Newslaundry Hindi
चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री कार्यालय ने इलेक्टोरल बॉन्ड की अवैध बिक्री का आदेश दिया
2 जनवरी, 2018 को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने विवादास्पद इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के नियमों को आधिकरिक रूप से जारी किया. दो महीने बाद ही इन नियमों में प्रधानमंत्री कार्यालय के दिशा-निर्देश में हेरफेर करके इलेक्टोरल बॉन्ड की अवैध बिक्री को अनुमति दी गई.
गौरतलब है कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रिजर्व बैंक, चुनाव आयोग और देश के समूचे प्रतिपक्ष के मुखर विरोध के बावजूद लागू किया गया. इसके जरिए भारत की राजनीति में बड़े व्यापारिक घरानों के घुसपैठ को वैधता प्रदान कर दी गई और ऐसे तमाम लोगों को गुमनाम रहते हुए राजनीतिक दलों को चंदा देने का रास्ता खोल दिया गया. साथ ही भारतीय राजनीति में अवैध विदेशी धन के प्रवाह का रास्ता भी सुगम हो गया.
पहली बार इस योजना की घोषणा 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली के बजट भाषण में हुई. ये बॉन्ड चंदादाता की पहचान को पूरी तरह से गुप्त रखता है. चंदादाता को पैसे का स्रोत बताने की बाध्यता नहीं है और इसे पाने वाले राजनीतिक दल को यह बताने की जरूरत नहीं कि उसे किसने यह धन दिया. उसी दिन इस योजना में एक और बदलाव कर बड़े व्यापारिक घरानों की चुनावी फंडिंग की सीमा को भी समाप्त कर दिया गया. इसका अर्थ ये था कि अब बड़े कारपोरेशन अपनी पसंदीदा पार्टी को जितना चाहें उतना धन दे सकते थे.
सरकार ने 2018 में इसके लिए साल भर में 10-10 दिन के चार विंडो का प्रावधान किया. पहला जनवरी, दूसरा अप्रैल, तीसरा जुलाई और चौथा अक्टूबर में. हर साल इन्हीं चार महीनों के दरम्यान स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री कर सकता है. इसके साथ ही यह प्रावधान भी किया गया कि जिस वर्ष में लोकसभा के चुनाव होंगे उस वर्ष 30 दिन का अतिरिक्त विंडो भी होगा बॉन्ड बेचने के लिए.
सामाजिक कार्यकर्ता कमोडोर लोकेश बत्रा (सेवानिवृत्त) को मिले एक अप्रकाशित सरकारी दस्तावेज का अध्ययन कर हमने पाया कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने वित्त मंत्रालय को निर्देश देकर अपने ही बनाए नियमों का उल्लंघन किया और इलेक्टोरल बॉन्ड की अवैध बिक्री का दरवाजा खोल दिया. यह काम कुछ महत्वपूर्ण राज्यों के चुनाव से पहले हुआ, जबकि नियम कहते हैं कि इलेक्टोरल बॉन्ड की विशेष बिक्री सिर्फ लोकसभा के चुनाव के दरम्यान ही हो सकती है.
ये राज्य थे कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम. दिलचस्प है कि ये सभी चुनाव मोदी सरकार का पहला कार्यकाल खत्म होने से ठीक पहले हुए थे. इन चुनावों को लेकर उम्मीद की जा रही थी कि ये आने वाले लोकसभा चुनावों की पूर्वपीठिका सिद्ध होंगे, लेकिन अंतत: 2019 के चुनावों में मोदी ने अपने विरोधियों को निर्णायक पटखनी दे दी.
मार्च 2018 में हुई इलेक्टोरल बॉन्ड की पहली बिक्री में ही बीजेपी ने बाजी मारते हुए 95% राजनीतिक चंदे को अपने हक में भुना लिया. पार्टी की सालाना रिपोर्ट में इसका जिक्र है. हालांकि वित्त वर्ष 2018-19 में हुए सभी राज्यों के चुनाव में बीजेपी और अन्य दलों ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कितना धन जुटाया, इसका आंकड़ा अभी तक उपलब्ध नहीं है.
अवैध खिड़की खुली
इलेक्टोरल बॉन्ड के नियमों को पहले ही मौके पर तोड़मरोड़ कर दिया गया. नियमत: पहली बिक्री स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा अप्रैल 2018 में होनी चाहिए थी लेकिन इसे मार्च में ही खोल दिया गया. इस चरण में कुल 222 करोड़ रुपए के बॉन्ड बिके जिसमें से अधिकतम हिस्सा बीजेपी के खाते में गया.
