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‘आरएसएस मिलेजुले सांस्कृतिक मूल्यों के माध्यम से राष्ट्र का उत्थान चाहता है’

वर्ष 2019 भारत की स्मृतियों में विशेष स्थान रखता है. इस वर्ष न केवल गुरु नानक देवजी का 550वां प्रकाश वर्ष मनाया जा रहा है, बल्कि महात्मा गांधी की 150वीं जयंती भी है. साथ ही राष्ट्र ऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी की जन्मशती भी इसी साल 10 नवंबर से प्रारंभ हो रही है.

ऊपर उल्लिखित सभी महापुरुष समान सांस्कृतिक मूल्यों के संवाहक, प्रेरणा और प्रतीक पुरुष थे और भारतीय थे. उनका जीवन और कृतित्व राष्ट्र के समाज का मार्गदर्शन करने वाला था. विजयादशमी पर नागुपर में आरएसएस के सरसंघचालक ने अपने उद्बोधन में यह संदेश विश्व भर को दिया.

आरएसएस प्रमुख के वार्षिक संबोधन का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यह संगठन न केवल सत्तारूढ़ सरकार के लिए वैचारिक, सैद्धांतिक दिग्दर्शक और पथप्रदर्शक माना जाता है, बल्कि देश भर में स्वयंसेवकों द्वारा चलाए जा रहे बहुत से दूसरे संगठन भी इससे प्रेरणा लेते हैं. स्वयंसेवकों का एक ही उद्देश्य है- चरित्र निर्माण द्वारा देश का पुनर्निर्माण करना.

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के वर्तमान केंद्र सरकार के निर्णय की प्रशंसा की. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि विश्व इतिहास 2019 को सदैव याद रखेगा, क्योंकि इस वर्ष चुनाव में भारत के नागरिकों ने शक्तिशाली नेतृत्व में फिर से विश्वास व्यक्त किया और सरकार ने भी जवाब में एक राष्ट्र, एक संविधान के अपने वादे पर अमल करके दिखा दिया.

डॉ भागवत का उद्बोधन भारत की अर्थव्यवस्था और उन जमीमी मुद्दों पर केंद्रित रहा, जहां अभी बहुत काम किया जाना है. उन्होंने कहा कि भारतीय नागरिकों को अर्थव्यवस्था की मंदी और उसे लेकर पैदा किए जा रहे डर के भ्रमजाल में नहीं फंसना चाहिए. उन्होंने एमएसएमई सेक्टर के विकास की आवश्यकता पर ध्यान देते हुए आत्म-निर्भरता के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हमें राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आत्म-निर्भर बनना होगा. उन्होंने वृद्धि और विकास के पूंजीवादी या साम्यवादी मॉडल को न अपना कर दत्तोपंत ठेंगड़ी के विचार और ‘तीसरी राह’ के उनके दृष्टिकोण का स्मरण करते हुए भारत के स्वदेशी के मॉडल को अपनाने पर बल दिया.

सरसंघचालक ने अनेकता में एकता की हमारी संस्कृति को भी महत्वपूर्ण बताया. अनेकता के बारे में आरएसएस का विचार है कि कोई व्यक्ति पूजा पद्धति का कोई भी रास्ता अपनाए, लेकिन यह तथ्य है कि हम सभी हिंदू हैं. कुछ लोग हिंदू की जगह भारतीय शब्द का प्रयोग करना उचित समझते हैं. आरएसएस को इसमें कोई समस्या नहीं है. भागवत ने स्पष्ट किया कि शब्दावली में कुछ नहीं रखा है. मन में भाव क्या, आशय क्या है, यह महत्वपूर्ण है.

भागवत ने स्वदेशी के महत्वपूर्ण मुद्दे पर बल दिया और अपनी बात विस्तार से रखी, ताकि इसे लेकर भ्रम की कोई स्थिति नहीं बने. उनके उद्बोधन में इस मुद्दे पर जिस तरह बात रखी गई, वह महत्वपूर्ण है. क्योंकि संघ ने स्वदेशी का विचार अपनाया है, वह मानता है कि लो-टेक उत्पादों में भारत को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने कहा कि हमें इस बारे में बहुत सतर्क रहना चाहिए कि एफडीआई का लाभ वास्तव में किसे मिल रहा है? डॉ. भागवत के विचार को समझने के लिए विशिष्ट उदाहरण भारत में मोबाइल फोन बनाने वाले बाजार से मिलता है. एक समय में मोबाइल बनाने वाली भारतीय कंपनियों की घरेलू बाजार में हिस्सेदारी 58 प्रतिशत थी. अब यह घटकर मात्र आठ प्रतिशत रह गई है, क्योंकि उनकी उत्पादन सुविधाएं चीनी कंपनियों ने क्रय कर ली हैं या अपनी पूंजीगत हिस्सेदारी उनमें बढ़ा ली है.

दत्तोपंत ठेंगड़ी की पुस्तक ‘थर्ड वे’ में आर्थिक विकास के स्वदेशी मॉडल पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है. देश के आर्थिक विकास के मामलों में दत्तोपंत ठेंगड़ी संघ विचारों के प्रमुख संवाहक थे. उन्होंने भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ और स्वदेशी जागरण मंच के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने 21वीं सदी में भारत के उत्थान और साम्यवाद के पतन का आकलन बहुत पहले ही कर लिया था. डॉक्टर हेडगेवार की जन्म शताब्दी के अवसर पर 1989 में अपने एक भाषण में स्पष्ट रूप से यह घोषणा की थी. दत्तोपंत ठेंगड़ी की जन्म शताब्दी के आयोजन आगामी 10 नवंबर से शुरू हो जाएंगे. उनकी दिखाई राह पर चलकर भारत आर्थिक विकास के अपने लक्ष्य प्राप्त करेगा.

विजयादशमी पर भागवत के उद्बोधन में देश के अल्पसंख्यकों के मन में षड्यंत्रपूर्वक डर बैठाने का भी उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि ‘लिंचिंग’ जैसे अभारतीय शब्दों का डर फैला कर देश और पूरे हिंदू समुदाय को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है. ऐसे बहुत से मामले झूठे पाए गए हैं. बहुत से मामलों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया है. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत की न्याय प्रणाली ऐसे मामलों से निपटने में सक्षम है और भारत में हिंसा के किसी भी कृत्य न्यायिक कार्रवाई कड़ाई से की जानी चाहिए. शांति और सभी को अपनाने में विश्वास करने वाली भारतीय संस्कृति में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है. हमें भारत और हिंदुत्व को बदनाम करने के षड्यंत्रों को लेकर सचेत रहने की आवश्यकता है.

उद्बोधन में पहली बार सीमाओं की सुरक्षा की बात पर बल दिया गया. समुद्री सीमा की सुरक्षा के मामले में पूरी दुनिया नया दृष्टिकोण अपना रही है. भारत की विशाल समुद्री सीमा है, इसलिए हमें अपने टापुओं की सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा.

अपना उद्बोधन समाप्त करते हुए भागवत ने उल्लेख किया कि हमें इस बात पर विचार करना होगा कि विजयादशमी का क्या प्रतीकात्मक महत्व है? अच्छे की बुरे पर विजय तभी संभव है कि जब हम व्यक्तिश:, समाज के रूप में, देश के रूप में और एक विश्व के रूप में स्वयं को शक्तिशाली बनाएं.

(लेखक दिल्ली प्रदेश आरएसएस की कार्यकारिणी के सदस्य हैं. लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं)