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ग्राउंड रिपोर्ट: मंदी से बदहाल हुआ झारखंड का उद्योग नगर आदित्यपुर
उस रोज झारखंड के आदित्यपुर शहर के एक फ्लैट में हम तीन पत्रकारों के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन उद्योग भारती के उपाध्यक्ष भी मौजूद थे. एक कांग्रेस के नेता थे जो लेबर सप्लायर भी हैं. संघ से जुड़े एक व्यक्ति थे जो आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र की एक बड़ी कंपनी में काम करते थे और फिलहाल एक लघु उद्योगपति हैं और यहीं अपनी छोटी सी फैक्टरी चलाते हैं. जिस कमरे में यह बातचीत हो रही थी, वहां हेडगेवार और गोलवरकर की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी थीं. वहां बैठे इन चार स्थानीय लोगों के मुंह से हमने जो कुछ सुना उसके बाद हमारे सामने हैरत में पड़ने के सिवा कोई चारा शेष न रहा. चारो ने लगभग एकमत होकर कहा कि पिछले तीस सालों में उन लोगों ने जमशेदपुर और आदित्यपुर में कभी ऐसी मंदी नहीं देखी, हालात बद से बदतर हो चुके हैं. अगर सरकार ने तत्काल कोई कदम नहीं उठाया तो टाटा मोटर्स कंपनी ही नहीं पूरा आदित्यपुर शहर निपट जायेगा.
संघ से संबंधित उद्योगपतियों के संगठन उद्योग भारती के उपाध्यक्ष पंकज कुमार ने बताया कि उन्होंने सरकार के पास एक मेमोरेंडम भेजा है, जिसमें वाहनों पर लगने वाले जीएसटी की दर तत्काल 28 फीसदी से घटाकर 18 फीसदी करने की मांग की है. इसके अलावा उन्होंने सरकार से सावर्जनिक क्षेत्र में आधारभूत कार्यों को आगे बढ़ाने का अनुरोध किया है, ताकि इससे अर्थव्यवस्था में तेजी आए.
उनसे बातचीत करते हुए यह बात समझ में आई कि आदित्यपुर की मंदी और वर्तमान अर्थव्यवस्था की कमियों को लेकर उनका नजरिया काफी साफ था. वे सोशल मीडिया के उन सरकार समर्थकों की तरह बर्ताव नहीं कर रहे थे, जो सरकार की हर गलती को अपने कुतर्क से ढंकने की कोशिश करते हैं.
ज्यादातर कंपनियों में पसरा सन्नाटा
उन्होंने कहा कि ऑटोमोबाइल सेक्टर में आयी इस मंदी के चार कारण हैं. पहला, वह सरकारी घोषणा कि अप्रैल, 2020 के बाद से बीएस-4 गाड़ियों की बिक्री बंद हो जायेगी और सिर्फ बीएस-6 इंजन वाली गाड़ियां ही बिकेंगी. इस भय से टाटा मोटर्स ने अपना उत्पादन घटाना शुरू कर दिया है. इसके अलावा इन दिनों बैंक वाहनों के लिए लोन देने में काफी सख्ती बरत रहे हैं. पहले महज एक-दो लाख के डाउन पेमेंट पर लोन मिल जाता था और अमूमन ट्रक ड्राइवर भी ट्रक खरीद लेते थे. उन्होंने विकास दर में आयी गिरावट को भी स्वीकार किया और कहा कि इसकी वजह से गुड्स ट्रांसपोर्टेशन में भी कमी आयी है और ट्रकों की जरूरत घटी है. सरकार द्वारा इलेक्ट्रिकल वाहनों के प्रयोग पर ज़ोर देने का मसला भी उठा और कहा गया कि इसको लेकर ऑटोमोबाइल सेक्टर अभी खुद को तैयार नहीं कर पा रहा है.
उन लोगों के कहने का भाव यह था कि सरकार ने पर्यावरण और बैंकिग सुधार को लेकर जो सख्त कदम उठाये हैं, उसी की वजह से इन दिनों आटोमोबाइल सेक्टर में मंदी दिख रही है. हालांकि इन सुधारों से देश का पर्यावरण और बैंकिंग सेक्टर सुधरेगा या नहीं यह तो पता नहीं, मगर लाखों लोग अभी से बेरोजगार और बेघर हो गये हैं. इसलिए सरकार को अपनी सख्ती छोड़ कर पहले बदहाल हो रही ऑटोमोबाइल कंपनियों पर ध्यान देना चाहिए.
