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दिल्ली की अनबुझी प्यास और पानी को लेकर रार
दिल्ली देश की राजधानी होने के साथ-साथ इस वक़्त जनसंख्या के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर है, जिसकी आबादी लगभग 2 करोड़ है. साल 2028 तक दिल्ली दुनिया का सबसे बड़ा शहर बन जायेगी, जिसके कारण संसाधनों की मांग और आपूर्ति का दबाव भी बेतहाशा बढ़ेगा.
दिल्ली को हर दिन करीब 3 अरब 60 करोड़ लीटर पानी की ज़रूरत होती है, लेकिन केवल 2 अरब 90 करोड़ लीटर पानी ही उपलब्ध हो पाता है. पानी की किल्लत दिल्ली के चुनावों में भी अहम मुद्दा बनती रही है. साल 2015 में दिल्ली के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटों पर जीत हासिल की थी. आप के जीतने के कारणों में से एक बड़ा कारण पानी का मुद्दा भी था, जिसके चलते दिल्ली की जनता ने इन्हें इतनी बड़ी जीत दी थी.
नवभारत टाइम्स की ख़बर के अनुसार, केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड की रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में पानी का जलस्तर काफी तेज़ी से नीचे गिर रहा है. जिसका मुख्य कारण वर्षा के जल का सही तरीके से संग्रहण नहीं होना, कंक्रीट का बढ़ना और पानी के लिए किसी तरह की प्लानिंग नहीं होने को बताया गया है. इतना ही नहीं, दिल्ली के करीब 15 फीसदी इलाकों में भूमिगत जल 40 मीटर से भी नीचे चला गया है. दक्षिणी दिल्ली, मध्य दिल्ली और पूर्वी दिल्ली में जितना पानी का इस्तेमाल होता है उतना ही पानी की कमी का सामना भी लोगों को करना पड़ रहा है.
ऐसा ही हाल आपको दिल्ली के संगम विहार में देखने को मिलेगा. यह दिल्ली की सबसे बड़ी अनधिकृत कॉलोनियों में से एक है. यहां की गलियों में सुबह से लेकर शाम तक पानी के टैंकर गलियों का चक्कर लगाते हुए दिखायी देते हैं. लेकिन सच्चाई यही है कि ये टैंकर भी पानी की किल्लत को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. संगम विहार एल ब्लॉक के दूसरी तरफ बड़ी-बड़ी कोठियां देखने को मिलती हैं, जिनमें घर के अंदर बोरवेल लगे हुए हैं. लेकिन इन बड़ी कोठियों में भी प्राइवेट टैंकरों के ज़रिये ही पानी पहुंच रहा है. संगम विहार में अमीर हों या गरीब, सभी पानी की दिक्कत से एक समान परेशान हैं.
एल ब्लॉक में रहने वाले दिवाकर बताते हैं, “हमारी गली में कुल 8 घर हैं, जिसमें से कई पैसे खर्च करके पूरा एक टैंकर अपने लिए मंगा लेते हैं. लेकिन जो लोग पानी खरीद नहीं पाते, उन्हें दिल्ली जल बोर्ड की ओर से दिये जाने वाले पानी पर निर्भर रहना पड़ता है, लेकिन उसकी मात्रा काफी कम होती है.”
दिवाकर पास खड़े टैंकर की तरफ हाथ से इशारा करते हुए बोलते हैं, “आप भी देख सकते हैं कि जल बोर्ड का टैंकर केवल 1000 लीटर पानी ले कर आया है, जबकि इतना पानी तो सिर्फ़ 2 घरों में ही लग जाता है. यूं तो दिल्ली जल बोर्ड की तरफ से कहने को पानी एकदम मुफ़्त भेजा जाता है. लेकिन पानी देने के समय हम लोगों से 200 से 300 रुपये लिए जा रहे हैं.”
पास में खड़े एक युवा लड़के ने, जो दिल्ली जल बोर्ड में काम भी करता है, अपना नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि संगम विहार में पानी की समस्या बहुत पुरानी है. दिल्ली में सबसे ज्यादा सूखा यहीं रहता है, उसके बाद भी अधिकारियों को यहां की समस्या हल करने से कोई लेना-देना नहीं है. यहां पर घूम रहे अधिकतर सरकारी टैंकर केवल नाम के लिए हैं. इन टैंकरों को भी एक तरह से प्राइवेट कंपनी ही चला रही है.
आगे की गलियों में हमें स्थानीय निवासी जल बोर्ड के अधिकारियों के साथ लड़ते हुए मिले. जब हमने स्थानीय लोगों से बात की, तो वैभव नाम के एक युवा ने बताया, “ये सब हमारे लिए रोज़ की बात हो चुकी है. ज़रूरत भर का पानी सरकार हमको दे नहीं पा रही है. रोज़ दिल्ली जल बोर्ड से बहस करना अब आदत-सी हो गयी है.”
वैभव ने हमें बताया कि पानी का टैंकर यहां पर 15 दिन में केवल एक बार आता है. 2 महीने से हमारे घरों में पानी नहीं आया है. वैभव की एक छोटी-सी दुकान है, जिससे उनकी रोज़ी-रोटी चलती है. लेकिन दुकान को बंद करके पानी भरने में लगे रहते हैं.
केजरीवाल से शिकायत
संगम विहार के निवासी हेमंत गुस्से में कहते हैं, “केजरीवाल सरकार ने पिछले 4 साल में हम लोगों के लिए कुछ नहीं किया है. उल्टा केजरीवाल के आने के बाद से पानी की किल्लत बढ़ गई है. पहले हमें कम-से-कम प्राइवेट सप्लायर से पानी समय पर मिल जाता था लेकिन अब वो बंद हो गया है और सरकारी पानी महीने में एक बार आता है. केजरीवाल ने सरकारी मदद नहीं की, ऊपर से प्राइवेट पानी भी बंद करा दिया है.”
