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बिहार: पत्रकार रूपेश कुमार सिंह और दो अन्य की गिरफ़्तारी क्यों हुई?
33 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह, 45 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता एवं रामगढ़ सिविल कोर्ट के वकील मिथिलेश कुमार सिंह और उनके 42 वर्षीय ड्राइवर मोहम्मद कलाम 4 जून को रांची के पास रामगढ़ से औरंगाबाद जाते समय लापता हो गये थे. औरंगाबाद मिथिलेश का पैतृक गांव है, जो बिहार के गया जिले से 50 किलोमीटर की दूरी पर है.
जब तीनों तय समय पर औरंगाबाद नहीं पहुंचे और उनके फ़ोन भी नहीं लग रहे थे, तब मिथिलेश के परिवार ने रामगढ़ पुलिस स्टेशन में गुमशुदा व्यक्तियों की रिपोर्ट दर्ज़ कराने का फैसला लिया. रिपोर्ट अगले दिन दर्ज़ करवायी गयी.
6 जून को लगभग 1 बजे मिथिलेश ने रूपेश के भाई को फ़ोन कर के यह कहा कि वो अपने परिवार को कहें कि रूपेश ठीक है और वे सभी रामगढ़ वापस आ रहे हैं, इसलिए वो लोग चिंता न करें. इससे पहले कि रूपेश का भाई कुछ और पूछता फ़ोन कट गया. रूपेश की पत्नी ईप्सा शताक्षी ने बताया, “हम तुरंत रामगढ़ पुलिस स्टेशन गये और उन्हें इस फ़ोन कॉल के बारे में बताया. हम पुलिस को ज़्यादा परेशान नहीं करना चाहते थे, लेकिन उनको घटनाक्रम के बारे में सूचित भी रखना चाहते थे.”
अगली सुबह शताक्षी को स्थानीय दैनिक प्रभात ख़बर में छपी उनके पति की ख़बर ने उनको हिला दिया. ख़बर के अनुसार, “रूपेश, मिथिलेश और मोहम्मद कलाम को राष्ट्रीय राजमार्ग – 2 पर गया से 30 किलोमीटर दूर शेरघाटी के पास डोभी मोड़ से विस्फोटक के साथ गिरफ़्तार कर लिया गया है.”
शुक्रवार (7 जून) को सुबह तकरीबन 8 बजे, बिहार पुलिस की एक इकाई ने रामगढ़ और बोकारो स्थित रूपेश के घर की तलाशी ली गयी और उनका मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप और कुछ ‘नक्सली साहित्य’ ज़ब्त किया. शताक्षी ने कहा, “मैं उनसे सर्च वारंट मांगती रही, लेकिन दिया नहीं गया. वो उनका लैपटॉप, लेनिन और मार्क्स की कुछ किताबें और कुछ अन्य वैचारिक सामान ले गये.” शताक्षी ने आगे बताया, “पुलिस मेरे पिता और बहनोई को साथ ले गयी और उसके बाद उनसे भी संपर्क नहीं हो पा रहा है.”
रूपेश की पत्नी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “क्या रूपेश को उनकी वामपंथी विचारधारा के लिए निशाना बनाया जा रहा है? रूपेश हमेशा कहते थे कि जब आप गरीबों के हक़ के लिए खड़े होते हैं, तो सरकारें आपको दबाने का प्रयास करती हैं. आज वही हुआ है. उन्हें दलितों और आदिवासियों के मुद्दे पर काम करने की वजह से गिरफ़्तार किया गया है. इसमें रत्ती भर भी शक नहीं है कि पुलिस उन्हें झूठे मामले में फंसाने की कोशिश कर रही है.” उन्होंने आगे बताया, “हम सबने देखा है कि कैसे सुधा भारद्वाज जैसे कई अन्य कार्यकर्ताओं को गलत तरीके से फंसाया गया है. उनका अपराध क्या है? सिर्फ यही न कि वे सभी समाज के कमजोर वर्गों के लिए आवाज़ उठा रहे थे और सरकार की लूट का विरोध कर रहे थे.”
