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ऑप इंडिया : मिथ्या, नफ़रत, तोड़-मरोड़, फेक न्यूज़, मुसलमान, जेएनयू, रवीश कुमार…
सबकी अपनी-अपनी नैतिकताएं और अपने-अपने सच होते हैं. अगर इस नज़रिए से देखें तो ऑप इंडिया जैसी वेबसाइट का भी अपना सच और अपनी नैतिकता है. लेकिन पत्रकारिता में नैतिकताओं और सच से भी ऊपर एक चीज होती है ‘तथ्य’ और तटस्थता. तटस्थता के सवाल पर ऑप इंडिया के संपादक अजीत भारती कहते हैं, ‘‘हम तो छुपकर नहीं रहते हैं. हम तो यह नहीं कहते हैं कि हम निष्पक्ष हैं. आज निष्पक्ष कोई नहीं है. हम खुल्लमखुला राईट की तरफ है.’’
6 दिसंबर की अल सुबह जैसे ही हैदराबाद पुलिस द्वारा बलात्कार की शिकार पशुचिकित्सक की हत्या के चारो आरोपितों को एनकाउंटर में मार गिराने की ख़बर फैली, दोपहर होते-होते इससे जुड़ी एक और ख़बर वायरल होने लगी. यह ख़बर दक्षिणीपंथी कुनबे की सहयोगी वेबसाइट ऑप इंडिया के हिंदी संस्करण पर आई थी. मिथ्या, तथ्यों की तोड़-मरोड़, झूठे दावे और कपोल कल्पनाओं की साझा पैकेजिंग को एक लेख के रूप में पेश किया गया था. वेबसाइट का दावा है कि उसके हाथ 6 दिसंबर की शाम रवीश कुमार द्वारा पेश होने वाले प्राइम टाइम की मूल स्क्रिप्ट लग गई है. यह स्क्रिप्ट डॉक्टर की हत्या के आरोपियों से संवेदना जताती है और पुलिस वालों को हत्यारा आदि बताती है. ऑप इंडिया के संपादक ने एक वीडियो जारी कर सफाई दी है कि यह व्यंग्य (सटायर) है. हालांकि इस पूरे लेख को पढ़कर किसी नए व्यक्ति को थाह भी नहीं लगेगा कि वह व्यंग्य पढ़ रहा है या सत्य. ऑप इंडिया के संपादक इसका यूआरएल में लिखा सटायर दिखाते हैं. कितने लोग किसी लेख का यूआरएल देखते हैं या उसका शीर्षक देखकर पढ़ना शुरू करते हैं यह निर्णय पाठक खुद कर लें. इस लेख की शुरुआत कुछ यूं है-
“सुबह हैदराबाद एनकाउंटर के बाद दोपहर में एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार के शाम वाले प्राइम टाइम की स्क्रिप्ट लीक हो गई, जिसकी एक कॉपी हमारे एक गुप्त सूत्र के हाथ लगी. हालांकि, ऑपइंडिया इसकी सच्चाई की कोई जिम्मेदारी नहीं लेता. हम उस स्क्रिप्ट को ज्यों का त्यों आपके लिए रख रहे हैं.
ऑप इंडिया का यह लेख उसके द्वारा पत्रकारिता की आड़ में की जा रही अनर्गल बयानबाजी का आदर्श नमूना है. मसलन यह ख़बर उसके गुप्त सूत्र के हाथ लगी लेकिन ऑप इंडिया ने इसकी पुष्टि के लिए एक बार भी रवीश कुमार (जिसके ऊपर यह लेख हमलावर है) या एनडीटीवी से पुष्टि की कोशिश तक नहीं करता. पत्रकारिता के नाम पर चल रहे इस धंधे में ऑपइंडिया को यह ध्यान है कि वह एक लाइन लिखकर कई जवाबदेहियों से बच सकता है सो वह पहले ही लिख देता है कि इसकी सच्चाई की पुष्टि वह नहीं करता, लेकिन छाप वो इसे इस तरह से रहा है कि मानों इसका हर्फ़ दर हर्फ़ ईमानदारी में पगा हुआ है. इसी लेख में रवीश की कथित स्क्रिप्ट का एक और हिस्सा पढ़िए-
“आज सुबह की ख़बर सुनी कि हैदराबाद में पशु चिकित्सक के बलात्कार और हत्या के मामले के चार आरोपितों को पुलिस ने आत्मरक्षा में मार गिराया. पुलिस इसे मुठभेड़ कह रही है. पुलिस का क्या है, वो चाहे तो इसे फिल्म की शूटिंग भी कह सकती है और इन चार लालों की मांओं को कह सकती है कि उनका बेटा जिंदा है और जेल में बंद है, बस मिलने नहीं दे सकते.”
लेख आगे कहता है- “आप सोचिए उस मां की हालत जिसके घर का एकमात्र कमाने वाला चला गया. आप सोचिए उस मां की हालत जो पहले ही अपने बेटे पर लगे आरोपों के कारण परेशान थी कि उन्हें भारत की इस लम्बी न्यायिक प्रक्रिया से लड़ना है, अब वो किसके लिए वकील लाएगी? आप सोचिए क्विंट के उस रिपोर्टर की मानसिक स्थिति जिसे फिर से उसी मां से पूछना पड़ेगा कि अपने घर के एकमात्र कमाने वाले हाथ का पुलिस के मुठभेड़ में, इस एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल हत्या का किरदार बनने पर कैसा लग रहा है!”
यह कहने की जरूरत नहीं कि रवीश कुमार ने ऐसी कोई स्क्रिप्ट उस दिन प्राइम टाइम के लिए न तो लिखा, न ही पढ़ा. ऑपइंडिया की शार्पशूटर पत्रकारिता का कुछ और नमूना उसके शीर्षकों में पढ़िए तो आपके सामने स्थिति थोड़ा और स्पष्ट होगी.
- अत्यधिक मात्रा में संभोग, घृणा की निर्बाध खेती: वामपंथियों, लिबरलों के हर आंदोलन का एकसूत्री अजेंडा
- BHU: लिबरलों, वामपंथियों, मीठे हिन्दुओं, धिम्मियों… यज्ञ की विधि मुसलमान नहीं सिखाएगा
- BHU के हिन्दू धर्म फैकल्टी में आज फिरोज खान घुसे हैं, कल विश्वनाथ मंदिर से ‘अल्लाहु अकबर’ भी बजेगा
- पत्रकारिता के अंतिम पैगंबर रवीश जी के अंतरात्मा की आवाज: सुप्रीम कोर्ट बेवफा है!
- जेएनयू: जहाँ 10 रुपए महीने पर कमरा उपलब्ध है, ‘अंकल-आंटियों’ को चट्टानों पर रात में भी जाना होता है
- मोदी की हर बात को स्टंट बताने वाला लिब्रांडू गिरोह कल को अपनी ही विष्ठा खा सकता है अगर…
ये कुछ शीर्षक हैं, ऑप इंडिया हिंदी के संपादक अजीत भारती के लिखे कुछ लेखों के. ये सभी लेख उन्होंने अक्टूबर और नवम्बर महीने में लिखे हैं. और भी तमाम लेख हैं लेकिन हम यहां सभी का जिक्र नहीं कर सकते. अजीत भारती के लेखों की भाषा देखकर आप चिंतित हो सकते हैं, लेकिन उससे ज्यादा आपको चिंता तब होगी जब आप जानेंगे कि भारती हिंदी के लेखक भी हैं और उनकी किताब ‘बकर पुराण’ को देश के सबसे बड़े हिंदी अख़बार दैनिक जागरण द्वारा बेस्टसेलर किताबों की श्रेणी में रखा गया है.
तो उपरोक्त शीर्षकों से आपको एक बात समझ आ जाएगी ऑपइंडिया के निशाने पर बहुधा वही लोग हैं जो इन दिनों मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान के निशाने पर हैं. इनमें वामपंथी, लिबरल, मुसलमान, जेएनयू और साथ में रवीश कुमार हैं. संपादक अजीत भारती बेनागा रवीश कुमार के ऊपर अपनी कुंठा का विषवमन करते रहते हैं. यह बात साफ है कि वैचारिक स्तर पर ऑप इंडिया भाजपा के करीब है और पत्रकारिता के स्तर पर वह इसके मूलभूत सिद्धांतों के आस-पास भी है या नहीं, इसका फैसला आप यह पूरी रिपोर्ट पढ़ने के बाद स्वयं करें.
ऑप इंडिया की स्टोरी
किसी भी मीडिया संस्थान के मिजाज को समझने के लिए संपादक के लिखे लेखों और ‘संपादक की पसंद’ यानी एडिटर्स च्वॉइस को देखा जाता है. 21 नवम्बर को ऑप इंडिया हिंदी के वेबसाइट पर ‘संपादक की पसंद’ की चार खबरें मौजूद थी. जिसमें से दो कांग्रेस, एक बीएचयू में संस्कृत पढ़ाने के लिए नियुक्त हुए मुस्लिम प्रोफेसर फिरोज खान और एक ख़बर रवीश कुमार से संबंधित रही.
संपादक की पसंद वाले लेखों से आसानी से यह अंदाजा लग जता है कि ऑप इंडिया की खबरों का मिजाज और कंटेंट क्या है. ऑप इंडिया के ज्यादातर लेख और रिपोर्ट विपक्ष से सवाल पूछने वाले, व्हाटअबाउटरी की जद में और मोदी सरकार के आलोचकों पर गाली-गलौज की भाषा में हमलावर होते हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने ऑप इंडिया हिंदी पर 15 नवम्बर से 29 नवम्बर के बीच छपी खबरों का अध्ययन किया. इसमें हैरान करने वाला एक पैटर्न नज़र आया.
इस्लामोफोबिया का शिकार ऑप इंडिया
ऑप इंडिया हिंदी की नौकरी छोड़ने वाले एक युवा पत्रकार अपनी नौकरी छोड़ने की वजह को वेबसाइट पर मुसलमानों के खिलाफ फैलाई जा रही नफरत को बताते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वे कहते हैं, “अगर किसी मामले में आरोपी मुसलामन समुदाय से हो तो हेडिंग में उसका नाम लिखने की मजबूरी है. ख़बर को इस तरह से लिखने के लिए मजबूर किया जाता है कि पढ़ने वाला अगर हिन्दू हो तो उसे इस्लाम के प्रति नफरत होने लगे.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी पड़ताल के दौरान पाया कि देश के अलग-अलग हिस्सों में या विदेश में हुई जिन घटनाओं में आरोपी मुस्लिम समुदाय के रहने वाले थे उसका नाम हेडिंग में लिखा गया. 15 नवम्बर से 29 नवम्बर की अवधि में ऑप इंडिया पर 28 ख़बरें मौजूद हैं जिसमें आरोपी मुसलमानों का नाम लिखा गया. चाहे घटना किसी भी तरह की रही हो. चोरी, हत्या, बलत्कार या मारपीट का मामला ही क्यों न हो.
