Newslaundry Hindi
संस्कृति के नाम पर स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही बीजेपी
कुपोषण से निपटने के लिए मध्य प्रदेश सरकार आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों और गर्भवति मांओं के खाने में अंडा शामिल करने की तैयारी कर रही है. महिला एवं बाल विकास विभाग ने इसका प्रस्ताव पेश किया है जिसे कैबिनेट की मंजूरी के बाद लागू किया जा सकेगा. इस ख़बर के आने के बाद मध्य प्रदेश की राजनीति में हलचल सी हो गई है. भारतीय जनता पार्टी के कई नेता खुलेआम इस प्रस्ताव के विरोध पर उतर आए हैं.
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा, “भारत के जो संस्कार हैं, सनातन संस्कृति में मांसाहार निषेध है. अगर बचपन से ही हम इसे खाएंगे तो बड़े होकर नरभक्षी नहीं हो जाएंगे.” भार्गव के इस बयान से पहले बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी इस फैसले का विरोध करते हुए कहा था कि वे इसका विरोध करेंगे. उन्होंने कहा कि लोगों के धार्मिक विश्वास के बीच किसी को भी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
14 साल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि अंडे के कई और विकल्प हैं. उन्होंने कहा कि उनके समय में भी अंडा देने का प्रस्ताव आया था लेकिन उसके बजाय सरकार ने दूध को चुना और उसे लागू किया. चौहान के बयान पर महिला बाल विकास मंत्री इमरती देवी ने कहा है कि अंडा शाकाहारी खाना है. इमरती देवी ने कहा कि जो बच्चों की सेहत के लिए अच्छा है वो किया जाएगा. डॉक्टरों की सलाह मानी जाएगी. इमरती देवी ने कहा, “अंडा तो शाकाहारी है लेकिन जो लोग विरोध करते है वो रेस्टोरेंट में जाकर पता नहीं क्या-क्या खाते हैं. अंडा देने से बच्चों की सेहत ठीक होगी. इसीलिए ये फैसला लिया गया है.”
मध्य प्रदेश में अंडे को लेकर बीजेपी का यह विरोध नया नहीं है. यहां बीजेपी के सरकार रहते कई बार कुपोषण से निपटने के लिए आंगनवाड़ी में अंडा देने का प्रस्ताव सामने आया था लेकिन पार्टी की राजनीतिक लाइन (सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का एक पक्ष शाकाहार भी है) के दबाव में ये प्रस्ताव हमेशा सिरे से खारिज किया जाता रहा.
वर्ष 2015 में महिला एवं बाल विकास विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव जेएन कंसोटिया ने आंगनवाड़ी के खाने में अंडा शामिल करने का प्रस्ताव कैबिनेट को भेजा था लेकिन तब सरकार के कई मंत्रियों ने इसका विरोध किया. इसके बाद वर्ष 2016 में भारत के कृषि मंत्रालय ने मध्य प्रदेश में बच्चों के खाने में अंडा शामिल करने के लिए पत्र लिखा था. हालांकि उस प्रस्ताव को भी लागू नहीं किया जा सका.
मध्य प्रदेश में ‘सनातन संस्कृति’ के नाम पर अंडे का विरोध हर बार सफल हो जाता है. हालांकि आंकड़ों की तरफ नजर डाले तो प्रदेश में अंडा या मांसाहार करने वाले लोगों की संख्या काफी है. सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के 2014 के बेसलाइन सर्वे में पाया गया कि मध्य प्रदेश के 51.1 प्रतिशत लोग मांसाहारी हैं.
खैर लोगों के खान-पान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात है मध्य प्रदेश में बच्चों के पोषण की चिंताजनक स्थिति. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के पांच साल से कम उम्र के 42 फीसदी बच्चे ठिगनेपन के शिकार हैं, यानि वे देश की औसत लंबाई से पीछे रहते हैं. इसकी प्रमुख वजह कुपोषण है. इसी तरह पांच साल से कम उम्र के 42.8 फीसदी बच्चे तय मानक से कम वजन के हैं. जाहिर है इशका भी सीधा संबंध कुपोषण से है. 25.8 प्रतिशत बच्चों का बॉडी मास इंडेक्स का अनुपात सही नही है. वे बेहद पतले हैं. 68.9 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी है. ये आंकड़े चिंताजनक है. इसके मद्देनजर बीजेपी का विरोध गैरजरूरी मालुम पड़ता है.
