Newslaundry Hindi
जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों का ‘चमचमाता’ उदाहरण गया
फिरोज़ा खातून (65) की बेटी- दामाद शादी के बाद पहली बार घर आये थे. फिरोज़ा दिनभर मेहमाननवाज़ी में व्यस्त रहीं. शाम के वक्त उन्हें बुखार चढ़ गया. परिजनों ने समझा कि दिनभर की व्यस्तता से हुई थकान बुखार का कारण है. बेटे ने मां को पैरासिटामॉल दिया. दवा के बाद रात में बुखार उतर गया लेकिन सुबह फिर से पारा सौ पहुंच गया. मंगलवार और बुधवार दोपहर तक परिवार फिरोज़ा को गांव के ही दवाखाना से दवा देता रहा.
“जब पैरासिटामॉल के कोर्स का भी कोई असर नहीं हुआ तब हमलोग अम्मी को अनुग्रह नारायण मेडिकल कॉलेज ले आये,” फिरोज़ा के बेटे आदिल ने बताया.
फिरोज़ा गया के अनुग्रह नारायण मेडिकल कॉलेज के 182 (शुक्रवार दोपहर तक) लू से पीड़ित मरीजों में शामिल हैं. सिर्फ इस अस्पताल में ही 48 लू पीड़ितों की जान जा चुकी है. प्रशासन के मुताबिक गया में लू से हुए मौतों का आंकड़ा 64 है. स्थानीय पत्रकारों का दावा है कि सरकारी और गैर-सरकारी अस्पतालों को जोड़कर मौतों का यह आंकड़ा सौ से थोड़ा ज़्यादा हो जायेगा.
हालात की गंभीरता को देखते हुए गया जिला प्रशासन ने रविवार से ही शहर में धारा 144 लागू कर दिया है. गर्मी की वजह से शहर में कर्फ्यू की धारा पहली बार लगी है.
अनुग्रह नारायण अस्पताल प्रसाशन की ओर से लू पीड़ितों के लिए विशेष वार्ड की शुरूआत की गयी है. वार्ड में एसी लगाया गया है और मेडिकल कॉलेज की ट्रेनी नर्सों को मरीज़ों की देखरेख के लिए लगाया गया है. अस्पताल सूत्रों के अनुसार, डॉक्टरों की एक टीम को खासकर लू से पीड़ित मरीजों के लिए तैनात किया गया है.
हालांकि लखिम चंद्र यादव के पिता कृष्ण यादव (70) फिरोज़ा की तरह खुशकिस्मत नहीं रहे. पिछले सप्ताह जब उन्हें मेडिकल कॉलेज लाया गया, अस्पताल में लू मरीज़ों के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं थी. वे ओपीडी में भर्ती किये जाते और गंभीर होने पर आईसीयू में ट्रांसफर कर दिये जाते. कृष्ण यादव अस्पताल की अपर्याप्त तैयारी नहीं झेल सके और मंगलवार की सुबह उन्होंने दम तोड़ दिया.
लखिम चंद्र यादव कहते हैं, “गांव के डाक्टर को रोग समझ ही नहीं आ रहा था. हम लोग सोचे कि गया मेडिकल कॉलेज में कुछ बेहतर इलाज मिलेगा. यहां भी वही हाल था. मैं और मेरी पत्नी गमछा पानी में भिगोकर, उनके शरीर पर डालते रहते थे कि उनके शरीर का टेम्परेचर कुछ घटे.” लखिम अपने पिता के मृत्यु की कुछ बाकी रह गयी औपचारिकताएं पूरी करने अस्पताल आये हैं. वो अस्पताल के इंतज़ामात से खुश नहीं दिखते. वह गुस्से में कहते हैं, “जो एसी वाला वार्ड ये लोग अभी शुरू किया है, यही अगर थोड़ा पहले शुरू कर देता तो इतने लोग नहीं मरते. एक सप्ताह पहले तक तो मरीज को कभी ओपीडी भेजते थे, कभी इमरजेंसी.”
गया में मई और जून का औसतन तापमान इस वर्ष 44 से 46 डिग्री रहा है. मौसम विभाग के अनुसार, मगध क्षेत्र में मानसून का आगमन 23 से 25 जून के बीच होने की प्रबल संभावना है.
मरीजों को देख रहे डॉ. भरत भूषण अस्पताल की तैयारी में हुई देरी को चूक मानते हैं. वह मानते हैं कि जो भी मौतें हुईं हैं, वे दुर्भाग्यपूर्ण हैं. डॉ. भरत भूषण लू से हुई मौतों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की भूमिका का ज़िक्र करते हैं. वे कहते हैं, “लू से बुखार लगना आम समस्या है. गंभीर तब हो जाता है जब मरीज़ के पास प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की उपलब्धता नहीं है या वो वहां प्राथमिक उपचार नहीं लेता है.”
शहर के सरकारी अस्पतालों में लू पीड़ित मरीजों में दो बात सामान्य दिखती है. पहला, वे सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर तबकों से हैं. दूसरा, मरीज़ों की उम्र 40-45 वर्ष से ऊपर की है.
डॉ. भूषण के मुताबिक, लू के मरीजों को बुखार की दवा के साथ शरीर का तापमान कम करने की व्यवस्था करने की ज़रूरत होती है. उनके अनुसार, “यहां जो भी मरीज आ रहे हैं, उनके घरों में न एसी और न ही कूलर की सुविधा है. उनके शरीर का तापमान कैसे कम होगा? इसीलिए अस्पताल में लू के मरीज़ों के लिए एसी वार्ड की व्यवस्था की गयी.”
पर्यावरणविद दिनेश गया में बढ़ते तापमान का रिश्ता प्रदूषण और फल्गु नदी की दयनीय स्थिति से जोड़ते हैं. वह बताते हें, “वर्षा आधारित नदी फल्गु (रेनफेड रिवर) के बारे में कहा जाता था कि फल्गु हमेशा बहती है, बैसाख में ऊपर, जेठ में नीचे. अब फल्गु की स्थिति ऐसी नहीं है. नदी में भीषण अतिक्रमण और छोटे-छोटे बांध बनाकर फल्गु को बर्बाद कर दिया गया है. स्थानीय प्रशासन और सरकार नदी के संरक्षण की पहल करता है लेकिन सिर्फ़ अखबारों में.”
लू से बचने के लिए शरीर के ताप को कम करने के नुस्खों के संबंध में रोग के सामाजिक और आर्थिक परिपेक्ष्य को रेखांकित करने की ज़रूरत है. आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ों से पास एसी या कूलर लगाने का विकल्प नहीं है. वह तो ठंडे फलों का भी लुत्फ़ लेने में असमर्थ है. ध्यान देने योग्य बात है कि पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने में उसका योगदान न के बराबर है, क्योंकि वह संसाधन-विहीन वर्ग है. उसकी न पेट्रोल की खपत है, न एसी का. न फ्रिज़ है, न आरो. पर सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब तबके का ही व्यक्ति है. गया में लू से हुई मौतें जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) के प्रभावों का ‘चमचमाता’ उदाहरण हैं.
मगध मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक डॉ. विजय कृष्ण प्रसाद के मुताबिक. एसी वार्ड के बाद लू के मरीज़ों में राहत है. वो मानते हैं कि तैयारी करने में विलंब हुई. साथ ही उन्होंने मीडिया को भी अपनी जिम्मेदारी निभाने की नसीहत दी. उन्होंने कहा, “आप लोग अपने चैनल पर क्यों नहीं लोगों को पर्यावरण के बारे में जागरूक करते हैं. लोगों को बताइए भी तो कि कैसे लू से बचा जा सकता है.”
“यह चिंता की बात होनी चाहिए कि लू से बचने के लिए धारा 144 लगानी पड़ी है. पर्यावरण दोहन के परिणाम हमारे सामने हैं. अब भी हमारी राजनीति में पर्यावरण मुख्य एजेंड़ा नहीं तो समझ लीजिए कि यह राजनीति मानवविरोधी है,” पर्यावरणविद दिनेश शर्मा कहते हैं.
गुरुवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मगध मेडिकल पहुंचे थे. उन्होंने अस्पताल में इंतजाम का रिव्यू किया, लेकिन मीडिया से दूरी बनाते दिखे.
शुक्रवार शाम तक गया सहित बिहार के अन्य जिलों दरभंगा, गोपालगंज, मधुबनी और सीतामढ़ी मिलाकर लू से होने वाली मौतों का आंकड़ा 250 के आसपास पहुंच चुका है.
Also Read
-
TV Newsance 253: A meeting with News18’s Bhaiyaji, News24’s Rajeev Ranjan in Lucknow
-
Uttarakhand: Forests across 1,500 hectares burned in a year. Were fire lines drawn to prevent it?
-
Know Your Turncoats, Part 15: NDA has 53% defectors in phase 5; 2 in Shinde camp after ED whip
-
Grand rallies at Mumbai: What are Mahayuti and MVA supporters saying?
-
Reporters Without Orders Ep 322: Bansuri Swaraj’s debut, Sambhal violence