ऑप इंडिया की नौकरी छोड़ने वाले पत्रकार नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, “मुझे व्यक्तिगत रूप से यह सही नहीं लगता था. मैंने एक-दो बार इसके खिलाफ बोला भी. एक बार तो हद हो गई जब अजीत भारती जो हमारे संपादक थे, ने ट्रिपल तलाक पर एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था ‘प्रिय मुस्लिम औरतों, आप हलाला, पॉलीगैमी और तलाक़ के ही लायक हो! क्योंकि आप चुप हो!’ मुझे यह शीर्षक नागवार गुजरा तभी मैंने नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया. खबरों के जरिए इस्लाम को बदनाम करने और बहुसंख्यक समुदाय में मुस्लिमों के प्रति नफरत भरने का काम वहां हो रहा था. मेरे पास कोई नौकरी नहीं होने के बावजूद मैं वहां से अलग हो गया. मैं नफरत फ़ैलाने के लिए पत्रकार नहीं बना था.’’
ऑप इंडिया में एक महीने काम करने के बाद नौकरी छोड़ कर एक नेशनल मीडिया में काम कर रहे एक अन्य पत्रकार बताते हैं, ‘‘ख़बर तो हम लिखते थे. अपनी समझ से हेडिंग भी बनाकर देते थे, लेकिन संपादक अपनी सुविधा और सियासत के हिसाब से उसमें बदलाव करके पब्लिश करते थे.’’
यानि ऑप इंडिया के लिए मुस्लिम समुदाय सबसे प्रिय पंचिंग बैग है. इसका एक नमूना हैदाराबाद की डॉक्टर दिशा के साथ बलात्कार और हत्या की घटना के बाद भी दिखा. जब सारा देश इस अमानवीय घटना से हैरान था तभी ऑप इंडिया ने इस मामले को भी धार्मिक रंग देते हुए लिखा- ‘मो. पाशा ने पहले से ही प्लानिंग करके किया दिशा का रेप और मर्डर, जलाई लाश: पुलिस का दावा’. हालांकि घटना के दिन ऑप इंडिया ने पीड़िता का असली नाम लिख दिया था. जो सुप्रीम कोर्ट के नियम के खिलाफ है. बाद में उस नाम को बदल दिया गया.
यहां दो समस्याएं दिखती हैं. एक तो फेक न्यूज़ और दूसरा तथ्यों को मनचाहे ढंग से ट्विस्ट करना. अगर ऑप इंडिया का अगर मकसद आरोपियों का नाम बताना ही था तो उसे बाकी तीन हिंदू आरोपितों के नाम भी शीर्षक में डालना चाहिए था. लेकिन पूरी रिपोर्ट में बाकी आरोपियों का नाम नहीं था. इस पर हल्ला मचा तब ऑप इंडिया ने ख़बर को अपडेट करते हुए बाकी आरोपियों का नाम लिखा.
कुछ हेडिंग जिसमें मुस्लिम समुदाय के आरोपियों का नाम हाईलाइट किया गया है.
- सलीम-इस्लाम ने 17 वर्षीय किशोरी को घर से उठाया, धमकी देकर किया बलात्कार: दोनों आरोपित फरार
- ‘इस्लाम क़बूलो नहीं तो बर्बाद हो जाओगे’ – पर्सिया के राजा ने फाड़ डाली थी पैगम्बर मुहम्मद की यह चिट्ठी
- Video Viral: सरपंच असलम ने हिन्दू विधवा को गोमांस खिलाया, जबरन इस्लाम क़बूल करा अकबर से कराई शादी
- अरबाज, सिकंदर, सोनू और कलाम ने नाबालिग को कार में खींचा, गैंगरेप कर Video किया वायरल
‘सरपंच असलम ने हिन्दू विधवा को गोमांस खिलाया, जबरन इस्लाम क़बूल करा अकबर से कराई शादी’ ख़बर को पढ़ने के बाद लगता है कि पूरा मामला हिन्दू बनाम मुस्लिम का हैं. ऑप इंडिया ने ये स्टोरी दैनिक भास्कर से उठाई है. यानी उसका सूत्र दैनिक भास्कर है. दैनिक भास्कर की ख़बर पढ़ने पर मालूम चलता है कि आरोपियों में सरपंच के अलावा और भी कई लोग हैं और हिंदू समुदाय के हैं.
भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता के पिता ने कहा कि 13 सितंबर को मो. अकबर उर्फ खोसला अपना धान का खेत देखने आया था. इसी दौरान ग्रामीण एतवारी मरांडी उर्फ राजा, भज्जन मरांडी, ताला टुड्डू, विनोद टुड्डू, बबलू मुर्मू, ढेक हांसदा व सुव्वल टुड्डू सहित 15-20 लोग नाजायज मजमा बना कर मो. अकबर को धान खेत से बहला-फुंसला कर पीड़िता के घर ले जाकर बांध दिया.
ऑप इंडिया की खबरों में साफ़ दिखा कि जानबूझकर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया.
