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साल के अंत के साथ डेक्कन क्रॉनिकल बंगलुरू संस्करण का भी समापन
“आयं… अचानक! यही था मेरा पहला रिएक्शन जब गुरुवार शाम को एचआर ने फोन पर बताया कि शुक्रवार डेक्कन क्रॉनिकल का बंगलुरू संस्करण (प्रिंट) का आखिरी दिन होगा,” डेक्कन क्रॉनिक्ल के रिपोर्टर रजत ने बताया.
अखबारों के संस्करण बंद होने के फेहरिस्त में गुरुवार शाम यह नया नाम और जुड़ गया है. इससे तकरीबन 70 कर्मचारियों की नौकरियां खतरे में आ गई हैं. हालांकि प्रबंधन कि ओर से कहा गया है कि बंगलुरू से डिजिटल संस्करण जारी रहेगा.
अखबार या कंपनी (डेक्कन क्रॉनिकल्स होल्डिंग्स लिमिटेड) की तरफ से कोई प्रेस विज्ञप्ति या आधिकारिक बयान इस बाबत जारी नहीं किया गया है. डेक्कन क्रॉनिकल के कर्मचारियों ने बताया कि गुरुवार शाम को सभी कर्मचारियों को एचआर की तरफ से फोन किया गया था. एचआर की तरफ से ही सूचना दी गई कि शुक्रवार को बंगलुरू संस्करण (प्रिंट) का आखिरी दिन होगा. अचानक बंगलुरु संस्करण बंद करने की सूचना से कर्मचारी उहापोह की स्थिति में हैं. उनके पास प्रबंधन से पूछने के लिए बहुत सारे सवाल हैं. मसलन, ऐसा क्या हुआ अचानक कि संस्करण बंद करने की नौबत आ गई? कर्मचारियों का क्या होगा? क्या उन्हें दूसरे संस्करणों में शिफ्ट किया जाएगा या उनकी नौकरी खत्म मानी जाएगी? यह वाजिब चिंता है कि प्रबंधन की तरफ से कर्मचारियों को साफ शब्दों में जानकारी दी जाय.
कर्मचारियों की चिंता यह भी है कि अगर डिजिटल संस्करण जारी रहेगा तो क्या सभी 70 कर्मचारियों को उसमें शिफ्ट कर दिया जाएगा? फिलहाल प्रबंधन की ओर से इसका भी कोई जवाब नहीं मिल सका है.
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से डेक्कन क्रॉनिकल के आठ संस्करण निकलते हैं. इसके अलावा अख़बार के चेन्नई, बंगलुरू और कोच्चि संस्करण हैं. जिसमें से इसी दिसंबर के दूसरे हफ्ते में कोच्चि संस्करण बंद किया गया था. और अब बंगलुरू संस्करण भी बंद होने की घोषणा हो चुकी है.
फरवरी 2019 में डेक्कन क्रॉनिकल होल्डिंग्स लिमिटेड ने अपना बिजनेस संस्करण फाइनेंशियल क्रॉनिकल बंद किया था. इसमें दिल्ली, बंगलुरु, हैदराबाद, मुंबई और चेन्नई के संस्करण शामिल थे. तब कहा गया था कि ब्रांड फाइनेंशियल क्रॉनिकल को बचाए रखने के लिए एशियन ऐज (नॉर्थ) और डेक्कन क्रॉनिकल (साउथ) के साथ विलय कर दिया जाएगा. “चूंकि फाइनेंसियल क्रॉनिकल के कर्मचारियों को चार महीने से तनख्वाह नहीं दिया जा सका था तो बहुत सारे कर्मचारियों ने नौकरी छोड़ दी थी. पांच संस्करणों में सिर्फ पांच रिपोर्टर बचे हुए थे, जिन्हें कंपनी के दूसरे अखबारों में शिफ्ट करना आसान था,” डेक्कन क्रॉनिकल की एक महिला रिपोर्टर ज्योति ने बताया.
डेक्कन क्रॉनिकल का कोच्चि संस्करण बंद किए जाने के पहले वहां भी कर्मचारियों को सिर्फ़ एक दिन पहले बताया गया कि अगले दिन से अखबार का कोच्चि संस्करण नहीं छपेगा. द हिंदू बिजनेस लाइन की खबर के मुताबिक, अगस्त, 2019 में डेक्कन क्रॉनिकल होल्डिंग्स लिमिटेड के प्रोमोटर्स टी वेंकटराम रेड्डी और टी विनायक रवि रेड्डी के घरों और ऑफिसों पर कथित मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप के आधार पर इनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) का छापा पड़ा था. प्रोमोटर्स पर 1000 करोड़ का बैंक फ्रॉड का आरोप लगाया गया था. सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन (सीबीआई) की चार्जशीट के अनुसार, डेक्कन क्रॉनिकल होल्डिंग के ऊपर केनरा बैंक के 357.77 करोड़, आंध्र बैंक के 225.77 करोड़, इंडियन ओवरसिज़ बैंक के 72.61, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के 72.03 और कॉरपोरेशन बैंक के 116.93 करोड़ रूपये के बैंक फ्रॉड का आरोप है.
डेक्कन क्रॉनिकल के कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें प्रबंधन की तरफ से आश्वस्त किया जाता रहा कि बंगलुरू संस्करण बंद नहीं होगा. “अक्टूबर में संपादक आदित्य सिन्हा के साथ पूरी टीम की मीटिंग हुई थी. उनकी तरफ से कहा गया था कि डेक्कन क्रॉनिकल के केरल संस्करण और एशियन ऐज कोलकाता संस्करण को बंद किया जा सकता है. बंगलुरू संस्करण जारी रहेगा,” डेक्कन क्रॉनिकल के एक रिपोर्टर बीनू ने बताया.
