Newslaundry Hindi
स्टैन स्वामी के घर पर छापे का संदेश क्या है?
44 साल के ललित मांझी को 2001 में हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. हत्या नक्सलियों ने की थी लेकिन गिरफ़्तार मांझी हुए. उन्होंने 10 महीने तेनुघाट जेल में बिताये और फिर जमानत पर रिहा हुए. लेकिन रिहाई के बाद उन्हें पुलिस वालों ने किसी काम के बहाने से दोबारा थाने बुलाया और दो अन्य आरोपों में उन्हें फिर से गिरफ़्तार कर लिया. वर्तमान में मांझी हत्या के आरोप से बरी हो गये हैं, क्योंकि जिस व्यक्ति की हत्या हुई थी उसके परिवार वालों ने खुद अदालत को बताया कि मांझी बेकसूर हैं. लेकिन पुलिस द्वारा उन पर दूसरी गिरफ़्तारी के दौरान लगाये गये आरोपों के चलते वह आज तक अदालत के चक्कर लगा रहे हैं. पुलिस ने उन्हें पहली बार गिरफ़्तार करने के बाद नक्सली घोषित कर दिया था और अब कहीं कुछ भी वारदात होती है तो पुलिस मांझी के पीछे पड़ जाती है.
38 साल के जीतन मरांडी को सबसे पहले 1999 में हज़ारीबाग़ में गिरफ़्तार किया गया था. दो दिन की पुलिस हिरासत में उन्हें शारीरिक यातनाएं दी गयीं. इसके बाद वह तक़रीबन साढ़े सात महीने जेल में रहे. दूसरी बार उन्हें 2003 में पटना महिला महाविद्यालय में गिरफ़्तार किया गया था, जहां वो एक सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश करने गये थे. उनका नाम एक नक्सली से मिलने की वजह से पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया था. 2005 में वे फिर से गिरफ़्तार हुए और पांच महीने जेल में रहे. इसके बाद वे 2008 में फिर से गिरफ़्तार हुए. नक्सलवादियों द्वारा चिलखारी में की गयी हत्याओं के मामले में उनका नाम आया. असल में उनकी गिरफ़्तारी जीतन मरांडी नामक नक्सलवादी से नाम मेल खाने के चलते की गयी थी. 5 महीने बाद तहक़ीक़ात में जब नक्सलवादी जीतन मरांडी की पहचान हुई तब यह बात सामने आयी. लेकिन इस बीच गिरफ़्तारी के बाद पुलिस ने उन पर छह और मुक़दमे दर्ज़ कर दिये थे, और अप्रैल 2008 में उन्हें रांची जेल भेज दिया था. उन्हे मौत की सज़ा सुनायी गयी थी, लेकिन सामजिक कार्यकर्ताओं द्वारा इस गिरफ़्तारी का कड़ा विरोध और पांच साल जेल में रहने के बाद जीतन मरांडी की रिहाई हुई. इस दौरान उनकी ज़मानत कराने के लिए जद्दोजहद करने वाली उनकी पत्नी अपर्णा मरांडी को भी पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था. गौरतलब है कि वर्तमान में जीतन फिर से जेल में कैद हैं.
79 साल के भुवनेश्वर सिंह को नक्सलियों द्वारा एक व्यक्ति की हत्या के आरोप में पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था. मृत व्यक्ति के परिवार ने सिंह सहित चार लोगों पर हत्या का आरोप लगाया. यह चार लोग गिरफ़्तार भी हुए, लेकिन बाद में मृत व्यक्ति के परिवार ने पुलिस को बताया कि गिरफ़्तार हुए चारो लोग निर्दोष हैं.
इन सभी कहानियों में, चाहे वो ललित मांझी की कहानी हो या जीतन मरांडी की या फिर ऐसे तमाम लोगों की, इनके लिए एक नाम सामान्य है. एक ऐसा नाम जो अपने लेखन से या कानूनी लड़ाई से इस तरह के पीड़ितों के लिए लड़ता है. झारखंड में ऐसे तमाम पीड़ितों की आवाज़ उठाने वाले उस व्यक्ति का नाम है फादर स्टैनसिलौस लोरदुसामी, जिन्हें अधिकतर लोग फादर स्टैन स्वामी के नाम से जानते हैं. उनका नाम देश भर में चर्चा में तब आया था जब एल्गार परिषद – कोरेगांव भीमा मामले में पिछले साल पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा था. पिछले हफ़्ते यानी 12 जून को पुलिस ने एक बार फिर से उनके घर की तलाशी ली है.