इसको विस्तार से समझने के लिए हम इसके संपादक अजीत भारती के एक लेख पर नजर डालते है. ‘‘हिन्दू त्योहारों पर आम होती इस्लामी पत्थरबाज़ी: ये भी मोदी के मत्थे मढ़ दूं?’’ शीर्षक से लिखे गए इस लेख में भारती लिखते हैं, “हम अजान को सुनते हैं क्योंकि हम स्वीकारते हैं कि तुम्हारी मजहबी ज़रूरत है, तुम करते हो, इसमें समस्या नहीं. इसे पीसफुल कोएग्जिस्टेंस कहते हैं, जो शायद बहुतों को रास नहीं आता. दूसरी तरफ से यमुना की तहज़ीब बहती नहीं दिखती, गंगा वाले अकेले ढो रहे हैं. हमारे नारे से क्या दिक्कत है किसी को? क्या किसी को गाली दी जा रही है? किसी पर हमला किया जा रहा है? जैसे तुम्हारी अजान बर्दाश्त करते हैं, दिन में पांच बार, वैसे ही साल में कुछ दिन हमारी जय-जयकार भी सुन लो. क्या समस्या है?’’ बतौर संपादक इस लेख में अजीत भारती खुद को हिन्दुओं का प्रवक्ता बताने लगते है.
कुछ दिन पहले हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की लखनऊ में हत्या के बाद अजीत भारती ने एक वीडियो बनाया जिसका शीर्षक है- ‘मैं हिन्दू हूं और मुझे डर लगता है’. इस वीडियो में भारती के मुताबिक सुबह-सुबह दरवाजे की घंटी बजी. मैं दरवाजे पर गया. तीन लड़के खड़े थे. हुलिया मुसलमानों जैसा था. टोपी लगाए हुए. दाढ़ी कटी हुई. उन्होंने कहा दरवाजा खोलो, बात करनी है तुमसे. मैंने सीधे कहा कि ना तो मैं उन्हें जानता हूं और न ही दरवाजा खोलूंगा. दो दरवाजे हैं मेरे कमरे पर. पहला लोहे का है और दूसरा लकड़ी का. मैंने दूसरा दरवाजा बंद करने के लिए हाथ लगाया तो उसमें से एक ने लम्बा छुरा दिखाते हुए कहा बहुत उंगलिया चलती है तुम्हारी आजकल. कमलेश तिवारी की तरह तुझे भी हलाल कर देंगे. यह कहते हुए एक ने दरवाजे पर लोहे से प्रहार किया मुझे लगा थोड़ी देर में दरवाजा तोड़ देंगे. यह स्थिति ऐसी थी कि जहां मैं भाग नहीं सकता था. इतनी बेचैनी मैंने कभी महसूस नहीं की. मैं उन क्षणों को याद करने लगा जब एक लड़का मेरा पैर बांध देगा, दूसरा हाथ पकड़ेगा और तीसरा अरबी में कुछ बुबुदाते हुए अपने लिए जन्नत में कमरा बुक करने के लिए धीरे धीरे मेरे गले पर चाकू मारेगा.
भारती ने यह पूरी कहानी उस रात आए एक सपने के आधार पर लिख मारी थी. यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब शेयर हुआ. इस संबंध में न्यूज़लॉन्ड्री ने जब अजीत भारती से पूछा कि एक सपने का जिक्र करके आप पूरे मुस्लिम समुदाय को हत्यारे के तौर पर कैसे दिखा सकते हैं, तो वे कहते हैं, ‘‘मैंने कोई प्रभाव डालने के लिए सपने का जिक्र नहीं किया. वो सपना उस रात आया था जिस रात कमलेश तिवारी की हत्या हुई थी. मुझे मारने की धमकी मिलती रहती है. ये नहीं है कि मैं ट्विटर और फेसबुक पर स्क्रीन शॉट चिपकाता रहूं कि मुझे जान से मारने की धमकी दी गई है. मेरा नम्बर अभी पब्लिक नहीं है तो मुझे फोन करके कोई धमकी नहीं दे पाता है. जब पब्लिक हो जाएगा तो उस पर भी देगा. शायद मैं उसे किसी जगह मिल जाऊं तो मुझे भी छुरा मार देगा.’’
अजीत कहते हैं कि अगर कोई मुसलमान चोरी और बलात्कार करेगा तो मैं उसका नाम लिखूंगा. जब हमने उनसे बिहार के विधवा महिला और सरपंच वाली स्टोरी को लेकर सवाल किया कि उस घटना में आरोपी हिन्दू समुदाय से भी थे तो भारती ने कहा कि मैं ख़बर पढ़ता हूं.
कांग्रेस और राहुल गांधी को लेकर
जैसा की पहले जिक्र किया गया है कि ऑप इंडिया वेबसाइट की खबरों में एक ट्रेंड साफ दिखता है कि मोदी सरकार की आलोचना करने वालों और विपक्ष को सीधे निशाना बनाया जाता है. कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी को लेकर एक विशेष रवैये के साथ ख़बरें प्रकाशित की जाती हैं. कांग्रेस शासित राज्यों की खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता है लेकिन बीजेपी शासित राज्यों में हुई घटनाओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है. हालांकि सबके इक्का-दुक्का अपवाद हैं.
14 नवम्बर से 28 नवम्बर के बीच ऑप इंडिया पर कांग्रेस से जुड़ी 52 खबरें प्रकाशित की हैं. इसमें गांधी परिवार से एसपीजी सुरक्षा वापस लेने को लेकर तीन खबरें हैं. जिसमें बताया गया है कि क्यों गांधी परिवार से सुरक्षा वापस लेकर सरकार ने बेहतर कदम उठाया है.
