Newslaundry Hindi
इलेक्टोरल बॉन्ड: कभी जेटली ने झूठ बोला अब पियूष गोयल झूठ बोल रहे हैं
जब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए गुप्त चंदे की योजना से पर्दा उठाया था तब उन्होंने दावा किया था, “दानदाताओं ने चेक या अन्य पारदर्शी तरीकों से चंदा देने में अनिच्छा जताई है. इससे उनकी पहचान जाहिर हो जाएगी और उनके ऊपर नकारात्मक दबाव बढ़ेगा.’’
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों द्वारा बार-बार उन बेनाम दाताओं का नाम छुपाने के तर्क को जायज ठहराया गया है. गुरुवार 21 नवंबर 2019 को मोदी सरकार के वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने हमारे इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े खोजी रिपोर्ट के संबंध में बुलाई गई प्रेस कांफ्रेंस में दोहराई.
जेटली के भाषण के तीन साल बाद जब बेनाम दानदाताओं द्वारा राजनीतिक दलों को 6,108.47 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बांड दिए जा चुके हैं, तब जाकर वित्त मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि किसी भी दानदाता ने कभी भी राजनीतिक फंडिग के लिए सरकार से अपारदर्शी प्रणाली लाने की मांग नहीं की थी. यानि जेटली और गोयल सही तस्वीर सामने नहीं रख रहे थे.
यह ध्यान देने की बात है कि मंत्रालय ने ये जानकारी खुद नहीं दी, बल्कि उसे आरटीआई के जवाब में यह बताने के लिए मजबूर होना पड़ा. नाइक ने जुलाई 2017 में आरटीआई आवेदन दायर किया. कानून के तहत मंत्रालय को 30 दिनों में आरटीआई का जवाब देना होता है. लेकिन नाइक के इस आवेदन पर पहले महीने एकदम चुप्पी साध ली गई. नाइक ने जब दोबारा अपील की तो वित्त मंत्रालय ने जवाब न देने के लिए एक अलग तरीका अपनाया. उनके आवेदन को पांच महीने तक इस विभाग से विभाग तक घुमाते रहे.
अगर नाइक द्वारा दायर आरटीआई के जवाब ने साबित किया कि नरेंद्र मोदी की सरकार को चुनावी बांड के लिए किसी ने औपचारिक आग्रह नहीं किया था तो कमोडोर लोकेश बत्रा (सेवानिवृत्त) को आरटीआई से मिले इलेक्टोरल बॉन्ड संबंधित दस्तावेजों से पता चलता है कि किसी बेनाम व्यक्ति ने अनौपचारिक रूप से इस सादे कागज पर इसकी संकल्पना लिख दी थी.
उस नोट के बारे में हमने अपनी पहली किस्त में विस्तार से बताया है कि किस तरह से सादे कागज पर लिखा एक गोपनीय नोट हमें मिला जिस पर कोई तारीख, लेटरहेड, हस्ताक्षर और मुहर नहीं था.
बत्रा के मुताबिक उन्होंने जो विस्फोटक खुलासे किए हैं वह सूचना अधिकार के कानून की ताकत का सबूत हैं. एक ऐसा कानून जिसे मोदी सरकार लगातार कमजोर करने पर आमादा है.
“यह चिंता में डालने वाली बात है कि एक ओर बीजेपी दावा कर रही थी कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनावी फंडिग में पारदर्शिता लाने के लिए लागू कर रही है दूसरी तरफ वह अन्य पार्टियों के साथ मिलकर 2013 में मुख्य सूचना आयुक्त के 2013 के आदेश को मानने से इनकार कर रही थी,” बत्रा कहते हैं.
बत्रा के आरटीआई दस्तावेजों से यह बात सामने आई कि रिजर्व बैंक, चुनाव आयोग और अन्य राजनीतिक दलों ने इस बॉन्ड का कड़ा विरोध किया था. इससे यह भी पता चला कि किस तरह से मोदी सरकार के मंत्रियों ने संसद के सामने झूठ बोला. कैसे प्रधानमंत्री कार्यालय ने वित्त मंत्रालय के नियमों को तोड़ा-मरोड़ा और बॉन्ड की विशेष बिक्री की, साथ ही एक्सपायर हो चुके बॉन्ड को भी भुनाया गया.
इन खुलासों ने सवालों की एक नई इमारत खड़ी कर दी.
“वित्त मंत्रालय के किस विभाग ने इलेक्टोरल बॉन्ड को सैद्धांतिक रूप से तैयार किया और क्यों?”
क्या कानून मंत्रालय से इस बाबत सलाह ली गई, क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड को लागू करने की प्रक्रिया में तमाम पुराने कानूनों में संशोधन किया गया?
आखिर क्यों चुनाव आय़ोग ने बॉन्ड को लेकर अपनी आपत्तियों को सरकार के साथ आगे नहीं बढ़ाया जबकि सरकार ने साल भर बाद तक उन आपत्तियों का कोई जवाब नहीं दिया था?
या फिर सरकार ने आय़ोग की उन आपत्तियों वाले पत्र को ठंडे बस्ते में डाला ही क्यों?
जिस कानून ने इन खुलासों को संभव किया वह अभी खतरे में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने आरटीआई एक्ट के प्रावधानों को कमजोर कर दिया है. लिहाजा ऊपर आए सवालों के जवाब पाना अब और मुश्किल होगा.
(इस रिपोर्ट का अंग्रेजी संस्करण आप हफिंगटन पोस्ट इंडिया पर पढ़ सकते हैं)
Also Read
-
What’s Your Ism? Ep 9. feat Shalin Maria Lawrence on Dalit Christians in anti-caste discourse
-
Uttarakhand forest fires: Forest staff, vehicles deployed on poll duty in violation of orders
-
Mandate 2024, Ep 3: Jail in Delhi, bail in Andhra. Behind the BJP’s ‘washing machine’ politics
-
‘They call us Bangladeshi’: Assam’s citizenship crisis and neglected villages
-
Another Election Show: Students of Kolkata’s Jadavpur and Presidency on Modi vs Mamata