Newslaundry Hindi
एनएल चर्चा 77: कुलभूषण जाधव पर फैसला, एनआईए बिल, असम में कवियों पर एफआईआर और अन्य
पिछले हफ़्ते में देश से लेकर विदेश तक कई ऐसी घटनाएं घटित हुई हैं जो अपने-अपने स्तर पर महत्वपूर्ण होने के कारण चर्चा का विषय रहीं. बीते दिनों पाकिस्तानी जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव पर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने फैसला सुनाया है. बीते लोकसभा चुनाव से पहले शुरू हुए ‘तिरंगा टीवी’ के बंद हो जाने के कारण वहां के कर्मचारियों पर बेरोज़गारी का संकट गहरा गया है. तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भाषण चोरी करने के झूठे आरोप को लेकर ज़ी टीवी के एडिटर इन चीफ़ सुधीर चौधरी पर मानहानि का मुकदमा दायर किया है. हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा द्वारा एनआईए बिल पारित किया गया. एक मामले के संबंध में अपना फैसला सुनाते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि अब कोर्ट में आने वाले व्यक्ति को जज के नाम के आगे ‘मे लॉर्ड’ जैसे शब्दों का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं होगी. इसके अलावा, एक अन्य ख़बर असम से आयी जहां स्थानीय भाषा के 10 कवियों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की गयी है.
उपरोक्त सभी मसलों पर न्यूज़लॉन्ड्री के खास पॉडकास्ट प्रोग्राम ‘एनएल चर्चा’ में 3 खास मेहमानों के साथ चर्चा की गयी. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया. कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी, न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन और लेखक व वरिष्ठ पत्रकार अनिल यादव बतौर पैनलिस्ट मौजूद रहे.
चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल ने कहा कि “अंतरराष्ट्रीय कोर्ट द्वारा कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगा दी गयी है. कोर्ट द्वारा उन्हें काउंसलर मुहैया कराने का आदेश दिया गया है. दूसरी ओर पाकिस्तान द्वारा कहा जा रहा है कि चूंकि कोर्ट ने उन्हें उनके नियमों के अनुसार कार्रवाई करने को कहा है, इसलिए भारत की अपेक्षा अनुसार वह उनकी रिहाई करने को बाध्य नहीं है. तो ऐसे में देखा जाये तो क्या ये दोनों में से किसी पक्ष की जीत है, या फिर न्याय के तहत देखा जाये तो कुलभूषण जाधव का जो फांसी का फैसला था वह टल गया है और यह एक राहत की बात है?”
इस पर बात रखते हुए हर्षवर्धन त्रिपाठी कहते हैं कि “मुझे लगता है कि यह कुलभूषण जाधव के लिए ही बड़ी जीत है. दिक्कत यह है कि जब देश में ही हिंदू और मुसलमान की एक लाइन खिंच जाती है, तो जब मसला भारत और पाकिस्तान का होता है तो एक मोटी लाइन खिंच जाती है. लेकिन एक बात जो उभरकर इसमें सामने आती है, जिसे भारतीय मीडिया ने भी लगातार प्रचारित किया था और यह कहा जा रहा था कि कुलभूषण जाधव भारत की तरफ से भेजा गया कोई जासूस है, तो इसे आईसीजे ने पूरी तरह ख़ारिज कर दिया है. दूसरी महत्वपूर्ण बात इसमें यह कही गयी है कि जो अंतराष्ट्रीय मानक हैं, उन्हें पाकिस्तान के द्वारा उनकी अदालत में ट्रायल चलाते हुए पूरा करना होगा.”
इस विषय पर बात को आगे बढ़ाते हुए आनंद वर्धन ने कहा कि “इसमें बहुत सारी आशंकाएं हैं. दो साल पहले जब पाकिस्तान की कोर्ट में मुकदमा शुरू हुआ तो एक आशंका थी कि सच में यह वही कुलभूषण जाधव हैं या नहीं. यह आशंका अभी भी बनी हुई है. दूसरी बात है कि जो 1961 का वियना कंवेंशन है उसके कई अनुच्छेदों का यहां साफ तौर पर उल्लंघन है. उसमें यह कहा गया कि जो गिरफ्तारी की गयी, उनके काउंसलेट को तुरंत सूचित किया जायेगा, जबकि इन्होंने 21 दिन लगाये. दूसरी बात है कि जिन देशों से कूटनीतिक संबंध हैं उनके दूतावास को तुरंत सूचित किया जाना चाहिए, जो इन्होंने नहीं किया. तो यह ख़ारिज नहीं हुआ है कि वह जासूस हैं, लेकिन जासूसों के अदालती कार्रवाइयों में भी इस कन्वेंशन के नियम प्रभावी होंगे. मेरा मानना है कि 2017 में भारत और पाकिस्तान के जो कूटनीतिक संबंध तनावपूर्ण हुए थे, वह न हुए होते तो इसका रास्ता कूटनीति से ही निकल जाता.”
विषय के संबंध में अपना पक्ष रखते हुए अनिल यादव ने कहा कि “मुझे लगता है कि इस संबंध में जो फैसला आया है वह चीन और अमेरिका के पाकिस्तान के प्रति बदले रवैये से प्रभावित है. आप देखेंगे कि इस बार चीन ने भी मसूद अज़हर के मामले में उसे आतंकवादी घोषित करने के पक्ष में वोट किया था. यह दबाव का ही नतीजा है कि इमरान खान को यह कहना पड़ा है कि वह आतंकवाद के ख़िलाफ़ हैं और प्रो-पीपल गवर्नमेंट चलाना चाहते हैं. मुझे इस फैसले की बड़ी बात यह लगती है कि एक तो कुलभूषण की जान बच जायेगी और दूसरा चूंकि उन्हें काउंसलेट से मिलने दिया जायेगा, इसलिए न्यायिक प्रक्रिया ठीक से चल सकेगी. साथ ही जहां तक आतंकवाद का मसला है, तो यह तनाव तो चलता ही रहेगा इसके सुलझने के आसार दिखते नहीं है.”
इसके अतिरिक्त अन्य सभी मसलों पर भी अतुल चौरसिया के संचालन में पैनलिस्टों के साथ न्यूज़लॉन्ड्री के खास पॉडकास्ट ‘एनएल चर्चा’ में विस्तार से बातचीत की गयी. साथ ही कार्यक्रम के अंत में अनिल यादव द्वारा डॉक्टर संजय चतुर्वेदी की कविता ‘वह साधारण सिपाही जो कानून और व्यवस्था के काम आये’ का पाठ किया गया. पूरी चर्चा सुनने के लिए ‘एनएल चर्चा’ का पूरा पॉडकास्ट सुनें.
पत्रकारों की राय, क्या देखा जाये, सुना जाये, पढ़ा जाये:
आनंद वर्धन: ‘केन इज़ एबल‘, ‘बादल को घिरते देखा है’ (नागार्जुन)
हर्षवर्धन त्रिपाठी: ‘द डिफिकल्टी ऑफ़ बींग गुड’ (गुरचरण दास)
अतुल चौरसिया: कितने चौराहे (फणीश्वरनाथ रेणु)
Also Read
-
Gujarat’s invisible walls: Muslims pushed out, then left behind
-
Let Me Explain: Banu Mushtaq at Mysuru Dasara and controversy around tradition, identity, politics
-
गुरुग्राम: चमकदार मगर लाचार मिलेनियम सिटी
-
Gurugram’s Smart City illusion: Gleaming outside, broken within
-
Full pages for GST cheer, crores for newspapers: Tracking a fortnight of Modi-centric ads