अगले महीने अप्रैल में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने एक बार फिर से चुनावी चंदे के लिए बॉन्ड की बिक्री की. इस दौरान 114.90 करोड़ के बॉन्ड का लेनदेन हुआ. लेकिन मोदी सरकार अभी भी संतुष्ट नहीं हुई.
मई 2018 में कर्नाटक के विधानसभा चुनावी होने थे. इस मौके पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने वित्त मंत्रालय के निर्देश भेजा कि 10 दिन के लिए विशेष तौर पर इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री की जाय. हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय ने अपने निर्देश में कहीं भी कर्नाटक के चुनावों से इस बिक्री को नहीं जोड़ा था लेकिन वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने इस इशारे के खुद ही समझ लिया.
वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने अपने नोट में लिखा कि प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा विधानसभा चुनावों के मद्देनजर ही अतिरिक्त बिक्री की मांग की गई है.
उन्होंने इस तथ्य की ओर भी ध्यान खींचा कि वर्तमान नियमों के तहत यह संभव नहीं है.
अधिकारी लिखते हैं, “इलेक्टोरल बॉन्ड बिक्री की नियमावली जो कि 2 जनवरी, 2018 को जारी हुई है, में पैरा 8(2) में सिर्फ लोकसभा के चुनाव का जिक्र है. इसका अर्थ है कि इलेक्टोरल बॉन्ड की अतिरिक्त बिक्री का नियम राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए मान्य नहीं होगा.” वित्तीय मामलों के विभाग में तैनात तत्कालीन उप निदेशक विजय कुमार ने आंतरिक फाइलों में अपने ये विचार 3 अप्रैल, 2018 को दर्ज किए.
इसके बाद कुमार ने सुझाव दिया कि शायद कमी नियमों में ही है न कि प्रधानमंत्री कार्यालय में, इसलिए नियमों में फेरबदल कर देना चाहिए.
3 अप्रैल, 2018 के नोट में उन्होंने जो नियम लिखे वो लेखक की भावना को व्यक्त नहीं करते हैं जिसके मुताबिक बॉन्ड का इस्तेमाल लोकसभा और विधानसभा दोनो चुनाव के लिए मान्य था. उन्होंने कहा इस गड़बड़ी को सुधारने की जरूरत है.
उनके सुझाव को वित्त सचिव एससी गर्ग ने खारिज कर दिया. उनके मुताबिक अधिकारी का आकलन गलत था. “बॉन्ड के विशेष बिक्री की व्यवस्था सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए थी. अगर हम विधानसभा चुनावों के लिए विशेष विंडो खोलने लगेंगे तो साल भर के भीतर ही ऐसे अनेक विंडो खुल जाएंगे. संशोधन की जरूरत नहीं है,” गर्ग ने 4 अप्रैल, 2018 को लिखा.
11 अप्रैल, 2018 को यानि एक सप्ताह बाद जूनियर अधिकारी ने नियमों और प्रधानमंत्री कार्यालय की मांग के बीच मौजूद विरोधाभासों को स्पष्ट करने की मांग की.
उप निदेशक कुमार ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को लिखा, “पीएमओ ने चुनावी बांड जारी करने के लिए 10 दिनों के लिए एक विशेष विंडो खोलने की इच्छा जताई है. जबकि 2 जनवरी, 2018 को जारी इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की अधिसूचना के पैरा 8(2) के अनुसार एक महीने के लिए विशेष विंडो सिर्फ उसी वर्ष में खोला जाएगा जिस साल लोकसभा का चुनाव होगा. फिलहाल लोकसभा चुनाव काफी दूर हैं लिहाजा विशेष विंडो खोला जाना मौजूदा अधिसूचना के अनुरूप नहीं है.’’
यह पहली बार हुआ जब अधिकारियों ने लिखित में स्वीकार किया कि निर्देश सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से आया है.
भारतीय नौकरशाही की कार्यप्रणाली में कोई निर्देश सीधे प्रधानमंत्री से भी आता है तो इसे सरकारी रिकॉर्ड में ‘प्रधानमंत्री कार्यालय’ से आए निर्देश के रूप में दर्ज किया जाता है.
इसके बाद वित्त सचिव गर्ग को बात समझ आ गई और उन्होंने अपनी राय बदल दी. 11 अप्रैल को ही उन्होंने वित्त मंत्री जेटली को एक नोट लिखा जिसमें उन्होंने कहा कि जिस साल लोकसभा के चुनाव नहीं होंगे उन वर्षों में सिर्फ चार बार ही इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने की अनुमति है.
