Newslaundry Hindi

सोनभद्र नरसंहार के खलनायक

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में खेतिहर आदिवासियों के हुए नरसंहार की घटना ने देश के लोगों को भयभीत किया है. वही सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस नरसंहार के लिए कांग्रेस की पुरानी सरकारों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनका कहना है कि इस विवाद की शुरुआत 1950 के दशक में कांग्रेसी सरकार के दौरान ही हो गई थी. और इस हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त समाजवादी पार्टी से जुड़ा है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ये दावा सोनभद्र के उम्भा गांव में किसी के गले नहीं उतर रहा है. इस गांव के ग्रामीणों के अनुसार सोनभद्र कांड को अंजाम देने वाले कई किरदार हैं. इन किरदारों में जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, राजस्व अधिकारी से लेकर जमीन खरीदें तथा बेचने वाले सभी की भूमिका है. अब देखना यह है कि सूबे की सरकार की लापरवाही से जनचर्चा बन गये इस कांड के असली दोषियों के खिलाफ योगी सरकार क्या कठोर एक्शन लेकर उन्हें सजा दिलवाती है?

वास्तव में योगी सरकार के दो साल के शासन में सोनभद्र का नरसंहार सूबे की सरकार के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़ा करने वाली यह पहली घटना है. सोनभद्र के जिस उम्भा  गांव में दिनदहाड़े फ़िल्मी अंदाज में 90 बीघा भूमि पर कब्जा करने को लेकर ग्राम प्रधान यज्ञदत्त और उसके लोगों का खेतिहर आदिवासियों से हिंसक संघर्ष हुआ और दस खेतिहर आदिवासियों की मौत हुई. ऐसी घटना राज्य में वर्षों बाद हुई है. ऐसा नहीं है  कि सोनभद्र के उम्भा गांव में जमीन पर कब्जा करने को लेकर गत 17 जुलाई को ही   पहला प्रयास हुआ था. उम्भा गांव के लोगों का कहना है कि बीते दो सालों से खेतिहर आदिवासियों को प्रधान यज्ञदत्त जमीन छोड़ने के लिए डरा धमका रहा था, पर कभी भी पुलिस और जिला प्रशासन ने खेतिहर आदिवासियों की मदद नहीं की. और अब सूबे के  सीएम का 17 जुलाई की घटना के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बता रहे हैं, सीएम का यह  दावा उम्भा गांव के लोगों की समझ से परे है.

उम्मा गांव के ग्रामीण बताते हैं कि 17 जुलाई का नरसंहार जिला और पुलिस प्रशासन की ग्राम प्रधान यज्ञदत्त से मिलीभगत का नतीजा है. यदि जिला और पुलिस प्रशासन ने भूमि विवाद के मामले में नियमानुसार एक्शन लिया होता तो शायद दस खेतिहर आदिवासियों की मौत न होती. आखिर ये भूमि विवाद का मामला खूनी विवाद में कैसे तब्दील हो गया?

इस सवाल पर आदिवासियों की तरफ से प्रशासन और पुलिस के पास ग्रामीणों का पक्ष रखने वाले वकील नित्यानंद बताते हैं कि इस जमीन की कहानी 1955 से शुरू होती है. तब बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी महेश्वरी प्रसाद सिन्हा ने 12 सदस्यीय आदर्श कोआपरेटिव सोसाइटी बनाई. वह खुद इस सोसाइटी के अध्यक्ष बने और उनकी बेटी आशा मिश्र, दामाद प्रभात  कुमार मिश्र सहित कई अन्य रिश्तेदार इस सोसाइटी के सदस्य तथा कर्ताधर्ता बनाये गए. इस सोसाइटी के नाम पर हर्बल खेती करने के लिए 639 बीघा जमीन आवंटित हुई. वकील   नित्यानंद के अनुसार नियमों के मुताबिक सोसाइटी में स्थानीय लोगों को वरीयता दी जानी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कहा जा रहा है कि महेश्वरी प्रसाद सिन्हा यूपी के राज्यपाल रहे सीपीएन सिंह के भाई थे, शायद इसीलिए नियमों की अनदेखी तब की गई और बाद में प्रभात कुमार की बेटी विनीता शर्मा को भी सोसाइटी में जोड़ कर उन्हें अहम पद दे दिया  गया. विनीता शर्मा की शादी बिहार कैडर के आईएएस भानू प्रताप शर्मा से हो गई. तो उनका भी नाम सोसाइटी में जोड़ दिया गया.