कांग्रेस को निशाना बनाने की परिपाटी एक ख़बर से सत्यापित होती है. यह ख़बर कर्नाटक से जुड़ी हुई है. ‘18 महीने में 8 करोड़ रुपए कैसे कमाएं… कांग्रेस एमएलए और उनकी पत्नी ने यह कर दिखाया’. इस ख़बर में मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से ऑप इंडिया ने बताया कि कर्नाटक के हेब्बल से कांग्रेस पार्टी के विधायक बी सुरेश की पत्नी पद्मावती ने जब उपचुनाव के लिए पर्चा दाखिल किया तो उनकी संपति में आठ करोड़ का इजाफा दिखा. बी सुरेश कुमार द्वारा 2018 में चुनाव लड़ते वक़्त दी गई चल अचल संपति की जानकारी और अब 18 महीने बाद उनकी पत्नी द्वारा दी गई जानकारी में 8 करोड़ का अंतर है.
ऑप इंडिया ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए इस ख़बर को प्रकाशित तो किया लेकिन कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए और उपचुनाव लड़ रहे एमटीबी नागराज से जुड़ी ख़बर वेबसाइट से गायब है, जिसे बाकी तमाम मीडिया ने प्रमुखता से प्रकाशित किया है. आज तक की रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी में शामिल होने से पहले एमटीबी नागराज कांग्रेस में थे और उनकी ओर से दाखिल हलफनामे में संपत्ति का खुलासा यह बताता है कि उनकी संपत्ति में पिछले 18 महीने में ही 185 करोड़ रुपये का इजाफा हुआ है.
पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के दौरान एमटीबी नागराज ने अपनी संपत्ति का खुलासा करते हुए 1,015 करोड़ की संपत्ति होने की जानकारी दी थी. अब उपचुनाव के लिए मैदान में उतरे नागराज ने चुनाव अधिकारी को सौंपे अपने हलफनामे में अपने और अपनी पत्नी की 1,201 करोड़ की संपत्ति होने की बात कही है.
18 महीने में आठ करोड़ का इजाफा होना बड़ी खबर है या 18 महीने में 185 करोड़ का इजाफा होना. आज तक की ही रिपोर्ट के अनुसार नागराज ने अगस्त में इस धनराशि का 25.84 प्रतिशत महज छह दिनों में बना लिया था, जिसके ठीक एक पखवाड़े बाद उन्होंने एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली जनता दल (एस) और कांग्रेस गठबंधन वाली सरकार के पतन में मदद की थी. कांग्रेस को लेकर लिखी गई ख़बरों के शीर्षक में भी ऑप इंडिया कई बार भाषा की तमाम दहलीज पार कर जाता है.
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- प्यार की जीत: केरल में राहुल गांधी के गालों पर चुम्मी लेकर शख्स फरार, वीडियो वायरल
दूसरी तरफ अगर ऑप इंडिया हिंदी की वेबसाइट पर नरेंद्र मोदी सर्च करें तो जो ख़बरें आती है वो इसके टैग लाइन खबरों का ‘राइट’ एंगल को चरितार्थ करती नजर आती हैं.
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क्या ऑप इंडिया जानबूझ कर कांग्रेस को निशाना बनाता है. वहां से नौकरी छोड़कर अलग हुए एक रिपोर्ट कहते हैं, ‘‘वेबसाइट पर ख़बरों को देखकर आपको क्या लगा? वहां ख़बर का मकसद कांग्रेस और खास कर राहुल गांधी मजाक बनाना होता है. उसे बेकार साबित करना होता है. कांग्रेस ही नहीं बाकी विपक्षी दलों और उसके नेताओं के साथ भी वैसा ही व्यवहार होता है. अरविन्द केजरीवाल को लेकर खबरों और उसमें इस्तेमाल होने वाली तस्वीरों को देखें तो साफ़ अंदाजा लग जाएगा कि विपक्ष को किस तरह से हंसी का पात्र बनाने की कोशिश की जाती है.’’
राहुल गांधी और कांग्रेस को मजाक बनाने के सवाल को लेकर अजीत भारती कहते हैं, “राहुल गांधी को मूर्ख साबित क्या करना है. वो आदमी मुंह खोलता है और अपने आप को मूर्ख साबित कर देता है. उसका भाषण और उसकी चल ढाल देख लीजिए. वो नेता है इसलिए उसका सम्मान करना चाहिए. यह फर्जी बात है. लोगों ने पत्रकारिता की भाषाएं न जाने कैसे तय कर दी है. जो मूर्ख आदमी है उसे मूर्ख ही कहेंगे भाई. इसमें क्या दिक्कत है?’’
लेकिन ऐसा बीजेपी और उसके नेताओं के प्रति तो नहीं दिखता. जब पीएम मोदी ने एयर स्ट्राइक और आसमान में छाए बादल को लेकर बयान दिया था या गणेश को सूंड को पहली ट्रांसप्लांट सर्जरी बताया था. ये भी अवैज्ञानिक बात है लेकिन इसकी आलोचना क्यों नहीं. भारती कहते हैं, “जहां तक एयर स्ट्राइक और बादल वाली बता है. उसको लेकर हमने एक आईआईटी के प्रोफेसर का लेख छापा था. जिसमें उन्होंने बताया था कि जब बादल होते हैं तो विजिबिलिटी कम होती है. वहीं गणेश और सर्जरी वाली बात पर हम उन्हें डिफेंड नहीं करते हैं.’’
ऑप इंडिया और रवीश कुमार
कांग्रेस और राहुल गांधी के अलावा ऑप इंडिया हिंदी अपने ख़बरों के जरिए उन लोगों पर निशाना साधता है जो केंद्र की मोदी सरकार के आलोचक हैं. इस श्रेणी में सबसे ज्यादा हमला एनडीटीवी इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार पर किया जाता है.
