Newslaundry Hindi
भारत में वायु प्रदूषण से हर साल मर रहे 12 लाख लोग, आप खींचिये सेल्फी विद सेपलिंग
हमारे प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट के दूसरे मंत्रियों को सेल्फी से बहुत प्यार है. वह इसे संप्रेषण का बहुत सशक्त माध्यम मानते हैं, इसलिए पर्यावरण दिवस पर सरकार #सेल्फीविथसेपलिंग मुहिम चला रही है जो कि वृक्षारोपण के नाम पर एक अच्छी प्रेरणा हो सकती है, लेकिन सरकार को समझना होगा कि वायु प्रदूषण की समस्या को सिर्फ पब्लिसिटी के दम पर नहीं लड़ा जा सकता. ज़मीन पर ज़रूरी कदम उठाने होंगे.
इस साल जब हम पर्यावरण दिवस मना रहे हैं, हिमालय के जंगलों में आग की ख़बरें हमारे बीच मौजूद हैं. देवभूमि उत्तराखंड के जंगल धू-धू करके जल रहे हैं और इस आग से वन संपदा को भारी नुकसान होने के साथ-साथ भयानक वायु प्रदूषण हो रहा है, लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार को इसकी कोई परवाह ही नहीं है और वह बस बरसात होने का इंतज़ार कर रही है, जिससे स्वत: ही आग बुझ जायेगी.
आज दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 15 भारत में हैं. दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है. हमारे हर प्रदेश की राजधानी बेइंतहा प्रदूषित शहरों में शुमार है. छोटे-छोटे बच्चों को फेफड़े के कैंसर जैसी बीमारियां हो रही हैं. भारत में हर साल वायु प्रदूषण से 12 लाख लोगों के मरने की बात सामने आयी, तो केंद्रीय मंत्रियों ने उस पर कोई कदम उठाने की बजाय उसे “हौव्वा” करार दे दिया. ठीक वैसे ही जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जलवायु परिवर्तन की समस्या को भारत और चीन जैसे विकासशील देशों का “हौव्वा” कहते हैं.
सरकार खुद संसद में कह चुकी है कि 2010 और 2017 के बीच देश के जंगलों में आग लगने की घटनायें करीब 3 गुना बढ़ी हैं. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल नवंबर से इस साल फरवरी के बीच जंगलों में लगने वाली बड़ी आग की घटनायें 4,225 से बढ़कर 14,107 हो गयी हैं. वेबसाइट न्यूज़क्लिक में फॉरेस्ट सर्वे की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया कि मार्च के पहले हफ़्ते में 58 बड़ी आग सक्रिय थीं. इस साल फरवरी और मार्च में पिछले 2 महीनों में ही आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना के राज्यों में 205 आग की घटनाओं का पता चला.
उत्तराखंड के जंगलों में इस साल आग की 1500 से अधिक घटनायें हुई हैं और 2000 हेक्टेयर से अधिक जंगल स्वाहा हुए हैं. अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इससे वातावरण में कितनी गर्मी बढ़ रही है. जीव-जंतुओं के साथ बहुमूल्य जैव विविधता खत्म हो रही है.
उत्तराखंड सरकार ने साल 2016 में आग बुझाने के लिए आपदा प्रबंधन की तैयारी की थी, लेकिन वह ज़मीन पर कहीं नहीं दिखती, क्योंकि हर साल पहाड़ में यूं ही आग लगी रहती है. यही हाल पूरे देश का है. 2017 में पूरे देश के जंगलों में अलग-अलग जगह आग लगने की 35,000 से अधिक घटनाएं हुईं. न कोई प्रबंधन और न फंड का सही इस्तेमाल. डाउन टु अर्थ पत्रिका के मुताबिक तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक ने आग बुझाने के लिए निर्धारत फंड का केवल 60 प्रतिशत ही इस काम में खर्च किया है.
ऐसे में आप सोच सकते हैं कि सेल्फी विथ सेपलिंग की सच्चाई क्या है. जानकार कहते हैं कि प्लांटेशन के नाम पर सरकारें, एनजीओ और अधिकारी कई बार खुद बहुत बड़े घोटाले करते हैं. यह बात भी सामने आ चुकी है वृक्षारोपण के दम पर सरकार ने वन भूमि का क्षेत्रफल बढ़ने की जो बात कही वह सच नहीं है. अगर वाकई सरकार वायु प्रदूषण के लिये गंभीर होती, तो वह पिछले कुछ सालों में वायु प्रदूषण से हो रही लोगों की मौतों पर प्रकाशित हुई संजीदा ख़बरों को खारिज न करती.
महत्वपूर्ण है कि सरकार ने न केवल जाने-माने संस्थानों और वैज्ञानिकों की बनायी रिपोर्ट खारिज की है, बल्कि तब भी कोई कार्रवाई नहीं की जब देश के प्रतिष्ठित इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने पिछले साल दिसंबर में वायु प्रदूषण से जुड़े भयावह आंकड़े जारी किये. आईसीएमआर के मुताबिक भारत में करीब 80% लोगों को साफ हवा नसीब नहीं है. देश में हर 8 में से 1 मौत वायु प्रदूषण के कारण होती है. रिपोर्ट हमें बताती है कि भले ही भारत में दुनिया की आबादी के कुल 18% लोग रहते हैं, लेकिन पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली अकाल मौतों में से 26% भारत में होती हैं.
लेकिन कई साल के इंतज़ार के बाद सरकार ने आपको एक नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम दिया जो बहुत ही लचर और ढुलमुल है और जिसमें कोई कानूनी ताकत नहीं है. सरकार ने कोयला बिजलीघरों के लिये बनाये जाने वाले कड़े नियमों में भी ऐसी ढील दी है कि वह अगले 5 साल तक और प्रदूषण कर सकेंगे. आपको बता दें कि दुनिया भर में वायु प्रदूषण से लोगों की उम्र जहां औसतन 20 महीने कम हो रही है, वहीं उम्र घटने का यह आंकड़ा भारत में 30 महीने का है.
लेकिन हमें क्या फर्क पड़ता है? हमारे पास स्मार्ट फोन है और हम #सेल्फीविथसेपलिंग खींचकर खुश हो सकते हैं.
Also Read
-
TV Newsance 320: Bihar elections turn into a meme fest
-
We already have ‘Make in India’. Do we need ‘Design in India’?
-
Not just freebies. It was Zohran Mamdani’s moral pull that made the young campaign for him
-
बीच चुनाव में हत्या हो रही, क्या ये जंगलराज नहीं है: दीपांकर भट्टाचार्य
-
Cheers, criticism and questions: The mood at Modi’s rally in Bhagalpur