Newslaundry Hindi
अंतिम अध्याय अयोध्या का
9 नवंबर को अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पैदा परिस्थियों का आकलन करने के लिए हमने एक विस्तृत इंटरव्यू श्रृंखला शुरु करने का निर्णय लिया. आप लोगों को पता है कि अयोध्या में रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर तमाम पक्ष सुप्रीम कोर्ट में विवादित जमीन पर दावा कर रहे थे. इनमें मुस्लिम पक्ष की तरफ से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, इक़बाल अंसारी और हिंदू पक्ष की तरफ से निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान, श्रीराम जन्मभूमि न्यास, हिंदू महासभा आदि पक्ष थे.
यह फैसला आने के कुछ ही दिन बाद अयोध्या में एक अप्रिय स्थिति पैदा हो गई. भाजपा के पूर्व सांसद रामविलास वेदांती और तपस्वी छावनी के महंत परमहंस दास के बीच हुई कथित बातचीत का एक ऑडियो सामने आया. इस ऑडियो में रामविलास वेदांती खुद को सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित और केंद्र सरकार द्वारा बनाए जाने वाले ट्रस्ट का अध्यक्ष बनने की इच्छा जता रहे थे. इस बातचीत के दौरान महंत परमहंस दास ने कुछ आपत्तिजनक बातें श्रीराम जन्मभूमि न्यास के मुखिया और मणिराम छावनी के महंत नृत्य गोपालदास के बारे में कही. जैसे ही यह ऑडियो क्लिप प्रसारित हुआ, नृत्य गोपालदास के उग्र समर्थकों ने परमहंस दास को उनके आश्रम में ही घेर लिया. पत्थरबाजी और नारेबाजी होने लगी. भीड़ नारा लगाने लगी कि इन्हें ट्रस्ट का हिस्सा नहीं बनाना चाहिए.
अंतत: स्थिति इतनी बिगड़ गई कि पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा. पुलिस की निगरानी में महंत परमहंस दास को महंत नृत्य गोपालदास के हिंसक समर्थकों से बचाकर सुरक्षित ले जाना पड़ा. रामविलास वेदांती भी इस घटना के बाद से भूमिगत हो गए. यह घटना बताती है कि अयोध्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भले आ गया है लेकिन आने वाले दिनों में ट्रस्ट का निर्माण और उस पर दावा, उसमें शामिल होने को लेकर संतों-महंतों-नेताओं के बीच एक खींचतान देखने को मिल सकता है. यह आने वाले दिनों में और भी उग्र रूप में सामने आ सकता है.
अत: हमने तय किया कि दोनों पक्षों के उन तमाम मुद्दई, पक्षकारों से साक्षात्कार की श्रृंखला की जाय जो अदालत में किसी न किसी रूप से इस मामले से जुड़े रहे और और आगे भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहने की संभावना है.
हमने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव ज़फ़रयाब जिलानी, निर्मोही अखाड़े के महंत दिनेंद्र दास, श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास, मौजूदा वक्त में राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास, रामलला विराजमान के प्रतिनिधि त्रिलोकीनाथ पांडेय, मुस्लिम पक्ष की तरफ से सबसे पुराने मुद्दई इकबाल अंसारी और हाजी महबूब अली के अलावा अयोध्या नगर निगम के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय और अयोध्या के पूर्व विधायक तेजनरायण पांडेय का साक्षात्कार किया.
इन तमाम साक्षात्कारों को देखकर आपको अयोध्या के जटिल मसले की एक समझ और रूपरेखा बनाने में मदद मिलेगी. वहां की अंदरूनी राजनीति, कोर्ट के निर्णय में कौन हारा-कौन जीता? क्या सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से सभी हिंदुओं की जीत हुई है या फिर हिंदु पक्ष में भी कुछ लोग इस निर्णय को लेकर निराश हैं? केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित ट्रस्ट को लेकर किस तरह की गतिविधियां हैं? क्या विहिप और संघ को अदालत के फैसले का पहले से ही अंदाजा था? कैसे रामलला विराजमान के मुद्दई ने कहा कि प्रस्तावित ट्रस्ट को लेकर उनकी गतिविधियां छह महीने से चल रही हैं? एक संत की विश्व हिंदु परिषद द्वारा 1990 से लेकर अब तक अयोध्या में मंदिर निर्माण के नाम पर जुटाए गए करोड़ों रुपए के चंदे के हिसाब-किताब पर क्या प्रतिक्रिया थी और इस चंदे की रकम कितनी है?