दिवाली के अवसर पर अयोध्या में योगी आदित्यनाथ सरकार ने 1.13 करोड़ रुपए खर्च कर दीपोत्सव कराया, जहां लाखो दिये जलाकर रिकॉर्ड बनाया गया. अयोध्या में हुए इस कार्यक्रम पर ख़बर लिखते हुए हिंदुस्तान अख़बार के एक रिपोर्टर ने ‘अयोध्या में उतर आया त्रेतायुग’ शीर्षक से ख़बर लिखा जिसकी आलोचना रवीश कुमार ने अपने फेसबुक के एक पोस्ट में किया.
इस लेख की प्रतिक्रिया में अजीत भारती ने जवाबी लेख लिखा– ‘प्रिय रवीश जी, छोटे रिपोर्टर को अपमानित करने से आपका कब्ज नहीं जाएगा, चाहे कितना भी कुथिए’ इस लेख में संपादक ने आगे लिखा, ‘‘इसके लिए अब रवीश खैनी खाएं या बैठ कर कुथते रहें, ये कब्जियत नहीं मिटेगी. रवीशजी के दिमाग में कब्ज हो गया है. उनको कमोड में माथा घुसा कर हर रोज तीन बार फ्लश करना चाहिए. इससे होगा कुछ नहीं लेकिन ऐसा सोचने में बहुत आनंद मिलता है.’’
रवीश कुमार को लेकर ऑफ़ इंडिया और खासकर उसके संपादक अजीत भारती के भीतर एक किस्म का सनकपन दिखता है. वेबसाइट पर 17 जनवरी से 27 नवम्बर तक 40 से ज्यादा ख़बरें रवीश कुमार को केंद्रित कर लिखी गईं. किसी अन्य पत्रकार पर इस मुकाबले कुछ भी नहीं लिखा गया. यानि सरकार के विरोध करने की वजह से रवीश कुमार ऑप इंडिया के लिए खबरों की खान बन गए हैं.
ऊपर अजीत भारती के लेख के सिर्फ एक हिस्से का हमने जिक्र किया है, लेकिन रवीश को लेकर लिखी गई लगभग सभी ख़बरों की भाषा ऐसी ही सड़कछाप है. रवीश केंद्रित कुछ लेखों का शीर्षक देखिए…
- ‘रवीश कुमार के फैन’ ने दी सिखों के नरसंहार की धमकी, मोदी समर्थक महिलाओं को करता है प्रताड़ित
- बधाई हो रवीश जी! अनंतनाग में ग्रेनेड फेंका गया, आज ख़ुश तो बहुत होंगे आप?
- पत्रकारिता छोड़ ब्याह कराने वाले बिचौलिए की भूमिका में आ गए हैं रवीश बाबू…
- रवीश जी, पत्रकार तो आप घटिया बन गए हैं, इंसानियत तो बचा लीजिए!
- प्राइम टाइम एनालिसिस: रवीश कुमार कल को सड़क पर आपको दाँत काट लें, तो आश्चर्य मत कीजिएगा
6 नवम्बर के लेख में जिस शख्स को ‘रवीश कुमार के फैन’ के रूप में बताया गया है, इसका आधार उसका ट्विटर बायो है, जिसमें लिखा है- ‘फैन ऑफ़ रवीश कुमार’ है. अपने लेख को जस्टिफाई करने के लिए ऑप इंडिया लिखता हैं, “रवीश कुमार हमेशा आरोप लगाते हैं कि सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा फॉलो किए जाने वाले लोग माहौल को बिगाड़ रहे हैं. साथ ही वो किसी के भाजपा कनेक्शन को लेकर भी उस पर निशाना साधते हैं. वो सीधा भाजपा पर आरोप लगाते हैं कि वो असामाजिक तत्वों को शह दे रही है. हालांकि ख़ुद को ‘रवीश कुमार का फैन’ बताने वाले व्यक्ति की नरसंहार वाली धमकी को लेकर वह अपना रुख स्पष्ट करते हैं या नहीं, इसका इंतजार है. नीचे आप डॉक्टर अरुण जे का ट्विटर बॉयो देख सकते हैं.”
ऑप इंडिया के इस लेखक को ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा फॉलो किए जाने वाले लोग’ और अपने अकाउंट के बायो में ‘किसी का फैन लिखने’ में अंतर तो पता ही होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैन तो करोड़ों में हो सकते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री 2294 लोगों को फॉलो करते हैं.
अजीत भारती अपने एक अन्य लेख में रवीश कुमार को लेकर लिखते हैं, “रवीश जी, अब बीमार हो चुके हैं. एक दर्शक होने के नाते, एक बिहारी होने के नाते, एक पत्रकार होने के नाते मुझे अब चिंता होने लगी है. कल को रवीशजी सड़क पर आपसे मिलें, तथा आप से पूछ लें कि क्या आप मोदी के कामों से संतुष्ट हैं, और आपका जवाब ‘हां’ में हो तो वो आपकी बांह पर दांत भी काट लेंगे तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा. अब यही करना बाकी रह गया है.”
रवीश कुमार को लेकर वेबसाइड पर इतनी ख़बरें क्यों होती हैं इस सवाल पर अजीत भारती का जवाब हास्यास्पद की परिभाषा में आता है, ‘‘रवीश 2014 तक एक अच्छे पत्रकार थे और मैं इसलिए नहीं कह रहा कि वो उस वक़्त कांग्रेस के खिलाफ लिखते थे. पिछले पांच साल में देश में बहुत कुछ हुआ है. अच्छा और बुरा भी हुआ होगा. पांच साल में बदलाव नहीं आते है लेकिन अगर आपको पांच साल में कुछ भी सकारात्मक नहीं दिखता तो इसका मतलब है कि आपके सोचने में कुछ दिक्कत है.”