शंभु सिंह, मजदूर
तमाम विषयों पर बातचती करते हुए अचानक से एक ने हमें आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में फैली 12 से 15 सौ के बीच सूक्ष्म, लघु और मझोले आकार की औद्योगिक इकाइयों का भ्रमण करने की सलाह दी और विशेष तौर पर शहर के होटलों, ढाबों, किराना दुकानों आदि में जाकर बात करने कहा. गौरतलब है कि ये वो लोग हैं जिनका व्यापार अप्रत्यक्ष रूप से इस मंदी से प्रभावित हो रहा है. उन्होंने कहा कि 12 बजे दोपहर में औद्योगिक इकाइयों में लंच होता है, वह समय मजदूरों से बात करने के लिए सबसे मुफीद रहेगा. उनकी सलाह को मान कर हम लोग आदित्यपुर घूमने निकल पड़े.
हम तीन पत्रकार उसी रोज सुबह पटना से आदित्यपुर पहुंचे थे. जमशेदपुर स्थित टाटा मोटर्स के प्लांट में मंदी की खबरों से आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र की एक हजार से अधिक छोटी-बड़ी कंपनियों पर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है. इस आशंका को हम सजीव रूप में देखना चाहते थे. वहां काम करने वाले कुछ परिचितों ने मुझे व्यक्तिगत रूप से बताया था कि ठेका कर्मियों को तो बिठा ही दिया गया है, बड़ी कंपनियों में काम करने वाले स्थायी कर्मियों को भी फोर्स लीव पर भेजा जा रहा है.
झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में स्थित आदित्यपुर शहर टाटा की उद्योग नगरी जमशेदपुर का जुड़वा शहर है. दरअसल टाटा मोटर्स के विभिन्न पार्ट्स की सप्लाई करने वाली तमाम छोटी-बड़ी कंपनियां आदित्यनगर में ही विकसित हुई हैं. टाटा मोटर्स जो मुख्यतः गुड्स ट्रांसपोर्ट में इस्तेमाल होने वाले छोटे-बड़े ट्रकों का प्रमुख निर्माता है, आज की तारीख में ज्यादातर पार्ट्स खुद तैयार नहीं करता. आदित्यपुर औद्योगिक परिसर में स्थापित 12-15 सौ कंपनियां इसके लिए अलग-अलग पार्ट्स तैयार करती हैं और टाटा मोटर्स में इन हिस्सों की असेंबलिंग होती है.
यह एक अच्छी व्यवस्था है जिससे आदित्यपुर में 30 हजार के करीब स्थायी श्रमिकों को और लगभग एक लाख ठेका मजदूरों को नियमित रोजगार मिलता है. स्थायी मजदूर आदित्यपुर शहर में ही रहते हैं, जबकि ठेका मजदूरों में से ज्यादातर पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर), पश्चिमी सिंहभूम (चाइबासा) और सरायकेला-खरसावां जिले के अलग-अलग इलाकों से रोज ट्रेनों से आकर काम करते हैं. मगर पिछले तीन-चार महीनों में ऑटोमोबाइल उद्योग में आयी भीषण मंदी ने इस पूरी व्यवस्था को तहस नहस कर दिया है. लगभग 90 फीसदी ठेका मजदूर बेरोजगार हो गये हैं. स्थायी मजदूरों को महीने मे बमुश्किल 10-15 दिन का रोजगार मिल रहा है. ज्यादातर सूक्ष्म और लघु औद्योगिक इकाइयों में काम ठप है और वे बंदी के कगार पर पहुंच गयी हैं.
उस कमरे से हम निकले ही थे कि कुछ ही कदम पर एक बंद पड़ी फैक्टरी दिखी. हम उसके अंदर पहुंचे. वहां कुछ केयरटेकर भर थे, मगर कोई हमसे बात करने को तैयार नहीं था. उसके बाद वाली कंपनी आइपीएसजी प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर ने हमारा स्वागत किया और बताया कि उनकी कंपनी में पहले तीन शिफ्टों में काम हुआ करता था, आजकल सिर्फ एक शिफ्ट में थोड़ा बहुत काम होता है, कुछ मजदूरों से पारिवारिक रिश्ता बना है, उन्हीं को लेकर अपना घाटा सह कर भी काम कर रहे हैं. ताकि जब स्थिति बेहतर हो तो उस वक्त काम और मजदूरों की दिक्कत न हो.
