Newslaundry Hindi
इलेक्टोरल बॉन्ड : गड़बड़ियों और घोटालों का हिमालय
बीते हफ्ते इलेक्टोरल बॉन्ड यानि चुनाव में चंदे की नई व्यवस्था से जुड़ी छह हिस्सों की रिपोर्ट आपने न्यूज़लॉन्ड्री पर पढ़ा. वरिष्ठ पत्रकार नितिन सेठी की इस रिपोर्ट ने हमारे चुनाव तंत्र में मौजूद चंदे की अपारदर्शी व्यवस्था और राजनीतिक दलों के भ्रष्टाचार का खुलासा किया है. एक और व्यक्ति कमोडोर लोकेश बत्रा का नाम लेना जरूरी है जिन्होंने लगातार मेहनत करके आईरटीआई के जरिए इस पूरी जाकारी को हमारे सामने रखा. जो तथ्य हमारे सामने आए हैं वो बताते हैं कि इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह से भ्रष्टाचार को कानूनी रूप देने की कवायद है.
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?
1 फरवरी, 2017 को तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा की. उनका दावा था कि इसके जरिए चुनावी चंदे की व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी. नई व्यवस्था के तहत बड़े कारपोरेशन, ट्रस्ट, एनजीओ या फिर आम नागरिक अपनी पसंद के राजनीतिक दल को अपनी पहचान छुपाकर चंदा दे सकते हैं. साथ ही इसमें यह भी नहीं पता चलेगा कि किस व्यक्ति ने किस राजनीतिक दल को चंदा दिया.
इलेक्टोरल बॉन्ड एक किस्म का बेयरर बॉन्ड होता है. आप इसे किसी चेक या डिमांड ड्राफ्ट की तरह समझिए. इन्हें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के जरिए साल में चार बार, दस-दस दिनों के लिए बेचने का प्रावधान किया गया. जिस साल लोकसभा के चुनाव होने हैं, उस साल एक महीने के लिए अलग से इसकी बिक्री का प्रावधान भी किया गया है. इन बॉन्ड्स को बिक्री की तारीख से 15 दिन के भीतर भुना लेना अनिवार्य है.
इलेक्टोरल बॉन्ड में यह दिलचस्प विरोधाभास है कि अरुण जेटली ने चुनावी चंदे को पूरी तरह पारदर्शी बनाने के दावे के साथ इसकी घोषणा की थी, पर सभी पक्षों की पहचान गुप्त रखना ही इसकी सबसे बड़ी खासियत बन गया है.
सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को लागू करने के दौरान बेहद जल्दबाजी दिखाई, इससे संबद्ध तमाम संस्थानों के विरोध को खारिज किया. सलाह-मशविरे को दरकिनार किया.
आरबीआई ने किया इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध
आरबीआई ने 30 जनवरी, 2017 को, यानि अरुण जेटली की घोषणा से दो दिन पहले, इलेक्टोरल बॉन्ड के विचार से कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए सरकार को लिखा- “चुनावी बॉन्ड और आरबीआई अधिनियम में बदलाव करने से एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी. इसमें मनी लॉन्ड्रिंग की आशंका है. लोगों का भारतीय मुद्रा पर भरोसा खत्म होगा और केंद्रीय बैंकिंग कानून के आधारभूत ढांचे को खतरा पैदा हो जाएगा.”
आरबीआई ये भी कहता है “इस कदम से कई गैर-संप्रभु इकाइयां धारक दस्तावेज (बेयरर इंस्ट्रूमेंट) जारी करने के लिए अधिकृत हो जाएंगी. जबकि इसका अधिकार सिर्फ आरबीआई को है. बेयरर इंस्ट्रूमेंट करेंसी का विकल्प बन सकते हैं. इससे एक गलत परंपरा स्थापित होगी.”
इलेक्टोरल बॉन्ड पर चुनाव आयोग की आपत्ति
मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर चुनाव आयोग के कड़े विरोध को भी नजरअंदाज किया. इसके लिए सरकार ने संसद में झूठ बोला और जब सरकार के बयान पर सवाल उठने लगे तो उसने आनन-फानन में इस पर पर्दा डालने के लिए कई और झूठ बोले.
2018 के संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा सदस्य मोहम्मद नदीमुल हक़ ने सरकार से एक सवाल पूछा, “क्या भारतीय चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड के ऊपर अपना विरोध दर्ज किया था?”
तत्कालीन वित्त राज्य मंत्री पी राधाकृष्णन ने जवाब में कहा, “सरकार को इलेक्टोरल बियरर बॉन्ड के मुद्दे पर चुनाव आयोग की तरफ से किसी भी तरह के विरोध का सामना नहीं करना पड़ा.”
यह बयान सरासर गलत था जो जल्द ही सरकार के बीच हुए आतंरिक पत्राचार से साबित हो गया. मई 2017 में चुनाव आयोग ने केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय को लिखित चेतावनी दी कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को विदेशी स्रोतों से संभावित अवैध चंदे को छिपाने में मदद मिलेगी. संदिग्ध चंदादाता फर्जी (शेल) कंपनियां स्थापित करके राजनेताओं के पास काला धन पहुंचा देंगे और पैसे का सही स्रोत कभी सामने नहीं आएगा.
हमें मिले दस्तावेज बताते हैं कि चुनाव आयोग इलेक्टोरल बॉन्ड के प्रस्ताव से सहमत नहीं था. वित्त सचिव एससी गर्ग द्वारा 22 सितंबर, 2017 को अरुण जेटली को लिखा गया एक ‘गोपनीय’ नोट हमें मिला.
गर्ग के इस गोपनीय नोट में चुनाव आयुक्तों की आपत्तियों का जिक्र है, “इन बॉन्ड का इस्तेमाल शेल कंपनियों के जरिए राजनीतिक दल मनी लॉन्ड्रिंग के लिए कर सकते हैं. चुनाव आयोग ने सुझाव दिया कि सरकार अधिक पारदर्शिता लाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड के कुछ प्रावधानों को बदल दे.”
यह बात हैरान करती है कि सबकुछ जानते हुए भी वित्त राज्यमंत्री राधाकृष्णन ने 2018 के शीतकालीन सत्र में हक़ के सवाल का जवाब देते हुए संसद से झूठ बोला.
न्यूज़लॉन्ड्री के पास उपलब्ध दस्तावेज ये साबित करते हैं कि दोनों चुनाव आयुक्त, वित्त सचिव के साथ व्यक्तिगत रूप से मिलने के बाद भी लगातार बॉन्ड के खिलाफ उन्हें आगाह करते रहे.
वित्तमंत्री का सही जवाब जो अब संसदीय रिकॉर्ड का हिस्सा है, उसमें यह स्वीकार किया गया है कि चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर कड़ी आपत्ति जतायी थी.
राजनीतिक दलों की आपत्ति
कांग्रेस के तत्कालीन कोषाध्यक्ष मोती लाल बोरा ने लिखा, “सरकार राजनीतिक दलों की चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता को लेकर चिंतित है. पारदर्शिता का तात्पर्य है कि मतदाता को तीन बातें पता होनी चाहिए. एक, चंदा देने वाला कौन है और दो, किस राजनीतिक पार्टी को चंदा दिया जा रहा है और तीन, चंदे की राशि क्या है.”
प्रस्तावित योजना की किसी रूपरेखा के अभाव में बोरा ने कहा कि वित्त मंत्री के भाषण और सार्वजनिक टिप्पणियों से एक बात समझ में आती है कि चंदा देने वाले का नाम और प्राप्तकर्ता का नाम सिर्फ सरकार को ही पता होगा, आम जनता को नहीं. इसी तरह बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती, सीपीआई के महासचिव सुधाकर रेड्डी आदि ने भी इस योजना में पारदर्शिता न होने की बात कही.
इसी तरह की अन्य कई गड़बड़ियां बीते दो साल के दौरान सरकार की तरफ से देखने को मिली. लेकिन सरकार की तरफ से उन पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया है. उल्टे सरकार अभी भी यही दावा कर रही है कि इसे चुनावी चंदे की व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया है. एक सच्चाई यह भी है कि अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड की सबसे बड़ी लाभार्थी भाजपा रही है. इस घोटाले से गड़बड़ी से जुड़ी अन्य बातों को समझने के लिए यह पूरा वीडियो देखें:
Also Read
-
‘They find our faces disturbing’: Acid attack survivor’s 16-year quest for justice and a home
-
From J&K statehood to BHU polls: 699 Parliamentary assurances the government never delivered
-
Let Me Explain: How the Sangh mobilised Thiruparankundram unrest
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy