Newslaundry Hindi
0.0018% आबादी का सर्वे करके न्यूज़-18 ने जम्मू कश्मीर के बंटवारे को बताया जायज
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान नेटवर्क 18 की हिंदी वेबसाइट न्यूज़ 18 द्वारा शनिवार (10 अगस्त) की शाम कश्मीर से जुड़े एक सर्वे के आधार पर स्टोरी प्रकाशित की गई. देखते ही देखते यह सर्वे आम लोगों में चर्चा का विषय बन गया. सर्वे के आधार पर की गई इस स्टोरी का शीर्षक है-‘‘CNN-NEWS18 Survey: jammu & Kashmir के 70 फीसदी लोग बंटवारे पर सरकार के पक्ष में’.
इस स्टोरी में बताया गया है कि जम्मू कश्मीर औऱ लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के केंद्र सरकार के फैसले का जम्मू कश्मीर के 70 फीसदी लोगों ने समर्थन किया है. इसी स्टोरी में बताया गया है कि यह सर्वे राज्य के 231 लोगों से बातचीत करके किया गया है.
स्टोरी के अनुसार न्यूज़18 के इस सर्वे में कश्मीर डिवीजन से कुल 151 लोग शामिल हुए. इसमें से 87 फीसदी लोग सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर को दो हिस्सों में बांटे जाने के पक्ष में हैं.
स्टोरी बताती है कि जम्मू डिवीजन से इस सर्वे में शामिल कुल 93 फीसदी लोग सरकार के फैसले का समर्थन कर रहे हैं. लेकिन यह स्टोरी यह नहीं बताती कि जम्मू डिवीजन से कुल कितने लोग (संख्या) इस सर्वे में शामिल हुए. इसी तरह स्टोरी लद्दाख क्षेत्र के बारे में भी गोलमोल बातें करती है. स्टोरी के मुताबिक लद्दाख डिवीजन में 67 प्रतिशत लोग सरकार के इस फैसले से सहमत हैं. लेकिन यहां भी लोगों की संख्या नहीं बताई गई है.
इस स्टोरी में अनंतनाग, कुलगाम और बारामुला की तीन महिलाओं के बयान भी शामिल हैं. तीनों महिलाएं मुस्लिम हैं और उनकी बातचीत का लब्बोलुआब है कि सरकार के इस फैसले से राज्य का विकास होगा. महिलाओं को उनका हक़ मिलेगा. ध्यान रहे कि न्यूज़ 18 ने इन तीनों महिलाओं में से किसी की भी तस्वीर प्रकाशित नहीं किया है.
जिस राज्य की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 12,541,302 (एक करोड़, 25 लाख, इकतालीस हज़ार तीन सौ दो ) है वहां महज 231 लोगों से बातचीत करके क्या पूरे राज्य की राजनीतिक नजरिए और रुझान का अनुमान लगाया जा सकता है? CNN-NEWS 18 ने जम्मू कश्मीर की कुल आबादी के 0.0018 फीसदी लोगों से बातचीत करके नतीजा दे दिया कि सरकार के इस फैसले से राज्य के 70 फीसदी लोग सहमत है.
यहां कुछ बहुत जरूरी सवाल सर्वे की प्रक्रिया और सैंपल के छोटे साइज़ पर खड़े होते हैं मसलन पहला सवाल तो यही कि इतनी बड़ी आबादी के मद्देनजर महज 231 लोगों के सैंपल साइज़ के आधार पर कोई निष्कर्ष देना सिर्फ और सिर्फ आंकड़ों की कलाबाजी है.
दूसरी बात जिन लोगों को सर्वे में शामिल किया गया उनकी आर्थिक, धार्मिक, शैक्षिक पृष्ठभूमि क्या है? कश्मीर का मुद्दा बेहद भावनात्मक मुद्दा है लिहाजा इस पर लोगों की राय हमेशा स्याह-सफेद के स्पष्ट खांचों में बंटी होती है. अक्सर कश्मीर से जुड़ी राय में लोगों की अपनी धार्मिक पहचान बड़ी भूमिका निभाती है. मसलन आम उत्तर भारतीय से कश्मीर या आतंकवाद के मसले पर बात की जाय तो ज्यादा संभावना रहती है कि वह सारे कश्मीरियों को पत्थरबाज, देशद्रोही, और पाकिस्तानी घोषित कर देगा. इसी तरह घाटी का कश्मीरी खुद को भारत के कब्जे में, हिंसा का शिकार बताएगा, पाकिस्तान को अपना हितैषी बताएगा. ऐसे जटिल राजनैतिक स्थिति वाले किसी क्षेत्र में न्यूज़18 के जैसा सरलीकृत सर्वे का कोई महत्व या भरोसा किया जा सकता है?
तीसरी बात उनसे किस तरह के सवाल पूछे गए. क्योंकि वैज्ञानिक तरीके से होने वाले सर्वे में सवाल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं अन्यथा कम पढ़े-लिखे लोगों से लीडिंग सवाल करके मनचाहा निष्कर्ष निकालने का काम छद्म हितों वाले लोग करते रहते हैं.
इस सर्वे की विश्वसनीयता को लेकर उठे सवाल पर इंडिया टुडे के पूर्व संपादक दिलीप मंडल कहते हैं, “इस सर्वे में कई कमियां साफ़ नजर आती हैं. इसमें सर्वे की मेथडोलॉजी नहीं बताई गई है. सैंपलिंग की डिटेल नहीं है. सर्वे में पारदर्शिता नहीं है. किससे बात की गई उसका कोई जिक्र नहीं है. जितनी बड़ी हेडलाइन है उसकी तुलना में सेंपल साइज़ बेहद छोटा है. सर्वे के मेथड और एथिक्स पर ये सर्वे असफल दिखता है. वहीं पत्रकारीय और सोश्योलॉजिकल डाटा कलेक्शन के हर मानक पर ये सर्वे असफल है. मैं इसके नतीजे पर सवाल नहीं उठा रहा हूं, मेथड पर सवाल उठा रहा हूं.”
राजनीतिक विषयों पर सर्वे करने वाली प्रतिष्ठित संस्था सीएसडीएस से जुड़े अभय कुमार दुबे कहते हैं, ‘‘जब कश्मीर में कर्फ्यू लगा हुआ है. कर्फ्यू में थोड़ी सी ढील दी जाती है फिर दोबारा कर्फ्यू लगा दिया जाता है. उस दौरान ऐसे सर्वे करना ही अपने आप इसके मकसद पर सवाल खड़ा कर देता है. इसका कोई मतलब नहीं है. अभी इन सब लोगों को इंतजार करना चाहिए. सोशल मीडिया पर सरकार के समर्थकों द्वारा कश्मीर में सब कुछ शांत और बेहतर होने की तस्वीरें पेश की जा रही है. जबकि अभी ये स्थिति नहीं है. सोमवार के टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पहले पेज पर कश्मीर में महिलाओं के प्रदर्शन की तस्वीर छपी है. जैसे ही ईद की पूर्व संध्या पर वहां कर्फ्यू में ढील दी गई. महिलाएं सड़क पर प्रदर्शन करने चली आईं उसके बाद दोबारा कर्फ्यू लगा दिया गया. अभी तो स्थिति वहां ख़राब ही है. संभव है कश्मीर के उन इलाकों में जहां मुसलमान कम हैं, वहां इस तरह के सवाल पूछकर सब कुछ बेहतर होने की तस्वीरें आप पेश कर दें लेकिन उसका कोई मतलब नहीं है. इस तरह के प्रयास केवल ये दिखाने की कोशिश है कि सरकार जो कर रही है उसका बेहतर असर पड़ा है. लेकिन हकीकत ये है कि अभी सरकार के सामने राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़ी और गहरी चुनौती है. मैं जानता हूं तमाम सर्वे घरों में बैठकर ही तैयार हो जाते हैं.’’
न्यूज़18 का सर्वे इस पूरे विवाद के एक और पहलू पर बहुत ही गैरजिम्मेदार तरीके से टिप्पणी करते हुए निकल जाता है. सर्वे के अंत में दो लाइनों में बताया गया है कि- “अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को हटाए जाने को लेकर भी लोग सरकार के फैसले से सहमत हैं. लोगों का मानना है कि इससे भ्रष्टाचार तो कम होगा ही साथ ही साथ रोजगार के नए अवसर बढ़ेंगे.”
38 शब्दों के इस वाक्य के जरिए चालाकी से एक निष्कर्ष दिया जाता है कि लोग 370 और 35ए हटाए जाने के पक्ष में हैं. जबकि पूरी स्टोरी में इस संबंध में न तो कोई अन्य आंकड़ा दिया गया है न ही इस संबंध में किए गए सर्वे के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी दी गई है. लेकिन चतुराई से यह इशारा देने की कोशिश जरूर की गई है कि न्यूज़ 18 ने इस पर भी सर्वे किया होगा.
इन तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए हमने न्यूज़ 18 हिंदी के संपादक दयाशंकर मिश्रा से सम्पर्क किया तो उन्होंने बाद में बात करने की बात कही, लेकिन फिर उन्होंने दोबारा अपना फोन नहीं उठाया. उनका जवाब मिलने पर हम इस स्टोरी में उसे भी शामिल करेंगे.
कश्मीर के हालात के दो पक्ष
जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को जब से केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने खत्म किया है तब से कश्मीर के हालात को लेकर अलग-अलग ख़बरें आ रही है.
ज्यादतर भारतीय मीडिया संस्थानों की रिपोर्ट बताती है कि कश्मीर में जनजीवन समान्य हो रहा है. वहीं कुछ भारतीय और ज्यादतर विदेशी मीडिया संस्थानों की रिपोर्ट के अनुसार कश्मीर में कई जगहों पर हिंसक झड़प हुई है. हालात समान्य नहीं है. लोग धीरे-धीरे अपनी नाराजगी दर्ज कर रहे है. झड़प में पैलेटगन से लोगों के घायल होने की ख़बरें भी आ रही हैं.
कश्मीर में 5 अगस्त के बाद से अख़बार प्रकाशित नहीं हो रहा है. वहीं अभी भी वहां इंटरनेट बंद है और फोन भी नहीं चल रहा है.
एक तरफ जहां फारुख अब्दुल्लाह की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस सरकार के इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आर्टिकल 370 हटाए जाने के खिलाफ जम्मू-कश्मीर से ताल्लुक रखने वाले कश्मीरी पंडित, डोगरा और सिख समुदाय के लोगों ने एक पेटिशन साइन किया है. उन्होंने सरकार के इस फैसले को अलोकतांत्रिक बताते हुए कश्मीर के लोगों को धोखा देने का आरोप सरकार पर लगाया है.
Also Read
-
‘Foreign hand, Gen Z data addiction’: 5 ways TV anchors missed the Nepal story
-
No bath, no food, no sex: NDTV & Co. push lunacy around blood moon
-
Mud bridges, night vigils: How Punjab is surviving its flood crisis
-
Adieu, Sankarshan Thakur: A rare shoe-leather journalist, newsroom’s voice of sanity
-
Corruption, social media ban, and 19 deaths: How student movement turned into Nepal’s turning point