12 जून को सुबह के तकरीबन सवा सात बजे हमेशा की तरह अपने अंदाज़ में पुणे पुलिस की टीम रांची के नामकुम इलाके के बगईचा परिसर में 83 साल के स्टैन स्वामी के घर एक बार फिर से दबिश देने पहुंच चुकी थी. मामला वही एल्गार परिषद्-कोरेगाव भीमा वाला था, जिसके चलते पिछले साल 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने पहली बार फादर स्वामी के घर पर दबिश दी थी. इस मामले के तहत पुणे पुलिस ने नौ समाजसेवी और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में डाल रखा है. यह सारी गिरफ़्तारियां कुछ ऐसे दस्तावेज़ों के आधार पर हुई थीं, जिनकी विश्वसनीयता पर कई सवाल थे और आज भी उठते हैं.
बुधवार को पुलिस लगभग साढ़े तीन घंटे तक स्वामी के घर को खंगालती रही. इस दबिश के दौरान पुलिस ने स्वामी के घर से उनकी हार्ड डिस्क, इंटरनेट मॉडेम और कुछ कागज़ात ज़ब्त किये हैं. पुलिस ने उनके ईमेल अकाउंट और फेसबुक अकाउंट का पासवर्ड लेकर बदल दिया है. पिछले साल जब 28 अगस्त, 2018 को पुणे पुलिस ने स्वामी के घर छापा मारा था तो उनका लैपटॉप ज़ब्त कर लिया था. उनके घर यह दबिश पत्थलगढ़ी आंदोलन के चलते उन पर झारखंड सरकार द्वारा राजद्रोह का मुक़दमा दर्ज़ होने के चलते हुई थी. उसके एक महीने पहले तक कोरेगांव भीमा का कभी नाम भी नहीं सुनने वाले स्टैन स्वामी का नाम वहां हुई हिंसा से जोड़ दिया गया.
न्यूज़लॉन्ड्री ने स्टैन स्वामी से उनके घर पर हुई दबिश के बारे में जब बात की तो उन्होंने बताया, “पुणे पुलिस द्वारा मेरे घर पर डाला गया छापा पूरी तरह से गैरकानूनी हैं. मैंने पुणे पुलिस के इस गैरकानूनी रवैये के बारे में उनके जांच अधिकारी शिवाजी पवार को भी बताया था. पिछले साल जब उन्होंने मेरे घर पर छापा मारा तथा तब वह दोनों चश्मदीद पुणे से लेकर आये थे. इस बार 12 जून को जब छापा मारा तब भी दो में से एक चश्मदीद पुणे से ही आया था, जो कि कानूनन गलत है. कानून के मुताबिक दोनों ही चश्मदीद स्थानीय होने चाहिए.”
शिवाजी पवार ने हमें बताया कि उनके ओहदे का अफ़सर इस प्रक्रिया में बदलाव कर सकता है. स्वामी के मुताबिक, “पुलिस जानबूझ कर यह छापे डाल रही है, क्योंकि उन्हें पता है कि अदालत में पुलिस द्वारा लगाये आरोप झूठे साबित होंगे और सभी लोग बरी हो जायेंगे. पुलिस नहीं चाहती है कि गिरफ़्तार किये गये लोग बरी हों और कानूनी प्रक्रिया को धीमा करने के लिए वे ऐसे हथकंडे अपना रही है.”
स्वामी कहते हैं, “मेरा जीवन मध्य भारत के आदिवासी लोगों के लिए समर्पित है. झारखंड खनिज संपदा से समृद्ध प्रदेश है और यहां का सारा खनिज निकाला जा रहा है. निकाले गये खनिजों में यहां के आदिवासियों को कोई भी हिस्सा नहीं दिया जा रहा है, जो कि यहां की भूमि के मालिक हैं. कॉर्पोरेट और उद्योगपति यहां के खनिज का खनन करके अमीर होते जा रहे हैं, जबकि यहां के आदिवासी भूखे मर रहे हैं. पिछले दो साल में झारखंड में 20 लोग भूखमरी के चलते मरे हैं, बावजूद इसके कि वह एक खनिज समृद्ध भूमि के मालिक हैं. युवा आदिवासियों को नक्सलवाद के झूठे इलज़ाम लगा कर जेलों में कैद किया जाता है. इन्हीं सब मुद्दों के बारे में मैं लिखता हूं और लड़ता हूं. यही कारण है कि कोरेगांव भीमा केस में मुझे फ़ंसाने की कोशिश की जा रही.”