जैसे ही भारती की अश्लील भाषा की तरफ ध्यान दिलाया जाता है, वो अपने एक और प्रिय शत्रु का जिक्र छेड़ देते हैं, यह शत्रु है वामपंथ, “जहां तक भाषा की बात है तो वामपंथी तय नहीं करेंगे कि पत्रकारिता की भाषा क्या होगी. मैं पत्रकारिता का शिक्षक रह चूका हूं और जिम्मेदारी से कह रहा हूं कि भाषा समय के अनुसार बदलती है और आप किसको टारगेट करके क्या लिख रहे हैं उस हिसाब से आपको लिखना चाहिए. अश्लील हुए बिना आप कठोर शब्दों का प्रयोग कीजिए. रवीश एक लोकप्रिय और चुनाव जीतकर आए प्रधनामंत्री को लेकर कहते हैं कि आपातकाल आ रहा है. डर का महौल पैदा कर रहे हैं. हिटलर कहते हैं. ऐसे में कमोड में सर डालकर फ्लश करने में क्या दिक्कत है. सही है. गन्दी जगह है वहां पर सर डालो ताकि तुम्हारी गंदगी वह खींच ले. यह उपमान बहुत अच्छा है.’’
ऑप इंडिया की भाषा और उसके लेखों पर मीडिया क्रिटीक विनीत कुमार कहते हैं, “ऑप इंडिया जो कर रहा हैं उसमें रवीश से सहमति या असहमति का कोई मसला नहीं है. रवीश एक ट्रैफिक का नाम है. रवीश पर ख़बर लिखकर उन्हें डबल फायदा होता है. जो रवीश से असहमति रखते है और जो पसंद करते हैं, दोनों ही उसके रिपोर्ट को पढ़ते हैं. ये ऑप इंडिया को पता है. ऑप इंडिया कोई दूसरी स्टोरी करेगा तो वो ट्रैफिक उसे नहीं मिल पाएगा जो रवीश पर लिखने से आता है. ऑप इंडिया जो कर रहा है वो पत्रकारिता नहीं है. वो एक तरह का प्रोपेगेंडा है. वह एक प्रोपेगेंडा और परसेप्शन बनाने वाली मशीन है.’’
गलत सूचना और ऑप इंडिया
ऑप इंडिया का दावा है कि वह फैक्ट चेकिंग भी करता है. लेकिन हमने इस रिपोर्ट की शुरुआत जिस स्टोरी से की है उसके बाद आप ऑप इंडिया के फैक्ट चेकिंग के दावे की गंभीरता को समझ सकते हैं. ऐसे तमाम मौके आए हैं जब ऑप इंडिया खुद फर्जी ख़बरें फैलाने वालों की भीड़ में शामिल नज़र आता है. ना सिर्फ फर्जी ख़बरें फैलाने में बल्कि फर्जी ख़बर फैलाने वालों के बचाव में भी ऑप इंडिया तत्पर भूमिका निभाता दिखा है.
ऑप इंडिया द्वारा फर्जी ख़बर शेयर करने के मामले में चुनाव आयोग को भी लोगों की आलोचना का शिकार होना पड़ा था. दरअसल मई महीने में ऑप इंडिया की इंग्लिश ने एक ख़बर प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था, ‘‘आईआईटी ग्रेजुएट और एक आईएएस अफसर ने बताया कि कैसे एवीएम को हैक नहीं किया जा सकता’’. इस ख़बर को चुनाव आयोग ने अपने आधिकारिक हैंडल से रीट्वीट कर दिया. इसके बाद ईसी की सोशल मीडिया पर जमकर फजीहत हुई और उसे अपना ट्वीट डिलीट करना पड़ा.
द क्विंट वेबसाइड की रिपोर्ट के अनुसार ऑप इंडिया के आर्टिकल में कोरा वेबसाइट का हवाला दिया गया है. आर्टिकल में जिस आईएएस अफसर की बात हो रही है, उनका नाम भावेश मिश्रा है. कोरा वेबसाइट पर यूजर खुद अकाउंट बनाकर सवालों के जवाब देते हैं, इसलिए इसकी विश्वसनीयता पर यकीन करना मुश्किल है.
फर्जी ख़बरें फ़ैलाने के अलावा एक पूरा अभियान लोगों को बदनाम करने की नीयत से भी चलाया जाता है. जेएनयू फीस वृद्धि को लेकर चल रहे छात्रों के प्रदर्शन को गैरज़रूरी बताते हुए ऑप इंडिया हिंदी के संपादक अजीत भारती ने एक लेख लिखा जिसका शीर्षक है- ‘जेएनयू: जहां 10 रुपए महीने पर कमरा उपलब्ध है, ‘अंकल-आंटियों’ को चट्टानों पर रात में भी जाना होता है’.
अजीत भारती और इस तरह के सवाल करने वालों पर जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार कहते हैं, “शायद ऐसा कहने वाले लोग अभिजीत बनर्जी का नाम नहीं जानते हैं. अगर वे बीजेपी या मोदी के समर्थक हैं तो उन्होंने एस जयशंकर या निर्मला सीतारामण का नाम तो ज़रूर सुना होगा. जेएनयू अगर नक्सलियों का गढ़ है, वहां भारत विरोधी नारे लगे हैं, वहां सेक्स रैकेट चलता है, वेश्यावृति होती है, अगर उनके नजरिए से इस सारे आरोप को सही भी मान लीजिए तो सारा सवाल अमित शाह के ऊपर उठने चाहिए कि देश का गृह मंत्रालय वे कैसे चला रहे हैं, कि देश की राजधानी में यह सब हो रहा है. कानून देखने का काम किसका है.”