हेमंत बताते हैं कि उन्हें 2 साल पहले सरकार की ओर से बोरवेल बनाने की मंजूरी मिली थी, उसका भी काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है. हेमंत की बात में अपनी बात जोड़ते हुए पास खड़े व्यक्ति रमेश बोलते हैं, “आख़िरी बार हमारे यहां विधायक कब आया था, ये हमें भी नहीं पता है. अगर विधायक आता भी है तो हमारे यहां तक नहीं आता है.”
गली के मुहाने पर ही किराने की एक छोटी-सी दुकान चलाने वाले हिमांशु बताते हैं, “हमें पानी दिये बिना ही जल बोर्ड पानी के बिल थमा दे रहा है. जब कंप्लेन करने के लिए जाते हैं तो भी बहुत परेशान किया जाता है. जब हम अफसरों से बात करने जाते हैं तो हमें कोई जवाब नहीं मिलता है. कई बार तो पानी का टैंकर भी नहीं आता है, जो आता भी है उसे मंगवाने के लिए हमें जल बोर्ड के दफ़्तरों के धक्के खाने पड़ते हैं.”
सिर्फ पानी ही नहीं शुद्ध हवा के लिए भी तरस रहे लोग
बुद्ध बाजार की गलियां घूमते-घूमते आप को कच्चे रास्ते, गलियों में रखी टंकियां और टैंकर का इंतज़ार करते लोग दिख जायेंगे. स्थानीय लोग बताते हैं कि पानी की किल्लत होने के साथ-साथ यहां हवा भी शुद्ध नहीं है. एल ब्लॉक से बाहर निकलते ही कूड़ा-कचरा की जगह है. स्थानीय निवासी शकील हमें वहां ले जाते हैं और दिखाते हैं कि पूरे संगम विहार का कूड़ा यहां फेंका जाता है. लेकिन इस कूड़े की सफाई की कोई व्यवस्था यहां पर नहीं की गयी है. आवारा पशु घूमते रहते हैं. कई बार कूड़े में आग लगा दी जाती है, जिससे हवा की गुणवत्ता बहुत ख़राब हो जाती है. सरकार ने यहां पर कूड़े की व्यवस्था के लिए कुछ नहीं किया है.
शकील कहते हैं, “हमारे इलाके में रोड तक ठीक से नहीं बनी हुई है. पानी के टैंकर जब यहां से गुजरते हैं, तो उनसे रिसते पानी से गली के गड्डे में कीचड़ भर जाता है. इलाके में मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियों का ख़तरा भी बना रहता है.”
देश में पानी को लेकर समस्या
साल 2011 तक दिल्ली को जहां 1,020 एमजीडी (मिलियन गैलन प्रतिदिन) पानी की ज़रूरत होती थी, तो वहीं 2019 में ये ज़रूरत बढ़कर 1,150 एमजीडी तक पहुंच गयी है और भविष्य में यह जरूरत और भी बढ़ने वाली है. इस समय दिल्ली को पानी के लिए ज़्यादातर अपने पड़ोसी राज्य हरियाणा के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है. दिल्ली को कुल 1133 क्यूसेक पानी की आपूर्ति होती है. जिसमें से 683 क्यूसेक पानी हरियाणा दिल्ली को देता है. इसके अलावा डीएसबी (दिल्ली सब ब्रांच) की और से 330 क्यूसेक और यमुना से 120 क्यूसेक पानी मिलता है. इस पानी को पीने योग्य बनाने के लिए दिल्ली की ओखला, बवाना, द्वारका, वजीराबाद, हैदरपुर प्लांट में पानी की सफाई की जाती है. जिसके बाद दिल्ली जल बोर्ड इसकी सप्लाई करता है.
सेंट्रल वाटर कमीशन के मुताबिक, “देश के 91 जलाशयों में कुल जल क्षमता का केवल 22 फीसदी पानी ही बचा है. इन जलाशयों की जल संचयन क्षमता 161.993 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है. गुजरात, महाराष्ट्र के 27 जलाशयों में पानी का स्तर काफी नीचे चला गया है. इन जलाशयों की पानी की क्षमता 31.26 बीसीएम है. जबकि 16 मई तक इनमें पानी का स्तर 4.10 बीसीएम पहुंच गया था. यानी जलाशयों की कुल क्षमता का 13 फीसदी ही पानी बचा है. पिछले साल इस वक्त तक जलाशयों में पानी का कुल 18 फीसदी जल मौजूद था.”
आजतक की ख़बर के मुताबिक तेलंगाना में 2 जलाशय, आंध्र प्रदेश में 1, कर्नाटक में 14, केरल में 6 और तमिलनाडु में 6 जलाशय है. इन जलाशयों की कुल जल संचयन क्षमता 51.59 बीसीएम है. जबकि इनमें 6.86 फीसदी पानी ही बचा है.
दिल्ली में पानी की बर्बादी को लेकर इस कदर लापरवाही बरती जा रही है कि साल 2008 में दिल्ली जल बोर्ड पर सवाल उठाते हुए भारत के महालेखाकार ने टिप्पणी की थी कि दिल्ली में 40 प्रतिशत पानी व्यर्थ बह जाता है. यह बर्बादी तकरीबन 38 करोड़ लीटर प्रतिदिन है. दिल्ली स्थित विज्ञान और पर्यावरण केंद्र के एक अध्ययन के अनुसार पानी की यह बर्बादी रेणुका बांध से होने वाली जल आपूर्ति का चौथा भाग है. इस लिहाज़ से सरकार और जनता दोनों को पानी के संचय के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी.
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