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब आपको इस श्रृंखला के अलग-अलग हिस्सों में मिलेंगे. इसके अलावा भी कई दिलचस्प जानकारियां हैं जो इससे जुड़े पक्षकारों और उनकी कानूनी स्थिति के बारे में हमें बताती हैं. मसलन अयोध्या विवाद में एक पक्षकार त्रिलोकीनाथ पांडेय को लोग निर्विवाद विजेता मान रहे हैं. इस मामले में रामलला विराजमान के पक्ष में ही कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है. रामलला स्वयं तो इस मामले में अपनी पैरवी कर नहीं सकते थे लिहाजा उनके मित्र के रूप में त्रिलोकीनाथ पांडेय रामलला की पैरवी अदालत में कर रहे थे. यानि स्वयं भगवान राम के प्रतिनिधि. 1989 में पहली बार रामलला विराजमान को अयोध्या मामले में पक्षकार बनाया गया था, जबकि यह मामला 1950 से अदालतों में चल रहा था. 1989 में एक रिटायर्ड जज देवकीनंदन अग्रवाल ने पहली बार रामलला के प्रतिनिधि के तौर पर अदालत में याचिका दायर की थी.
मौजूदा समय में भी लगातार विवादित स्थल के केंद्रीय हिस्से में भगवान राम का पूजा पाठ जारी है. यह पूजा पाठ सत्येंद्र दास जी की निगरानी में होता है. सत्येंद्र दास 1992 से विवादित स्थल पर यानि राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी बने हैं. उन्हें 1992 में मस्जिद ढहाए जाने के ठीक नौ महीने पहले कोर्ट के आदेश से मुख्य पुजारी नियुक्त किया गया था. उनके सामने ही बाबरी मस्जिद को ढहाया गया. वे उन स्थानों को अभी भी चिन्हित करते हैं जो 6 दिसंबर, 1992 के पहले सीता रसोई, राम चबूतरा और बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के नाम से जाना जाता था. उनके साथ बातचीत करना एक हिंसक और उठापटक वाले इतिहास में सैर करने वाला अनुभव है.
रामलला के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद स्थिति यह बन गई है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिंदु परिषद का इस मामले में वर्चस्व स्थापित हो गया है. रामलला विराजमान के प्रतिनिधि के तौर पर त्रिलोकीनाथ पांडेय भी विहिप से हैं और इस विवाद का सबसे मुखर पक्ष श्रीराम जन्मभूमि न्यास भी संघ-विहिप का समर्थक है. लिहाजा कोर्ट के निर्णय के मुताबिक बनने वाले ट्रस्ट में न्यास और विहिप की महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर तमाम अन्य हिंदू पक्ष सशंकित हैं. इसमें निर्मोही अखाड़ा, हिंदू महासभा हैं.
उम्मीद है कि आपको यह श्रृंखला पसंद आएगी और आप सब्सक्रिप्शन के जरिए हमारी हौसलाअफजाई करेंगे. इस श्रृंखला का पहला साक्षात्कार ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव ज़फ़रयाब जिलानी के साथ आपने देखा जो कि पेवॉल के बाहर था और हमारे सभी पाठकों, दर्शकों के लिए उपलब्ध था. इसका बाकी हिस्सा आपको पेवॉल के पीछे मिलेगा. इसलिए न्यूज़लॉन्ड्री को जरूर सब्सक्राइब करें. धन्यवाद…
Also Read
-
Presenting NewsAble: The Newslaundry website and app are now accessible
-
In Baramati, Ajit and Sunetra’s ‘double engine growth’ vs sympathy for saheb and Supriya
-
A massive ‘sex abuse’ case hits a general election, but primetime doesn’t see it as news
-
Mandate 2024, Ep 2: BJP’s ‘parivaarvaad’ paradox, and the dynasties holding its fort
-
Another Election Show: Hurdles to the BJP’s south plan, opposition narratives