इसके बाद छह सितंबर 1989 को सोसाइटी की ये जमीन आशा मिश्र व विनीता शर्मा के   नाम कर दी गई. जो नियम विरुद्ध था क्योंकि सोसाइटी की जमीन सीधे किसी व्यक्ति के नाम नहीं की जा सकती. इसके बाद अक्टूबर 2017 से आशा मिश्रा ने ग्राम प्रधान यज्ञदत्त व उसके रिश्तेदारों को 148 बीघा जमीन बेच दी. उस समय खेतिहर आदिवासियों ने इसका विरोध किया तो तत्कालीन डीएम अमित कुमार सिंह ने दाखिल खारिज करने पर   रोक लगा दी. परन्तु अमित सिंह का ट्रांसफर होने के तत्काल बाद राजस्व विभाग के अधिकारियों ने फरवरी 2019 में इस भूमि का दाखिल ख़ारिज कर दिया. नित्यानंद सवाल करते हैं कि आखिर जब एक डीएम ने रोक लगाई थी तो दूसरे डीएम ने पत्रवली को गंभीरता से क्यों नहीं देखा, और ये सब होने दिया.

नित्यानद बताते हैं कि दो साल पहले तक पूरी ज़मीन आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी के नाम  से थी और ये आदिवासी भी उसी सोसाइटी के मेंबर के तौर पर उस पर खेती करते थे और उसका कुछ हिस्सा सोसाइटी को देते थे. ऐसा वो दशकों से करते आ रहे थे. लेकिन जब 17 जुलाई को यज्ञदत्त ने अपने सैकड़ों साथियों के साथ पहुंच कर खेतिहर किसानों को जमीन से बेदखल करने का प्रयास किया तो खेतिहर आदिवासियों से उनका विवाद हुआ. इसमें दस खेतिहर आदिवासियों  की हत्या कर दी गई. अब जिन परिवारों को यह दुःख झेलना है, क्या इनकी मदद उस जमीन जिसके चलते यह नरसंहार हुआ है, उससे जुड़े किरदार करेंगे? इस जमीन  से जुड़े किरदारों में पूर्व आईएएस प्रभात कुमार मिश्रा, पूर्व आईएएस भानू प्रताप शर्मा जो की वर्तमान में एक महत्वपूर्ण पद पर तैनात हैं और राजस्व विभाग के वह अधिकारी हैं जिन्होंने नियमों की अनदेखी कर सोसाइटी की ज़मीन को सोसाइटी के सदस्यों के नाम  किया, फिर इस ज़मीन को दाखिल ख़ारिज भी सोनभद्र के जिलाधिकारी रहे अमित सिंह  के आदेश की अनदेखी करके किया गया.

इस जमीन के विवाद पर पूर्व आईएएस प्रभात कुमार मिश्र का कहना है कि उनके ससुर ने जो सोसाइटी बनायी थी उसमें उन्होंने अपनी बेटी आशा मिश्रा को सदस्य बनाया था और उस नाते मेरा भी नाम सोसाइटी में लिखा गया. बाद में उन्होंने मेरी पत्नी और बेटी के नाम जमीन कर दी. हमने कभी भी खेतिहर आदिवासियों को भूमि से बेदखल करने का प्रयास नही किया. हम इस भूमि पर हर्बल खेती करना चाहते थे, पर खेतिहर आदिवासी इसके लिए तैयार नहीं हुए तो हमने ये ज़मीन साईं ट्रस्ट को देने का प्रयास किया, लेकिन  साईं ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने कहा की वह इस जमीन की देखरेख नहीं कर सकते. इसके बाद हमने 2017 में जमीन बेचकर उससे मिली धनराशि साईं ट्रस्ट में दान कर दी.

प्रभात मिश्र यह भी कहते हैं कि इस जमीन को लेकर जो दुखद घटना हुई उसके लिए वह जिम्मेदार नहीं हैं क्योंकि जब तक उनके पास ये जमीन रही तब तक कोई विवाद नहीं हुआ. हमारे जमीन  बेचने के दो साल बाद हुए नरसंहार के लिए हमे दोषी बताना ठीक नही है. फ़िलहाल अब  सोनभद्र का ये नरसंहार एक हाई प्रोफ़ाइल राजनीतिक मामला बन चुका है. इस मामले में योगी सरकार की कार्रवाई पर प्रियंका गांधी से लेकर विपक्षी नेताओं की निगाह रहेगी और इस मामले से योगी सरकार का पिंड आसानी से छूटने वाला नहीं है, इस मामले को लेकर हुई राजनीति से ये सब दिख रहा है.

