Newslaundry Hindi
दूसरी क़िस्त : पब्लिक टेलीफोन बूथ बन गया है बारामुला पुलिस थाना
प्रतीकात्मक तस्वीर
पूरे देश में ईद की तैयारियां चल रही हैं, लेकिन यहां कश्मीर में यह तैयारियां अभी शुरू होने को हैं. कश्मीर के लोगों को यह मौका ईद से एक दिन पहले मिला है की वे खुल कर बाज़ार में निकल सकें. आज (रविवार को) सुबह से ही कर्फ्यू में रियायत है, बाज़ार में रौनक नज़र आ रही है. हालांकि 80 प्रतिशत दुकानें आज भी बंद हैं. जो खुली हैं उनमें लोगों का सैलाब उमड़ रहा है. बारामुला शहर में सुरक्षाबलों की संख्या बीते दिनों के मुकाबले कम दिख रही है, और ट्रैफिक बहुत ज़्यादा. नेटवर्क पूरी तरह से ठप्प है लिहाजा मोबाइल या टेलीफोन कुछ भी काम नहीं कर रहा है.
इंटरनेट बंद होने के कारण सारा व्यापार नगद लेन-देन पर ही आ टिका है. इसलिए एटीएम के बाहर ठीक वैसी ही कतारें लगी हुई है जैसे नोटबंदी के दिनों में पूरे देश में देखने को मिलती थीं. यह कतारें इसलिए भी लम्बी हैं क्योंकि शहर के चंद एटीएम ही काम कर रहे हैं. पेट्रोल पम्प का नज़ारा भी कुछ ऐसा ही है जहां गाड़ियों की कतार करीब एक किलोमीटर लम्बी हो चुकी है. अधिकतर दुकानों के शटर आज भी गिरे हुए हैं, लेकिन बाज़ार में इतने लोग मौजूद हैं की उन्हें भीड़ कहा जा सकता है. जिन दुकानों में भीड़ सबसे ज्यादा है उनमें मुख्यतः गोश्त की दुकानें, बेकरी और कपड़ों की दुकानें हैं. फलों की रेहड़ियां और गिफ्ट आइटम के स्टाल सड़क किनारे बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं.
हाथों में एके-47 लिए जवान आज लोगों को ज्यादा नहीं अखर रहे हैं क्योंकि इनकी संख्या आम लोगों से ज्यादा नहीं है. ऐसे ट्रक भी सड़कों से गुज़र रहे हैं जिनकी छतों पर बंदूक ताने एक या दो जवान लोगों पर नज़र बनाए हुए हैं. ऐसे ही एक ट्रक पर सवार जवान को जब एक स्थानीय बच्ची मुस्कुरा कर हाथ हिलाती है तो वह जवान तुरंत ही बंदूक नीचे कर उसकी ओर हाथ हिलाता है और लगभग उस बच्ची सी ही मासूम मुस्कराहट जवान के चेहरे पर बिखर जाती है. मुश्किल से 5 सेकेण्ड में घटी यह घटना कश्मीर की सबसे खूबसूरत तस्वीर लगती है.
ऐसा ही नज़ारा आज बारामुला पुलिस स्टेशन के अन्दर दाखिल होने पर भी दिखा. पुलिस स्टेशन के बाहर सैकड़ों लोग मौजूद हैं और एक सिपाही उनके नाम सूची में लिख रहा है. सूची में दर्ज नामों के क्रम में सिपाही एक-एक कर लोगों को एसएचओ मोहम्मद इकबाल के कार्यालय में भेज रहा है. उनका कार्यालय आज एक पब्लिक टेलीफोन बूथ बना हुआ है. कार्यालय के अन्दर ही डीएसपी फैजान भी मौजूद हैं और उनके फोन का इस्तेमाल आम लोग कर रहे हैं. एसएचओ मोहम्मद इकबाल बताते हैं, “सुबह से अब तक हम दोनों के फोन से लगभग डेढ़ हज़ार लोग अपने रिश्तेदारों को फोन कर चुके हैं. हम सिर्फ इस काम में लगे हुए हैं की लोगों की उनके रिश्तेदारों से बात हो सके.”