उन्होंने कहा, “यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इलेक्टोरल बांड बियरर बॉन्ड होते हैं. यह तभी सुरक्षित माना जाता है कि सामान्य वर्ष (जिस साल लोकसभा चुनाव न हो) में केवल चार विंडो के जरिए इन्हें जारी किया जाय ताकि इसका इस्तेमाल करेंसी के रूप में न हो सके.”
यह आरबीआई की चेतावनी के बाद किया गया. फिर भी गर्ग ने वित्तमंत्री जेटली को उन नियमों में फेरबदल करने का सुझाव दिया जिन्हें उनकी सरकार ने सिर्फ चार महीने पहले जनवरी 2018 में स्वीकृत और अधिसूचित किया था.
गर्ग ने अपनी बात ये कहते हुए खत्म की कि, ‘‘ज़रूरत को देखते हुए, हम अपवाद के तौर पर एक से 10 मई, 2018 की अवधि के लिए एक अतिरिक्त विंडो खोल सकते हैं.’’
गर्ग ने इस “ज़रूरत” को ठीक से स्पष्ट नहीं किया लेकिन जेटली ने इस अपवाद को सहमति दे दी.
वित्त मंत्रालय ने अपनी फाइलों में दावा किया कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पीएमओ के निर्देश पर इलेक्टोरल बॉन्ड की इस अवैध बिक्री को एक अपवाद मामले के तौर पर मंजूरी दी गई.
लेकिन 2018 के अंत में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने थे. ऐसे वक्त में इलेक्टोरल बॉन्ड को नियंत्रित करने वाले नियमों में फेरबदल करना बीजेपी सरकार आदत बन गई.
और यह एक परिपाटी बन गया…
नवंबर-दिसंबर में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित थे. एक बार फिर से उप निदेशक विजय कुमार ने 22 अक्टूबर, 2018 को अपने सीनियर्स के पास एक नया प्रस्ताव लेकर पहुंचे. इसमें एक बार फिर से नवंबर महीने में इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री के लिए विशेष विंडो खोलने की बात थी. ठीक चुनावों से पहले. इस बार उन्होंने यह नहीं बताया कि निर्देश कहां से आए थे, लेकिन इन निर्देशों का उद्देश्य साफ़ था.
उनके नोट से स्पष्ट हो गया कि बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने मई 2018 में ‘विशेष विंडो के नाम से इलेक्टोरल बॉन्ड की जो अवैध बिक्री शुरू की थी वह आगे एक परंपरा के तौर पर निभाई जाएगी.
22 अक्टूबर, 2018 को कुमार द्वारा लिखे गए नोट में कहा गया है, “पांच राज्य विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री के लिए 10 दिन का अतिरिक्त विशेष विंडो खोलने का प्रस्ताव आया है. इससे पहले एक से 10 मई, 2018 के बीच कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले भी वित्त मंत्री की सहमति से इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री के लिए विशेष विंडो खोला गया था.”
वित्त सचिव एससी गर्ग और तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बिना संकोच के इस पर हस्ताक्षर कर दिया. इस बार खुले विशेष विंडो में 184 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए एसबीआई से खरीदे गए.
इस बाबत हमने प्रधानमंत्री कार्यालय को विस्तार से सवालों की एक सूची भेजी है जिसका अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. उनका जवाब मिलने पर हम इस स्टोरी में उसे शामिल करेंगे.
मई 2018 में प्रधानमंत्री कार्यालय के आदेश पर जो बात सिर्फ एक बार कानून में तोड़मरोड़ से शुरू हुई थी उसे नवंबर 2018 तक आते-आते मोदी सरकार ने एक स्थापित परंपरा बना दिया. मई 2019 तक 6000 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड की खरीददारी हुई जिन्हें राजनीतिक दलों को बतौर चंदा दिया गया. जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है इस पैसे में सबसे बड़ी लाभार्थी भारतीय जनता पार्टी रही.
Also Read
-
Toxic air, confined indoors: Delhi doesn’t let its children breathe
-
Hyundai Creta EV enters a crowded ring. Can it charge ahead?
-
As Punjab gets attention, data suggests Haryana, UP contribute to over a third of Delhi’s PM 2.5
-
Can truth survive the fog of war? Lessons from Op Sindoor and beyond
-
Bogus law firm and fake Google notices: The murky online campaign to suppress stories on Vantara