अपने इसी लेख में अजीत भारती लिखते हैं, “चूंकि वहां बलात्कार जैसे अपराध हो रहे हैं, मोलेस्टेशन में जेएनयू देश का प्रतिनिधित्व कर रहा है, तब इस तरह की मांगों का क्या औचित्य है?”
जेएनयू एबीवीपी के अध्यक्ष दुर्गेश कुमार, भारती के इस बयान को जेएनयू को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा बताते हैं. वे कहते हैं, “ऐसी बातें जेएनयू को बदनाम करने वाले ही कर सकते हैं. जेएनयू देश के सबसे सुरक्षित जगहों का प्रतिनिधित्व करता हैं. यहां लड़कियां देर रात तक घूम सकती हैं.”
बीते साल छात्र राजद की तरफ से जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी छात्र संघ की उम्मीदवार रहीं प्रियंका भारती दुर्गेश की बातों का समर्थन करते हुए कहती हैं, “किसी का ऐसा कहना कि मोलेस्टेशन में जेएनयू देश का प्रतिनिधित्व करता है वो उसकी कमअक्ली का सबूत है. मैं अपने घर से, अपने गांव से ज्यादा सुरक्षित यहां महसूस करती हूं.’’
भारती अपने लेख में जेएनयू में पढ़ने वाले छात्रों की उम्र पर भी टिप्पणी करते हैं. इस पर प्रियंका कहती हैं, ‘‘जो रिसर्च करेगा वहीं जानता है कि उसमें कितना वक़्त लगता है. मुश्किल से दो प्रतिशत लोग तो रिसर्च में आते हैं. उस पर भी इन्हें ऐतराज है.’’
अजीत भारती अपने लेखों के जरिए सिर्फ जेएनयू में प्रस्तावित फीस वृद्धि को नकराते हैं बल्कि जेएनयू को लेकर फर्जी ख़बर फैलाने पर सोशल मीडिया पर दुत्कारे गए आरजे रौनक का बचाव करने के लिए वीडियो भी बनाते हैं.
लोकसभा में जब भोपाल से बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताती हैं तो उस पर अजीत भारती एक लेख लिखते हैं. लेख में भारती यह कहना चाहते हैं कि गांधी की हत्या करने से गोडसे की देशभक्ति खत्म हो जाती है क्या? इस पर चर्चा होनी चाहिए. अपने लेख में एक जगह भारती लिखते हैं, “आखिर गांधी ने, जिनकी गोडसे बहुत इज्जत करते थे, ऐसा क्या किया था उस काल और परिस्थिति में कि गोडसे ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी?”
क्या यह सच है कि गोडसे गांधी का कभी सम्मान करते थे. इस सवाल के लिए हमने गांधी शांति प्रतिष्ठान के प्रमुख कुमार प्रशांत से बात किया. कुमार प्रशांत कहते हैं, “जहां तक इतिहास की बात है, उसमें कहीं भी इसका जिक्र नहीं मिलता कि गोडसे, गांधीजी को पसंद करता था. पता नहीं उन्होंने कहा से यह सन्दर्भ लिया है. गांधी की पांच दफा हत्या की कोशिश हुई. उसमें तीन दफा गोडसे सीधे शामिल थे. जब सेवाग्राम आश्रम में गांधीजी पर हमला हुआ उस समय गोडसे खुद शामिल थे. जब पंचगनी में उनपर चाकू से हमला हुआ तब चाकू लेकर जो आदमी दौड़ा वो नाथूराम गोडसे ही था. जिसको गांधी ने अपने साथ रहने के लिए आमंत्रित किया, कि दो दिन मेरे पास रहो और मुझे बताओ तो कि तुम्हें मुझसे क्या नाराजगी है. लेकिन ऐसी हिम्मत उसमें कहां थी. इतिहास तो यही बताता है.’’
ऑप इंडिया का मालिकाना हक़
ऑप इंडिया की स्थापना 2014 में राहुल राज और कुमार कमल ने मिलकर की थी. हिंदी संस्करण की शुरुआत 2018 में हुई. फिलहाल इसकी अंग्रेजी वेबसाइट की संपादक नुपुर शर्मा हैं. रेडिफ न्यूज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऑप इंडिया का मालिकाना हक़ कोवाई मीडिया नामक कंपनी के पास है. स्वराज्य मैगज़ीन का मालिकाना हक़ भी इसी कंपनी के पास है. कोवाई मीडिया में सबसे हाई प्रोफाइल निवेशक मोहनदास पाई हैं जो कि इन्फोसिस के निदेशक हैं. 31 मार्च, 2017 तक पाई के पास कंपनी की तीन फीसदी से थोड़ा ज्यादा हिस्सेदारी थी. ऑप इंडिया का अधिग्रहण अक्टूबर 2016 में कोवाई मीडिया ने किया था. इसके अलावा दो फीसदी हिस्सेदारी केटामारन वेंचर्स के पास है. इसके प्रमोटर इंफोसिस के सह संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति हैं. इस लिहाज से देखें तो देश की सबसे प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी इंफोसिस से जुड़े लोगों की ऑप इंडिया में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है.
(इस रिपोर्ट को 20-12-2019 को अपडेट किया गया है)
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