर कोने में है. उनको न पसंद करने वालों ने उनकी पिछली तैनातियों के कुछ मामलों को हवा दी है जिसमें पिछली सपा सरकार के दौरान बुलंदशहर के एसएसपी रहने के दौरान वहां हुए एक वीभत्स गैंगरेप का जिक्र हो रहा है. इस घटना में पति पत्नी को बंधक बनाया गया था और पति के सामने रेप और लूट हुई थी. यह मामला खासा चर्चित रहा था. 36 घण्टे तक एफआईआर नहीं करने के कारण उन्हें सस्पेंड भी किया गया था. लेकिन तत्कालीन डीजीपी जावीद अहमद ने उन्हें कुछ दिन बाद पुनः बहाल कर दिया था.

उत्कोच बनाम सुशासन, नौ दिन चले अढ़ाई कोस

उत्तर प्रदेश के पुलिस विभाग में पोस्टिंग और तबादले में उत्कोच और असर आम बात है. इस पूरे मामले ने पुलिस विभाग के उस कड़वे सच को सामने भर ला दिया है. वैभव कृष्ण द्वारा दिये गये साक्ष्यों से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि कुछ चुनिन्दा आईपीएस अफसर और वरिष्ठ सरकारी अफसर सत्तारूढ़ दल के साथ मिलकर एक गठजोड़ बना चुके हैं जिसके जरिए अफसरों की पोस्टिंग आदि “मैनेज” करते हैं.

वैभव कृष्ण के ऑडियो क्लिप और आरोप के खुलासे के बाद सरकार और विभाग दोनों ही असहज हुये लेकिन हैरानी की बात यह रही कि दोनों की असहजता का मूल कारण वैभव द्वारा किया गया खुलासा नहीं बल्कि यह खुलासा क्यों किया गया, यह है. पहले से ही साख के संकट से जूझ रहे पुलिस विभाग के लिये यह मामला कोढ़ में खाज सरीखा है.

एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने नाम न छपने की शर्त पर हमसे बताया, “अगर यह आरोप सच है तो इस षडयंत्र में लिप्त लोगों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिये और वैभव की इस भ्रष्टाचारी कॉकस को उजागर करने के साहस की सराहना की जानी चाहिये. और अगर यह आरोप गलत है तब तो वैभव का स्पष्टीकरण लेकर जो भी कार्यवाही हो सकती हो, वह की जानी चाहिये.”

मामले का एक पहलू यह भी है कि जिस मामले ने प्रदेश सरकार समेत पुलिस व्यवस्था पर सवालिया निशान उठाये थे उस खुलासे पर अब तक न तो डीजीपी साहब की तरफ से और न ही सरकार की कोई प्रतिक्रिया आयी कि वे उन खुलासों के सन्दर्भ में क्या कार्यवाही करने जा रहे हैं. अगर आने वाले समय में भी इस खुलासे पर कोई जांच पड़ताल नहीं हुई तो इसका संदेश पूरे पुलिस विभाग और सरकार के लिये सकारात्मक नहीं होगा.