झारखंड में काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता आलोका कुजूर बताती हैं कि मूल रूप से चेन्नई के रहने वाले स्वामी पिछले 50 सालों से झारखंड में हैं और सरकारी दमन के ख़िलाफ़ लोगों की आवाज़ को प्रखर करते हैं. वह कहती हैं, “फादर स्टैन, जन आंदोलनों पर शोध करके लिखने का काम करते हैं. वह लोगों पर हुए सरकारी दमन के मामलों को उठाते हैं. आदिवासियों, दलितों और महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर लगातार काम करते रहते हैं. जल, जंगल, ज़मीन से जुड़े मामलों में सरकार की भूमिका के बारे में वह लिखते हैं और उनसे जुड़े आंदोलनों का वह समर्थन भी करते हैं.”
कुजूर ने बताया, “उन्होंने कोरेगांव भीमा का नाम पहली बार तभी सुना जब वहां पर हिंसा के बारे में मीडिया में दिखाया गया था. वह 83 साल के हैं और कैंसर के मरीज़ हैं. वह न रांची के बाहर जाते हैं और न ही किसी गतिविधि में शामिल होते हैं. वह पढ़ाई-लिखाई करते हैं और उनके मानवाधिकार केंद्र बगईचा में शोधकर्ता, लेखक जैसे लोग आते रहते हैं. एल्गार परिषद् मामले में उन पर कोई भी आरोप नहीं हैं, फिर भी पुलिस उनके घर पर दूसरी बार छापा मार रही है. कोर्ट ने भी पिछले साल पुलिस को निर्देश दिये थे कि वह उन्हें गिरफ़्तार न करे, अब अचानक ठीक एक साल बाद पुलिस आती है और एक बार फिर उनके घर पर छापा मारती है, यह बात बिल्कुल समझ के परे है. स्टैन ने झूठे आरोपों में जेल में कैद लोगों के लिए आवाज़ उठायी है. झारखंड के तकरीबन 500 निर्दोष आदिवासी युवा जिन्हें पुलिस ने नक्सली बताकर जेल में कैद कर रखा था, ऐसे युवाओं की रिहाई के लिए स्टैन ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी और लंबे समय से उनके लिए लड़ रहे हैं. उन्होंने हमेशा दमन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी है, उनके घर पर पुणे पुलिस द्वारा डाला गया छापा एक राजनीतिक साजिश का हिस्सा है.”
रांची में काम कर रहे एक अन्य समाजसेवी बीबी चौधरी कहते हैं, “तकरीबन 25-30 पुलिस वाले बुधवार को स्टैन स्वामी के घर पर छापा मारने आये थे. इनमें से छह पुलिस वाले पुणे पुलिस के थे, बाकी अन्य स्थानीय पुलिस के लोग थे. स्टैन स्वामी तीन दशक से ज़्यादा समय से झारखंड में काम कर रहे हैं. वह पहले चाइबासा में थे, उसके बाद रांची आ गये. वह पहले बेंगलुरु में इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में भी पढ़ाते थे. उनका काम आदिवासियों के अधिकारों पर केंद्रित है और वह लगातार उसके लिए काम करते आ रहे हैं. उनका नाम कोरेगांव-भीमा से जानबूझ कर जोड़ा जा रहा है. उनका कोरेगांव भीमा में हुई हिंसा और एल्गार परिषद् से किसी भी तरह का कोई संबंध नहीं है, वह उन आयोजकों को भी नहीं जानते हैं. वह सिर्फ झारखंड में आदिवासियों के हक़ के लिए काम करते हैं.”
स्वामी को झारखंड में विस्थापन, पेसा कानून अधिनियम, विचाराधीन कैदियों और आदिवासी हितों के क्षेत्र में काम करने के लिए जाना जाता है. न्यूज़लॉन्ड्री ने जब इस केस के जांचकर्ता और पुणे पुलिस के अधिकारी शिवाजी पवार से स्टैन स्वामी के घर छापे मारने की वजह पूछी, तो वह कहते हैं, “हमने छापा मारा है, लेकिन इसके पीछे की वजह मैं नहीं बता सकता.”
Also Read
-
Rajiv Pratap Rudy on PM’s claims on ‘infiltrators’, ‘vote-chori’, Nishikant Dubey’s ‘arrogance’
-
Can you really afford a house in India?
-
TV Newsance 313: What happened to India’s No. 1 China hater?
-
Chronicler of Bihar, veteran editor ‘with a spine’: Journalists mourn the death of Sankarshan Thakur
-
India’s health systems need to prepare better for rising climate risks