इसी बीच, 6 जून को गया के सहायक पुलिस अधीक्षक (नक्सल) नवीन कुमार सिंह और पुलिस उपाधीक्षक रवीश कुमार ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसमें उनके पीछे तीन नकाबपोश व्यक्ति (रूपेश, मिथिलेश और कलाम) भी खड़े थे. उनके अनुसार इन तीनों को केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल की कोबरा बटालियन और स्थानीय पुलिस के संयुक्त अभियान के दौरान गिरफ़्तार किया गया. रवीश कुमार ने कहा, “हमें ख़बर मिली थी कि विस्फोटक से भरी एक चार पहिया गाड़ी डुमरिया में छकरबंधा की ओर आ रही है. इसके बाद हमने राष्ट्रीय राजमार्ग – 2 पर सुरक्षा बढ़ा दी और छकरबंधा की ओर जाने वाली गाड़ियों की जांच शुरू कर दी.”
पुलिस अधिकारियों ने दावा किया कि उन्होंने सुरक्षा जांच के दौरान डेटोनेटर और जिलेटिन की पट्टियों की एक बड़ी खेप बरामद की है. उन्होंने कुछ नक्सल साहित्य भी जब्त किया. हालांकि, प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल स्थानीय पत्रकारों के अनुसार, ज़ब्त किया हुआ “साहित्य” रूपेश द्वारा लाल माटी नामक पत्रिका के लिए लिखे हुए लेख थे. रूपेश लाल माटी पत्रिका के संपादक हैं. एक संपादक के अलावा रूपेश एक क्रांतिकारी कवि के तौर पर भी जाने जाते हैं.
पुलिस अधिकारियों ने आगे बताया कि आरोपी झारखंड के हजारीबाग से विस्फोटक ला रहे थे और रूपेश यह विस्फोटक मुख्य रूप से माओवादियों को सप्लाई करता था. इस बार ज़ब्त किया गया विस्फोटक छकरबंधा और बांके बाज़ार में तैनात सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाना था. आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 414 और 120बी के साथ-साथ विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के अंतर्गत अन्य धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज़ किया गया है.
हालांकि, शताक्षी ने पुलिस द्वारा लगाये गये सभी आरोपों को गलत बताया है. वे बताती हैं कि शायद ही रूपेश की किसी के साथ दुश्मनी हो, सिवाय उनके कॉलेज के दिनों की एक घटना के अलावा. उस घटना का विवरण देते हुए वे कहती हैं, “2010 में जब रूपेश आल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) से जुड़े एक छात्र कार्यकर्ता थे, तो भागलपुर से उनका अपहरण कर लिया गया था. उनके राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें ताना मारते हुए कहा था, ‘बहुत नेता बनता है. विधायक बनने का सपना देखता है. बतायेंगे तुम्हें.’ रूपेश चीज़ों को अच्छी तरह से व्यक्त करते हैं और हमेशा गरीबों और हाशिये पर रह रहे लोगों पर हो रहे अत्याचारों के ख़िलाफ़ खड़े रहते थे.” पुलिस अधिकारियों द्वारा लगाये गये आरोपों और रूपेश की पत्नी द्वारा उनका खंडन करने से मामला पेचीदा हो गया है.
इसके अलावा कथित नक्सलियों या माओवादियों की गिरफ़्तारी की रिपोर्टिंग एकतरफा हो सकती है, क्योंकि स्थानीय पत्रकारों को पुलिस और सुरक्षा अधिकारियों द्वारा दी गयी सूचना पर निर्भर रहना पड़ता है. एक स्थानीय पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमने पुलिस अधिकारियों से अनुरोध किया कि वे हमें आरोपियों से बात करने दें, लेकिन उन्होंने करने नहीं दिया.”
जहां तक जिलेटिन की पट्टियों और डेटोनेटर की बरामदगी की बात है, उसके बारे में गया कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले एक वकील मुरारी कुमार का कहना है कि जिलेटिन की पट्टियों और डेटोनेटर की ज़ब्ती कई मामलों में फ़र्ज़ी निकलती है. वकील ने आगे बताया कि, “मैंने ऐसे कुछ मामलों को देखा है और उनमें सामने आया है कि विस्फोटक की बरामदगी और गिरफ़्तारियां झूठी थीं.”
(उमेश कुमार राय और रोहिन कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं और पत्रकारों के एक अखिल भारतीय नेटवर्क 101Reporters.com के सदस्य हैं.)
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