फोन करने के लिए यहां पहुंचे लोगों की संख्या इतनी ज्यादा है कि प्रति व्यक्ति एक मिनट देना भी अधिकारियों के लिए चुनौती बन गया है. लेकिन इस एक मिनट की बात का मौका देने के लिए भी स्थानीय लोग पुलिस का शुक्रिया अदा कर रहे हैं. इस वक्त भावनाएं उभार पर हैं. अपनों से बात करने के बाद कुछ की आंखों में आंसू आ गए . कुछ के चेहरे पर संतोष और प्रसन्नता का भाव उभर आया है.
फोन करने पहुंचे लोगों में जितनी संख्या कश्मीरी लोगों की है उतनी ही गैर कश्मीरी लोगों की भी है. पश्चिम बंगाल में रहने वाले फारुख़ भी इनमें से एक हैं. वह करीब 12 साल से यहां रह रहे हैं, लेकिन आज कल काफी परेशान हैं. फारुख़ बताते हैं, “आज पूरे एक हफ्ते बाद मैंने अपने बीवी से बात की है. वह परेशान थी कि मैं जिंदा हूं या नहीं. वह चाहती है कि मैं तुरंत वापस लौट आऊं. मैं हालात ख़राब होते ही चला गया होता, लेकिन मेरा पैसा अटका हुआ है. मेरा भुगतान हो जाए तो मैं यहां से चला जाऊं.”
भीड़ ज्यादा होने के चलते फारुख़ को भी बमुश्किल एक मिनट के लिए ही फोन मिला था मगर परेशान भाव और भीगी आंखों से जब उसने अपनी मां से बात करने की गुहार लगाई तो डीएसपी फैजान ने खुद ही अपना फोन उसकी तरफ बढ़ा दिया. फारुख़ की ही तरह फोन करके लौटने वाले हर व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान है और वो एक दूसरे को ईद की बधाई दे रहे हैं.
लेकिन इस थाने के अन्दर कश्मीर जितना खुश नज़र आता है बाहर उतना नहीं है. ये ईद कई लोगों के लिए दुःख, दर्द, डर और आशंकाएं भी लेकर आई है. 19 साल के बिलाल अहमद शेख के पिता पिछले कई दिनों से कभी कोर्ट तो कभी पुलिस थाने के चक्कर काट रहे हैं. उनके बेटे को पुलिस उठा कर ले गई है. वो कहते हैं, “मेरे बेटे के ऊपर कोई एफआईआर नहीं है, उस पर आज तक कोई आरोप नहीं लगा है, लेकिन पुलिस न जाने क्यों उसे उठा कर ले गई है. मुझे दो बार पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत बंद किया जा चुका है. मुझे पुलिस ले जाती तो भी बात समझ में आती, मगर मेरा बेटा तो मासूम है, उसने कुछ नहीं किया. मुझे यह भी नहीं मालूम की वो कहां है.”
बिलाल अहमद के पिता के जैसी ही हालत यहां रहने वाले कई लोगों की है. शिवी क्षेत्र के शाल्टेन में रहने वाले वसीम अहमद मल्लाह को पुलिस ने बीते 5 अगस्त को शिवी थाने में बुलाया था, तब से वसीम वापस नहीं लौटे हैं. वसीम की पत्नी मसरत बताती हैं, “5 अगस्त को जब वसीम रात को घर नहीं लौटे तो मैं थाने गई. वहां मुझे बताया गया की इन्हें आज यहीं रखा जाएगा. अगले दिन से फोन चलने बंद हो गए और कर्फ्यू लग गया. मैं फिर भी थाने गई, लेकिन उन्होंने वसीम को नहीं छोड़ा. उन्होंने उसे 3 दिन तक थाने में रखा और फिर कहीं बाहर ले गए. अब बोल रहे हैं की उसे आगरा भेज दिया गया है.”