शुक्रवार शाम तक अखबार या कंपनी की तरफ से कोई औपचारिक बयान नहीं आया है. अखबार के जनरल मैनेजर मोहम्मद सिकंदर पहले तो न्यूज़लॉन्ड्री का नाम सुनकर झल्ला गए. फिर उन्होंने बताया कि शनिवार से डेक्कन क्रॉनिकल बाजार में नहीं आएगा, यह सच है. संस्करण बंद करने की वजह क्या रही? “मुझे नहीं मालूम. आप मुझसे ये नहीं पूछ सकते हैं. मैं डेक्कन क्रॉनिकल का प्रवक्ता नहीं हूं,” सिकंदर ने गुस्से में कहा. इस रिपोर्टर ने मोहम्मद सिकंदर को ध्यान दिलाया कि अब तक डेक्कन क्रॉनिक्ल की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आ सका है. न ही इस सिलसिले में अखबार के तरफ से कौन प्रवक्ता होगा, इसकी सूचना दी गई है.
सिकंदर ने इस सवाल का भी जवाब नहीं दिया कि बेंगलुरू संस्करण से जुड़े कर्मचारियों को प्रबंधन कैसे और कहां होगा. हालांकि, उन्होंने कहा कि प्रबंधन की तरफ से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी भी कर्मचारी की नौकरी न जाए. उन्होंने कहा, “हम अपने कर्मचारियों का ख्याल रखेंगे. उन्हें चिंता करने की कतई जरूरत नहीं है.”
बेंगलुरू संस्करण को बंद करने का निर्णय भले ही अचानक लिया गया लगता हो लेकिन कंपनी की हालत बेहतर मालूम नहीं पड़ती है. डेक्कन क्रॉनिकल के कर्मचारियों के मुताबिक, पिछले छह महीने से कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं मिली थी. “जब भी मैं एचआर से तनख्वाह के बारे में पूछता तो यही बोला जाता कि अगले महीने आएगी. फिर अगले महीने बोला जाता कि अगले दो महीने की इकट्ठा आएगी. ऐसे टालते-टालते छह महीने बीत गए,” डेक्कन क्रॉनिकल की रिपोर्टर रागिनी ने बताया. डेक्कन क्रॉनिकल की एचआर सुधा ने तनख्वाह में देरी के बारे में बात करने से इनकार कर दिया.
डेक्कन क्रॉनिकल की संपादकीय टीम का हिस्सा रहीं कावेरी बताती हैं कि उन्हें बंगलुरू संस्करण बंद होने के संबंध में कोई भी नोटिस या ईमेल नहीं आया है. लेकिन बेंगलुरू संस्करण शनिवार से नहीं आएगा, यह एचआर की तरफ से बताया गया है. “फिलहाल हमारी सबसे पहली चिंता है कि सभी कर्मचारियों की बकाया सैलरी दिलाई जाए. उनकी पीएफ जमा करायी जाए,” कावेरी ने बताया.
“जब डेक्कन क्रॉनिकल समूह के एशियन ऐज और कोच्चि संस्करण बंद हुए तभी हमें समझ लेना चाहिए था कि शायद ऐसा कुछ बंगलुरू संस्करण के साथ भी हो सकता है. यह हमारी गलती रही कि हम लोग समझ नहीं पाए. लेकिन फिर भी मेरे ख्याल में प्रबंधन की यह जिम्मेदारी बनती है कि वो हमें भोरेस में लेकर ऐसा कोई क़दम उठाता,” उन्होंने आगे कहा.
कर्मचारियों को कोई उम्मीद नहीं है कि प्रबंधन की तरफ से उन्हें मुआवजे के रूप में अगले तीन या दो महीने की तनख्वाह मिलेगाी. “हमें बस बकाया सैलरी और जो पीएफ और बाकी भत्ते मिलते हैं, वो सारे मिल जाएं वही काफी है. मैं इसीलिए भी ऐसा कह रही हूं क्योंकि कोलकाता और कोच्चि संस्करण बंद होने पर वहां के कर्मचारियों को भी मुआवजा नहीं दिया गया था,” रागिनी ने कहा.
वर्ष 2019 में मीडिया में छाई मंदी की मार का पहला एहसास ज़ी समूह के डीएनए के दिल्ली संस्करण और भोपाल से दैनिक भास्कर ग्रुप के डीबी पोस्ट के बंद होने से हुई थी. वहीं साल का अंत अपने साथ डेक्कन क्रॉनिकल का बंगलुरू संस्करण लिए जा रहा है. बज़फीड और वाइस मीडिया में भी 2019 में छंटनी हुई थी. फर्स्टपोस्ट और गवर्नेंस नाउ के प्रिंट संस्करण भी बंद हो गए. हालांकि मीडिया में नौकरियों का खराब दौर पिछले दो सालों से देखने को मिल रहा है. वर्ष 2017 में हिंदुस्तान टाइम्स (प्रिंट) ने अपने चार संस्करणों को बंद किया था. उसी वर्ष द टेलीग्राफ (प्रिंट) से सैंकड़ों मीडिया कर्मियों की छंटनी हुई. इसमें ज्यादातर जिला स्तरीय रिपोर्टर शामिल थे. 2017 में ही एनडीटीवी से तकरीबन सौ कर्मचारियों की छंटनी हुई. 2018 में टेलीग्राफ का पटना संस्करण बंद किया गया था.
(रिपोर्ट में जिक्र किए गए रिपोर्टरों के नाम उनकी पहचान छिपाने के लिए बदल दिए गए हैं.)
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