समाजिक कार्यकर्ता और अशोका फैलो सचिन कुमार जैन पिछले 10 वर्षों से अंडे को लेकर जारी घटनाक्रमों पर नजर बनाए हुए हैं. उन्होंने कहा, “मध्य प्रदेश जैसे राज्य में जहां कुपोषण अपने चरम पर है, अंडे को बच्चों के आहार में शामिल करना बहुत जरूरी है. वे कहते हैं कि मध्य प्रदेश आदिवासी बाहुल्य राज्य है और यहां 2011 की जनगणना के मुताबिक 1.6 करोड़ आदिवासी रहते हैं. आदिवासी समाज में मांसाहार सामान्य बात है, उन्हें अंडा खाने से कोई ऐतराज भी नहीं है. विडंबना यह है कि अंडे का विरोध उस समाज के लोग कर रहे हैं जिनका पोषण स्तर काफी बेहतर है. जिस समाज के लोगों को इसकी जरूरत है उसके बच्चों को अंडे से मरहूम रख रहे हैं. मध्य प्रदेश के आदिवासी कुपोषण से बुरी तरह प्रभावित हैं. सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में शिशु मृत्यु दर देश में सबसे अधिक 47 पहुंच गया है.”
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे को आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए जैन कहते हैं, “जैन समाज जो कि शाकाहारी हैं, उसके बच्चों में कुपोषण के मापदंड का आदिवासी समाज के बच्चों से तुलना करेंगे तो एक लंबी खाई दिखेगी. गंभीर ठिगनापन यानि कि कम लंबाई के मामले में जैन समाज के महज 2.2 प्रतिशत बच्चे मिलेंगे, जबकि आदिवासियों में यह 23.5 प्रतिशत है. वहीं अति कुपोषण का आंकड़ा देखें तो जैन समाज के 4 प्रतिशत बच्चे इसमें शामिल हैं जबकि 10.9 प्रतिशत आदिवासी बच्चे अति कुपोषित हैं.”
सचिन जैन बताते हैं कि आदिवासी या ऐसे कई घरों के बच्चे जिन्हें अंडा खाने से कोई परहेज नहीं, उन्हें इससे दूर रखने का मतलब नहीं दिखता है. अंडा उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन का सस्ता स्रोत है और इसे कम खर्चे में उपलब्ध किया जा सकता है. शाकाहारी बच्चों के लिए दूसरे इंतजाम भी किए जा सकते हैं. जिस प्रदेश में 45 लाख बच्चे कुपोषित हों और हर साल 80 से 90 हजार बच्चों की मौत कुपोषण से हो जाती है वहां इससे लड़ने के उपायों को गंभीरता से लेना चाहिए.
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल के कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग से जुड़े एडिशनल प्रोफेसर डॉ. सूर्या बाली ने बताया कि वे खुद भी आदिवासी समाज से आते हैं लिहाजा इस समस्या पर एक चिकित्सक के अलावा भी बहुत कुछ बता सकते हैं. वे कहते हैं, “अंडा सबसे सस्ता, सबसे अच्छी गुणवत्ता का प्रोटीन स्रोत है जिसे परोसना और पचाना दोनों आसान है. मध्य प्रदेश सरकार को अगर किसी ने इसे आंगनवाड़ी के बच्चों को खिलाने की सलाह दी है तो उसने बहुत ही सोच समझकर ये निर्णय लिया है. इस तरह शिशुओं में होने वाले शुरुआती मांसपेशी के विकास और मानसिक विकास में मदद मिलेगी. 5 साल की उम्र तक बच्चों का विकास बहुत ही जटिल होता है और इस वक्त पोषण की बहुत आवश्यकता होती है. इसके बाद बच्चे को अमृत भी पिला दें तो वह फायदा नहीं होगा.”
अंडे के विरोध पर डॉ. बाली कहते हैं कि हर समाज में चाहे सरकार किसी की भी हो दो वर्ग साजिश के तहत बनाए जाते हैं, एक पिछड़ा और एक समृद्ध. समृद्ध वर्ग हमेशा साजिश करता है कि पिछड़े लोग कहीं मानसिक, शारीरिक और आर्थिक विकास कर उनके बराबर न पहुंच जाए. बाली इस विरोध को उसी साजिश का हिस्सा मानते हैं.
उच्च वर्ग के सामने दब जाती है आदिवासी जन प्रतिनिधियों की आवाज
मध्य प्रदेश में 230 विधायकों में से 70 विधायक आदिवासी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन पिछली सरकारों में अंडा ने देने के फैसले का उनकी तरफ से कोई खास विरोध नहीं हुआ. वहीं ‘उच्च वर्ग‘ के जनप्रतिनिधि बच्चों को अंडा न देने के पक्ष में थे और उनकी बात मान ली गई. न्यूज़लॉन्ड्री ने मध्य प्रदेश के कुछ आदिवासी नेताओं से बात कर इसकी वजह जाननी चाही. आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र डिंडौरी के विधायक और अनुसूचित जनजाति विभाग के मंत्री ओमकार सिंह मरकाम मानते हैं कि उन्होंने इस मामले को कभी धर्म से जोड़कर नहीं देखा. वे कहते हैं कि बीजेपी के लोग हर मामले में धर्म को लाकर किसी भी तरह से बहस और विरोध खड़ा करना चाहते हैं. मरकाम बताते हैं कि वे हमेशा से वैज्ञानिक सोच के साथ रहे हैं और बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने के लिए वैज्ञानिक सोच के आधार पर अंडे खिलाने के पक्ष में हैं.
मरकाम कहते हैं कि ये तो मानी हुई बात है कि किसी भी हालत में शाकाहारी बच्चों को अंडा नहीं दिया जाएगा. मरकाम ने बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर अंडा इतना ही बुरा है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसे बैन क्यों नहीं कर देते हैं. देश में लाखों मांस-मछली की दुकाने हैं लेकिन जिसको वहां जाना होता है वहीं जाता है. मरकाम ने कहा कि वे सरकार के इस फैसले के साथ मजबूती के साथ खड़े हैं.
मांडला के विधायक डॉ. अशोक मर्सकोले ने बातचीत में कहा, “मुझे अंडा खाने या न खाने का विरोध समझ नहीं आ रहा है. मुझे तो यह जानकर आश्चर्य होता है कि पूर्व की सरकार ने आंगनवाड़ी या मिड-डे मील में अंडा न देने का फैसला भी लिया था. मेरी जानकारी के मुताबिक इस पर कोई बैन नहीं लगा है. अंडा खाना या न खाना लोगों की अपनी स्वतंत्रता का मामला है और जो अंडा खाते हैं उन्हें तो यह जरूर मिलना चाहिए.”
डॉ. मर्सकोले ने आगे कहा कि पांच रुपए के एक अंडे में इतने गुण है कि कोई सोच भी नहीं सकता है. विटामिन और प्रोटीन से भरपूर और सस्ते खाने से कम से कम आदिवासी बच्चों को दूर नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने तो ‘संडे हो या मंडे, रोज खाओ अंडे’ वाला विज्ञापन प्रसारित कर लोगों में इसके प्रति जागरुकता फैलाई थी. मार्सकोले आगे कहते हैं, “मैं बीजेपी या कांग्रेस का नाम लिए बिना कहना चाहूंगा कि खाने पर कोई सियासत नहीं होनी चाहिए. कुपोषण दूर करने के लिए जो बच्चे अंडा खाते हैं उन्हें यह जरूर देना चाहिए. ऐसी व्यवस्था हो कि बच्चे अपने घरों में भी अंडा खा सकें. हम लोग हमेशा से इस कोशिश में लगे हुए हैं.”
शिवराज सरकार ने दूध से अधिक बढ़ाया मांस-अंडे का उत्पादन
पिछली सरकार में बच्चों को अंडा देने की योजना बंद कर दी गई लेकिन सरकार अंडे और मांस के उत्पादन में बढ़ोतरी का आंकड़ा पेश कर अपना पीठ जरूर थपथपाती रही. सरकारी रिकॉर्ड्स के मुताबिक वर्ष 2013-14 में मध्य प्रदेश में 9,671 लाख अंडों का उत्पादन हुआ था जो कि वर्ष 2017-18 में बढ़कर 19,422 लाख अंडा प्रतिवर्ष हो गया. यह वृद्धि 100 प्रतिशत से ज्यादा है. मांस का उत्पादन भी 2013-14 में 43 हजार मिट्रिक टन से बढ़कर 2017-18 में 89 हजार मिट्रिक टन हो गया.
वहीं दूध का उत्पादन इस अवधि में 9,599 हजार मिट्रिक टन से बढ़कर 14,713 मिट्रिक टन हुआ. यह आंकड़ा सरकार ने हर वर्ष इकॉनमी सर्वे में पेश किया जिसमें दूध से अधिक मांस और अंडे का उत्पादन बढ़ाया गया.
मांस-अंडे का उत्पादन साल दर साल बढ़ाया गया लेकिन मध्य प्रदेश के कुपोषित बच्चों के ऊपर धर्म की राजनीति का जल फेंककर उन्हें इससे महरूम रखा गया.
Also Read
-
‘No staff, defunct office’: Kashmir Times editor on ‘bizarre’ charges, ‘bid to silence’
-
Is Modi saving print media? Congrats, you’re paying for it
-
India’s trains are running on luck? RTI points to rampant drunk train driving
-
98% processed is 100% lie: Investigating Gurugram’s broken waste system
-
Awful and Awesome Ep 398: Frankenstein, Dhurandhar trailer, All Her Fault