Newslaundry Hindi
तीसरी क़िस्त : ‘सड़कों पर जवान नहीं होंगे तो पत्थरबाज किस पर पत्थर चलाएंगे’
इस ईद की सुबह पूरे कश्मीर में उसके इतिहास के सबसे मजबूत कर्फ्यू के साथ हुई. तड़के ही कश्मीर की सड़कें छावनी में तब्दील की जा चुकी थी और चप्पे-चप्पे पर बंदूक थामे जवान मुस्तैदी से पहरा देने लगे थे. जम्मू क्षेत्र के कुछ इलाकों में बड़ी मस्जिदें आज खोली गई थी, लेकिन कश्मीर घाटी में ऐसा बिलकुल नहीं हुआ. यहां के तमाम जामिया मस्जिदों में बीती रात ही सुरक्षा बलों ने एहतियाती कदम उठाते हुए ताले लटका दिए थे. ईदगाहें वीरान थीं और लोगों को यहां आने की अनुमति नहीं थी. गली-मोहल्लों की मस्जिदों को निर्देश थे कि कोई भी इस्लामी तराने लाउडस्पीकर पर न बजाए जाएं और लोगो को सख्त हिदायत मिल चुकी थी कि वो नमाज़ के लिए अपने-अपने गली मोहल्ले से बाहर नहीं जा सकते. बीते दो दिन से कर्फ्यू में जो छूट दी जा रही थी वो भी ईद के दिन (सोमवार) वापस ले ली गई. मोहल्लों के जिन मस्जिदों में सौ-पचास लोग नमाज़ के लिए पहुंचे उन मस्जिदों का घेराव पचासो हथियारबंद जवानों ने कर रखा था.
बारामुला निवासी फैयाज अहमद कहते हैं, “ये पहली बार है कि जब ईद के मौके पर जश्न जैसा कोई माहौल नहीं है. 2016 में बुरहान वानी की मौत के बाद भी हालात बेहद खराब थे और लगभग एक साल तक कश्मीर में कर्फ्यू था, लेकिन तब भी ईद के दिन लोगो को ईदगाह में नमाज़ पढ़ने दी गई थी. इतनी पाबंदियां मैं पहली बार देख रहा हूं. इन बन्दूक की नालो तले हम ईद का क्या जश्न मनाएं.”
ईद के दिन अमूमन कश्मीर के बाजार बंद ही रहा करते हैं. इस दिन लोग कुर्बानी करते हैं और परिवार वालो के साथ त्योहार मनाते हैं. लेकिन होटल, कैफ़े, गिफ्ट आइटम के स्टोर बाज़ारों की रौनक बनाए रखते हैं. इस बार ये तमाम दुकानें भी बंद है और कुर्बानी भी चुनिंदा घरों में ही हुई है. अधिकतर लोगों ने पिछले दो दिनों में सीधे गोश्त की दुकानों पर ही जाकर मीट खरीद लिया था जिससे आज वाजवान बनाए गए हैं. उत्तर कश्मीर के बारामुला से लगे इस इलाके में टेलीफोन, मोबाइल और इंटरनेट अब भी पूरी तरह बंद है, लिहाज़ा इस बार कश्मीर के लोगों के पास अपनों को ईद पर बधाई देने का भी मौका नहीं है. जश्न का माहौल गायब है और अधिकतर लोग अपने घरों के भीतर रहकर ही दिन गुज़ार रहे है.
ऐसा ही एक घर बारामुला के मोहम्मद इश्तियाक का भी है. इश्तियाक बताते हैं, “ईद के दिन हमें दस मिनट भी सुकून से बैठने की फुर्सत नहीं होती थी, क्योंकि इस दिन मेहमान घर आते थे. इस बार सिर्फ मेरे समधी ही आए और वो भी बमुश्किल पन्द्रह मिनट ठहर के लौट गए. हम भी माहौल के कारण किसी के घर नहीं जा पाए. बस घर पर बैठ कर टीवी देख रहे हैं.”
कश्मीर की ख़बरें लगभग हर टीवी चैनल पर दिखाई जा रही हैं. मोहम्मद इश्तियाक़ और उनके परिजन भी ये ख़बर देख रहे हैं और उन टीवी चैनलों को कोस रहे हैं जिनमें दिखाया जा रहा कि कश्मीर में ईद का जश्न बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. ऐसे ही एक चैनल पर जम्मू-कश्मीर के प्रिंसिपल सेक्रेटरी रोहित चंचल बयान दे रहे हैं, “कश्मीर में हालात बिलकुल सामान्य है और बारामुला की ईदगाह में करीब दो हज़ार लोगों ने ईद की नमाज़ अदा की है.”
ये बयान सुनते ही मोहम्मद इश्तियाक टीवी बंद कर देते है और कहते हैं, “हम बारामुला में रह रहे है हम जानते है कि यहां ईदगाह बंद रखी गई है, लेकिन टीवी पर बोल रहे है कि वहां दो हज़ार लोगों ने नमाज़ पढ़ी. इतनी बेशर्मी से झूठ बोलते हुए ये खुदा का खौफ भी नहीं खाते.”
कुछ देर शान्त रहने के बाद मोहम्मद इश्तियाक कहते हैं, “अब आप समझ रहे हैं कि यहां लोगों में इतना गुस्सा क्यों है. दशकों से यहां के लोग भारत-पाकिस्तान के बीच पिस रहे हैं. उनकी अपनी मांग कोई सुनने को तैयार नहीं है. उन्हें कभी भी कर्फ्यू में कैद कर दिया जाता है और उनसे पूछे बिना उनके राज्य को यूनियन टेरिटरी घोषित कर दिया जाता है. ईद पर उन्हें सामूहिक नमाज़ अदा करने नहीं दी जाती और मीडिया दुनिया को कहता है कि कश्मीरी जश्न मना रहे हैं. ऐसे में कश्मीरी लोग हताशा औरा गुस्से में नहीं भरेंगे तो और क्या करेंगे.”
न्यूज़ चैनलों पर चल रही कश्मीर की चर्चा फिलहाल अनुच्छेद 370 के इर्द-गिर्द ही घूम रही है. इस चर्चा से तमाम जरूरी बातें गायब हैं कि पिछले सात दिनों से कश्मीरी बच्चों का भविष्य अंधकार में लटकता नज़र आने लगा है. कश्मीर में स्कूली बच्चों की परीक्षाएं सितम्बर में हुआ करती थी, पर इस बार जो माहौल बन पड़ा है उसमें ये संभवानाएं कम ही नज़र आती हैं कि ये परीक्षाएं समय पर हो पाएंगी. ऐसे में तो परीक्षाओं को खूब पीछे किया जाएगा और अगर हालात तब भी नहीं सुधरे तो बच्चों को मास प्रोमोशन देकर आगे की कक्षा में भेजने की औपचारिकता पूरी कर दी जाएगी, जैसा पहले भी कई बार यहां किया जा चुका है.
लगातार सात दिनों के कर्फ्यू से व्यापारियों को हो रहे नुकसान पर भी फिलहाल कम ही चर्चा हुई है और ये कर्फ्यू लगाया भी तब गया है जब अधिकतर व्यापारियों का पूरे साल का सबसे अहम समय होता है. सोपोर की जानी-मानी बेकरी न्यू लाइट के मालिक मोहम्मत शाबान बताते हैं, “हम लोग साल भर ईद का इंतजार करते हैं. इस मौके पर ही इतना मुनाफा होता है जिसे अच्छा व्यापार कहा जा सकता है. लेकिन हालात बिगड़ने के कारण केवल मेरा ही बाइस लाख का नुकसान हो चुका है. इसके लिए हमने जो माल बनाया था उसका दस प्रतिशत भी नहीं बिका. बेकरी का माल दस-पन्द्रह दिन बाद ही किसी काम का नहीं रहता है. कपड़ों के व्यापारी तो अपना माल आगे भी बेच सकते हैं, लेकिन बेकरी का माल तो अब फेंका ही जाएगा.”
ऐसे तमाम व्यापारी भी लाखों के नुकसान में डूब चुके हैं जिनका सारा व्यापार इंटरनेट पर निर्भर रहता था और दुकान मालिक भी कर्फ्यू के नुकसान झेल रहे हैं. बारामुला निवासी फैयाज अहमद कहते है, “मेरी दुकान अस्पताल रोड पर है उधर रोड आवाजाही के कारण कर्फ्यू में खुलती है. हर साल ईद के दिन भी मैं खोलता था क्योंकि अस्पताल आने जाने वालों को जरूरी सामान खरीदने की जरूरत होती है. लेकिन इस बार दुकान नहीं खुली. इस बार ईद का जश्न शोक में बदल गया है.”
बारामुला के चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाबलों की तैनाती सुबह पांच बजे से हुई थी पर अचानक ही दोपहर एक बजे हटा दी गई. इसके बाद भी सड़कें पुरी तरह सुनसान थी, जिन पर थोड़ी देर बाद कुछ वाहन दिखने लगे. इन सड़कों से फौज और सैनिक बलों को पूरी तरह से गायब देख एक बार को हैरत भी होती है. कर्फ्यू न होने पर भी बारामुला की सड़कों पर कुछ जवान तो तैनात रहते ही हैं.
लेकिन आज एक बजे के बाद सारे जवान और सैनिक बलों को हटा लेने के बारे में एक पुलिस अधिकारी कहते हैं, “हमें सबसे ज्यादा ख़तरा ईद की नमाज़ के दौरान था इसलिए सुबह से सुरक्षा बेहद कड़ी थी और लोगों के निकलने पर पाबंदी थी. एक बार जब नमाज़ का समय निकल गया तो जवानों को हटा लिया गया.’’
ये अधिकारी आगे कहते हैं, “सुरक्षा पूरी तरह से इसलिए हटाई गई थी क्योंकि पत्थरबाजी हमेशा सुरक्षा बलों पर ही होती है. अगर एक दो टुकड़ियां तैनात रहती है तो पत्थरबाजी जरूरी होती है. अब जब जवान इन सड़कों पर नहीं होंगे तो पत्थरबाज सड़कों पर आकर किसे निशाना बनाएंगे.”
बारामुला इलाके में ईद का त्योहार बिना किसी हिंसा के बीत गया लेकिन कश्मीर के कई इलाकों में आज पत्थरबाज़ी हुई. सोपोर के रहने वाले फ़ोटो पत्रकार वसीम पीरजादा बताते हैं, “सोपोर में सुबह ही पत्थरबाज़ी शुरू हुई थी, जिसके बाद कई लोग पेलेट लगने से ज़ख़्मी भी हुए हैं. ऐसा ही अलीपुरा इलाके में भी हुआ. ये तो वो जगहें हैं जिन्हें मैं व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं. उधर साउथ कश्मीर में क्या हुआ ये तो प्रशासन के अलावा किसी को नहीं पता. पर प्रशासन कभी सही जानकारी देता नहीं.”
इंटरनेट नहीं होने के कारण कश्मीर की ज्यादातर लोकल वेबसाइट बंद पड़ी हुई हैं. और कर्फ्यू के चलते इतने दिनों से अख़बार भी कही नहीं पहुंच पा रहे हैं. इस कारण एक ज़िले में क्या हो रहा इसकी जानकारी दूसरे ज़िले में फ़िलहाल नहीं मिल पा रही है. हालांकि सुरक्षा एजेंसियां इसे साकरात्मक नजरिये से देख रही हैं क्योंकि सूचनाओं के माध्यम खुलते ही फ़र्ज़ी और झूठी खबरों की राह भी खुल जाएगी, जिसके बाद हालात नियंत्रण से बाहर होने की आशंकाएं बढ़ सकती है, लेकिन कश्मीर के लोगो की आशंका अपनी जगह है कि ऐसे कैद और कठिनाई से भरी जिंदगी हमें कब तक झेलनी होगी?
Also Read
-
WhatsApp university blames foreign investors for the rupee’s slide – like blaming fever on a thermometer
-
Let Me Explain: How the Sangh mobilised Thiruparankundram unrest
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy
-
You can rebook an Indigo flight. You can’t rebook your lungs