वसीम अहमद पर पीएसए लगा दी गई है. पीएसए यानि जम्मू एंड कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट, 1978. ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि उनके खिलाफ सन 2013 और 2016 में पत्थरबाजी करने का आरोप लगा था. 5 अगस्त को थाने ले जाने के बाद 9 अगस्त को पुलिस वाले घर आए और मुझे वह कागज़ दे गए जिसमें लिखा था की उन्हें पीएसए के तहत गिरफ्तार कर लिया गया है.
ऐसा ही दारुल उलूम कॉलोनी में रहने वाले आमिर परवेज़ के साथ भी हुआ. आमिर की मां अज़ीना बेगम बताती हैं, “5 अगस्त को पुलिस आई और आमिर को उठा कर ले गई. उसे पूरा दिन रखने के बाद शाम को छोड़ दिया गया, लेकिन 6 अगस्त को पुलिस फिर से आई और उठा कर ले गई. अब वो कहां है हमें नहीं पता. कोई कहता है उसे श्रीनगर ले गये, कोई कहता है उसे जम्मू ले गये तो कोई कहता है उसे आगरा भेज दिया गया है.”
वह आगे कहती हैं, “आमिर के पिता की मौत साल 2004 में हो चुकी है. उस वक़्त उरी में जो धमाका हुआ था उसी में वो मारे गये थे उनके बाद आमिर के अलावा कोई भी मर्द हमारे घर में नहीं है. मैं, मेरी बेटी और आमिर की पत्नी ही है. फिर भी पुलिस के जवान जब चाहे तब घर में दाखिल हो जाते हैं और परेशान करते हैं. आमिर ऑटो चलाने का काम करता था. जब बुरहान (वानी) की मौत के बाद पूरे घाटी के हालत ख़राब हुए थे तब भी वह पत्थरबाजी में शामिल नहीं हुआ था. पुलिस उसे बेवजह उठा कर ले गई है.”
सिर्फ शीवी थाना क्षेत्र से ही पुलिस ने बीते दिनों में 14 लोगों को हिरासत में लिया है. इनमें से 3 लोगों पर गिरफ्तारी के बाद पीएसए लगा चुकी है. शीवी थाना क्षेत्र के एसएचओ बताते हैं, “जिनको भी गिरफ्तार किया है वह सभी पत्थरबाजी में शामिल रहे हैं. इनमें से किस पर पीएसए लगनी है यह थाने से नहीं बल्कि जिला कलेक्टर के ऑफिस से तय होता है.” आमिर की गिरफ्तारी के बारे में सवाल करने पर वह कहते हैं, “आमिर सिर्फ पत्थरबाजी में ही नहीं बल्कि ड्रग्स सप्लाई करने के मामले में भी शामिल रहा है.” यह पूछने पर कि क्या कभी ड्रग्स सप्लाई के मामले में आमिर पर एफआईआर या पुलिस शिकायत दर्ज हुई है, एसएचओ कहते हैं, “नहीं… एफआईआर इसलिए कभी नहीं हुई क्योंकि वह कभी पकड़ा नहीं गया. लेकिन हमें सूचना है की वह ऐसा करता है.”
इन गिरफ्तारियों के बारे में फ़तहगढ़ के डिप्टी सरपंच ज़ियाउल इस्लाम कहते हैं, “भारत सरकार चाहे तो कश्मीर में हमेशा के लिए फौजी शासन लागू कर दे मगर पुलिस द्वारा की जा रही इन गिरफ्तारियों पर रोक लगनी चाहिए. इसमें इतनी मनमानी होती है कि इसे जंगलराज कहना चाहिए. जिसकी राजनीतिक पकड़ मजबूत है उसके खिलाफ कोई एफआईआर नहीं होती भले ही वह पत्थरबाजी में शामिल हो और जिसका कोई राजनीतिक माई-बाप नहीं है उन्हें पकड़ के जेल में डाल दिया जाता है.”
