Newslaundry Hindi

चाणक्य के अलावा और किस-किस की मिट्टी पलीद हुई महाराष्ट्र प्रहसन में

महाराष्ट्र में पिछले महीने भर से चल रहे लोकतंत्र के ड्रामे में विजेता कौन होगा इसकी अटकलें लगभग उतने ही दिनों से चल रही हैं जबसे चुनाव परिणाम आए हैं. लेकिन पिछले शनिवार अलसुबह से जो कुछ हुआ, उसमें इस बात को लेकर भी चर्चा होने लगी है कि इस खेल में ‘मैन ऑफ द मैच’ कौन रहा? इस बात पर भी बहस होनी चाहिए क्योंकि सबसे पहले हमें यही दिखता है कि ‘शह और मात’ के इस खेल में कौन जीता और कौन हारा? लेकिन कुछ अन्य बातों पर बहस करने की जरूरत है कि महीने भर के इस प्रहसन में किसने क्या-क्या खोया है

राज्यपाल का

महाराष्ट्र के घटनाक्रम में सबसे ज्यादा राज्यपाल के पद की गरिमा गिरी है. ऐसा नहीं है कि यह किसी राज्यपाल द्वारा किया गया पहला कृत्य है लेकिन जिस रूप में भगत सिंह कोश्यारी ने इस पद की गरिमा को नष्ट किया है वह असाधारण है. कई राज्यपाल मिलकर शायद इस पद का इतना नुकसान नहीं कर सकते. राज्यपाल कोश्यारी ने सबसे बड़े दल के रूप में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, जो विधि सम्मत था. पहले प्रयास में जब बीजेपी सरकार बनाने से रह गई तब उन्होंने शिवसेना को ‘जरूरी कागजात’ के साथ अगले दिन शाम आठ बजे तक सरकार बनाने के लिए बहुमत का दावा पेश करने को कहा. शिवसेना सरकार बनाने का कवायद कर ही रही थी कि आठ बजे की समय सीमा से काफी पहले राज्यपाल ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी.

यह कदम अप्रत्याशित और अनैतिक था. इस रूप में हमने महाराष्ट्र में राज्यपाल के पद की गरिमा का क्षरण होते देखा. महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हटाकर बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार बनाने का यह घटनाक्रम उस वक्त हुआ जब एक दिन पहले ही शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं के बीच उद्धव ठाकरे को सीएम बनाने को लेकर सहमति बन गई थी. स्वयं शरद पवार ने 22 नवंबर, शुक्रवार को इस बात की जानकारी दे दी थी.

23 नवंबर यानि शनिवार के दिन ये तीनों पार्टियां मिलकर कामकाज के मुद्दों पर चर्चा करने वाली थीं लेकिन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने भोर-भोर में देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को मुंबई में राजभवन में शपथ ग्रहण करवा दिया. रात के साढ़े बारह बजे फडणवीस का राज्यपाल को सूचित करना और कांग्रेस-शिवसेना-एनसीपी के दावा पेश करने से पहले ही फडणवीस को दोबारा से मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाना राज्यपाल के पद की गरिमा को मटियामेट करने वाला था. इससे पहले आधी रात को ही एक काम किया गया. महाराष्ट्र में लागू राष्ट्रपति शासन को प्रधानमंत्री के विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए बिना कैबिनेट की अनुमति के हटाया गया.

प्रधानमंत्री का

सरकार गठन के नाटक में राज्यपाल के बाद प्रधानमंत्री के पद की सबसे ज्यादा छिछालेदर हुई है. प्रधानमंत्री मोदी ने हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव के बाद पार्टी कार्यालय में आयोजित विजय सभा में इसे अभूतपूर्व जीत की संज्ञा दी थी. लेकिन शिवसेना ने आधे समय के लिए मुख्यमंत्री का पद की मांग रखकर इस अभूतपूर्व जीत का स्वाद खट्टा कर दिया था.

राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने जब शिवसेना को सरकार बनाने का न्यौता दिया और आठ बजे शाम तक का समय दिया फिर उसी दिन दोपहर में महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी को ब्राजील के दौरे पर जाना था. यह सबकुछ मोदी के दवाब में हुआ. इसके बाद जब शनिवार की सुबह फडणवीस को मुख्यमंत्री व अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई तो अगले ही पल प्रधानमंत्री मोदी ने दोनों को बधाई दे दी. इसका सीधा मतलब है कि वह इस पूरे खेल में न सिर्फ हिस्सेदार थे बल्कि इसकी व्यूहरचना कर रहे थे. लिहाजा फडणवीस के इस्तीफे के बाद जो हालात दिख रहे हैं उसमें सबसे ज्यादा घाटे में प्रधानमंत्री और उस पद की गरिमा ही दिख रही है.

सुप्रीम कोर्ट की

एक सिरे से देखें तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश ने ही अंतत: फडणवीस और अजित पवार को इस्तीफा देने पर बाध्य किया. लेकिन हालात को इस हद तक पहुंचने से पहले ही कोर्ट इसे संभाल सकता था. सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता को भी इस प्रकरण में चोट पहुंची है.

जब शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार बनाने के खिलाफ अपील दायर की तो रविवार को की गई विशेष सुनवाई में ही राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट का आदेश देना चाहिए था. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ ‘जरूरी कागजात’ मांगे. अगले दिन जब कागजात कोर्ट को सौंपे गए तो कम से कम उस दिन भी फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया जा सकता लेकिन कोर्ट ने फैसला अगले दिन के लिए रिजर्व कर दिया.