मुख्यमंत्री योगी भी जिम्मेदार

सोनभद्र के उम्भा गांव में हुई 10 आदिवासियों की हत्या के मामले में सपा, बसपा और कांग्रेस पर आरोप लगाने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी बड़ी भूमिका उभर कर सामने आ रही है. मुख्यमंत्री ने जनवरी महीने में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के अहम घटक अपना दल (सोनेलाल) के विधायक हरिराम चेरो की फरियाद को नजरअंदाज कर दिया था.

ऐसे दस्तावेज सामने आए हैं जिनके मुताबिक अपना दल (सोनेलाल) जो कि भाजपा का सहयोगी दल है, के नेता और दुद्धी के विधायक हरिराम चेरो ने गत 14 जनवरी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर घोरावल थाना क्षेत्र के उम्भा गांव में आदिवासियों की पैतृक भूमि पर कथित रूप से भूमाफिया के कब्जे और उन्हें फर्जी मुकदमे में फंसाकर प्रताड़ित करने संबंधी जानकारी एक पत्र लिखकर की थी. चेरो ने गांव में करीब 600 बीघा विवादित भूमि और उसे फर्जी सोसायटी बनाकर भूमि हड़पने का आरोप भी लगाया था.

चेरो के अतिरिक्त उम्भा गांव के निवासी आदिवासी गोंड समुदाय के लोगों का एक पत्र भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजा गया था. चेरो ने इस मामले की जांच उच्च स्तरीय एजेंसी से कराने और आदिवासियों को न्याय दिलाने की मांग की थी. इसके बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सहयोगी दल के नेता के पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं की.

उम्भा गांव निवासी राम राज सिंह गोंड, राम पति सिंह नेताम, संतोष कुमार, संतलाल, बसंत लाल, कैलाश, महेन्दर, राम कुंवर, जय सिंह, रामचंद्र, कमला, नागेन्दर, श्रीराम, इंद्रजीत आदि ने गत 12 जनवरी को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय को पत्र लिखकर भूमि विवाद और उसमें शामिल आइएएस अधिकारियों प्रभात कुमार मिश्रा और भानु प्रताप शर्मा, ग्राम प्रधान यज्ञदत्त सिंह के बारे में अवगत कराया था.

उन्होंने पत्र में आरोप लगाया था कि भूमाफिया के दबाव में पुलिस और पीएसी के जवान उन्हें प्रताड़ित करते हैं और उनकी बहू-बेटियों का शारीरिक शोषण करते हैं. उन्होंने बहू-बेटियों की इज्जत के साथ अपनी जान-माल की गुहार लगाई थी. इसके बावजूद भाजपा के पदाधिकारियों और उनकी सरकार ने आदिवासियों की सुरक्षा के लिए कोई पहल नहीं की.

अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा के पदाधिकारियों ने उस वक्‍त इस मामले को संजीदगी से लिया होता तो संभव था कि उम्भा गांव में 10 आदिवासियों की सामूहिक हत्या नहीं होने पाती.

बता दें कि गत 17 जुलाई को सोनभद्र के घोरावल थाना क्षेत्र अंतर्गत उम्भा राजस्व ग्राम में भूमि विवाद को लेकर गुर्जर समुदाय के करीब 200 लोगों ने आदिवासी गोंड समुदाय के 10 व्यक्तियों की हत्या कर दी थी. इसमें करीब 30 लोग घायल भी हो गए थे. इनमें कई की हालत गंभीर बनी हुई है. घायलों का इलाज सोनभद्र और वाराणसी में हो रहा है.

पुलिस ने मूर्तिया गांव के ग्राम प्रधान यज्ञदत्त सिंह समेत कुल 27 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजने का दावा किया है. साथ ही शासन ने घोरावल तहसील के उपजिलाधिकारी, घोरावल परिक्षेत्र के पुलिस क्षेत्राधिकारी, घोरावल थानाध्यक्ष, संबंधित हलके के उप-निरीक्षक और पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है. प्रत्येक मृतक के परिजनों को साढ़े 18 लाख रुपये मुआवजा देने का घोषणा की गई है जबकि घायलों को ढाई लाख रुपये की घोषणा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की है.

(जनादेश और मीडियाविजिल से साभार)