फिर हम अशोक नगर इलाके में गये. यहां के आवासीय भवनों में एक-दो कमरे लेकर सूक्ष्म उद्योगिक इकाइयां चलती हैं. उस इलाके में ज्यादातर कंपनियां बंद पड़ी थीं. एक कंपनी में काम जारी था. वहां हमारी मुलाकात एक मजदूर से हुई. शंभु सिंह नाम के उस मजदूर ने हमसे कहा, “सर, हमारा वीडियो बनाकर यूट्यूब पर डाल दीजिये और मोदीजी को टैग कर दीजिये. ताकि उनको हमारी स्थिति का पता चले. अभी तो खाली लोकल अखबार में हमारी खबरें छप रही हैं.”
हमने जैसे ही अपना कैमरा ऑन किया, वह किसी सधे हुए प्रवक्ता की तरह बोलने लगा. उसका पंच लाइन था, पर्यावरण तो बच जायेगा, मगर मजदूर पहले मर जायेंगे. मोदी जी, बीएस-6 का फैसला कम से कम एक साल और टाल दीजिये. उसने अलग-अलग एक्शन में कई मार्मिक कहानियां बतायीं. उसने कहा कि किस तरह राशन की दुकान के उधार से उन जैसे मजदूरों का जीवन चल रहा है, स्कूल में री-एडमिशन का फीस नहीं दे पाए हैं. बचत के पैसों से किसी तरह बच्चों का फीस चुका रहे हैं.
फिर वह हमें पड़ोस की एक फैक्टरी में ले गया और उसके मालिक से मिलवाया. हम उस फैक्टरी में जाकर हैरत में पड़ गये कि लगभग 50-60 मजदूरों को नियमित रोजगार देने वाली यह कंपनी एक कमरे में चलती है और ट्रकों के पहिये से संबंधित एक पार्ट का निर्माण करती है. दरअसल यह काम टाटा मोटर्स ने रामकृष्ण फोर्ज लिमिटेड (आरकेएफएल) नामक एक बड़ी कंपनी को दिया था, आरकेएफएल उस काम को इस कंपनी को सबलेट कर दिया.
रामपुकार सिंह, मालिक
कंपनी के मालिक रामपुकार सिंह ने बताया कि उनकी कंपनी में पिछले तीन महीने से काम ठप है, एक महीने बिठा कर वेतन देने के बाद उन्होंने सभी मजदूरों को छुट्टी दे दी है. काम ठप है तो आमदनी भी ठप है. घर बचत के पैसों से चल रहा है, मगर फैक्टरी शुरू करने के लिए ग्रामीण बैंक से लिया गया सवा करोड़ का लोन सर पर है और उसकी किस्तें भी चुकायी नहीं जा रही हैं.
उन्होंने कंपनी के अंदर लगा झारखंड ग्रामीण बैंक, आदित्यपुर शाखा का बोर्ड भी दिखाया. बगल में भारतीय तिरंगा भी लगा था. उनके दरवाजे पर एक स्कार्पियो गाड़ी खड़ी थी, जिसके आगे भाजपा का झंडा लगा था और सामने उस मोटर पार्ट्स का ढेर था जिसे टाटा मोटर्स में सप्लाई किया जाना था.
इस टहलकदमी के दौरान हमें कई नाराज और उखड़े हुए लोग मिले. वे गुस्से से भरे थे और अक्सर सरकार और व्यवस्था को गालियां देने लगते थे. एक ऐसा ही व्यक्ति हमें एक बड़ी कंपनी के बगल में बने ढाबे में मिला, वह इस बात से परेशान था कि कंपनियां मंदी से परेशान हैं और बिजली विभाग के लोग रोज लोड चेक करने के नाम पर इन कंपनियों में दबिश देते हैं और घूस के चक्कर में कंपनी मालिकों को परेशान करते हैं.