जब लोकतंत्र, इसकी प्रक्रियाएं और परंपराएं दांव पर लगी हों, विधायकों की खरीद-फरोख्त एक वास्तविक खतरा बन कर मंडरा रहा हो, हाल के दिनों में इसके जरिए राज्य सरकारों को गिराने की अनगिनत घटनाएं देखने को मिली हैं, फिर भी कोर्ट द्वारा फ्लोर टेस्ट की प्रक्रिया को दो बार टरकाना समझ से परे है.

आम लोगों में ये भाव पैदा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट अनायास ही भाजपा को वह गैरजरूरी समय मुहैया करवा रही है जिसमें भाजपा विधायकों का खरीद-फरोख्त कर सकती है. कर्नाटक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 24 घंटे के अंदर येदियुरप्पा को सदन में बहुमत साबित करने का आदेश दिया था. लगभग डेढ़ साल पहले के खुद के फैसले के बाद इसी तरह के फैसले में विलंब को समझना बहुत मुश्किल है.

लोकतांत्रिक प्रक्रिया का

महाराष्ट्र के इस राजनीतिक ड्रामे से लोकतांत्रिक प्रक्रिया की साख को भी नुकसान हुआ है. चुनाव से पहले बीजेपी और शिवसेना मिलकर चुनाव लड़ी थी जबकि कांग्रेस और एनसीपी एक साथ मिलकर चुनाव मैदान में थे. चुनाव के बाद एकाएक शिवसेना की तरफ से मुख्यमंत्री पद की मांग उठी. बाद में शिवसेना की जिद को शह देने के लिए कांग्रेस और एनसीपी के बीच खिचड़ी पकने लगी. आखिर जब दो गठबंधन एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे तो एकाएक ऐसा कैसे हो सकता है कि जिसके खिलाफ आप चुनाव लड़ कर आए हैं उसी के साथ गठबंधन कर सरकार बना लें?

लेकिन कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी ने मिलकर एक अवसरवादी गठबंधन किया जिससे स्थापित लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नुकसान हुआ है. वैचारिक राजनीति को भी लोग शक की निगाह से देखने लगे हैं. अर्थात चुनाव पूर्व गठबंधन का धर्म और लोकतांत्रिक गरिमा के प्रति आस्था घटी है. यह सिर्फ महाराष्ट्र में नहीं हुआ है. हाल के दिनों में बीजेपी इस खेल को सबसे ज्यादा खेल रही है. इसे सबसे पहले बिहार में खेला गया, फिर गोवा में, दो-तीन हफ्ता पहले हरियाणा में खेला गया और चार दिन पहले महाराष्ट्र में खेला गया.

बीजेपी का

वर्ष 2014 से पहले बीजेपी खुद को ‘पार्टी विथ डिफरेंस’ के रूप में पेश करती थी. लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पार्टी का अदृश्य स्लोगन बन गया है ‘हर हाल में सत्ता’. आम गैर बीजेपी समर्थकों में यह संदेश गया है कि बीजेपी सत्ता में बने रहने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकती है. बीजेपी ने सत्ता पर काबिज होने के लिए देश के उस भाग में भी जोड़तोड़ का वैसा ही समीकरण बनाया है जहां उसकी उपस्थिति नहीं के बराबर है. बीजेपी के ‘हर हाल में सत्ता’ पर काबिज होना उसके अपने ही नारे ‘चाल, चरित्र और चेहरा’ से पूरी तरह दूर कर दिया है. हांलाकि बीजेपी के नेता इस बात को नहीं मानते. लेकिन पार्टी के कैडरों में सत्ता की भूख को लेकर उहापोह की स्थिति बनती जा रही है. जबकि हालिया बने समर्थकों में सत्ता पर कब्जा करने को मास्टर स्ट्रोक की संज्ञा दी जा रही है.

और अंत में चाणक्य का

महाराष्ट्र में बीजेपी नीत फडनवीस सरकार के पतन के बाद सबसे ज्यादा जिस व्यक्ति का नाम मलिन हुआ वह है चाणक्य.

चाणक्य एक ऐतिहासिक व सारगर्भित चरित्र है जो अपनी विद्वता, दार्शनिकता, न्यायप्रियता के साथ-साथ बेहतरीन सुझाव देने के लिए जाना जाता है. उनमें विलक्षण प्रतिभा को पहचाने का गुण था. चाणक्य को न्याय के लिए अपनी जाति और हित से ऊपर उठकर काम करने के लिए जाना जाता है. यही कारण है कि अपने अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने नंद वंश के राजा धनानंद को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए चंद्रगुप्त को तैयार किया.

बाद में मौर्य साम्राज्य के गठन के बाद चाणक्य पहले चंद्रगुप्त का और बाद में उनके पुत्र बिन्दुसार के सलाहकार भी बने. इतना ही नहीं उन्होंने अर्थशास्त्र जैसा क्लासिक ग्रंथ भी लिखा. दुखद यह है कि इस पूरे प्रकरण में कई ऐसे नाम आए जिन्हें चाणक्य की संज्ञा दी गई जो न सिर्फ निहायत मूर्ख हैं बल्कि अनैतिक और ताउम्र अन्यायप्रियता के हामी रहे हैं.