अपनी कहानी बयां करते हुए ज़िया आगे कहते हैं, “सन 2008 में मैं खुद 13 महीने 15 दिन पीएसए लगने के कारण जेल में रहा हूं. मैं जानता हूं वहां कैसी यातनाएं दी जाती हैं. तब मेरी उम्र 16 साल थी. कश्मीर की लड़ाई में इतने लोग मारे जा चुके हैं की अब हमारे पास अपने लोगों को दफनाने के लिए ज़मीन भी नहीं बची है. अब मैं मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हूं और इस कारण कई बार अपने ही लोगों द्वारा गद्दार पुकारा जाता हूं. मैंने 2018 का वह पंचायत चुनाव लड़ा था जिसे सभी मुख्यधारा की पार्टियों ने बायकॉट किया था, सिर्फ इस व्यवस्था पर भरोसा करते हुए. जिस तानशाही रवैये के साथ धारा 370 हटा दी गई और उसके बाद जिस तरह से गिरफ्तारियों का सिलसिला चल रहा है, ऐसे में हमारा विश्वास व्यवस्था पर कैसे होगा.”
पूरे कश्मीर में इन दिनों सैकड़ों लोगों को जेल में बंद किया गया है. हालांकि कुछ थाने ऐसे ज़रूर हैं जहां से गिरफ्तार किए गए लोगों को रिहाई मिल रही है, लेकिन यह स्थाई नहीं कही जा सकती. बारामुला में ही कुल 44 लोगों को गिरफ्तार किया गया था जिन्हें 3 या 4 दिन हिरासत में रखने के बाद छोड़ दिया गया है.
इन लोगों के लिए ईद के मौके पर मिली यह रिहाई बहुत बड़ी बात है और बिना किसी लिखा-पढ़ी के क़ैद कर लेना बहुत छोटी बात. गिरफ्तार हुए इन लोगों के अलावा कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनको भले ही पुलिस अपने साथ ना ले गई हो मगर उन्हें घरों में ही कैद कर दिया गया है.
जम्मू और कश्मीर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, “तमाम विधायक विधान परिषद् के सदस्य और यहां तक की काउंसलर तक को घर में कैद करके रखा गया है. अब असल परीक्षा ईद है. ईद पर और उसके अगले दिन यदि सबकुछ नियंत्रण में रहा तो शायद हालत नियंत्रण में आ जाएं. ईद पर यदि हालत बिगड़ेंगे तो यह कब सुधरेंगे यह कोई नहीं जानता.”
बारामुला में रविवार को जो ढील दी गई वह पूरे कश्मीर की तस्वीर नहीं कही जा सकती. श्रीनगर में ही हालत आज इस कदर बिगड़े की दोपहर एक बजे कर्फ्यू दोबारा लगा दिया गया जो पूरी रात कायम रहा. साऊथ कश्मीर में हालत नार्थ कश्मीर से कहीं ज्यादा तनावपूर्ण बने हुए हैं. हफ्ते भर घरों में कैद रहने और दुनिया से पूरी तरह कटे रहने के बाद आज भले ही कश्मीरी लोग घरों से बाहर निकले हैं मगर सबके ज़ेहन में एक अनकहा डर तैर रहा है, इसकी पुष्टि सुरक्षाबल और प्रशासन अधिकारी ही ज्यादा कर रहे हैं.
Also Read
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
Delhi’s demolition drive: 27,000 displaced from 9 acres of ‘encroached’ land
-
डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट: गुजरात का वो कानून जिसने मुस्लिमों के लिए प्रॉपर्टी खरीदना असंभव कर दिया
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
Air India crash aftermath: What is the life of an air passenger in India worth?