वो चाहते थे कि इस दौर में सरकार कंपनियों और मजदूरों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करे, मगर उनके हिसाब से राज्य की रघुवर दास सरकार इसे लेकर बिल्कुल संवेदनहीन है. उस ढाबे में चाय-नाश्ता से लेकर शाकाहारी-मांसाहारी दोनों तरह के खाने का इंतजाम था. ढाबे के मालिक ने बताया कि दो महीने पहले तक उसके यहां रोज 15-16 किलो चावल पकता था, अब बमुश्किल तीन से चार किलो चावल पकता है. यही हाल शाम को बिकने वाले समोसों का है. यानी मंदी उनके ढाबे में भी आ गयी है. इसकी एक ही वजह है, दूरदराज से आने वाले ठेका मजदूरों की गैर मौजूदगी.
मंदी की मार से परेशान ढाबे वाले भी
फिर हम आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र की दो बड़ी कंपनियों रामकृष्ण फोर्ज लिमिटेड (आरकेएफएल) और क्रास मैन्यूफैक्चरिंग के पास गये. जहां आरकेएफएल के कर्मियों ने कैमरे के सामने कुछ भी बोलेने से इनकार कर दिया, वहीं क्रॉस के कर्मी खुल कर बोले. आरकेएफएल के कर्मियों ने इतना जरूर कहा कि पिछले 30 सालों में पहली दफा उनकी कंपनी 8 दिनों के लिए बंद हुई है और सोमवार से यहां दोबारा काम शुरू हुआ है.
इन तमाम बाचतीत में एक वाक्य हर जगह सुनने को मिला ब्लॉक क्लोजर. फलां कंपनी ने इतने दिनों का ब्लॉक क्लोजर लिया है, फलां से इतने दिनों का. यह मालूम हुआ है कि टाटा मोटर्स अब साल में 78 दिनों का ब्लॉक क्लोजर ले सकती है. मगर यह ब्लॉक क्लोजर क्या है, यह एक कंपनी के बड़े अधिकारी ने समझाया. उन्होंने बताया कि मशीनों के अनिवार्य मेंटेनेंस के लिए ज्यादातर कंपनियां साल में दो बार आठ-आठ दिनों का ब्लॉक क्लोजर लेती है. यह पहले से तय होता है और कर्मियों को पूर्व सूचना दे दी जाती है कि वे इस अवधि में अपनी छुट्टियां प्लान कर लें. मगर जमशेदपुर और आदित्यपुर में कंपनियां आजकल काम बंद करने के लिए ब्लॉक क्लोजर का इस्तेमाल करने लगी हैं. इस सम्मानजनक शब्द के पीछे वे उस शर्मिंदगी को छिपाने की कोशिश करते हैं कि उनके पास कोई काम नहीं है.
जमशेदपुर और आदित्यपुर की कंपनियों में बढ़ते ब्ल़ॉक क्लोजर का राज एक आंकड़े से और साफ होता है. टाटा मोटर्स में इस साल अप्रैल महीने में 12 हजार के करीब ट्रकों का निर्माण हुआ था, मई में यह घट कर नौ हजार रह गया, जून में 72 सौ और जुलाई में 48 सौ के करीब ट्रकों का निर्माण हुआ. अगस्त महीने में 21 तारीख तक सिर्फ 17 सौ ट्रक बने हैं. निर्माण की इस गिरती गिनती के पीछे लाखों परिवारों की घटती आमदनी, हजारों की बेरोजगारी और सैकड़ों उद्यमियों के माथे पर पड़ी सिलवटों की कहानी छिपी हुई है.
कास्ट कटिंग की तरकीबें कंपनियों से निकल कर घरों तक पहुंच गयी हैं. राशन दुकानदारों के उधार जब तक जिंदा हैं, तब तक आदित्यपुर के इस औद्योगिक शहर के बचे रहने की उम्मीदें भी जिंदा हैं. मगर इस बीच जानकार यह भी कहने लगे हैं कि बीएस-6 इंजन वाले ट्रकों के सॉफिस्टिकेटेड पार्ट्स को तैयार करने के लिए क्या आदित्यपुर औद्योगिक परिसर की कंपनियां सक्षम हो पायेंगी. कहीं बदलाव के इस दौर में टाटा मोटर्स ही पिछड़ न जाये. बेरोजगारी, मंदी, उधार, नाउम्मीदी और तंगहाली की यही दास्तान इन दिनों आदित्यपुर की कहानी है.
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